Here is an essay on the ‘Balance of Payments’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘Balance of Payments’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay # 1. भुगतानों का सन्तुलन का अर्थ (Meaning of Balance of Payments):

भुगतानों का सन्तुलन, एक दिये गये समय के दौरान प्रतिवेदक देश के निवासियों और विदेशियों के बीच सभी आर्थिक सौदों का व्यवस्थित रिकार्ड है । अन्य शब्दों में, भुगतानों का सन्तुलन एक विवरण है जो एक प्रदत्त समय के बीच सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आर्थिक सौदों को लिपिबद्ध करता है ।

इस प्रकार का रिकार्ड अनेक कारणों से लाभदायक होता है । मौलिक कारण है सरकार को देश की आर्थिक स्थिति से अवगत कराना तथा उसे मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति सम्बन्धी निर्णय लेने के योग्य बनाना ।

भुगतानों के सन्तुलन अथवा खाते के शेष का क्षेत्र बहुत व्यापक है । इसमें केवल स्पष्ट मदें ही नहीं बल्कि अप्रत्यक्ष मदें जैसे जहाजरानी, बैंक, बीमा सेवाएं ब्याज, उपहार आदि सम्मिलित होते हैं । यह दो देशों के बीच कुल सौदों (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष वस्तुएं) के सन्दर्भ में होता है ।

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सभी देशों में या तो दूसरों को भुगतान करने होते हैं अथवा दूसरों से भुगतान लेने होते हैं । इन्हें क्रमशः नामें मह अथवा जमा मह कहा जाता है । विदेशों से प्राप्त की जाने वाली महें जमा पक्ष में आती हैं तथा विदेशों को दी जाने वाली महें नामे पक्ष में आती हैं ।

भुगतानों के सन्तुलन खाते के दो भाग होते हैं:

(i) चालू खाता एवं

(ii) पूंजी खाता ।

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(i) चालू खाता (Current Account):

चालू खाता सभी चालू सौदों पर विचार करता है जो वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात से सम्बन्धित है । वस्तुओं का आयात और निर्यात प्रत्यक्ष मदों के रूप में जाना जाता है जबकि अप्रत्यक्ष मदों में जहाजरानी, बैंकिंग, बीमा, सरकारी खर्चे, ब्याज, निवेश पर लाभ तथा उपहार और अनुदान आते हैं ।

(ii) पूंजी खाता (Capital Account):

जब भुगतानों का शेष चालू खाते द्वारा सन्तुलित नहीं किया जाना, तो इसे पूंजी खाते द्वारा सन्तुलित किया जाता है । इसमें लघुकालिक एवं दीर्घकालिक अन्तर्राष्ट्रीय ऋण लेना और ऋण देना सम्मिलित है । स्वर्ण का लेन-देन यदि कोई हो, वह भी पूजी खाते का भाग बनता है ।

Essay # 2. चालू खाते पर भुगतानों के सन्तुलन में प्रवृत्तियां (Trends in Balance of Payments on Current Account):

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वर्ष 1947 में देश के विभाजन से पहले व्यापार का सन्तुलन हितकर था । स्वतन्त्रता के पश्चात काल में भारत अहितकर व्यापार सन्तुलन का अनुभव कर रहा है । स्वतन्त्रता से पहले व्यापार का हितकर सन्तुलन इस तथ्य के कारण था कि ब्रिटेन युद्ध की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अधिक मात्रा में कच्चा माल खरीदता था जिसके परिणामस्वरूप भारतीय निर्यात कमाई को अस्थायी प्रोत्साहन प्राप्त होता था जबकि आयातों को नीचे के स्तर पर रखा जाता था । फलतः स्वतन्त्रता के समय यू.के. ने 1,733 करोड़ रुपयों के मूल्य की मुद्रा का भुगतान पाउण्डों में किया ।

पहली योजना के दौरान भुगतानों के सन्तुलन की स्थिति सन्तोषजनक थी, क्योंकि देश ने 42.3 करोड़ रुपयों के घाटे का अनुभव किया और विदेशी विनिमय के संचय लगभग 127 करोड़ रुपये थे । दूसरी योजना काल में भुगतानों के सन्तुलन का घाटा 1,725 करोड रुपये था । यह पूंजी वस्तुओं, खाद्य अनाजों और कच्चे माल के भारी आयात के कारण था । तीसरी योजना के दौरान चालू खाते पर भुगतानों के सन्तुलन का घाटा 1,941 करोड़ रुपये था ।

