पर्यावरण पर निबंध | Essay on Environment in Hindi!

Essay # 1. पर्यावरण का अर्थ (Meaning of Environment):

पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है । “पार्य” जो हमारे चारों ओर है, और “आवरण” जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है । पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं ।

सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है । यह हमारे चारों और व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अन्दर सम्पादित होती है तथा हम मनुष्य अपनी समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं ।

इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच अन्योन्याश्रय का संबंध भी होता है । पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीडे-मकोडे, सभी जीव-जंतु और पेड-पौधे आ जाते हैं और इसके साथ ही उनसे जुडी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएं भी ।

ADVERTISEMENTS:

अजैविक संघटकों में जीवनरहित तत्व और उनसे जुडी प्रक्रियाएँ आती हैं, जैसे चट्टानें, पर्वत, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि । सामान्यतः पर्यावरण को मनुष्य के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है मनुष्य को एक अलग इकाई और उसके चारों ओर व्याप्त अन्य समस्त चीजों को उसका पर्यावरण घोषित कर दिया जाता है ।

किन्तु यहाँ यह भी ध्यातव है कि अभी भी इस धरती पर बहुत सी मानव सभ्यताएँ हैं जो अपने को पर्यावरण से अलग में समस्त प्रकृति एक ही इकाई है जिसका मनुष्य भी एक हिस्सा है । वस्तुतः मनुष्य को पर्यावरण से अलग मानने वाले वे हैं जो तकनीकी रूप से विकसित हैं और विज्ञान और तकनीक के व्यापक प्रयोग से अपनी प्रकृतिक दशाओं में काफी बदलाव लाने में समर्थ है ।

नाम की उत्पत्ति:

पर्यावरण शब्द संस्कृत भाषा के ‘परि’ उपसर्ग (चारों ओर) और ‘आवरण से मिलकर बना है जिसका अर्थ है ऐसी चीजों का समुच्चय जो किसी व्यक्ति या जीवधारी को चारों ओर से आवृत्त किये हुए हैं । पारिस्थितिकी और भूगोल में यह शब्द अंग्रेजी के मदअपतवदउमदज के पर्याय के रूप में इस्तेमाल होता है ।

ADVERTISEMENTS:

अंग्रेजी शब्द environment स्वयं उपरोक्त पारिस्थितिकीय अर्थ में काफी बाद में प्रयुक्त हुआ और यह शुरूआती दौर में आसपास की सामान्य दशाओं के लिये प्रयुक्त होता था । यह फ्रांसीसी भाषा से उदभूत है, जहाँ यह “स्टेट of being Environed” (See Environ + Ment) के अर्थ में प्रयुक्त होता था और इसका पहला ज्ञात प्रयोग कार्लाइल द्वारा जर्मन शब्द Umgebung के अर्थ को फ़्रांसीसी में व्यक्त करने के लिये हुआ ।

Essay # 2. पर्यावरण के प्रकार (Types of Environment):

मानव हस्तक्षेप के आधार पर पर्यावरण के दो प्रखण्डों में विभाजित किया जाता है:

(a) प्राकृतिक या नैसर्गिक पर्यावरण और

(b) मानव निर्मित पर्यावरण ।

ADVERTISEMENTS:

हालाँकि पूर्ण रूप से प्राकृतिक पर्यावरण (जिसमें मानव हस्तक्षेप बिल्कुल न हुआ हो) या पूर्ण रूपेण मानव निर्मित पर्यावरण (जिसमें सब कुछ मनुष्य निर्मित हो), कहीं नहीं पाए जाते यह विभाजन प्राकृतिक प्रक्रियाओं और दशाओं में मानव हस्तक्षेप की मात्रा की अधिकता और न्यूनता का द्योतक मात्र है । पारिस्थितिकी और पर्यावरण भूगोल में प्राकृतिक पर्यावरण शब्द का प्रयोग पर्यावास के लिये भी होता है ।

तकनीकी मानव द्वारा आर्थिक उद्देश्य और जीवन में विलासिता के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रकृति के साथ व्यापक छेडछाड के क्रियाकलापों ने प्राकृतिक पर्यावरण का संतुलन नष्ट किया है, जिससे प्राकृतिक व्यवस्था या प्रणाली के अस्तित्व पर ही संकट उत्पन्न हो गया है । इस तरह की प्रसारों समस्याएँ पर्यावरणीय अवनयन कहलाती हैं ।

