निर्धनता पर निबंध | Essay on Poverty in Hindi language!

Essay # 1. निर्धनता का प्रस्तावना (Introduction to Poverty):

धन और निर्धनता अत: सबसे महत्वपूर्ण अध्ययन निर्धनता का है । निर्धनता बेरोजगारी और आर्थिक विषमता का मूल कारण है । विकासशील देशों में ‘निरपेक्ष निर्धनता’ के साथ-साथ घटिया जीवन स्तर के रूप में ‘सापेक्ष निर्धनता’ भी देखने को मिलती है ।

दो समय का भोजन इनके लिए विलासिता है, अपने स्वामियों के उतरे हुए कपड़े और बचा हुआ भोजन इनकी खुशकिश्मती है, आवास के अभाव में ये प्रकृति की गोद में जन्म लेते है । ”एक स्थान की दरिद्रता दूसरे स्थान की सम्पन्नता के लिए एक खतरा है ।”

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ”राष्ट्रों की निर्धनता का अध्ययन राष्ट्रों के धन भी अधिक महत्वपूर्ण है ।” सच भी है, क्योंकि सम्पन्नता का अस्तित्व निर्धनता पर ही निर्भर करता है । अन्यथा निर्धनता सम्पन्नता को जीने नहीं देती ।

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सन् में स्वतंत्रता के पश्चात् सन् 195 में भारत में आर्थिक नियोजन के माध्यम से देश का तीव्र आर्थिक विकास करने का निर्णय लिया गया था । नियोजित आर्थिक विकास में देश में निर्धनता को कम करने, बेरोजगारी दूर करने, आर्थिक विषमताओं में कमी करने तथा जनसंख्या वृद्धि को रोकने का उद्देश्य रखा गया ।

लेकिन रचतंत्रता प्राप्ति के ०वर्षो से अधिक, आर्थिक नियोजन के समय भारत में वर्तमान समय में बेरोजगारी, निर्धनता, आर्थिक विषमता तथा जनसंख्या विरकोट की समस्या का समाधान नहीं किया जा सका है । इस दृष्टि से हमारे देश में 11 पंचवर्षीय योजनाएं पूरी हो गई है तथा वर्तमान में 12वीं पंचवर्षीय योजना जारी है । इन सब प्रयासों के बाबजूद भारतीय आर्थिक समस्याएं-निर्धनता, आर्थिक विषमता, बेरोजगारी तथा जनसंख्या विस्फोट ज्यों की त्यों है ।

Essay # 2. निर्धनता की अवधारणा और गरीबी की रेखा (Concept of Poverty and Poverty Line):

सैद्धान्तिक रुप से निर्धनता को निरपेक्ष एवं सापेक्ष निर्धनता के कप में परिभाषित किया गया है ।

i. निरपेक्ष निर्धनता:

निरपेक्ष निर्धनता से तात्पर्य मानव द्वारा आधारभूत आवश्यकताओं जैसे- भोजन, कपडा, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि की पूर्ति हेतु पर्याप्त वस्तुओं एवं सेवाओं को जुटा पाने की असमर्थता से है ।

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ii. सापेक्ष निर्धनता:

सापेक्ष निर्धनता से आशय आय की असमानताओं से है । निर्धनता का सापेक्षिक दृष्टिकोण आय, संपत्ति तथा उपभोग के वितरण में व्याप्त विषमता को दर्शाता है ।

योजना आयोग के अनुसार किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए न्यूनतम निम्न वस्तुएं उपलब्ध होनी चाहिए:

(i) संतोषजनक पौष्टिक आहार, कपड़ा, मकान और अन्य कुछ सामग्रियां जो किसी परिवार के लिए जरुरी हैं ।

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(ii) न्यूनतम शिक्षा, स्वच्छ पानी और साफ पर्यावरण ।

योजना आयोग ने गरीबी रेखा को गरीबी मापने का सूचक माना है, जिसे दो कसौटियों में प्रस्तुत किया गया है ।

