हेनरी फेयोल के प्रबंधन के सिद्धांतों पर निबंध | Essay on Henry Fayol’s Principles of Management in Hindi.

एफ.डब्ल्यू. टेलर के समकालीन हेनरी फेयोल को यह पेय दिया जाता है कि उन्होंने सर्वप्रथम प्रशासन के सामान्य सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसने समस्त यूरोपीय उद्योग को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया । उन्होंने 1916 में General and Industrial Administration (सामान्य और औद्योगिक प्रशासन) नामक पुस्तक लिखी ।

यह अपने क्षेत्र में प्राचीन और शास्त्रीय रचना मानी जाती है । इसके संबंध में उर्विक ने लिखा है कि- ”यूरोप और विशेषकर लेटिन अमेरिकी देशों में वाणिज्य प्रबंध के विचारों पर किसी अन्य ग्रंथ की अपेक्षा संभवत: इसका अधिक प्रभाव है ।”

प्रो. कुंटज एवं प्रो. ओ. डोनेल के अनुसार- ”शायद आधुनिक प्रबंध सिद्धांत का वास्तविक जनक फ्रांसीसी उद्योगपति फेयोल है ।”

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अमरीका तथा इंग्लैंड में 1920 तथा इसके पश्चात् भी इनके विचारों को कोई नहीं जान सका था क्योंकि इनकी पुस्तक फ्रांसीसी भाषा में छपी थी लेकिन 1929 में इसका अनुवाद अंग्रेजी में हुआ । हेनरी फेयोल एक व्यवहारिक और अनुभवी व्यवसायी था । उसने प्रबंध के क्षेत्र में जो भी योगदान दिया, वह सब उसके प्रबंधकीय जीवन पर आधारित था ।

हेनरी फेयोल द्वारा किए गए प्रबंधकीय योगदान को निम्न आधारों पर जाना जा सकता है:

1. औद्योगिक क्रियाएं फेयोल के अनुसार सभी औद्योगिक संस्थाओं में निम्न 6 क्रियाएं देखने को मिलती हैं:

(i) तकनीकी क्रियाएं- इसमें उत्पादन, निर्माणकारी तथा अनुकूलता संबंधी क्रियाओं को शामिल किया जाता है ।

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(ii) व्यापारिक क्रियाएं- इसमें क्रय-विक्रय एवं विनिमय का समावेश किया जाता है ।

(iii) वित्तीय क्रियाएं- इसमें पूंजी-प्राप्ति तथा उसके श्रेष्ठतम उपयोग को शामिल किया जाता है ।

(iv) सुरक्षा क्रियाएं- इनमें जान-माल की सुरक्षा संबंधी क्रियाएं आती है ।

(v) लेखाक्रम क्रियाएं- इसमें कार्यों का लेख-जोखा एकत्रित करने संबंधी क्रियाएं आती है ।

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(vi) प्रबंधकीय क्रियाएं- इसमें नियोजन, संगठन, समन्वय एवं नियंत्रण आदि का समावेश किया जाता है ।

हेनरी फेयोल के अनुसार ये क्रियाएं प्रत्येक आकार के व्यवसाय में पायी जाती हैं ।

2. प्रबंध के तत्त्व:

प्रबंधकीय क्रिया को पांच तत्वों अथवा कार्यों के रूप में विभाजित किया जाता है, उदाहरणार्थ- नियोजन, संगठन, समन्वय, आदेश और नियंत्रण । फेयोल ने प्रशासन को प्रबंध से अधिक महत्वपूर्ण माना है । यही कारण है कि इन तत्वों या कार्यों को प्रशासन के कार्य भी कहा गया है ।

ये तत्व इस प्रकार हैं:

(i) नियोजन:

नियोजन में पूर्वानुमान एवं निर्णय को शामिल किया जाता है । इसके अंतर्गत भविष्य के बारे में पूर्वानुमान लगाया जाता है और कार्य की योजना तैयार की जाती है । कार्य की योजना (Plan of Action), उद्यम के साधनों, कार्य की प्रकृति एवं महत्व तथा व्यवसाय की भावी प्रवृतियों पर निर्भर करती है ।

