मंगल मिशन (मॉम) पर निबंध! Here is an essay on ‘Mars Mission’ in Hindi language.

मानव का जिज्ञासु मन शुरू से ही अन्तरिक्ष को जानने और समझने की कोशिश करता रहा है । आज मानव अन्तरिक्ष के रहस्यों का भेद पाने के लिए अपनी बुद्धि और ज्ञान का प्रयोग कर न सिर्फ चन्द्रमा तक जा पहुँचा है, बल्कि उसने ब्रह्माण्ड के एक अन्य विस्मयपूर्ण ग्रह मंगल की कक्षा में अपने उपग्रहों को स्थापित करने में भी सफलता अर्जित की है ।

हम भारतवासियों के लिए गर्व की बात यह है कि मंगल ग्रह के क्षेत्र में पहुँचने वाले विश्व के चार देशों में एक हमारा देश भारत भी है । 24 सितम्बर, 2014 को भारतीय उपग्रह ‘मार्स ऑर्बिटर’ जिसे ‘मंगलयान’ नाम भी दिया गया है, के मंगल की कक्षा में पहुँचते ही हमारा देश मर्शियन इलीट क्लव (अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ) में शामिल होने के साथ-साथ अपने प्रथम प्रयास में ही कामयाबी हासिल करने वाला विश्व का अकेला देश बन गया है ।

देश की इस महान् उपलब्धि पर स्वयं इसरो में उपस्थित होकर हमारे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा- मुझे विश्वास था मॉम (मार्स ऑर्बिटर मिशन) निराश नहीं करेगा । मंगल पर पहुँचने वाला भारत पहला एशियाई देश बन गया है । मंगल पर पहुँचने में हम अपनी पहली कोशिश में ही कामयाब रहे । मिशन की सफलता के लिए देश और देश के वैज्ञानिकों को बधाई ।

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इसरो हर चुनौती-को-चुनौती देने में कामयाब है । हमारी इस अद्वितीय सफलता पर नासा ने भी ट्वीट किया- ”हम इसरो को मंगल पर पहुँचने के लिए बधाई देते है । लाल ग्रह का अध्ययन करने वाले मिशनों में ‘मंगलयान’ शामिल हुआ ।” हमारे मंगलयान ने मंगल ग्रह की कक्षा में पहुँचने के अगले दिन ही मंगल ग्रह के सुन्दर दृश्यों की पहली तस्वीर भी भेजी ।

भारत का यह महत्वाकांक्षी मिशन विश्व का सबसे सस्ता मंगल मिशन है । हमारे सौरमण्डल में अकेला मंगल ही ऐसा ग्रह है, जिसमें वैज्ञानिकों को पृथ्वी की तरह जीवन की प्रबल सम्भावना दिखी हे । इसका मुख्य कारण है-मंगल पर पानी और मीथेन गैस की उपलब्धता ।  ऐसे संकेत मिले हैं कि मंगल के दोनों ध्रुवों पर जमी बर्फ की चट्टानों के अन्दर जल का भण्डार है और वहाँ का वातावरण मीथेन के बादलों से आच्छादित है ।

इनमें से जल, जीवन के लिए आवश्यक है, तो मीथेन को जीवों की उत्पत्ति का कारक माना गया है । वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर सर्वप्रथम अस्तित्व में आने वाले एक कोशिकीय जीव अमीबा एवं पैरामीशियम के जन्म के पीछे मीथेन ही कारक रही हे । प्राप्त जानकारी के अनुसार, मंगल की सतह पर स्थित चट्टानों में लौह तत्व की प्रधानता है ।

फलस्वरूप हवा की उपस्थिति में वहाँ जग लगने कीं प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से चलती रहती है । इसी कारण इस ग्रह की मिट्टी लाल है और आँधी चलने पर यहाँ का वातावरण गुलाबी बादलों से भर जाता है । इन्हीं कारणों से मंगल ग्रह को लाल ग्रह भी कहा जाता है । इस ग्रह पर मोउण्ट एवरेस्ट से तिगुना ऊँचा ओलम्पस मॉन्स नामक ज्वालामुखी पर्वत भी है ।

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भारतीय उपग्रह मंगलयान के मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने से पूर्व मंगल अभियानों में अब तक केवल अमेरिकी एजेंसी नासा, यूरोपियन स्पेस एजेंसी और पूर्व सोवियत संघ ही सफल रहे हैं । भारतीय मंगल अभियान की सफलता पर प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था- ”अब तक का रिकॉर्ड अनुकूल नहीं था, क्योंकि दुनियाभर में अब तक हुए 51 में से सिर्फ 21 मंगल मिशन ही कामयाब हो पाए हैं, लेकिन हम सफल रहे ।”

