एकीकृत कीट प्रबंधन पर निबंध | Essay on Integrated Pest Management in Hindi!

Essay Contents:

  1. समन्वित कीट प्रबन्ध का परिचय (Introduction to Integrated Pest Management)
  2. समन्वित कीट प्रबन्ध की आवश्यकताएं (Need for Integrated Pest Management)
  3. समन्वित कीट प्रबंध की शक्ति  (Powers of Integrated Pest Management)
  4. समन्वित कीट प्रबंध के तथ्य (Facts and Figures of Integrated Pest Management)
  5. समन्वित कीट प्रबंधन क्रियान्वयन में बाधाएँ (Limitations of Integrated Pest Management)

Essay # 1.

समन्वित कीट प्रबन्ध का परिचय (Introduction to Integrated Pest Management):

विश्व की बढती हुई जनसंख्या की खाद्यान्न माँग पूरा करना कृषि वेज्ञानिकों के समक्ष चुनौती है जिसके लिए नए-नए आविष्कार व खोजें करना अत्यंत आवश्यक है । सन् 1966 में भारत में हरित क्रांति इसका प्रमुख उदाहरण है । उच्च उत्पादन के लिए आधुनिक कृषि को अपनाने के लिए जोर दिया जा रहा है जिसमें यंत्रीकरण के साथ-साथ अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का प्रयोग उर्वरक व कीटनाशियों की भूमिका भी प्रमुख है ।

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कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ नाशीजीव का नुकसान भी बढ़ रहा है एक अनुमान के अनुसार हानिकारक कीटों के द्वारा 10 से 30 प्रतिशत तक फसल उपज का नुकसान होता है जिसकी लागत करीब रुपए 20 हजार करोड़ है । इस नुकसान को रोकने के लिए भारत में 90,000 मिट्रिक टन जीवनाशी का प्रयोग प्रतिवर्ष होता है जिसका कुल 36 प्रतिशत आंध्र-प्रदेश, राज्य में और अकेले 54 प्रतिशत कपास की फसल में होता है । मगर यह समस्या पूर्ववत शोचनीय है ।

सन् 1939 में डी.डी.टी. के आविष्कार के समय संभावना जगी कि कीट हानियों से सदा के लिए मुक्ति मिल जाएगी तब से आज तक के 60 वर्षों में विभिन्न प्रकार के नए कीटनाशी विकसित हुए है मगर कीटों द्वारा नुकसान लगातार जारी है । चिंता की बात यह है कि 504 कीट जातियों इन कीटनाशकों के एक या समूह के प्रतिरोध क्षमता विकसित कर चुकी हैं जिसमें 12 जातियाँ सभी विकसित कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोध क्षमता रखती है ।

पीड़कनाशियों के प्रयोग से लगभग 30 लाख व्यक्ति प्रतिवर्ष तीव्र जहर के शिकार होते हैं जिनमें से 2 लाख 20 हजार लोगों की तो मौत हो जाती है । कृषि श्रमिकों की हालत और भी दयनीय है । एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 2 करोड़ 40 लाख श्रमिक हर वर्ष इन जहर के शिकार होते हैं जो उपचार के बाद ही स्वस्थ हो पाते हैं ।

कीटनाशकों के अत्यधिक व अनुचित प्रयोग से ये खाद्य श्रृंखला में संचित हो जाते है जिससे वातावरण प्रदूषित हो रहा है । जो कि विभिन्न तरीकों से मानव समुदाय एवं अन्य जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुँचाता है ।

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जैसे:

1. कीटों में प्रतिरोध क्षमता का विकसित होना;

2. लाभप्रद कीटों का नष्ट होना;

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3. उपचारित कीटों का प्रादुर्भाव होना;

4. गौण कीटों का आर्थिक चेतावनी स्तर पर आना;

5. विभिन्न प्रकार की फसलों के उत्पाद में कीटनाशी अवशेष विद्यमान रहना;

6. मानव, जीव-जन्तुओं व वातावरण को भारी नुकसान ।

भारत के कृषि मंत्रालय के वनस्पतिक रक्षा, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के अन्तर्गत केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव में प्रकाशित पत्रक द्वारा साभार:

1. यह कृषकों की, कृषकों द्वारा और कृषकों के लिए कीट प्रबन्ध की सक्षम तकनीक है ।

2. यह कृषकों की कृषि रक्षा के लिए सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करती है ।

3. यह कम लागत पर भरपूर उत्पादन लेने की तकनीक है ।

4. यह रासायनिक कीटनाशकों के दुष्प्रभाव को समाप्त करने की विधि है ।

5. यह गतिशील व फसल सुरक्षा की आधुनिक शिक्षा प्रणाली है ।

6. यह एक कृषक क्रांति व सामाजिक आन्दोलन है ।

7. इस तकनीक में रासायनिक कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग किया जाता हैं ।


Essay # 2.