एक अच्छी योजना के अंतर्गत एकता, निरंतरता, लचकता और निश्चितता आदि विशेषताएं होनी चाहिए । हेनरी फेयोल ने आगे देखना (पूर्व दृष्टि) को नियोजन में महत्वपूर्ण स्थान दिया है क्योंकि इससे भविष्य का अनुमान लगाकर उसके बारे में नियोजन तैयार किया जा सकता है । प्रबंध की योग्यता एवं कुशलता इस बात पर निर्भर करती है कि नियोजन किस ढंग से तैयार किया जाता है ।

(ii) संगठन:

इसके द्वारा किसी भी उपक्रम को सही ढंग से चलाने हेतु आवश्यक कच्चा माल, औजार पूंजी, कर्मचारी आदि की पूर्ति करना है । यह एक ऐसा ढांचा है जिसके माध्यम से मानवीय एवं भौतिक साधनों के आवश्यक दशाएं प्रदान करके उत्पादन का कार्य किया जाता है । इसमें कर्मचारियों के विवेकपूर्ण चयन एवं निरंतर प्रशिक्षण को भी ‘शामिल किया जाता है ।

(iii) आदेश:

इस तत्व के माध्यम से किसी भी उपक्रम में कार्यरत कर्मचारियों से अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है । प्रबंधकों को अपने संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों की एकता, शक्ति एवं प्रेरणा को बनाए रखने और उनमें संस्थान के प्रति आस्था उत्पन्न करने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए ।

हेनरी फेयोल का कहना है कि आदेश की कला प्रबंध के व्यक्तिगत गुणों के सामान्य सिद्धांतों के ऊपर निर्भर करती है । प्रशासकों को कर्मचारियों के बारे में पूर्ण जानकारी रखनी चाहिए तथा अयोग्य कर्मचारियों की छंटनी कर देनी चाहिए ।

(iv) समन्वय:

हेनरी फेयोल के अनुसार यह प्रबंध का वह कार्य है जिसके माध्यम से संस्थान की विभिन्न क्रियाओं में इस प्रकार ताल-मेल बैठाना कि कार्य सूक्ष्मतापूर्वक चलता रहे और किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो । विभिन्न प्रबंधकीय कार्यों उत्पादन, उपभोग, वित्त, विक्रय आदि में समन्वय करना आवश्यक है । समन्वय सही रूप में प्रबंध का हृदय कहा जाता है ।

(v) नियंत्रण:

हेनरी फेयोल के अनुसार नियंत्रण का कार्य संगठन में पाई जाने वाली दुर्बलताओं एवं गलतियों को सुधारना है । इन गलतियों एवं दुर्बलताओं की पुनरावृति को रोकना भी इसी के अंतर्गत आता है । नियंत्रण का क्षेत्र व्यापक है । इसमें प्रत्येक वस्तु, व्यक्ति एवं क्रिया को सम्मिलित किया जाता है । फेयोल के अनुसार एक प्रभावी नियंत्रण में दो महत्वपूर्ण बातों पर जोर दिया गया है-प्रथम, नियंत्रण संबंधी कार्य समय पर किया जाना चाहिए, एवं द्वितीय, नियंत्रण विभिन्न अनुज्ञाओं द्वारा किया जाना चाहिए ।

3. प्रबंध के सिद्धांत:

हेनरी फयोल ने अपनी पुस्तक (General and Industrial Administration) में प्रबंध के सामान्य सिद्धांतों की विस्तृत रूप में व्याख्या की है । उनके अनुसार किसी भी औद्योगिक संस्थान का प्रबंध करने हेतु प्रबंधकों को कुछ सामान्य आधारभूत सिद्धांतों का ज्ञान होना आवश्यक है । ये सिद्धांत लोचपूर्ण हैं जिनको किसी भी स्थिति में लागू किया जा सकता है । ये 14 सिद्धांत हेनरी फेयोल की प्रबंध जगत को एक महान देन है ।