पहली कैलोरी का उपयोग और दूसरी कैलोरी पर खर्च होने वाली न्यूनतम आय । कैलोरी उपभोग मापदण्ड के अनुसार किसी भी व्यक्ति को औसत रूप से स्वस्थ रहने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में 2410 कैलारी एवं शहरी क्षेत्रों में 2070 कैलारी की न्यूनतम आवश्यकता होती है ।

वर्ष 2009-10 के अनुसार, इसकी पूर्ति के लिए गाव में 673 रुपये मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय और शहर में 860 रुपये मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय । गरीबी की रेखा आय का वह स्तर जिससे लोग अपने पोषण स्तर को पूरा कर सके, वह गरीबी की रेखा है गरीबी रेखा के नीचे वे लोग जो जीवन की सबसे बुनियादी आवश्यकता की व्यवस्था नहीं कर सके. गरीबी रेखा के नीचे माने जाते है ।

वास्तव में यही वह अवस्था है जिसमें आकर जीवन पर सकट और दु:खो की संभाव्यता सौ फीसदी हो जाती है । जिस सीमा को हम गरीबी रेखा कहते है, उसे परिभाषित करने के लिए सरकार की और से कुछ आर्थिक मानदण्ड तय किए है, जिसके आधार पर यह तय होता है कि किसका जीवन संकटमय अभाव में बीत रहा है ।

गरीबी रेखा के निर्धारण के संदर्भ में आर्थिक मापदण्ड की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, आर्थिक मापदण्ड के अन्तर्गत किसी परिवार की आय मापने के लिए उसके पास उपलब्ध सुविधाओं और सेवाओं का मूल्यांकन किया जाता है जैसे- परिवार के पास सीलिंग पंखा, साईकिल, स्कूटर, कार, टीवी है अथवा नहीं । साथ ही मकान कैसा है- कच्चा या किराए का । लोग क्या और कितना खाते हैं- दाल, सब्जी, दूध, फल आदि ।

ग्रामीण समाज के संदर्भ में गरीबी के मापदण्ड में भूमि की भूमिका महत्वपूर्ण होती हे, मापदण्ड के अन्तर्गत उन लोगों को गरीबी रेखा के नीचे रखा जाता है जिनके पास आधा हेक्टेयर से कम अथवा बिल्कुल भूमि न हो ।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने जो दीर्घायु और स्वस्थ जीवन जीने शिक्षित होने और जीवन-यापन के अच्छे आर्थिक मानक की तीन आधारभूत योग्यताओं के आधार पर मानव विकास सूचकांक तैयार किया है, सूचकांक के लिए स्वास्थ स्तर का आंकलन जीवन प्रत्याशा के द्वारा, शैक्षणिक स्तर को प्रौढ़ साक्षरता और प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक स्तर पर पंजीयन के आधार पर तथा रहन-सहन का आकलन आय स्तर एवं क्रय-शक्ति समता के आधार पर तैयार किया जाता है ।

Essay # 3. भारत में निर्धनता के कारण (Causes of Poverty in India):

i. प्रदर्शन प्रभाव:

यह अल्पविकसित देशों के लोगों में उन्नत देशों का अनुकरण करने की लालसा उत्पन्न करके, उनकी उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाकर पूजी निर्माण की दर को कम करता है ।

ii. सम्पर्क प्रभाव:

जब अल्पविकसित देशों के लोग विकसित देशों के उन्नत उपभोग तरीकों व उच्च उपभोग स्तर को जान लेते है तो उनमें उनका अनुकरण करने की लालसा बहुत तीव्र हो जाती हे । जो अनेक तरीकों से उत्पन्न हो सकता है, जैसे- चलचित्र, दूरदर्शन पत्र पत्रिकाए आदि से कारों, रेफ्रिजरेटरों, वातानुकूलित साधनों आदि का उपभोग ।

iii. जनसंख्या वृद्धि:

जनसंख्या वृद्धि गरीबी का सबसे बड़ा कारण रहा है । जनसंख्या वृद्धि से गरीबों के उपभोग स्तर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, प्रत्यक्ष रुप से ऐसे परिवारों की आर्थिक स्थिति को क्षति पहुंचती है । साथ ही परोक्ष रुप से बचत एवं निवेश में भी बाधा उत्पन्न होती है ।

iv. कृषि का आधुनिकीकरण:

