स्वास्थ्य एवं व्यायाम पर निबंध! Here is an essay on ‘Health and Exercise’ in Hindi language.

प्रकृति ने संसार के सभी जीव-जन्तुओं को पनपने एवं बढ़ने के अवसर प्रदान किए हैं । सभी प्राणियों में श्रेष्ठ होने के कारण मानव ने अनुकूल-प्रतिकूल, सभी परिस्थितियों में अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग कर स्वयं को स्वस्थ बनाए रखने में सफलता हासिल की है ।

विश्व की सभी सभ्यता-संस्कृतियों में न सिर्फ स्वास्थ्य रक्षा को प्रश्रय दिया गया है, अपितु स्वस्थ रहने की तरह-तरह की विधियों का शास्त्रगत बखान भी किया गया है । “सवेरे सोना और सवेरे जागना मानव को स्वस्थ, सम्पन्न एवं बुद्धिमान बनाता है ।”

बेंजामिन फ्रेंकलिन द्वारा दिए गए इस प्रसिद्ध स्वास्थ्य सूत्र से भला कौन परिचित नहीं है ! भारतीय शास्त्र भी ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात् ‘स्वस्थ शरीर ही धर्म का साधन है’, जैसे स्वास्थ्य वचनों से भरे पड़े हैं ।

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भगवान बुद्ध ने कहा था- “हमारा कर्त्तव्य है कि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखें अन्यथा हम अपने मन को सक्षम और शुद्ध नहीं रख पाएंगे ।” आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में इंसान को फुर्सत के दो पल भी नसीब नहीं हैं ।

घर से दफ्तर, दफ्तर से घर, तो कभी घर ही दफ्तर बन जाता है यानी इंसान के काम की कोई सीमा नहीं है । वह हमेशा खुद को व्यस्त रखता है । इस व्यस्तता के कारण आज मानव शरीर तनाव, थकान, बीमारी इत्यादि का घर बनता जा रहा है ।

आज उसने हर प्रकार की सुख-सुविधाएं तो अर्जित कर ली हैं, किन्तु उसके सामने शारीरिक एवं मानसिक तौर पर स्वस्थ रहने की चुनौती आ खड़ी हुई है । यद्यपि चिकित्सा एवं आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में मानव ने अनेक प्रकार की बीमारियों पर विजय हासिल की है, किन्तु इससे उसे पर्याप्त मानसिक शान्ति भी मिल गई हो ऐसा नहीं कहा जा सकता ।

तो क्या मनुष्य अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहा है ? यह ठीक है कि काम जरूरी है, लेकिन काम के साथ-साथ स्वास्थ्य का भी ख्याल रखा जाए, तो यह सोने-पे-सुहागा वाली बात ही होगी । महात्मा गाँधी ने कहा भी है-

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“स्वास्थ्य ही असली धन है, सोना और चाँदी नहीं ।”

सचमुच यदि व्यक्ति स्वस्थ न रहे तो उसके लिए दुनिया की हर खुशी निरर्थक होती है । रुपये के ढेर पर बैठकर आदमी को तब ही आनन्द मिल सकता है, जब वह शारीरिक रूप से स्वस्थ हो ।

स्वास्थ्य की परिभाषा के अन्तर्गत केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ होना ही नहीं, बल्कि मानसिक रूप से स्वस्थ होना भी शामिल है । व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ हो, किन्तु मानसिक परेशानियों से जूझ रहा हो, तो भी उसे स्वस्थ नहीं कहा जा सकता ।

उसी व्यक्ति को स्वस्थ कहा जा सकता है, जो शारीरिक एवं मानसिक दोनों रूप से स्वस्थ हो । साइरस ने ठीक ही कहा है कि अच्छा स्वास्थ्य एवं अच्छी समझ, जीवन के दो सर्वोत्तम बरदाना हैं । व्यक्ति का शरीर एक यन्त्र की तरह है ।

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जिस तरह यन्त्र को सुचारु रूप से चलाने के लिए उसमें तेल-ग्रीस आदि का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार मनुष्य को अपने शरीर को क्रियाशील एवं अन्य विकारों से दूर रखने के लिए शारीरिक व्यायाम करना चाहिए । शिक्षा एवं मनोरंजन के दृष्टिकोण से भी व्यायाम का अत्यधिक महत्व है ।

शरीर के स्वस्थ रहने पर ही व्यक्ति कोई बात सीख पाता है अथवा खेल, नृत्य-संगीत एवं किसी प्रकार के प्रदर्शन का आनन्द उठा पाता है । अस्वस्थ व्यक्ति के लिए मनोरंजन का कोई महत्व नहीं रह जाता ।

जॉनसन ने कहा है- “उत्तम स्वास्थ्य के बिना संसार का कोई भी आनन्द प्राप्त नहीं किया जा सकता ।” देखा जाए तो स्वास्थ्य की दृष्टि से व्यायाम के कई लाभ हैं, इससे शरीर की माँसपेशियों एवं हड्डियाँ मजबूत होती हैं । रक्त का संचार सुचारु रूप से होता है । पाचन क्रिया सुदृढ़ होती है ।