ये सिद्धांत हैं:

(a) कार्य का विभाजन:

हेनरी फेयोल के अनुसार विशिष्टीकरण एवं प्रमापीकरण से अधिकतम लाभ प्राप्त करने हेतु प्रत्येक उपक्रम या संस्थान में कार्य का निष्पादन श्रम-विभाजन के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए । इससे उत्पादन के मानवीय एवं भौतिक साधनों की कार्य-कुशलता में वृद्धि की जा सकती है और न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है । फेयोल ने इस सिद्धांत को प्रबंधकीय एवं तकनीकी सभी कार्यों में लागू करने का प्रस्ताव किया है ।

(b) अधिकार एवं उत्तरदायित्व:

फेयोल के अनुसार प्रबंध में इन दोनों का घनिष्ठ संबंध है । ये एक-दूसरे के काम में आते हैं । बिना अधिकार के उत्तरदायित्व एवं बिना दायित्व के अधिकार व्यर्थ है । इसलिए फेयोल ने इन दोनों में समानता लाने पर जोर दिया है क्योंकि ये एक ही कार्य के दो पहलू हैं जिनका उपयोग प्रत्येक व्यवसायिक क्रिया में किया जाता है । किसी भी व्यक्ति को कार्य करने के उत्तरदायित्व सौंपने के साथ-साथ उसे अधिकार भी दिए जाने चाहिए । ये दोनों साथ-साथ चलने चाहिए ।

(c) अनुशासन:

इसके अंतर्गत उन सभी समझौतों के हेतु आदर को सम्मिलित किया जाता है जिसे आज्ञाकारिता, व्यवहारिकता, शक्ति एवं आदर आदि की प्राप्ति हेतु निर्देश दिए जाते हैं । हेनरी फेयोल के अनुसार किसी भी संस्थान में अनुशासन उसके प्रबंधक के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है । एक अच्छे अनुशासन हेतु एक सफल नेतृत्व की आवश्यकता है ।

इसमें तीन बातों का होना आवश्यक है:

1. सभी स्तरों पर अच्छे एवं सुनियोजित पर्यवेक्षण का होना ।

2. समझौते स्पष्ट एवं उचित होने चाहिए ।

3. दंड विधान को दृढ़तार्पूवक एवं विवेक के साथ लागू करने का प्रावधान होना चाहिए ।

(d) आदेश की एकता:

इसके अंतर्गत एक संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों को आदेश एक ही अधिकारी से प्राप्त होने चाहिए । एक कर्मचारी को एक से अधिक अधिकारियों के आदेश देने पर वह भ्रम में पड़ जाएगा जिससे वह अपने दायित्व को सही रूप से नहीं निभा सकेगा ।

(e) निर्देश की एकरूपता:

इसके अनुसार प्रत्येक एक समान उद्देश्य वाली क्रियाओं के समूह की एक ही योजना हो तथा उसका अधिकारी भी एक ही हो और इस अधिकारी द्वारा दिये जाने वाले निर्देशों में एकरूपता का होना आवश्यक है जिससे कि क्रियाओं एवं प्रयासों में समन्वय आसानी से किया जा सके और किसी प्रकार की भ्रांति उत्पन्न न हो ।

(f) व्यक्तिगत हित की तुलना में सामान्य हित का महत्व:

किसी भी संस्थान में व्यक्तिगत हितों एवं सामान्य हित में संघर्ष नहीं होना चाहिए । यह सर्वाच्च प्रशासकों एवं प्रबंधकों का दायित्व है कि व्यक्तिगत हितों को त्यागकर संस्थान के सामान्य हितों की ओर सभी कर्मचारियों का ध्यान आकर्षित करें । व्यक्तिगत हितों एवं सामान्य हितों में समन्वय करके संघर्ष की स्थिति को उत्पन्न नहीं होने देना चाहिए ।

(g) पारिश्रमिक:

उत्पादन के विभिन्न साधनों, सेवाओं के बदले दिया जाने वाला भुगतान पारिश्रमिक अथवा प्रतिफल होता है । किसी भी संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों को दिया गया पारिश्रमिक एवं उसके भुगतान का तरीका उचित एवं न्यायसंगत होना चाहिए जिससे कि कर्मचारी एवं नियोक्ता दोनों पक्षों को ही संतोष प्राप्त हो । इससे उत्पादन में वृद्धि होती है ।

(h) केन्द्रीयकरण:

हेनरी फेयोल ने केंद्रीयकरण के सिद्धांत पर जोर देते हुए कहा है कि किसी संस्थान में अधिकारों का किस सीमा तक केंद्रीयकरण तथा किस सीमा तक विकेंद्रीयकरण किया जाए, यह अलग-अलग संस्थाओं की प्रकृति एवं आकार पर निर्भर करते हैं ।

(i) अनुक्रम रूपी शृंखला-आरोही शृंखला:

यह पदक्रम के सिद्धांत पर आधारित है । यह एक प्रकार से उच्चतम अधिकारियों अथवा अधिकार-सत्ता की रेखा है जोकि उच्चतम स्तर से निम्न स्तर तक संदेशवाहक के रूप में काम में आती है । इस शृंखला के माध्यम से ही उच्च अधिकारी अपने अधीनस्थों को आदेश, सुझाव देते हैं तथा निम्नस्तर से उसकी प्रतिक्रियाएं आदि जानी जाती है ।

(j) व्यवस्था:

यह वस्तुओं और व्यक्तियों के संगठन के सिद्धांत पर आधारित है । यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि प्रत्येक वस्तु एवं व्यक्ति के लिए एक उचित स्थान होता है और प्रत्येक स्थान के लिए एक उचित वस्तु और एक उपयुक्त व्यक्ति होता है । अत: व्यक्तियों एवं वस्तुओं को उचित स्थान प्रदान किया जाना चाहिए ।

(k) समता-न्याय साम्य-समदृष्टि:

इसके लिए दया एवं न्याय का होना आवश्यक है । किसी भी संस्थान के प्रबंधकों को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ दया एवं न्याय के साथ व्यवहार करना चाहिए । इससे कर्मचारी आदर दे सकेंगे तथा आज्ञाकारिता एवं स्वामिभक्ति की भावना उत्पन्न हो सकेगी । प्रबंध के सभी स्तरों पर समता के सिद्धांत को लागू करना चाहिए ।

(l) कर्मचारियों के कार्यकाल का स्थायित्व:

किसी भी संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों को अपने कार्य व पद की सुरक्षा होनी चाहिए । यदि उन्हें यह पता है कि जो कार्य व पद उन्हें दिया गया है वह भविष्य में भी बना रहेगा, इनमें कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा तो कर्मचारी पूरी रुचि एवं लगन से कार्य करेंगे ।

इसके विपरीत कार्य व पदों में बार-बार परिवर्तन करने से उद्योग के कार्यों में बाधा उत्पन्न होगी और ऐसा एक अकुशल प्रबंध की निशानी है । इससे संस्थान को नुकसान होता है ।

(m) प्रेरणा:

इसके अंतर्गत किसी योजना पर विचार करने एवं उसका क्रियान्वयन का कार्य आता है । यह सिद्धांत इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति में सोचने-विचारने की शक्ति होती है । किसी भी योजना को तैयार करने एवं उसको लागू करने में कर्मचारियों को छूट होनी चाहिए । इससे कर्मचारियों में उत्साह एवं शक्ति में वृद्धि होती है ।

अत: फेयोल के अनुसार प्रबंधकों को चाहिए कि वे कर्मचारियों में प्रेरणा की भावना उत्पन्न करने का कार्य करें ।

(n) सहयोग की भावना:

यह ‘संगठन ही शक्ति है,’ के सिद्धांत पर आधारित है । यह एकता उत्पन्न करता है । प्रबंधकों को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त करना चाहिए और सभी को एक साथ लेकर एक टीम के रूप में कार्य करना चाहिए ।