समन्वित कीट प्रबन्ध की आवश्यकताएं (Need for Integrated Pest Management):

1. पर्यावरण का प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए ।

2. कीटनाशकों से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए ।

3. कीटों में कीटनाशकों के प्रति बढ़ती प्रतिरोध क्षमता को रोकने के लिए ।

4. कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से मित्र कीटों का विनाश एवं नए हानिकर कीटों का उद्‌भव रोकने के लिए ।

5. कीटनाशकों से बढ़ती दुर्घटनाओं एवं स्वास्थ्य समस्याओं को रोकने के लिए ।

6. मित्र कीटों के संरक्षण के लिए ।

7. कीटनाशकों का खाद्य पदार्थों चारे एवं पानी आदि में बढ़ते अवशेष को रोकने के लिए ।

8. कृषकों में मित्र कीटों के संरक्षण व संवर्धन के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए ।

9. कीटनाशकों के अविवेकपूर्ण प्रयोग को हतोत्साहित करने के लिए ।

10. विषरहित एवं कृषि उत्पादन स्तर बनाए रखने के लिए ।

समन्वित कीट प्रबंध कैसा हो?

1. नाशीकीटों का प्रभावशाली नियंत्रण,

2. आर्थिक रूप से लाभप्रद,

3. साधारण एवं परिवर्तनीय,

4. सुसंगत नियंत्रण तकनीकों का प्रयोग,

5. उत्पादन स्तर को बनाए रखने में सक्षम, तथा

6. उपभोक्ता, उत्पादक एवं वातावरण में कम से कम हानिकारक प्रभाव छोडना ।


Essay # 3.

समन्वित कीट प्रबंध की शक्ति  (Powers of Integrated Pest Management):

i. खेतों में हानिकर कीटों से कई गुना अधिक विभिन्न प्रकार के मित्र कीट होते हैं जो फसल की सुरक्षा करते हैं ।

ii. फसल में हानिकारक कीटों एवं अन्य प्रतिकूल स्थितियों से होने वाले नुकसान की पूर्ति करने की असीम क्षमता होती है ।

iii. समन्वित कीट प्रबंध से पारिस्थितिकी तंत्र एवं पर्यावरण की सुरक्षा होती है ।


Essay # 4.

समन्वित कीट प्रबंध के तथ्य (Facts and Figures of Integrated Pest Management):

कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए व सफल कीट प्रबंध के लिए निम्नलिखित तथ्यों का गहन चिंतन अत्यंत आवश्यक है:

i. कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का पूर्ण ज्ञान:

कृषि तंत्र प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की अपेक्षा कम जटिल होता है एक विकसित कृषि इकाई में एक से चार तक मुख्य फसलें होती हैं जो 6 से 10 तक मुख्य हानिकारक कीटों द्वारा प्रभावित होती है । जबकि प्रकृति में अनेकों फसलें होती है और विभिन्न तरह के कीट, रोग व हानिकर जीव अपना जीवन इन पर निर्वाह कर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इनको नुकसान करते हैं ।

अतः मौसम व मानव के द्वारा वातावरण में हुए अचानक परिर्वतन से कृषि तंत्र प्रभावित होता है जब कि प्राकृतिक तंत्र में काफी निश्चिलता होती है ।

ii. कृषि पारिस्थितिकी तंत्र की योजना:

फसल एवं किस्म विशेष को उगाने के पहले उसमें लगने वाले कीट एवं रोगों की पूर्ण जानकारी आवश्यक है । जहाँ तक संभव हो प्रतिरोधक किस्मों को ही प्राथमिकता देना चाहिए जिससे कीटनाशकों के प्रयोग से बचा जा सके ।

iii. कीमत/लाभ व लाभ/हानि की जानकारी:

कृषि में उपयोग होने वाले कीटनाशकों से यदि फसल बढती है तो उसका श्रेय कीटनाशक को मिलता है जब कि कीटनाशक तो केवल कीट नुकसान को कम करता है और फसल को उसकी क्षमता प्रदर्शित करने में मदद करता है जिससे फसल लागत बढ़ती है ।

अतः कीट नुकसान की संभावना कीट संख्या एवं फसल चक्र के आधार पर विश्लेषण के लिए प्रेरित करती है । कृषक कीटनाशकों के उपयोग में अपना एवं अपने श्रमिकों का ही ध्यान रखता है जबकि इसके अवशेष से समाज को होने वाले नुकसान का भी पूर्ण ध्यान अत्यंत आवश्यक है ।

iv. फसल की सहनशीलता का ज्ञान होना:

प्रत्येक फसल में जैविक व अजैविक कारकों से होने वाले नुकसान को सहन करने की प्राकृतिक क्षमता विद्यमान रहती है । अतः फल के प्रत्येक भाग में कीट द्वारा होने वाले नुकसान को उपज में कमी के रूप में गणना करना आवश्यक है जिससे आर्थिक चेतावनी स्तर का निर्धारण हो सके । प्रकृति में फसल की पूर्ण क्षमता उपज के रूप में प्रकट नहीं हो सकती है क्योंकि हवा, पानी, तापक्रम व अन्य माध्यमों से फसल की उपज का नुकसान सदैव होता है ।

v. कुछ कीटों को खेत में अवश्य छोड़ना:

हानिकारक जीवों का नियंत्रण करने के लिए प्रकृति में अनेक मित्र कीट पाए जाते है । इन कीटों को अधिक संख्या में बढ़ने के लिए हानिकारक कीटों की कुछ संख्या खेत में रहना अत्यंत आवश्यक है जिससे मित्र कीटों को सतत् भोजन मिलाता रहे । अतः हानिकर कीटों को समाप्त करने के स्थान पर आर्थिक चेतावनी स्तर से नीचे लाने पर जोर देना चाहिए ।

vi. सही समय पर कीटनाशकों का प्रयोग:

कीटनाशकों के प्रयोग से अच्छे परिणाम लाने के लिए हानिकर कीट की आर्थिक चेतावनी स्तर का ज्ञान होना आवश्यक है और इसी स्तर पर इनके प्रयोग की संस्तुति की जाती है । कीटनाशकों का चयन कीट नुकसान की प्रकृति, वातावरण एवं फसल प्रकृति पर निर्भर करता है साथ ही फल की ऊँचाई के अनुसार भी कीटनाशक छिड़काव घोल की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है ।

उचित तरीके से किया गया एक छिड़काव अनुचित तरीके से किए गए कई छिड़कावों से अधिक लाभकारी सिद्ध होता है ।

vii. कीट प्रबन्ध के विषय में जन-जागृति पैदा करना:

कीटनाशकों से होने वाले दुष्प्रभावों को जन-आंदोलन के रूप में उजागर कर विकल्प के रूप में समन्वित कीट प्रबंध की विशेषताओं पर जोर देना चाहिए । कीट प्रबंध की विधियों को प्रदर्शन के माध्यम से कृषकों को दिखाना चाहिए साथ ही सरकारी नीतियों को भी समन्वित कीट प्रबंध के अनुकूल होना चाहिए ।

जैसे वातावरण को नुकसान पहुँचाने वाले कीटनाशकों का पंजीकरण न हो, वनस्पतिक कीटनाशकों का पजीकरण शीघ्र हो व उन पर छूट हो इत्यादि ।


Essay # 5.

समन्वित कीट प्रबंधन क्रियान्वयन में बाधाएँ (Limitations of Integrated Pest Management):

हमारे देश में समन्वित कीट प्रबंधन कार्यक्रम को कृषकों तक पहुँचाने व इसे अधिक से अधिक लोकप्रिय बनाने में अनेक प्रकार की बाधाएँ हैं जो निम्नलिखित हैं:

i. संस्थागत बाधाएँ:

समन्वित कीट नियंत्रण कार्यक्रम विभिन्न विभागों के परस्पर समन्वय के द्वारा सफलतापूर्वक संचालित एवं क्रियान्वित किया जा सकता है । विभिन्न विभागों के मध्य किसी भी तरह के असंतुलन से कार्यक्रम के क्रियान्वयन में विघ्न उत्पन्न होता है । अनुसंधान व प्रसार विभागों के मध्य सकारात्मक सोच के साथ इस

कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की भावना अत्यंत आवश्यक है तभी यह कार्यक्रम सफलता से क्रियान्वित होगा ।

ii. सूचनागत बाधाएँ:

किसानों व प्रसार कार्यकर्ताओं तक सही सूचनाओं का सही समय तक पहुँचना अत्यंत आवश्यक है जिसकी सर्वत्र कमी महसूस होती है । प्रायः सूचनाओं का सही समय तक प्रसारित न होना इस कार्यक्रम की सफलता में बड़ी बाधा उत्पन्न करता है ।

iii. सामाजिक बाधाएँ:

कीटनाशक निर्माता कंपनियों एवं विक्रेताओं का लुभावना व आकर्षक प्रचार कार्यक्रम विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों की बाजार में सहज उपलब्धता इनके उपयोग में आसानी एवं शीघ्र परिणाम किसानों को इसी की ओर अधिक आकर्षित करते हैं जिसके कारण कीटनाशकों का प्रयोग अधिक मात्रा में होता है तथा समन्वित कीट प्रबन्धन कार्यक्रम की ओर अपेक्षाकृत कम ध्यान आकृष्ट होता है ।

iv. आर्थिक बाधाएँ:

इस पद्धति को अपनाने के लिए गहन प्रशिक्षण साधन प्रचार प्रसार की आवश्यकता पड़ती है जो कि इस कार्यक्रम की सफलता में सबसे बड़ी बाधा है ।

v. राजनैतिक बाधाएँ:

प्रायः राष्ट्रीय व प्रान्तीय स्तर पर कृषि कार्यक्रमों में पौध संरक्षण कार्य को कम महत्व दिया जाता है अतः नीति निर्धारकों व जिम्मेदार अधिकारियों का इस ओर कम ध्यान आकृष्ट होता है । इसी प्रकार रासायनिक दवा निर्माताओं का सरकार से तालमेल अच्छा होता है तथा इससे भी समन्वित कीट प्रबंध कार्यक्रम के सफलता में विघ्न उत्पन्न होता है ।


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