विश्व में मंगल मिशन की शुरूआत सोवियत संघ द्वारा 10 अक्टूबर, 1960 को ‘जार्स 1 एम न. 1’ अन्तरिक्षयान के प्रक्षेपण के साथ हुई, किन्तु यह प्रक्षेपण सफल न हो सका । तत्पश्चात कई प्रयासों के बाद सोवियत संघ ने वर्ष 1971 में ‘मार्स 2 (4 एम न. 171 )’ का सफल प्रक्षेपण कर, जो 27 नवम्बर, 1971 को मंगल की कक्षा में जा पहुँचा, इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त की ।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने मंगल मिशन का प्रारम्भ 4 नवम्बर, 1964 को ‘मैरिनर 3’ नामक उपग्रह के प्रक्षेपण के साथ किया, किन्तु उसका भी पहला मंगल अभियान असफल रहा । उसने इसी वर्ष 28 नवम्बर को ‘मैरिनर 4’ का सफल प्रक्षेपण कर इस क्षेत्र में पहली कामयाबी हासिल की । संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा छोड़ा गया ‘मैरिनर 9’ नामक अन्तरिक्षयान 14 नवम्बर, 1971 को मंगल ग्रह की कक्षा में प्रदेश करने वाला विश्व का पहला उपग्रह बना ।

वर्ष 2003-04 के दौरान तीन मंगल मिशन को अंजाम देकर यूरोपीय संघ ने भी इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर ली । जापान द्वारा इस क्षेत्र में वर्ष 1998 में और चीन द्वारा 2011 में प्रयास किए गए, किन्तु दोनों देशों को निराशा ही हाथ लगी । भारतीय अन्तरिक्षयान मंगलयान के मंगल की कक्षा में प्रवेश करने से ठीक दो दिन पूर्व अर्थात् 22 सितम्बर, 2014 को अमेरिकी उपग्रह ‘मावेन’ मंगल की कक्षा में स्थापित हुआ है ।

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हमारा देश भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान के जनक डॉ. विक्रम साराभाई के बताए रास्ते पर चलता हुआ 22, अक्टूबर, 2008 को ही चन्द्रयान-1 का सफलतापूर्ण प्रक्षेपण कर अन्तरिक्ष शक्ति बन गया था । मून मिशन के बाद मंगल मिशन की सफलता ने भारतवर्ष का गौरव और भी बढ़ा दिया है ।

हमारे देश के वैज्ञानिकों ने वर्ष तक चन्द्रयान-2 एवं मंगलयान-2 को भी अन्तरिक्ष में भेजे जाने की योजना बना रखी है । हमारी पवित्र धरती से अब तक 30 भारतीय एवं 40 विदेशी उपग्रह छोड़े जा चुके हैं । भारत के राकेश शर्मा और कल्पना चावला ने भी अन्तरिक्ष में उड़ान भरकर हम भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊँचा उठाया है ।

भारतीय विशेषज्ञों द्वारा मंगल मिशन हेतु अगस्त, 2010 से ही अध्ययन किया जा रहा है । दुनियाभर में अपनी पहचान बना चुके भारतीय अन्तरिक्ष एजेंसी ‘इसरो’ के वैज्ञानिकों के अथक प्रयास के पश्चात् सतीश धवन अन्तरिक्ष केन्द्र, श्रीहीरकोटा से 5 नवम्बर, 2013 को सुमीत राकेट पीएसएलवी वी-सी 25 के माध्यम से पूर्णतः स्वदेशी उपग्रह ‘मंगलयान’ का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर उसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर दिया गया ।

मंगलयान अपने प्रथम, द्वितीय व तृतीय चरणों को क्रमशः सफलतापूर्वक पार करता हुआ चतुर्थ चरण में जा पहुँचा, किन्तु इस चरण में यह पूर्व निर्धारित गीत को प्राप्त न कर सकने के कारण लक्ष्य (दूरस्थ बिन्दु) से काफी पीछे रह गया था ।

बावजूद इसके हमारे वैज्ञानिकों ने 25 दिनों के पश्चात इसे पृथ्वी की कक्षा से निकालकर सूर्य की कक्षा में स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली इस प्रकार, लगभग 10 महीनों तक लगातार चक्कर काटते हुए 67 करोड़ किलोमीटर की लम्बी दूरी तय करके हमारा मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर) मंगल ग्रह की कक्षा में 24 सितम्बर, 2014 को सफलतापूर्वक प्रवेश कर गया ।