4. प्रबंधकीय और प्रशिक्षण गुण:

हेनरी फेयोल ने प्रबंधकों में विभिन्न आवश्यक तो पर जोर दिया है ।

प्रबंधकों में निम्न गुण होने चाहिए:

(i) शारीरिक गुण- स्वास्थ्य, मेहनत आदि ।

(ii) मानसिक गुण- समझने और सीखने की योग्यता निर्णय लेना एवं अनुकूलता ।

(iii) नैतिक गुण- शक्ति, दृढ़ता, दायित्व स्वीकार करने की इच्छा, प्रेरणा, इज्जत, वफादारी आदि ।

(iv) शैक्षणिक गुण- कार्य संबंधी ज्ञान के अतिरिक्त सामान्य ज्ञान की जानकारी ।

(v) तकनीकी गुण- कार्य की जानकारी ।

(vi) अनुभव- उचित कार्य करने से प्राप्त ।

इसके अतिरिक्त फेयोल व्यवसायिक क्रियाओं जैसे प्रबंधकीय, वित्तीय, व्यापारिक तकनीकी, सुरक्षा एवं लेखांकन संबंधी योग्यताओं को भी प्रबंधकों के लिए आवश्यक समझते हैं ।

प्रबंधकों की सार्वभौमिकता:

हेनरी फेयोल ने अपनी पुस्तक तथा भाषणों में प्रंबंध के सिद्धांत को सार्वभौमिक माना है । हर एक क्षेत्र में इन सिद्धांतों को लागू किया जा सकता है । हेनरी फेयोल के अनुसार- “यह (प्रबंध) संहिता आवश्यक है । चाहे यह वाणिज्य हो, उद्योग, राजनीति, धर्म, युद्ध अथवा उदारता हो, प्रत्येक क्षेत्र में प्रबंध का कार्य किया जाता है और इसके निष्पादन हेतु सिद्धांत होने चाहिए ।”

इस प्रकार हेनरी फेयोल के प्रबंध के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के कारण आज भी प्रबंध जगत में उसका अध्ययन किया जाता है । उनके प्रबंध के सिद्धांत इतने व्यापक हैं कि इनमें आवश्यकतानुसार संशोधन करके किसी भी क्षेत्र में लागू किया जा सकता है ।

मूल्यांकन:

कुछ आलोचनाएं इस प्रकार हैं:

1. अत्यंत सरलीकरण:

संगठन के विज्ञान का अत्यंत सरलीकरण कर दिया गया है और ये मान लिया गया है कि कार्यों की संज्ञा देने से संगठन का संपूर्ण उत्तरदायित्व पूरा हो जाएगा । आधुनिक संगठन-सिद्धांत अनिश्चितता के सिद्धांत को महत्व देता हैं क्योंकि किसी भी संगठन को चाहे कितने भी कार्य लिखित में दिए जाए फिर भी कार्य करते समय उसके कार्यों की संख्या और अधिक विस्तृत हो जाती है । आधुनिक काल में संगठन के समक्ष आने वाली अधिकांश परिस्थितियां अनिश्चित होती हैं ।

2. कार्यात्मक प्रबंध मनोवैज्ञानिक और व्यवहारिक अध्ययन के विरुद्ध जाता है । यह मनुष्य का अत्यधिक सीमित, संकीर्ण और संकुचित दृष्टिकोण है । हर्बर्ट साइमन ने इन वैज्ञानिक सिद्धांतों को अवैज्ञानिक बताते हुए लोकोक्तियों के तुल्य बताया है ।

3. लचीलापन नहीं:

इसमें विभिन्न अनिश्चित परिस्थितियों से निपटने के लिए लचीलापन नहीं है । इसलिए प्रबंधक परिस्थिति प्रबंध नहीं कर पाता है । हर्बर्ट साइमन ने इसलिए कार्यात्मक प्रबंध को मान्यताओं की कट्‌टरता कहा है ।