पर्यावरणीय समस्याएं जैसे प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन इत्यादि मनुष्य को अपनी जीवनशैली के बारे में पुनर्विचार के लिये प्रेरित कर रही है और अब पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रबंधन की चर्चा है । मनुष्य वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से अपने द्वारा किये गये परिवर्तनों से नुकसान को कितना कम करने में सक्षम है, आर्थिक और राजनैतिक हितों की टकराव में पर्यावरण पर कितना ध्यान दिया जा रहा है और मनुष्यता अपने पर्यावरण के प्रति कितनी जागरूक है, यह आज के ज्वलंत प्रश्न हैं ।

Essay # 3. पर्यावरण का ज्ञान (Knowledge of Environment):

आज पर्यावरण एक जरूरी सवाल बल्कि ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है लेकिन आज लोगों में इसे लेकर कोइ जागरूकता नहीं है । ग्रामीण समाज को छोड दे तो भी महानगरीय जीवन में इसके प्रति खास उत्सुकता नहीं पाई जाती परिणामस्वरूप पर्यावरण एक सरकारी एजेण्डा ही बन कर रह गया है । जबकि यह पूरे समाज से बहुत ही घनिष्ठ संबंधन रखने वाला सवाल है । जब तक इसके प्रति लोगों में एक स्वाभाविक लगाव पैदा नहीं होता पर्यावरण संरक्षण एक दूर का सपना ही बना रहेगा ।

पर्यावरण का सीधा सम्बन्ध प्रकृति से है । अपने परिवेश में हम तरह-तरह के जीव-जन्तु, पेड-पौधे तथा अन्य सजीव-निर्जीव वस्तुएं पाते हैं । ये सब मिलकर पर्यावरण की रचना करते हैं । विज्ञान की विभिन्न शाखाओं जैसे-भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा जीव विज्ञान, आदि में विषय के मौलिक सिद्धान्तों तथा उनसे सम्बन्ध प्रायोगिक विषयों का अध्ययन किया जाता है ।

परन्तु आज की आवश्यकता यह है पर्यावरण के विस्तृत अध्ययन के साथ-साथ इससे सम्बन्धित व्यावहारिक ज्ञान पर बल दिया जाए । आधुनिक समाज को पर्यावरण से सम्बन्धित समस्याओं की शिक्षा व्यापक स्तर पर दी जानी चाहिए । साथ ही इससे निपटने के बचावकारी उपायों की जानकारी भी आवश्यक है । आज के मशीनी युग में हम ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं ।

प्रदूषण एक अभिशाप के रूप में सम्पूर्ण पर्यावरण को नष्ट करने के लिए हमारे सामने खडा है । सम्पूर्ण विश्व एक गम्भीर चुनौती के दौर से गुजर रहा है । यद्यपि हमारे पास पर्यावरण सम्बन्धी पाठ्य-सामग्री की कमी है तथापि सन्दर्भ सामग्री की कमी नहीं है ।

वास्तव में आज पर्यावरण से सम्बद्ध उपलब्ध ज्ञान को व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता है ताकि समस्या को जनमानस सहज रूप से समझ सके । ऐसी विषम परिस्थिति में समाज को उसके कर्तव्य तथा दायित्व का एहसास होना आवश्यक है ।

इस प्रकार समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा की जा सकती है । वास्तव में सजीव तथा निर्जीव दो संघटक मिलकर प्रकृति का निर्माण करते हैं । वायु, जल तथा भूमि निर्जीव घटको में आते है जबकि जन्तु-जगत तथा पादप-जगत से मिलकर सजीवों निर्माण होता है । इन संघटकों के मध्य एक महत्वपूर्ण रिश्ता यह है कि अपने जीवन-निर्वाह के लिए परस्पर निर्भर रहते हैं ।

जीव-जगत में यद्यपि मानव सबसे अधिक सचेतन संवेदनशील प्राणी है तथापि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वह अन्य जीव-जन्तुओं, पादप, वायु, जल तथा भूमि पर निर्भर रहता है । मानव के परिवेश में पाए जाने वाले जीव-जन्तु पादप, वायु, जल तथा भूमि पर्यावरण की संरचना करते है ।