पारम्परिक रुप से देश में कृषि जीवन का आधार रही है । लेकिन उद्योगों के विकास से नकदी तथा व्यावसायिक फसलों के उत्पादन, रासायनिक खाद का अधिक प्रयोग से कृषकों की भूमि अनुत्पादक होती गई, साथ ही कृषि के आधुनिकीकरण से कृषि मजदूरी के अवसरों में कमी आई है ऐसी स्थिति में जीवन निर्वाह करने एवं रोजगार वे अभाव में लोग कम मजदूरी पर भी कार्य करने को तैयार हो जाते है ।

v. रोजगार की धीमी गति:

भारत देश में श्रमिकों की संख्या में वृद्धि के अनुपात में रोजगार के अवसरों में वृद्धि नहीं हुई है । जिसका कारण है विकास की धीमी गति, अपर्याप्त पूजी निर्माण, पूंजी उत्पादन अनुपात ऊँचा होने से उत्पादन में कमी आदि । ऐसी स्थिति में गरीबी की समस्या उत्पन्न होना सामान्य बात है ।

vi. अपर्याप्त जन सुविधाएं:

रोजगार का अभाव एवं मजदूरी कम होने के कारण अधिकांशत: क्षेत्रों में आज भी अनिवार्य सुविधाएं जैसे- शिक्षा, चिकित्सा, पेयजल, परिवहन, आवास एवं विद्युत आदि का अभाव पाया जाता है ।

vii. स्थानान्तरण:

विकास के नाम पर ओद्योगिक इकाइयों की स्थापना एवं बड़ी परियोजनाओं को (बांध, ताप विद्युत परियोजनाएं, वन्य जीव अभ्यारण आदि) को शासकीय स्तर पर बड़ी तत्परता से लागू किया गया, जिसके परिणामस्वरुप हजारों गांवो को विस्थापित किया गया वहां के निवासियों को अपनी जमीन के साथ-साथ परम्परागत व्यवसाय छोड़कर नए व्यवसाय की खोज में निकलना पड़ा । रोजगार के अभाव में व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर पलायन करता है ।

viii. वितरण में विषमता:

आय एवं धन के वितरण में विषमता निर्धनता का एक कारण है । धन एवं आर्थिक सत्ता का केन्द्रीयकरण कुछ लोगों के ही हाथों में है जिसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय एवं उपभोग कम होने से निर्धनता बढ़ी है ।

ix. प्राकृतिक विपदाएँ:

प्राकृतिक विपदाओं से जान माल को क्षति होती है आय एवं रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते है । जिससे निर्धनता बढ़ती है ।

x. अनार्थिक जोत:

आर्थिक जोत एक ऐसी जोत होनी चाहिए जिसमें प्रत्येक व्यक्ति बने पर्याप्त उत्पादन के अवसर उपलब्ध हों ताकि वह आवश्यक व्ययों के बाद अपने परिवार का उचित पालन पोषण कर सके ।

दूसरे शब्दों में भूमि का आकार, भूमि, खेती आदि स्थानीय दशाओं को ध्यान में रखते हुए, इतना होना चाहिए कि वह आर्थिक जोत को हो तथा भरण-पोषण के लिए पर्याप्त हो ।

क्यों है गरीब भारत ?

भारत के लोग सृजनात्मक होते है, उन्होंनें यह साबित किया हे कि वे परिश्रमी और मित्तव्ययी होते है । परन्तु वे क्या कारण है जो भारत को गरीब और अमेरिका को अमीर देश बनाते है, जबकि एक समान राजनैतिक ढांचा है, समान विचारधाराएं व मान्यताएं है ।

इतना ही नहीं दोनों देशों में मेधावी और परिश्रमी मानव संसाधन के समृद्ध स्रोत है । क्यों अमेरिकी नागरिक 8 गुना अधिक उत्पादक है एक शिक्षित भारतीय अमेरिका में बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक होता है, ऐसा अमेरिका में क्या है कि ज्यादातर मामलों में वह भारतीयों को अपनी घरेलू जमीन से बेहतर प्रदर्शन करवाता है ।

