वृक्षारोपण पर निबंध! Here is an essay on ‘Tree Planting’ in Hindi language.

”यदि मैं जान जाऊँ कि कल इस संसार का अन्त हो जाएगा, तब भी मैं अपना सेब का पेड अवश्य लगाऊँगा ।” किंग मार्टिन लूथर की कही यह बात न सिर्फ वृक्षों की उपयोगिता का बखान करती है, बल्कि पेड-पौधों से उनके हार्दिक प्रेम को भी प्रदर्शित करती है ।

नि:सन्देह पेड़ पौधों के महत्व को कभी भी कमतर नहीं का जा सकता, क्योंकि ये हमारे जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं । तभी तो हमारे देश में पेड-पौधों की भी पूजा की जाती है ।  सन्त कबीर ने इनके महत्व को इस प्रकार व्यक्त किया है-

”वृक्ष कबहुँ नहीं फल भखै, नदी न संचै नीर ।

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परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर”

पर्यावरणविद् एवं वैज्ञानिक आजकल वृक्षारोपण पर अत्यधिक जोर दे रहे हैं । उनका कहना है कि पर्यावरण सन्तुलन स्व मानव की वास्तविक प्रगति के लिए वृक्षारोपण आवश्यक है । वृक्षारोपण क्यों आवश्यक है? इसका उत्तर ह्में तब ही मिलेगा जब हम वृक्षों से होने वाले लाभों से अवगत होंगे । इसलिए सबसे पहले हम वृक्षों से होने वाले लाभों की चर्चा करते हैं ।

वृक्ष हमारे लिए कई प्रकार से लाभदायक होते हैं । जीवों द्वारा छोड़े गए कार्बन डाइ-ऑक्सास्ट को ये जीवनदायिनी ऑक्सीजन में बदल देते हैं । इनकी पत्तियों, छालों एवं जडों से हम विभिन्न प्रकार की औषधियाँ बनाते हैं । इनसे हमें रसदार एवं स्वादिष्ट फल प्राप्त होते है ।

वृक्ष हमें छाया प्रदान करते हैं । इनकी छाया में पशु-पक्षी ही नहीं, मानव भी चैन की साँस लेते हैं । जहाँ वृक्ष पर्याप्त मात्रा में होते हैं, बही वर्षा की मात्रा भी सही होती है । वृक्षों की कमी सूखे का कारण बनती है । वृक्षों से पर्यावरण की खूबसूरती में निखार आता है ।  वृक्षों से प्राप्त लकडियाँ भवन-निर्माण एवं फर्नीचर बनाने के काम आती है । इस तरह, मनुष्य जन्म लेने के बाद से मृत्यु तक वृक्षों एवं उनसे प्राप्त होने बाली विभिन्न प्रकार की वस्तुओं पर निर्भर रहता है ।

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कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पेड़-पौधों की महत्ता को समझते हुए कहा है-

”पृथ्वी द्वारा स्वर्ग से बोलने का अथक प्रयास हैं ये पेड”

वृक्षों से होने वाले इन्हीं लाभों के कारण मनुष्य ने इनकी तेजी से कटाई की है औद्योगिक प्रगति एवं वनोमूलन दोनों के कारण पर्यावरण अत्यन्त प्रदूषित हो गया है । वृक्ष पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने में सहायक होते हैं ।

मनुष्य अपने लाभ के लिए कारखानों की संख्या में तो वृद्धि करता रहा, किन्तु उस वृद्धि के अनुपात में उसने पेड़ों को लगाने की ओर ध्यान ही नहीं दिया । इसके विपरीत उसने जमकर उनकी कटाई की ।  इसके कुपरिणामस्वरूप पूछी का पर्यावरण असन्तुलित हो गया है ।

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वृक्षारोपण पर्यावरण को सन्तुलित कर मानव के अस्तित्व की रक्षा करने के लिए आवश्यक है । ”एक मेज, एक कुर्सी, एक कटोरा फल और एक वायलन, भला खुश रहने के लिए और क्या चाहिए ।”  विश्व के महान् वैज्ञानिक अलर्ट आइंस्टाइन ने अपने इस विचार को जिन महत्वपूर्ण चीजों से जोड़ा है, उनमें से प्रत्येक चीज का पेड-पौधों से सम्बन्ध होना इनकी उपयोगिता को दर्शाता है ।

अतः हमें अपने और पर्यावरण के हितैषी पेड़-पौधों के साथ मित्रवत् व्यवहार करना चाहिए । वनोन्मुलन के कारण पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन की समस्या उत्पन्न हो गई है ।  सामान्य मौसमी अभिवृत्तियों में किसी खास स्थान पर होने वाले विशिष्ट परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है ।

मौसम में अचानक परिवर्तन, फसल-चक्र का परिवर्तित होना, वनस्पतियों की प्रजातियों का लुप्त होना, तापमान में वृद्धि, हिमनदों का पिघलना तथा समुद्री जलस्तर में लगातार वृद्धि ऐसे सूचक है, जिनसे जलवायु परिवर्तन की परिघटना का पता चलता है । 

जलवायु परिवर्तन कई कारणों से हुआ है, किन्तु वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा के निरन्तर बढ़ते रहने को सबसे बड़ा कारण माना जाता है । पृथ्वी पर आने वाली सौर ऊर्जा की बड़ी मात्रा अवरक्त किरणों के रूप में पृथ्वी के वातावरण से बाहर चली जाती है । इस ऊर्जा की कुछ मात्रा ग्रीन हाउस गैसों द्वारा अवशोषित होकर पुन पृथ्वी पर पहुँच जाती है, जिससे तापक्रम अनुकूल बना रहता है ।

