राष्ट्रीय खेल: हॉकी पर निबंध! Here is an essay on ‘National Game- Hockey’ in Hindi language.

भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी विश्व के लोकप्रिय खेलों में से एक है । इसकी शुरूआत कब हुई ? यह तो निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता, किन्तु ऐतिहासिक साक्ष्यों से सैकड़ों वर्ष पहले भी इस प्रकार का खेल होने के प्रमाण मिलते है । आधुनिक हॉकी खेलों का जन्मदाता इंग्लैण्ड को माना जाता है ।

भारत में भी आधुनिक हॉकी की शुरूआत का श्रेय अंग्रेजों को ही जाता है । हॉकी के अन्तर्राष्ट्रीय मैचों की शुरूआत 19वीं शताब्दी में हुई थी । इसके बाद बीसवीं शताब्दी में वर्ष 1924 में अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी संघ की स्थापना पेरिस में हुई ।

विश्व के सबसे बड़े अन्तर्राष्ट्रीय खेल आयोजन ‘ओलम्पिक’ के साथ-साथ ‘राष्ट्रमण्डल खेल’ एवं ‘एशियाई खेलों’ में भी हॉकी को शामिल किया जाता है । वर्ष 1971 में पुरुषों के हॉकी विश्वकप की एवं वर्ष 1971 में महिलाओं के हॉकी विश्वकप की शुरूआत हुई ।

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न्यूनतम निर्धारित नियत समय में परिणाम देने में सक्षम होना इस खेल की प्रमुख विशेषता है । हॉकी मैदान में खेला जाने वाला खेल है । बर्फीले क्षेत्रों में बर्फ के मैदान पर खेली जानी वाली आइस हॉकी भारत में लोकप्रियता अर्जित नहीं कर सकी है ।

दो दलों के बीच खेले जाने वाले खेल हॉकी में दोनों दलों के 11-11 खिलाड़ी भाग लेते हैं । आजकल हॉकी के मैदान में कृत्रिम घास का प्रयोग भी किया जाने लगा है । इस खेल में दोनों टीमें स्टिक की सहायता से रबड़ या कठोर प्लास्टिक की गेंद को विरोधी टीम के नेट या गोल में डालने का प्रयास करती हैं ।

यदि विरोधी टीम के नेट में गेंद चली जाती है, तो उसे एक गोल कहा जाता है । जो टीम विपक्षी टीम के विरुद्ध अधिक गोल बनाती है, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है ।

मैच में विभिन्न प्रकार के निर्णय एवं खेल पर नियन्त्रण के लिए रेफरी को तैनात किया जाता है । मैच बराबर रहने की दशा में परिणाम निकालने के लिए विशेष व्यवस्था भी होती है ।

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राष्ट्रीय खेल हॉकी की बात आते ही तत्काल मेजर ध्यानचन्द का स्मरण हो आता है, जिन्होंने अपने करिश्माई प्रदर्शन से पूरी दुनिया को अचम्भित कर खेलों के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा लिया । हॉकी के मैदान पर जब वह खेलने उतरते थे, तो विरोधी टीम को हारने में देर नहीं लगती थी ।

उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे किसी भी कोण से गोल कर सकते थे । यही कारण है कि सेण्टर फॉरवर्ड के रूप में उनकी तेजी और जबरदस्त फुर्ती को देखते हुए उनके जीवनकाल में ही उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाने लगा था । उन्होंने इस खेल को नवीन ऊँचाइयाँ दीं ।

मेजर ध्यानचन्द का जन्म 29 अगस्त, 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था । वे बचपन में अपने मित्रों के साथ पेड़ की डाली की स्टिक और कपड़ों की गेंद बनाकर हॉकी खेला करते थे । 23 वर्ष की उम्र में ध्यानचन्द वर्ष 1928 के एम्सटर्डम ओलम्पिक में पहली बार भाग ले रही भारतीय हॉकी टीम के सदस्य चुने गए थे ।

उनके प्रदर्शन के दम पर भारतीय हॉकी टीम ने तीन बार वर्ष 1928 के एम्सटर्डम ओलम्पिक, वर्ष 1932 के लॉस एंजिल्स ओलम्पिक एवं वर्ष 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में स्वर्ण पदक प्राप्त कर राष्ट्र को गौरवान्वित किया था । यह भारतीय हॉकी को उनका अविस्मरणीय योगदान है ।

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ध्यानचन्द की उपलब्धियों को देखते हुए ही उन्हें विभिन्न पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित किया गया । वर्ष 1956 में 51 वर्ष की आयु में जब वे भारतीय सेना के मेजर पद से सेवानिवृत्त हुए, तो उसी वर्ष भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से अलंकृत किया ।

उनके जन्मदिन 29 अगस्त को ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की गई । मेजर ध्यानचन्द के अतिरिक्त धनराज पिल्लै, दिलीप टिर्की, अजीतपाल सिंह, असलम शेर खान, परगट सिंह इत्यादि भारत के अन्य प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी रहे हैं ।