(i) भारत अपनी औपनिवेशिक कारण से गरीब है । वह जान-बूझकर गरीब है और गरीब बने रहने के लिए कड़ी मेहनत करता है जबकि इसके विपरीत अमेरिका अमीर इसलिए है क्योंकि वह न केवल अपनी सम्पत्ति को बनाए रखने के लिए बल्कि हर रोज खुद को ज्यादा धनवान बनाने के लिए कठोर परिश्रम करता है ।

(ii) भारत गरीब इसलिए है क्योंकि उसने खुद को आत्मघाती रुप से गरीबी पर पूरी तरह केंद्रित कर रखा है । देश के अथाह संसाधनों का इस्तेमाल गरीबों को आर्थिक सहायता और रोजगार मुहैया कराने में किया जाता है ।

(iii) भारत में नौकरियों को अति महत्त्वपूर्ण माना जाता है और यह देश अनुत्पादक नौकरियों को बचाने के लिए काफी हद तक कुछ भी करने के लिए तैयार रहता है । इसके विपरीत अमेरिका में उत्पादकता को ज्यादा महत्व दिया जाता है ।

अत: उत्पादकता से मिलने वाले फायदों के लिए किए जाने वाले अथक प्रयास अमेरिकी समृद्धि की हकीकत है जबकि नौकरियों को सुरक्षित बनाए रखना भारतीय गरीबी की असलियत है ।

(iv) अमेरिका उस राजनीति का अनुसरण करता है जिससे सम्पत्ति का सृजन होता है जबकि भारत उस राजनीति के पीछे बढ़ता है जिसमें सम्पत्ति का पुनर्वितरण होता है । राष्ट्रीय संपदा के अभाव में भारत गरीबी का पुनर्वितरण करता है और गरीब ही बना रहता हे जबकि अमेरिका अमीरी की ओर बढ़ता है ।

संक्षेप में भारत अपनी गलत आर्थिक नीतियों और दृष्टिकोण के कारण गरीब है । हमने अपने यहां उद्यमियों का दमन किया है, नौकरशाहों की ताकत में इजाफा किया है । सरकार ने जिस उद्योग को छुआ उसे अनुत्पादक बना दिया ।

इसी पैसे का इस्तेमाल लोगों को शिक्षा देने एवं उत्पादक कार्यों में करते तो आज हम एक समर्थ और सक्षम लोगों का समूह होते । अत: भारत के पास वह सब कुछ है जो उसे एक महाशक्ति बनाने के लिए जरुरी है, लेकिन इसके लिए बड़े पैमाने पर राजनैतिक इच्छा शक्ति के साथ प्रभावी नेतृत्व की जरूरत है, ताकि देश को समृद्ध बनाया जा सके ।

भारत के ज्यादा समृद्ध बनने का एक ही तरीका है कि वह अपनी श्रम शक्ति और भौतिक पूजी की उत्पादकता पर अपना ध्यान केंद्रित करें । यह एक गलत धारणा है कि उत्पादकता बढ़ाने से बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ेगी ।

Essay # 4. निर्धनता उन्मूलन के प्रयास (Efforts Taken to Reduce Poverty):

निर्धनता एक अभिशाप है, जो भारत में बड़ी मात्रामें विधमान है । इसके समाधान के लिए कुछ उपाय किए जाए जिससे देश में इस समस्या का समाधान हो सके । गरीबों की पहचान के लिए योजना आयोग प्रत्येक पाँच वर्ष में राष्ट्रीय सेम्पल सर्वेक्षण कार्यलय द्वारा किए गए गृहस्थ उपभोक्ता व्यय के सम्बन्ध में सेम्पल सर्वेक्षणों के प्राप्त आकडों का प्रयोग कर गरीबी का अनुमान लगाता है ।

यह गरीबी रेखा को मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय के आधार पर परिभाषित करता है । हाल के आकलनों के आधार पर पता चलता है कि विगत अवसरों पर वास्तविक गरीबों की पहचान नहीं की गई और उनके नाम बी.पी.एल. सूची में नहीं आये जिसके कारण उन्हें अन्य योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया । वर्ष 2009-10 में गरीबी 29.8 प्रतिशत रही ।