4. अधिकांश सिद्धांत एक दूसरे के विरुद्ध:

ग्रेकूनास के अनुसार- “अधिकांश वैज्ञानिक सिद्धांत एक-दूसरे के विरुद्ध भी हो जाते हैं । उदाहरण के लिए दो सिद्धांत परस्पर विरोधी हैं- 1. नियंत्रण क्षेत्र सीमित होना चाहिए, 2. प्रशासनिक स्तर सीमित होना चाहिए ।”

साइमन ने लिखा है कि- ”प्रशासन के वर्तमान नियमों का यह घातक दोष है कि मुहावरों की भांति इनका प्रयोग जोड़ों (Pairs) में किया गया है । लगभग हर नियम के बदले उसके समान युक्ति संगत और विश्वस्तर विरोधी नियम भी ढूंढा जा सकता है । यद्यपि जोड़े के दोनों नियम ठीक विपरीत सिफारिशें करते हैं, किंतु इस सिद्धांत से कोई संकेत नहीं मिलता कि दोनों में से किसको लागू करना ठीक होगा ।”

केंद्रीयकरण तथा विकेंद्रीयकरण, नियंत्रण क्षेत्र तथा निरीक्षण-स्तरों को कम से कम करने के नियम इस प्रकार के उदाहरण हैं । यह उदाहरण केवल व्याख्यात्मक है ।

5. अनुशासित पदसोपान के मूल्यों पर जरूरत से ज्यादा जोर:

आलोचकों का यह भी कहना है कि एक अनुशासित पदसोपान के मूल्यों में जरूरत से अधिक विश्वास रखना गलत है । “सामाजिक व्यवहार को अधिक अच्छी प्रकार समझने से पता चलता है कि जब संगठनों की संरचना लचीली की गई हो तो भी वे सामान्य उतनी ही प्रभावी ढंग से काम कर सकते हैं और अपने सदस्यों को अधिक अच्छी व्यक्तिगत संतुष्टों प्रदान कर सकते हैं ।”

औपचारिक ढांचों के अतिरिक्त कुछ और तत्व भी होते हैं जो संगठन की एकता को बनाए रखते हैं और उसको सुचारू ढंग से काम करने के योग्य बनाते हैं ।

टेलर और फेयोल एक तुलनात्मक अध्ययन:

टेलर एवं फेयोल दोनों समकक्ष एवं समकालीन प्रबंध विशेषज्ञ थे । टेलर ने अमेरिका तथा हेनरी फेयोल ने फ्रांस में प्रबंध संबंधी विचारों का विकास किया । दोनों ही प्रबंध विशेषज्ञों के विचारों में समानताएं तथा असमानताएं पाई जाती हैं ।

जिनका उल्लेख किया जाता है:

समानताएं:

i. दोनों ही प्रबंध विशेषज्ञों ने तत्कालीन दशाओं में सुधार करने के लक्ष्य को अपने सम्मुख रखते हुए प्रबंध को विवेकपूर्ण एवं सुव्यवस्थित आधार प्रदान किया है । टेलर ने प्रबंध विचारधारा को ”वैज्ञानिक प्रबंध” तथा हेनरी फेयोल ने “प्रशासन का सामान्य सिद्धांत” का नाम दिया है । आधुनिक प्रबंध विज्ञान को इन दोनों से प्रेरणा मिलती है ।

ii. दोनों ही विचारक प्रबंधकों के पेशे में रह चुके थे, अत: प्रबंध विचारधारा का विकास अपने अनुभव के आधार पर किया ।

iii. दोनों ने ही प्रबंध के मानवीय साधन के महत्व को स्वीकार किया है और यह माना है कि उचित मानवीय व्यवहार के माध्यम से उपक्रम के विभिन्न स्तरों पर उत्पन्न विवादों को सरलता से निपटाया जा सकता है । यह औद्योगिक सफलता के लिए एक आवश्यक कुंजी है ।

