नागरिक समाज पर निबंध | Essay on Civil Society for class 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Civil Society’ especially written for school and college students in Hindi language!

नागरिक समाज पर निबंध | Essay on Civil Society


Essay # 1. नागरक समाज का अर्थ और परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Civil Society):

नागरक समाज के लिये अंग्रेजी में प्रयुक्त शब्द है Civil or Society. सिविल का अर्थ है- नागरक अर्थात असैनिक । इसके अन्य अर्थ है- नागरिकों से संबंधित, दीवानी मामले, नम्र और सहयोग करने वाले व्यक्ति, उत्तरदायी और सुसंस्कृत व्यक्ति । सोसाइटी का अर्थ है- समाज या समिति ।

वस्तुतः नागरक समाज सभ्य, जागरूक और उत्तरदायी व्यक्तियों का समूह है । इस अर्थ में वह राज्य से भिन्न हो जाता है क्योंकि राज्य के अंतर्गत समस्त संगठित और असंगठित क्षेत्र आता है, जबकि सभ्य समाज के अंतर्गत मात्र संगठित । राज्य के अंतर्गत अनुत्तरदायी, चोर, उचक्के सभी किस्म के लोग आते हैं जबकि सभ्य समाज में मात्र उत्तरदायी और उचित विधिक काम करने वाले ।

राज्य के पीछे मुख्य भूमिका नागरक समाज की ही होती है ।

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एस.के. दास- ”नागरक समाज वह संगठित समाज है जिस पर राज्य शासन करता है ।”

जेफ्री अलेम्सेण्डर- ”नागरक समाज एक समावेशी छाते जैसी अवधारणा है जो राज्य के बाहर स्थित असंख्य संस्थाओं को अपनी छाया में रखती है ।”


Essay # 2. नागरक समाज की विशेषताएं (Features of Civil Society):

नागरक समाज के प्रमुख लक्षण हैं:

1. यह संगठित समाज को दर्शाता है ।

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2. यह अराजकीय संस्थाओं को बताता है ।

3. इसके अंतर्गत भाग आता है ।

4. इसमें वे समूह आते हैं जो राज्य और परिवार के मध्य होते हैं । अर्थात नागरक समाज राजनीतिक और प्राकृतिक समाज के मध्य का समाज है ।

5. यह विचारों में स्वतंत्र समाज होता है ।

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6. इसलिये यह प्रगतिशील समाज होता है ।

7. अतः यह राजनीतिक-प्रशासनिक मामलों में महत्वपूर्ण भागीदारी रखता है ।

8. अतः इसके द्वारा सत्ता की निरंकुशता पर अंकुश लगता है ।

9. यह बौद्धिक रूप से उन्नत होता है ।

10. अतः जनमत निर्माण करता है ।

11. यह राज्य के नियंत्रण को कम करने के लिये बहुल-संस्थागत (अनेक संस्थाओं का निर्माण) का समर्थन करता है ।

12. यह उत्पीड़न के विरूद्ध स्वैच्छिकवाद का समर्थक है ।

13. अतः यह एक नैतिक और मूल्य आधारित प्रणाली है ।


Essay # 3. नागरक समाज की भूमिका (Role of Civil Society):

नागरक या सभ्य समाज का अवधारणा उत्तर आधुनिक युग की लोकप्रिय अवधारणा है । राज्य और नागरिक को मानने परंपरागत धारणा ध्वस्त हो गयी है और दोनों में अब व्यापक अंतर किये जाते हैं ।

सर्वप्रथम राजनीतिक दार्शनिक जी.एफ. हेगल ने नागरक समाज राज्य से अवधारणा माना था । बाद में कार्ल मार्क्स, फेडरिक एंजल्स जैसे साम्यवादी विचारकों ने समाज की अवधारणा को आगे बढाया । बीसवीं सदी में एटोनियो ग्राम्शी ने इस अवधारणा का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया ।

वस्तुतः आधुनिक समाज के तीन मुख्य क्षेत्र माने जाते हैं:

1. सरकार

2. बाजार और

3. नागरक समाज

तृतीय क्षेत्र अर्थात नागरक या सभ्य समाज पहले के दो क्षेत्रों पर अपनी लोकतांत्रिक जागरूकता से नियंत्रण रखता है ।

नागरक समाज की देश के विकास और कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है । उसकी उपस्थिति सत्ता को नियंत्रित करती है और उसकी सक्रियता सत्ता को जनोन्मुख दिशा देती है ।

उनकी भूमिका के विभिन्न पहलू हैं:

1. समानता आधारित सार्वजनिक कल्याण को प्रेरित करना ।

2. इसके लिये आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़े व्यक्तियों-समुदायों के विकास हेतु प्रयत्नशील रहना ।

3. प्रशासन में जनसहभागिता का विकास करना ।

4. जनता को सरकारी योजनाओं तथा सरकार को जन समस्याओं से अवगत कराना ।

5. प्रशासनिक मशीनरी पर सामुदायिक जवाबदेही प्रणाली लागू करते हैं । इससे प्रशासन की निरंकुशता और भ्रष्टाचार पर रोक लगती ।

6. प्रशासन को हितग्राही मूलक बनाते हैं । उनके माध्यम से प्रशासन का लक्ष्य समूह तय करने में आसानी हो जाती है ।

7. वे स्थानीय विकास के लिये स्थानीय संसाधनों के दोहन को सुनिश्चित करने में मदद करते हैं । इससे सामुदायिक आत्मनिर्भरता का विकास होता है ।