गरीबों के लिए शासन स्तर पर कई कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही है:

(i) लोगों में प्रदर्शनकारी उपभोग को हतोत्साहित करके उन्हें इस बचत को उत्पादक निवेश में लगाने के लिए प्रेरित करना । इससे निर्धनता को एक सीमा तक कम किया जा सकता है ।

(ii) हर गांव, परिवार में गरीबी के कारण अलग-अलग हो सकते है पर उनके समाधान का मूल आधार एक समानता आधारित समाज की स्थापना करना है ।

(iii) ग्रामीण भारत में लोगों की जीविका का साधन कृषि है । भारत में कृषि संबंधित क्षेत्रों में हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, नीली क्रांति, नीली क्रांति से जुड़े विकास का लाभ उठाया है । कृषि, देश के सकल घरेलू उत्पाद में 1/4 से अधिक योगदान देता है जबकि देश के कुल दो तिहाई लोगों को रोजगार प्रदान करता है ।

(iv) भारत में औसत किसानों के पास 1 हेक्टेयर या उससे कम जमीन उपलब्ध है । तीव्र जनसंख्या वृद्धि एवं लोगों की क्रयशक्ति वृद्धि से, गैर कृषि कार्यों में बढ़ते उपयोग पर रोक जरुरी है । यथाशीघ्र आर्थिक रुप से सुस्थिर, वृहद एवं एकीकृत कृषि पद्धति को लागू करना आवश्यक है ।

(v) वास्तव में भूमि की एक इकाई के साथ उत्पत्ति के अन्य साधनों का सही या गलत अनुपात भूमि की जोतो को आर्थिक या अनार्थिक बनाता है । इस प्रकार एक छोटा खेत उसी प्रकार आर्थिक हो सकता है जैसे एक बड़ा खेत ।

(vi) भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण प्रत्येक फार्म में विखण्डनों की संख्या बढ़ गई है । अनैच्छिक भूमि वितरण के कारण भू-खण्डों का विखण्डन हुआ है और उत्पादकता में बहुत अधिक सुधार नहीं हुआ है । पंचवर्षीय योजना में इस बात पर काफी जोर दिया गया है कि भूमि जोतों की चकबंदी को कृषि सुधार कार्यक्रम का अभिन्न भाग बनाया जाना चाहिए ।

(vii) आज जरूरत इस बात की है कि तमाम खादय सामग्री और जीवनोपयोगी सामान को कम से कम मानव श्रम के जरिये हासिल किया जाए । इससे हमारा मानव संसाधन दूसरे ऐसे नए कामों के लिए उपलब्ध हो जाएगा । मानव संसाधन के अन्तर्गत शिक्षा, स्वास्थ सेवाएं, मनोरंजन बैंकिग आदि सेवाएं आती है ।

(viii) उत्पादकता को तेजी से बढ़ाने का प्रमुख कारक है प्रतिस्पर्धा । इससे लोगों पर अपनी दक्षता बढ़ाने का दबाब बना रहता हे ।

(ix) भीमराव अम्बेडकर का कहना था कि, वर्तमान सामाजिक-आर्थिक- परिस्थितियों में चकबंदी और जोतों के आकार में वृद्धि का उपाय निश्चित रूप से निम्न उत्पादकता के कारण सफल नहीं होंगे । भारतीय का सबसे अच्छा उपचार तो भारत का औद्योगीकरण है ।

औद्योगीकरण के महत्व और लाभों के प्रभाव संचयी प्रकृति के होते हैं जैसे:

(a) भूमि पर दबाव कम होता है ।

(b) पूंजी की मात्रा में वृद्धि होती है ।

(c) पूँजीगत वस्तुएँ अनिवार्य रूप से जोतों के आकार में वृद्धि को जन्म देती है ।

(d) इससे भूमि पर प्राप्त होने वाला प्रीमियम समाप्त हो जाता हे ।

(e) उपविभाजन के अवसर कम हो जाते हैं ।

(f) औद्योगीकरण का प्रतिवर्ती प्रभाव होता है जिससे रोजगार तेजी से बढ़ता है ।

अन्त में देश में महिलाओं और पुरुष के बीच पूर्ण समानता, सभी के लिए निशुल्क बुनियादी मानव अधिकार के रूप में आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन और पीने के पानी की गारंटी प्रदान करना ।