हमारे वैज्ञानिकों की इस महान् उपलब्धि के पश्चात इस तिथि (24 सितम्बर, 2014) के साथ-साथ 5 नवम्बर, 2013 की तिथि (मंगलयान की प्रक्षेपण तिथि) भी इसरो एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए ऐतिहासिक हो गई । देश के इस महत्वाकांक्षी मंगल मिशन (मार्स ऑर्बिटर मिशन या मॉम) की सफलता के साक्षी रहे हमारे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बिल्कुल ठीक कहा था कि आज का दिन अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों के सम्मान में ‘आनन्द उत्सव’ मनाने का दिन है ।

भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने देश की इस महान् उपलब्धि पर इसरो टीम की बधाई और शुभकामना देते हुए कहा था- ”इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर पूरे राष्ट्र को गर्व है ।” मंगलयान के मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने से कुछ दिन पूर्व का समय इसरो के वैज्ञानिकों के लिए अत्यन्त चुनौतीपूर्ण था, जब 300 दिनों से सुप्तावस्था में पड़े मुख्य इंजन (लिक्विड एपोजी मोटर) को चालूकिया जाना था । 22 सितम्बर, 2014 को चार सेकण्ड के सफल परीक्षण के दो दिनों के बाद अर्थात् 24 सितम्बर को आठ छोटे प्रक्षेपकों (थ्रस्टर्स) सहित मुख्य इंजन को पुन चालू किया गया ।

फलस्वरूप अपेक्षानुकूल यान की गति काफी कम हो गई और वह मंगल ग्रह की कक्षा में आसानी से प्रविष्ट कर गया । इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने इस सफलता पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा- ”मंगल अभियान के सभी जटिल चरणों को पार करते हुए मंगलयान को सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में स्थापित करने का श्रेय इसरो परिवार की अथक मेहनत को जाता है ।”

मंगल की कक्षा में प्रवेश करते ही इस यान ने मंगल ग्रह की परिक्रमा करना शुरू कर दिया है । मंगल की कक्षा का एक चक्कर पूर्ण करने में मंगलयान को 72 घण्टे 61 मिनट और 51 सेकण्ड का समय लगता है । मंगलयान मंगल से निकटतम स्थिति में आने पर उससे 365 किमी और दूरस्थ स्थिति में 80,000 किमी दूर रहेगा ।

इसरो प्रमुख डॉ. के राधाकृष्णन के अनुसार- ”जंगल मिशन का उद्देश्य मंगल ग्रह पर पहुँचकर जीवन तलाशना नहीं है वरन् उसकी संरचना, सतह और वहाँ उपस्थित तत्वों एवं खनिजों का पता लगाना है । मीथेन की खोज सबसे अहम् है ।”

आने वाले समय में मंगल ग्रह का विश्लेषण करने के लिए मंगलयान में सौर ऊर्जा संचालित पाँच उपकरण (पेलोड) लगाए गए हैं । इन वैज्ञानिक उपकरणों से प्राप्त आँकड़ों से मंगल ग्रह के मौसम की जानकारी के साथ-साथ वहाँ मौजूद पानी, मीथेन आदि की वास्तविक स्थिति का भी पता चल सकेगा ।

ये महत्वपूर्ण उपकरण हैं:

1. लाइमन अल्फा फोटोमीटर:

(लैंप) यह उपकरण मंगल ग्रह के वायुमण्डल में जल की पूर्व व वर्तमान स्थिति का पता लगाने के लिए कटेरियम और हाइड्रोजन की सापेक्षिक प्रचुरता की माप करने के उद्देश्य से लगाया गया है इस उपकरण से प्राप्त आँकडों की सहायता से मंगल के वायुमण्डल में जल की क्षति का अनुमान भी लगाया जा सकेगा ।

2. मीथेन सेंसर:

यह उपकरण मंगल पर मीथेन गैस की वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिए लगाया गया है इसके द्वारा वहाँ के वातावरण में मीथेन की मात्रा की उपस्थिति की माप की जा सकेगी, साथ ही उसके स्रोतों का ठिकाना भी मालूम किया जाएगा ।

3. थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर:

इस उपकरण की मदद से मंगल पर मौजूद खनिज पदार्थों की जानकारी के साथ-साथ वहाँ की सतह के संगठन की माप करने में भी आसानी होगी । इस उपकरण का मुख्य कार्य वहीं की सतह के ताप की माप करना है ।

4. मार्स एक्सोफेरिक न्यूट्रल कम्पोजीशन एनलाइजर:

(मेन) इस उपकरण के द्वारा मंगल के वाह्य मण्डल में मौजूद कणों के निष्क्रिय संगठन की जाँच-पडताल की जा सकेगी । यह उपकरण द्रव्य विश्लेषक है ।