8. वे स्थानीय शासन को सशक्त बनाते हैं । उनके पूरक के रूप में काम करते हैं ।

9. वे स्थानीय स्तर पर सार्वजनिक पहरेदार हैं ।

10. वे जनता में राजनीतिक-प्रशासनिक चेतना उत्पन्न करते हैं ।

11. वे जनता की मांगों को संगठित करते हैं ।

12. वे परस्पर सहायता द्वारा आत्म सहायता के सहकारी सिद्धांत को पुष्ट करते हैं ।

13. प्रो. राजकृष्ण के अनुसार गरीबों के दुख दूर करने में और ग्रामीण गरीबों से संपर्क में वे बेहतर हैं । साथ ही सरकार की तुलना में उनकी कार्य प्रणाली लचीली ।

स्पष्ट है कि नागरक समाज सरकार की विरोधी नहीं, उसकी पूरक व्यवस्था है । इनमें से कुछ स्वतः स्फूर्त होते हैं अर्थात अनौपचारिक प्रकृति के होते हैं तो अधिकांशतया औपचारिक प्रकृति के ।

मिल्टन इस्मेन:

इन्होंने विकास के जिन 4 अभिकरणों की पहचान की है उनमें से एक स्वयं सेवी संगठन है । अन्य है राजनीतिक तंत्र, प्रशासनिक तंत्र और जन संचार माध्यम ।

स्वयं सेवी संगठन (नागरक समाज) की विकास में सहभागिता तीन निश्चित लाभ देती है:

1. एकता की भावना का विकास

2 निर्णय-निर्माण में सहभागिता

3. विकास में संलग्न सरकारी और गैर सरकारी एजेन्सीयों से परस्पर क्रिया ।


Essay # 4. नागरक समाज के अंग (Parts of Civil Society):

नागरक समाज की अवधारणा के अंतर्गत निम्नलिखित संगठन, समूह और संस्थाएं आती हैं:

1. स्वयं सेवी संगठन (एजीओ)

2. सामुदायिक संगठन

3. मजदूर संगठन

4. किसान संगठन

5. महिला संगठन

6. धार्मिक संगठन

7. सहकारी संस्थाएं

8. व्यवसायिक एसोसिएशन इत्यादि ।


Essay # 5. भारत में नागरक समाज (Civil Society in India):

भारत में नागरक समाज प्राचीन युग में भी थे, जैसे- पुग, श्रेणी, संघ । आधुनिक युग का जहां तक प्रश्न है, भारत में पुनर्जागरण दोलन के दौरान धार्मिक, सामाजिक अनेक संगठन अस्तित्व में आये । लेकिन 1970 के बाद इनकी संख्या और स्वरूप में काफी तेजी आयी ।

यद्यपि पश्चिमी समाजों की तुलना में भारतीय नागरक समाज के इन संगठनों का अभी उतना विकास नहीं हो पाया है । नीरजा गोपाल जायल- ”भारत में नागरक समाज राज्य के विरूद्ध विकसित माना जाता है, संगठित समूह के अर्थ में नहीं ।”

भारत में नागरक समाज संगठनों का वर्गीकरण राजेश टंडन ने पांच प्रवर्गो में किया है:

1. जाति, कुल या नृजाति पर आधारित परपंरागत संगठन ।

2. रामकृष्ण मिशन जैसे धार्मिक संगठन ।

3. अनेक प्रकार के सामाजिक आंदोलन, उदाहरण के लिये:

(क) महिलाओं या जनजातियों जैसे विशेष समूहों की आवश्यकताओं पर केंद्रित सुधार दोलन ।

(ख) दहेज या शराबखोरी जैसी सामाजिक बुराइयों के सुधार आंदोलन ।

(ग) विकासजनित विस्थापन के विरूद्ध विरोध आंदोलन और

(घ) नागरिक स्वतंत्रता हेतु या भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जिनका संबंध शासन व्यवस्था से है ।

4. विभिन्न प्रकार के सदस्यता संगठन उदाहरण के लिये:

(क) प्रतिनिधिक संगठन जैसे मजदूर संगठन (ट्रेड यूनियन), किसान संगठन इत्यादि ।

(ख) पेशेवर संगठन जैसे वकील, डाक्टर इत्यादि के संगठन ।

(ग) सामाजिक-सांस्कृतिक क्लब जैसे खेल कूद क्लब, मनोरंजन क्लब ।

(घ) स्वः सहायता समूह, शहरों में मोहल्ला समितियां, गांवों में समुदाय आधारित संगठन ।

5. विभिन्न प्रकार के मध्यवर्ती संगठन ।

जैसे:

(क) सेवा संगठन जैसे, स्कूल, अनाथालय ।

(ख) अपने अधिकारों की मांगें उठाने में समाज के बेहद गरीब हिस्सों को संगठित करने में सहायता करने वाले संगठन ।

(ग) समर्थक समूह जो समुदाय आधारित अन्य संगठनों का समर्थन करते हैं ।

(घ) लोकहितेषी संगठन जैसे बाल मुक्ति और आप (CRY), राजीव गांधी फाउंडेशन ।

(च) हिमायती संगठन जैसे किसी विशेष उद्देश्य की वकालत करने वाले ।

(छ) ग्रामीण विकास के स्वयं सेवी एजेंसी संगठन (AVARD) जो सामूहिक आवाज एवं शक्ति उपलब्ध कराते हैं ।


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