शिक्षा के माध्यम से पर्यावरण का ज्ञान शिक्षा मानवजीवन के बहुमुखी विकास का एक प्रबल साधन है । इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के अन्दर शारीरिक, मानसिक. सामाजिक, संस्कृतिक तथा आध्यात्मिक बुद्ध एवं परिपक्वता लाना है । शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्राकृतिक वातावरण का ज्ञान अति आवश्यक है ।

प्राकृतिक वातावरण के बारे में ज्ञानार्जन की परम्परा भारतीय संस्कृति में आरम्भ से ही रही है । परन्तु आज के भौतिकवादी युग में परिस्थितियों भिन्न होती जा रही हैं । एक ओर जहां विज्ञान एवं तकनीकी के विभिन्न क्षेत्रों में नए-नए आविष्कार हो रहे हैं तो दूसरी ओर मानव परिवेश भी उसी गति से प्रभावित हो रहा है ।

आने वाले पीढी को पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों का ज्ञान शिक्षा के माध्यम से होना आवश्यक हैं । पर्यावरण तथा शिक्षा के अन्तर्सम्बन्धों का ज्ञान हासिल करके को ई भी व्यक्ति इस दिशा में अनेक महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है । पर्यावरण का विज्ञान से गहरा सम्बन्ध है, किन्तु उसकी शिक्षा में किसी प्रकार की वैज्ञानिक पेचीदगिया नहीं हैं । शिक्षार्थियों को प्रकृति तथा पारिस्थितिक ज्ञान सीधी तथा सरल भाषा में समझी जानी चाहिए ।

शुरू-शुरू में यह ज्ञान सतही तौर पर मात्र परिचयात्मक ढंग से होना चाहिए । आगे चलकर इसके तकनीकी पहलुओं को विचार किया जाना चाहिए । शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण का ज्ञान मानवीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है ।

Essay # 4. पर्यावरण और पारितंत्र (Environment and Ecology):

पर्यावरण अपनी सम्पूर्णता में एक इकाई है जिसमें अजैविक और जैविक संघटक आपस में विभिन्न अन्तर्कियाओं द्वारा संबद्ध और अन्तर्गुम्फित होते हैं । इसकी यह विशेषता इसे एक पारितंत्र का रूप प्रदान करती है क्योंकि पारिस्थितिक तंत्र या पारितंत्र पृथ्वी के किसी क्षेत्र में समस्त जैविक और अजैविक तत्वों के अंतर्सम्बंधित समुच्चय को कहते हैं ।

अतः पर्यावरण भी एक पारितंत्र है । पृथ्वी पर पैमाने के हिसाब से सबसे बृहत्तम पारितंत्र जैवमडल को माना जाता है । जैवमंडल पृथ्वी का वह भाग है जिसमें जीवधारी पाए जाते हैं और यह स्थलमंडल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल में व्याप्त है । पूरे पार्थिव पर्यावरण की रचना भी इन्हीं इकाइयों से हुई है, अतः इन अर्थों में वैश्विक पर्यावरण, जैवमण्डल और पार्थिव पारितंत्र एक दूसरे के समानार्थी हो जाते हैं ।

माना जाता है कि पृथ्वी के वायुमण्डल का वर्तमान संघटन और इसमें ऑक्सीजन की वर्तमान मात्रा पृथ्वी पर जीवन होने का कारण ही नहीं अपितु परिणाम भी है । प्रकाश-संश्लेषण, जो एक जैविक (या पारिस्थितिकीय अथवा जैवमण्डलीय) प्रक्रिया है, पृथ्वी के वायुमण्डल के गठन को प्रभावित करने वाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया रही है ।

इस प्रकार के चिंतन से जुडी विचारधारा पूरी पृथ्वी को एक इकाई गाया, या सजीव पृथ्वी शाप छुहारा के रूप में देखती है । इसी प्रकार मनुष्य के ऊपर पर्यावरण के प्रभाव और मनुष्य द्वारा पर्यावरण पर डाले गये प्रभावों का अध्ययन मानव पारिस्थितिकी और मानव भूगोल का प्रमुख अध्ययन बिंदु है ।

Home››Essay››Environment››