इस प्रकार दोनों ही विचारकों ने प्रबंध कुशलता पर जोर -दिया तथा प्रबंध की दशाओं को सुधारने की सिफारिश की । किसी भी उद्योग की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि कर्मचारियों एवं उनका प्रबंध किस प्रकार किया जाता है । दोनों ने प्रबंध जगत में एक वैज्ञानिक आधार तैयार किया जिस पर आगे चलकर आधुनिक प्रबंध की सुदृढ़ नींव रखी जा सकती है ।

असमानताएं या भिन्नताएं:

1. टेलर ने सर्वाधिक ध्यान कारखाना प्रबंध पर दिया है और उत्पादन के इंजीनियरिंग पहलू जैसे औजारों का प्रमापीकरण, समय एवं गति अध्ययनों पर ध्यान दिया है । इसके विपरीत हेनरी फेयोल ने प्रबंधकों के समस्त कार्यों एवं उनमें निहित सिद्धांतों पर अत्यधिक ध्यान दिया है ।

2. टेलर ने प्रबंध के निम्नतम स्तर से कार्य शुरू किया है और उच्चस्तरीय अध्ययन की ओर आगे बड़े हैं । अत: उनके अध्ययन का मुख्य बिंदु श्रमिक और उसके द्वारा संचालित क्रियाएं है । इसके विपरीत, फेयोल ने अपनी प्रबंध प्रणाली का विकास उच्चस्तरीय प्रबंध से शुरू किया है और फिर निम्नस्तरीय प्रबध की ओर बढ़ने का कार्य किया है । इसीलिए फेयोल ने ‘समन्वय’ निर्देशन की एकता’ तथा ‘एकता की भावना’ आदि प्रबंधकीय सिद्धातों पर जोर दिया है ।

3. टेलर का दृष्टिकोण कार्यकुशलता में वृद्धि करने पर आधारित है इसीलिए कई प्रयोगों जैसे- समय-अध्ययन, गति-अध्ययन तथा थकान-अध्ययन का समावेश किया गया है जबकि फेयोल का दृष्टिकोण व्यापक था जिसके कारण उन्होंने प्रबंध के तत्वों एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है । इन सिद्धांतों को न केवल प्रबंध क्षेत्र में ही लागू किया जा सकता है बल्कि राजनीति, धर्म, उद्योग, युद्ध आदि सभी क्षेत्रों में समान रूप से लागू किया जा सकता है । टेलर को ‘कुशलता विशेषज्ञ’ तथा हेनरी फेयोल को ‘प्रबंध विशेषज्ञ’ कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

4. टेलर के वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांतों में आधुनिक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप परिवर्तन हुए है, लेकिन हेनरी फेयोल के प्रबंध के सिद्धांत आज भी ज्यों के त्यों हैं और आज भी विभिन्न क्षेत्रों जैसे- चर्च, सरकार और उद्योग में समान रूप से लागू किया जाता है ।

टेलर एवं हेनरी फेयोल ने प्रबंध जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है जिसको प्रबंध जगत कभी नहीं भूल सकता है । टेलर को वैज्ञानिक प्रबंध का जनक कहा जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए ।

निष्कर्ष:

प्रबंध विज्ञान विशेषज्ञ उर्विक के शब्दों में ”टेलर एवं हेनरी फेयोल दोनों के ही कार्य एक-दूसरे के पूरक थे । इन दोनों ने ही यह अनुभव किया कि प्रबंध के प्रत्येक स्तर पर कर्मचारियों तथा उनके प्रबंध की समस्या औद्योगिक सफलता की कुंजी है । दोनों ने ही समस्या के औद्योगिक प्रबंध के क्रम में नीचे से ऊपर की ओर क्रियात्मक स्तर पर कार्य किया तथा फेयोल ने जनरल मैनेजर के पद पर ध्यान केंद्रीत करके ऊपर से नीचे की ओर कार्य पर जोर दिया । यद्यपि यह अंतर उनके बहुत भिन्न व्यवसाय क्रमों का प्रतिबिम्ब मात्र था ।”

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