शरीर को अतिरिक्त ऑक्सीजन मिलती है और फेफड़े मजबूत होते हैं । व्यायाम के दौरान शारीरिक अंगों के सक्रिय रहने के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है । इस तरह व्यायाम मनुष्य के शारीरिक विकास के लिए आवश्यक है । किसी कवि ने ठीक ही कहा है-

“पत्थर-सी हों मांसपेशियाँ, लोहे-सी भुजदण्ड अभय ।

नस-नस में हो लहर आग की तभी जवानी पाती जय ।”

व्यायाम से न केवल तनाव, थकान, बीमारी एवं अन्य समस्याओं का समाधान सम्भव है, बल्कि मानव मन को शान्ति प्रदान करने में भी उसकी भूमिका अहम् है । इस तरह, यह हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है ।

यह शरीर को शक्तिशाली एवं लचीला बनाए रखता है, साथ ही तनाव से भी छुटकारा दिलाता है । यह शरीर के जोड़ों एवं माँसपेशियों में लचीलापन लाता है, माँसपेशियों को मजबूत बनाता है, शारीरिक विकृतियों को काफी हद तक ठीक करता है, शरीर में रक्त के प्रवाह को सुचारु करता है तथा पाचन तन्त्र को मजबूत बनाता है ।

इन सबके अतिरिक्त यह शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्तियाँ बढ़ाता है, कई प्रकार की बीमारियों, यथा- अनिद्रा, तनाव, थकान, उच्च रक्तचाप, चिन्ता इत्यादि को दूर करता है तथा शरीर को अधिक ऊर्जावान बनाता है । हमारे शास्त्र में कहा भी गया है- “व्यायामान्पुष्ट गात्राणि” अर्थात् व्यायाम से शरीर मजबूत होता है ।

व्यायाम से होने वाले मानसिक स्वास्थ्य के लाभ पर गौर करें, तो पता चलता है कि यह मन को शान्त एवं स्थिर रखता है, तनाव को दूर कर सोचने की क्षमता, आत्मविश्वास तथा एकाग्रता को बढ़ाता है ।

विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं शोधार्थियों के लिए व्यायाम विशेष रूप से लाभदायक है, क्योंकि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के साथ-साथ उनकी एकाग्रता भी बढ़ाता है, जिससे उनके लिए अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया सरल हो जाती है ।

कलियुगी भीम की उपाधि से विभूषित विश्वप्रसिद्ध पहलवान राममूर्ति कहते हैं- “मैंने व्यायाम के बल पर अपने दमे तथा शरीर की कमजोरी को दूर किया तथा विश्व के मशहूर पहलवानों में अपनी गिनती कराई”, ये है व्यायाम की महत्ता ।

हर आयु वर्ग के स्त्री-पुरुष व्यायाम का अभ्यास कर सकते हैं, किन्तु व्यायाम की जटिलताओं को देखते हुए इसके प्रशिक्षक का पर्याप्त अनुभवी होना आवश्यक है, अन्यथा इससे लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है ।

प्रगति के साथ आए प्रदूषण ने मानव का जीवन दूभर कर दिया है तथा उसके सामने स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं । ऐसी परिस्थिति में व्यायाम मानव के लिए अत्यन्त लाभकारी साबित हो रहा है । यही कारण है कि इसने विश्व के बाजार में अपनी अभूतपूर्व उपस्थिति दर्ज कराई है ।

हर कोई आज विभिन्न प्रकार के व्यायाम के नाम पर धन कमाने की इच्छा रखता है । पश्चिमी देशों में इसके प्रति आकर्षण को देखते हुए यह रोजगार का भी एक उत्तम जरिया बन चुका है ।

आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में खुद को स्वस्थ एवं ऊर्जावान बनाए रखने के लिए व्यायाम बेहद आवश्यक है । इस तरह स्पष्ट है कि वर्तमान परिवेश में न सिर्फ व्यायाम हमारे लिए सार्थक है, बल्कि विश्व के बढ़ते प्रदूषण एवं मानवीय व्यस्तताओं से उपजी समस्याओं के कारण आज इसकी सार्थकता वैश्विक स्तर पर भी काफी बढ़ गई है ।

इस तरह, स्वास्थ्य एवं व्यायाम का एक-दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध है । व्यायाम के बिना शरीर आलस्य, अकर्मण्यता एवं विभिन्न प्रकार की बीमारियों का घर बन जाता है । नियमित व्यायाम शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से आवश्यक है ।

इस सन्दर्भ में हिप्पोक्रेट्स ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही है- “यदि हम प्रत्येक व्यक्ति को पोषण और व्यायाम की सही राशि दे सकते, जो न बहुत कम होती और न बहुत ज्यादा, तो हमें स्वस्थ रहने का सबसे सुरक्षित रास्ता मिल जाता ।” अत: हमें इनकी शिक्षा को जीवन में उतारने की कोशिश करनी चाहिए ।

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