निष्कर्ष:

वर्तमान समय में गरीबी का आकलन करना एवं नई चुनौती है, ऐसा नहीं है कि गरीबी को मिटाना संभव नहीं है । वास्तविकता तो यह है गरीबी को मिटाने की इच्छा कहीं नहीं है । गरीबी का बने रहना समाज की जरूरत है, यह उसी सीमा तक चिन्तनीय है जहां तक उसके कारण जो गरीबी नहीं है, उन्हें भी समस्याएं भुगतनी पड़ती है ।

भारत में 4.62 लाख उचित मूल्य की राशन की दुकानों के जरिये हर वर्ष 35,000 करोड़ रुपये मूल्य का अनाज 16 करोड़ परिवारों को वितरित किया जाता है । भारत की सार्वजनिक प्रणाली दुनिया की सबसे बड़ी वितरण प्रणाली है । सच्चाई यह है । जिन आधारों पर व्यक्ति को गरीब माना जाता है यदि उन्हीं पर नजर डाले तो स्थिति दुखदायी है ।

देश में हो रहे विकास का लाभ समाज के गरीब और वंचित वर्गों तक सीधे नहीं पहुँच रहा है स्वाभाविक है कि गरीबों की परिस्थितियों में भी सुधार नहीं हो रहा हे परन्तु वहीं दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव और राजनैतिक कारणों से सरकार गरीबों की संख्या में लगातार कमी करती जा रही है ।

इसका सीधा सा अर्थ है कि अब कई पहचान से वंचित गरीबों को सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पायेगा । आज के दौर में गरीबी के सन्दर्भ में जो सबसे आम प्रवृत्ति का पालन किया जा रहा है वह है गरीबी को नकारना ।

भारत में कृषि समस्याओं का समाधान केवल जोतों का आकार बढ़ा कर नहीं किया जा सकता । इसके लिए पूँजी और पूंजीगत वस्तुओं को बढ़ाना आवश्यक है । परन्तु पूँजी का निर्माण बचत पर निर्भर करता है और बचत केवल वहीं हो सकती है जहाँ आधिक्य हो । भारतीय कृषि में कोई आधिक्य नहीं है । इस घाटे को आधिक्य में परिवर्तित करने की आवश्यकता है ।

हम स्वतंत्रता के बाद लगभग 6 दशकों की यात्रा कर चुके है । हमारी सभी नीतियों का उद्देश्य समता और सामाजिक न्याय सहित तीव्र विकास और संतुलित आर्थिक विकास रहा है । चाहे जो भी सरकार सत्ता में रही हो सभी ने निर्धारण को ही भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौति माना है । भारत देश में निर्धनों की निरपेक्ष संख्या में कमी आई है और कुछ राज्यों में राष्ट्रीय औसत से निर्धनों का अनुपात कम है ।

यद्यपि इस कार्य के लिए विशाल धनराशियाँ आवंटित और खर्च की जा चुकी है. किन्तु फिर भी हम लक्ष्य से बहुत दूर है । प्रति व्यक्ति आय और औसत जीवन स्तर में सुधार हुआ है, बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति की दिशा में भी बहुत कुछ प्रगति अवश्य हुई है । किन्तु अन्य देशों की तुलना में हमारी यह प्रगति प्रभावहीन प्रतीत होती है ।

यही नहीं, विकास के लाभ जनता के सभी वर्गों तक नहीं पहुंच पाए है । दूसरी ओर सामाजिक और आर्थिक विकास की कसौटियों पर देश के कुछ क्षेत्रक अर्थव्यवस्था के कुछ वर्ग और समाज के कुछ अंश तो अनेक विकसित देशों से भी प्रतियोगिता कर सकते है, फिर भी समाज का बहुत बड़ा समुदाय जो अभी भी निर्धनता के कुचक्र से मुक्ति नहीं पा सका है ।

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