ग्रीन हाउस गैसों में मीथेन, कार्बन डाइ-ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड इत्यादि हैं । वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों का होना अच्छा है, किन्तु जब इनकी मात्रा बढ़ जाती है, तो तापमान में वृद्धि होने लगती है । वृक्षारोपण के माध्यम से इस समस्या का काफी हद तक समाधान किया जा सकता है ।

मनुष्य अपने विकास के पडा को कटाई एवं पर्यावरण का दोहन करता है । विकास एवं पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, अपितु एक-दूसरे के पूरक हैं । सन्तुलित एवं शुद्ध पर्यावरण के बिना मानव का जीवन कष्टमय हो जाएगा । हमारा अस्तित्व एवं जीवन की गुणवत्ता एक स्वस्थ प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर है ।

विकास हमारे लिए आवश्यक है और इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग भी आवश्यक हे, किन्तु ऐसा करते समय हमें सतत विकास की अवधारणा को अपनाने पर जोर देना चाहिए ।  सतत विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं में भी कटौती न हो यही कारण है कि सतत बिकास अपने शाब्दिक अर्थ के अनुरूप निरन्तर चलता रहता है ।

सतत बिकास में सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहे । सतत विकास में आर्थिक समानता, लैंगिक समानता एवं सामाजिक समानता के साथ-साथ पर्यावरण सन्तुलन भी निहित है ।

उपरोक्त बातों के अतिरिक्त वृक्षारोपण की आवश्यकता निम्नलिखित बातों से भी स्पष्ट हो जाती है:

1. औद्योगीकरण के कारण वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि हुई है, फलस्वरूप विश्व की जलवायु में प्रतिकूल परिवहन हुआ है । साथ ही समुद्र का जलस्तर उठ जाने के कारण आने वाले वर्षों में कई देशों एवं शहरों के समुद्र में जल-मग्न हो जाने की आशंका है ।

2. जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण में निरन्तर वृद्धि हो रही है । यदि इस पर नियन्त्रण नहीं किया गया, तो परिणाम अत्यन्त भयानक होंगे ।

3. इन्‌वायरन्‌मेण्टल डाटा सर्विसेज की रिपोर्ट के अनुसार, नागरिक एवं राष्ट्रों की सुरक्षा, भोजन, उर्जा, पानी एवं जलवायु इन चार स्तम्भों पर निर्भर है । ये चारों एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है और ये सभी खतरे की सीमा को पार करने की कगार पर है ।

4. अपने आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए मानव विश्व के संसाधनों का इतनी तीव्रता से दोहन कर रहा है कि पृथ्वी की जीवन को पोषित करने की क्षमता तेजी से कम होती जा रही है ।

वर्ष 2030 तक विश्व की जनसंख्या के 8.3 अरब से अधिक हो जाने का अनुमान है जिसके कारण उस समय भोजन एवं ऊर्जा की माँग 50% अधिक तथा स्वच्छ जल की माँग 30% अधिक हो जाएगी । भोजन, ऊर्जा एवं जल की इस बढ़ी हुई माँग के फलस्वरूप उत्पन्न सकट के दुष्परिणाम भी भयंकर हो सकते हैं ।

विश्व में आई औद्योगिक क्रान्ति के बाद से ही प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू हो गया था, जो उन्नीसवीं एवं बीसवीं शताब्दी में अपनी चरम सीमा को पार कर गया, कुपरिणामस्वरूप विश्व की जलवायु पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा एवं प्रदूषण का स्तर इतना अधिक बढ़ गया कि यह अनेक जानलेवा बीमारियों का कारक बन गया ।

इसलिए बीसवीं शताब्दी में संयुक्त राष्ट्र एवं अन्य वैश्विक संगठनों ने पर्यावरण की सुरक्षा की बात करनी शुरू की । पर्यावरण सुरक्षा के लिए वैश्विक संगठनों द्वारा किए गए हर प्रयास में वृक्षारोपण पर विशेष जोर दिया जाता है ।

भारत सरकार भी विभिन्न राज्यों में वृक्षारोपण के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं पर कार्य कर रही है । इसके अतिरिक्त, विभिन्न प्रकार के गैर-सरकारी संगठन भी वृक्षारोपण का कार्य करते हैं ।  वृक्षारोपण के कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देने के लिए लोगों को वृक्षों से होने वाले लाभ से अवगत कराकर पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करना होगा । कुछ संस्थाएँ तो वृक्षों को गोद लेने की परम्परा भी कायम कर रही हैं ।

शिक्षा के पाठ्यक्रम में वृक्षारोपण को भी पर्याप्त स्थान देना होगा ।  पेड लगाने वाले लोगों को प्रोत्साहित करना होगा । यदि हम चाहते है कि प्रदूषण कम हो एवं हम पर्यावरण की सुरक्षा के साथ सामंजस्य रखते हुए सन्तुलित विकास की ओर अग्रसर हों तो इसके लिए हमें अनिवार्य रूप से वृक्षारोपण का सहारा लेना होगा ।  आज हम सबको एक जन्म की तरह वृक्षारोपण का संकल्प लेने की आवश्यकता है जो कहते थे- ”मैं एक पेड़ लगा रहा हूँ जो मुझे अपनी गहरी जड़ों से सामर्थ्य एकत्र करने की शिक्षा देता है ।”

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