चौथी योजना में, सरकार ने निर्यात संवर्धन और आयात प्रतिस्थापन के उपाय आरम्भ किये ताकि भुगतानों के सन्तुलन में घाटे को समाप्त किया जा सके । यद्यपि 1973-74 में अदृश्य खातों में 1,680 करोड़ रुपयों की अकस्मात् वृद्धि के कारण, योजना भुगतानों के सन्तुलन में 100 करोड के अतिरेक के साथ बन्द हुई ।

पाँचवीं योजना ने व्यापार घाटे में बढ़ती हुई प्रवृत्ति को देखा जोकि 3,179 करोड़ रुपये थी, यह कदाचित तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण थी । वर्ष 1979-80 से देश ने भुगतानों के सन्तुलन में भारी घाटे का अनुभव करना आरम्भ कर दिया । वर्ष 1980-81 में व्यापार घाटा 5,967 करोड़ रुपये था जो वर्ष 1984-85 में 6,721 करोड़ रुपयों तक बढ़ गया ।

अतः छठी योजना के दौरान व्यापार में घाटा 11,384 करोड़ रुपये था । घाटे की यह राशि सातवीं योजना में 38,313 करोड़ रुपये पंजीकृत हो गई, सातवीं योजना ने 7,662 करोड़ रुपयों का वार्षिक औसत घाटा दर्शाया । पुन: वर्ष 1990-91 में भुगतानों के सन्तुलन में घाटे की कुल राशि 17,369 करोड़ रुपये तक ऊंची थी, जो 1999-2000 में 20,331 करोड़ रुपयों तक बढ़ गई, परन्तु 2000-01 में 1,13,431 करोड़ रुपयों तक रह गई ।

दसवीं योजना के दौरान भुगतानों के सन्तुलन का कुल घाटा (-) 16,208 करोड़ रुपये था । ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना रु. 29.7 लाख करोड़ के व्यापार घाटे और बड़ी सीमा तक सन्तुलन (रु 20 लाख करोड़) की गवाह रही है । भुगतानों के सन्तुलन में यह भारी घाटा आयात के दर में अत्याधिक वृद्धि और निर्यातों के दर में कमी के कारण था ।

इस काल के दौरान व्यापार घाटा शुद्ध अदृश्यों के अन्तर्गत कोष के बहाव द्वारा पूरा नहीं किया जा सका । तालिका 10.2 प्रथम पंचवर्षीय योजना के आरम्भ से अधिक स्पष्टता से भुगतानों के सन्तुलन में घाटे के चित्र को प्रमुखता देती है ।

हाल ही के व्यापार नीति उपाय (Recent Trade Policy Measures):

2011-12 से बढ़ते व्यापारिक घाटे जो 2013-14 के पहले क्वार्टर में जारी रहे । सरकार ने निर्यात क्षेत्र के निष्पादन को तेज करने के लिए विभिन्न उपाय किये हैं । विभिन्न स्कीमों को बनाया गया है जैसे Focus Product Schemes (FPS), Focus Market Scheme (FMS), Market Linked Focus Product Schemes (MLFPS) और विशेष कृषि और ग्राम उद्योग योजना ।

इसके साथ ही, उद्योग और व्यापारिक संस्थानों को क्रेता विक्रेता मिलन (Buyer-Seller Meets) व्यापारिक मिलों को Market Access Initiative Scheme और Market Development Assistance Scheme के तहत विभिन्न देशों में लगाया गया ।

1. आयात प्रतिस्थापन के लिए और विदेशी पूंजी की बचत के साथ अतिरिक्त रोजगार को बनाने के लिए महत्वपूर्ण उपाय किए गए जो घरेलू निर्माण क्षमताओं को बढ़ावा मिले, विभिन्न स्कीमों जैसे FPS, FMS, VKGUY, MLFPS, Served from India Scheme, Agri Infrastructure Incentive Scheme के तहत स्क्रिपों को जारी किया गया, वस्तुओं के आयात के लिए घरेलू खरीद के लिए आबकारी कर के भुगतान का उपयोग किया जा सकता है ।

2. इसी तरह, FPS, FMS, विशेष कृषि और ग्राम उद्योग योजना स्कीम के तहत जारी स्क्रिपों की सेवा कर के भुगतान के लिए उपयोग किया जा सकता है ।

3. उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र से उत्पादों के निर्यात को समर्थन के लिए निर्यातक FTP के तहत अन्य लाभों के साथ निर्यात के FOB मूल्य के 1% के अतिरिक्त भत्तों के हकदार हैं । यदि निर्यातों को NER में स्थापित भूमि शुल्क स्टेशन से बनाया जाता है ।