देश में राष्ट्रीय खेल हॉकी का विकास करने के लिए वर्ष 1925 में ग्वालियर में अखिल भारतीय हॉकी संघ की स्थापना की गई थी । यदि ओलम्पिक खेलो में भारतीय टीमों के प्रदर्शन की बात की जाए, तो वर्ष 2014 तक देश को कुल 24 पदक प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 11 पदक अकेले भारतीय हॉकी टीम ने ही हासिल किए हैं ।

हॉकी में प्राप्त 11 पदकों में से 8 स्वर्ण, 1 रजत एवं 2 काँस्य पदक शामिल हैं । वर्ष 1928 से लेकर वर्ष 1956 तक लगातार छ: बार भारत ने ओलम्पिक खेलों में हॉकी का स्वर्ण पदक जीतने में सफलता पाई ।

इसके अतिरिक्त, भारत ने वर्ष 1964 एवं 1980 में भी स्वर्ण पदक प्राप्त किया । हॉकी के विश्वकप में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन ओलम्पिक जैसा नहीं रहा है ।

वर्ष 1971 में हुए पहले हॉकी विश्वकप में भारत तीसरे स्थान पर, जबकि वर्ष 1973 में हुए दूसरे विश्वकप में दूसरे स्थान पर रहा । वर्ष 1975 में हुए तीसरे हॉकी विश्वकप में भारतीय खिलाड़ियों ने शीर्ष स्थान प्राप्त कर इतिहास रच दिया ।

किन्तु हॉकी विश्वकप में एक स्वर्ण पदक, एक रजत और एक काँस्य पदक पाने के पश्चात् अब तक भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन सन्तोषजनक नहीं रहा है । एशियन गेम्स में हमारी टीम ने वर्ष 2014 तक कुल 14 पदक जीते हैं, जिनमें नौ रजत व दो काँस्य सहित वर्ष 1966, 1998 एवं 2014 में जाते गए स्वर्ण पदक शामिल हैं ।

राष्ट्रमण्डल खेलों में भारतीय हॉकी खिलाड़ियों ने वर्ष 2002 में विजेता एवं वर्ष 2006 में उपविजेता बनने का गौरव प्राप्त किया है । वर्ष 2010 एवं 2014 में हुए राष्ट्रमण्डल खेलों में हमारा देश पाँचवें स्थान पर रहा ।

वर्तमान समय में भारतीय हॉकी टीम में कप्तान सरदार सिंह सहित पी आर श्रीजेश, विक्रम कान्त, विकास पिल्लै, जसजीत सिंह, ललित कुमार, हरजोत सिंह, रमनदीप सिंह, गुरजिन्दर सिंह, रूपिन्दर पाल सिंह आदि प्रमुख खिलाड़ी हैं ।

यदि अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हॉकी खिलाड़ियों के प्रदर्शन का अब तक का विश्लेषण किया जाए, तो हम पाएंगे कि लगातार कई वर्षों तक ओलम्पिक खेलों में शीर्ष पर रहने वाली भारतीय टीम सत्तर के दशक के बाद पिछड़ती चली गई; यहाँ तक कि वर्ष 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में यह क्वालीफाई भी नहीं कर सकी ।

विशेषज्ञों के अनुसार, 70 के दशक के मध्य से हॉकी के मैदानों में एस्ट्रोटर्फ अर्थात् कृत्रिम घास का प्रयोग किया जाने लगा है, जबकि भारत में ऐसे मैदानों का अभाव है और इसी कारण भारतीय हाँकी टीम का प्रदर्शन पिछड़ता जा रहा है ।

किन्तु अब भारत में भी ऐसे हॉकी मैदानों के निर्माण पर जोर दिया जा रहा है । इधर वर्ष 2010 एवं 2012 में हुए राष्ट्रमण्डल खेलों में भारतीय हाँकी टीम का प्रदर्शन अपेक्षाकृत अच्छा रहा है ।

वर्ष 2014 में हुए एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर भारतीय हाँकी टीम ने पुन: अपनी खोई हुई गरिमा वापस पा ली है, साथ-ही-साथ वर्ष 2016 में ब्राजील के रियो-डि-जेनेरियो में होने बाले ओलम्पिक खेलों में शामिल होने वाले देशों की सूची में अपना स्थान भी पक्का कर लिया है ।

इधर विगत तीन-चार दशकों से भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रदर्शन भी अच्छा होने लगा है । इसने राष्ट्रमण्डल खेल, 2002 और एशियन गेम्स, 1982 में स्वर्ण पदक जीतकर भारत का मान बढ़ाया है । इसके अलावा एशियन गेम्स, 1998 और राष्ट्रमण्डल खेल, 2006 में यह टीम उपविजेता घोषित हुई ।

इतना ही नहीं वर्ष 1986 एवं 2006 में हुए एशियन गेम्स में काँस्य पदक हासिल करने के पश्चात् इसने वर्ष 2014 का एशियन गेम्स हॉकी कर पदक भी अपनी झोली में डाला ।

इस प्रकार भारतीय पुरुष हॉकी टीम के साथ-साथ भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान कायम करने में सफलता पाई है । आशा है आने बाले वर्षों में ये दोनों टीमें नए-नए कीर्तिमान गढ़कर भारत को गौरवान्वित करने में पूर्ण सहयोग देंगी ।

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