4. भारत के विविध निर्यातों के लिए 7 नये बाजारों (अल्जीरिया, अरवबा, आस्ट्रिया, कम्बोडिया, मियांमार, नीदरलैंड और यूक्रेन) को FMS के साथ जोड़ा जा चुका है, 7 नये बाजारों (ब्लीज, चिली, ई एल साल्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडुरस, मोरक्को और उरूगवे) को विशेष FMS के साथ जोड़ा गया, MLFPS के साथ 46 नयी वस्तुओं और 12 नये बाजारों को पहली बार जोड़ा गया और FPS सूची के साथ 100 नयी वस्तुओं को जोड़ा गया ।

5. सेवाओं के निर्यात को बढ़ाने के लिए, सरकार ने सेवाओं में दो संस्करणों को बनाया है जिनकी पहचान सेवा क्षेत्रों में की गई जो भारत के लिए महत्वपूर्ण है । निर्वाचिका सभा में, रोक यदि कोई, निर्दिष्ट सेवा क्षेत्रों में है की पहचान की गई है । इसमें सुधारों की जरूरत है, इन क्षेत्रों में निर्यातों को बढ़ावा देने के लिए भारत की संभावना और निर्यात सेवाओं के लिए नये बाजारों की चर्चा की गई है ।

वैश्विक सेवा प्रदर्शनी को अप्रैल 2015 में नयी दिल्ली में बनाया जा रहा है, जो सेवा क्षेत्रों के प्रतियोगी खिलाड़ियों के बीच रणनीति सहयोग को बढाने और सह-क्रियाओं को विकसित करने के लिए प्लेटफार्म है ।

6. भारतीय व्यापार पोर्टल को 8 दिसम्बर 2014 को प्रस्तुत किया गया था । यह पोर्टल भारतीय उद्योग को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है और विस्तारित बाजार उपयोग का लाभ लेने के लिए क्रियावली भी है जिसे विभिन्न प्रादेशिक और द्वि-पक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों और व्यापक आर्थिक सहयोग ।

साझेदारी समझौतों द्वारा प्रदान किया जाता है । यह जानकारी उपयोगकर्ता अनुकूल ढंग में पोर्टल के उपयोग के लिए निर्यातकों और आयातकों के लिए चार आसान चरणों में प्रदान की जाती है । यह व्यापार और उद्योग के लिए आसानी से व्यवसाय करने में योगदान देगी । यह पोर्टल महत्वपूर्ण डेटा को उपलब्ध करता है ।

(i) Most Favoured Nation (MFN) Tariff,

(ii) Preferential Tariff,

(iii) Rules of Origin (ROD) और

(iv) Non-Tariff Measures (SPS/TBT).

एक जगह पर निर्यातकों और आयातकों के प्रयोग के लिए उन देशों के लिए जिनके पास FTAs होते हैं । नतीजन यह भारत के निर्यातों की सुविधा देता है और FTAs के उपयोग के लिए निर्यातकों की सहायता देगा । विभिन्न देशों में उनके लिए Preferential Tariffs का उपयोग देगा जिससे निर्यात अवसरों को लिया जा सके ।

1. देश के घरेलू उद्योग के लिए स्तरीय खेल क्षेत्र के विचार के साथ यह विदेशी निर्यातकों के साथ घरेलू बाजार में कुशलता से प्रतियोगिता करने योग्य बनाता है । The Directorate General of Anti-Dumping and Allied Duties घरेलू उद्योग द्वारा भरे आवेदन के आधार पर Anti-Dumping पड़ताल करती है जो घरेलू उद्योग की चोट और डंपिंग के बीच कारण सम्बन्ध और घरेलू उद्योग के लिए चोर, देश में वस्तुओं के डंपिंग के मुख्य सबूत हैं ।

2. एक पन्द्रह प्याइंट मैट्रिक्स को विकसित किया गया और सभी राज्यों-संघों को भेजा गया ।

यह निम्न से बना है:

(1) राज्य सरकार द्वारा निर्यात रणनीति का विकास

(2) राज्य सरकार द्वारा सभी निर्यात संबंधित गतिविधियों के समन्वय के लिए निर्यात कमीशनर की नियुक्ति

(3) राज्य के मुख्य निर्यातकों को बढ़ावा देने के लिए निर्यात पुरस्कार देना और उन्हें ज्यादा निर्यात आयों को लाने के लिए प्रेरित करना ।

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