5. मार्स कलर कैमरा:

इस अति संवेदनशील कैमरे की सहायता से रहस्य से परिपूर्ण मंगल ग्रह की सतह की तस्वीरें ली जा सकेगी । इसने मंगल की कक्षा में प्रविष्ट होने के अगले ही दिन 7300 किमी की ऊँचाई और 376 मी के आकाशीय रिजोल्यूशन से मंगल ग्रह की गड्ढों वाली नारंगी सतह की तस्वीर भी भेजी है । यह आकर्षक तस्वीर लाल ग्रह के उत्तरी ध्रुव पर धूलभरी आंधी की गतिविधियों की है ।

मंगल की कक्षा में प्रवेश करने के उपरान्त मंगलयान द्वारा मंगल ग्रह के बायुमण्डल, खनिजों एवं वहाँ की संरचनाओं का विश्लेषण करने हेतु पूर्व निर्धारित कार्यकाल छ: माह है, किन्तु इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक और तरल प्रणोदक प्रणाली केन्द्र के निदेशक के सिवन का कहना है कि अब मंगलयान का कार्यकाल छ: महीनों से बढाकर एक वर्ष किया जा सकता है ।

इनके शब्दों में- ”मंगलयान का उद्देश्य सिर्फ लाल ग्रह की तस्वीरें लेना नहीं है, बल्कि यह नई पीढ़ी के लिए एक सम्भावना और चुनौती है ।” मंगलयान से प्राप्त तस्वीरों के विश्लेषण के कार्य की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देहरादून स्थित इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस) को सौंपी गई है ।

इसके निदेशक डॉ. वाईवीएन कृष्णमूर्ति के अनुसार, ”यदि हमारे मंगल मिशन के दौरान मंगल पर मीथेन गैस की मौजूदगी के प्रमाण मिलते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि बही पर जीवन की सम्भावना है ।” पूर्णतः स्वदेशी तकनीक का प्रयोग कर चन्द्रयान-1 की तरह अपने देश में ही मंगलयान का निर्माण किया जाना भारत की उन्नत प्रौद्योगिकी और यहाँ के अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों की उच्च योग्यता को साबित करता है स्वयं हमारे प्रधानमन्त्री का ही कहना है- ”मंगलयान अपने देश में ही बनाया गया ।

बंगलुरु से भुवनेश्वर तक और फरीदाबाद से राजकोट तक, पूरे भारत में इसके लिए प्रयास हुए” और सचमुच ऐसा करने से भारतीय मून मिशन की तरह हमारा मार्स मिशन भी काफी किफायती साबित हुआ ।  अपने देश में निर्मित चन्द्रयान-1 की बदौलत ही भारत चन्द्रमा पर जल के होने की पुष्टि करने वाला विश्व का प्रथम राष्ट्र बना था ।

हम भारतवासियों को अपने मंगलयान से भी ऐसी ही सफलता की उम्मीद है । जहाँ भारतीय अन्तरिक्ष एजेंसी इसरो का सालाना बजट एक अरब डॉलर के आस-पास है, वहीं अमेरिका स्थित नासा का बजट लगभग 18 अरब डॉलर, रूस स्थित ग्लोवकोसमोस का लगभग 8 अरब डॉलर और यूरोपीय स्पेस एजेंसी का साढ़े पाँच अरब डॉलर के आसपास है ।

जहाँ हमारे मंगलयान की लागत Rs.460 करोड है, यही इससे दो दिन पूर्व मंगल की कक्षा में प्रवेश करने वाले अमेरिकी उपग्रह मावेन की लागत लगभग Rs.4 हजार करोड़ है । मंगलयान की इस आशातीत सफलता के उपरान्त भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) हेतु राजस्व का एक वृहत द्वार खुलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है ।

ऐसी आशा की जा रही है कि सस्ती और भरोसेमन्द तकनीक होने के कारण उपग्रह प्रक्षेपण हेतु एशिया, अफ्रीका एवं दक्षिण अमेरिका के विकासशील देशों द्वारा भारत को चुना जा सकता है । मंगलयान पृथ्वी की ओर से मंगल पर पहुँचने वाला सातवाँ सदस्य है । मावेन एवं क्यूरॉसिटी सहित नासा के पाँच अन्तरिक्षयान और यूरोपीय स्पेस एजेंसी का एक अन्तरिक्षयान मंगल मिशन से पूर्व सम्बद्ध मंगलयान और क्यूरॉसिटी दोनों ट्‌वीट के माध्यम से आपस में संवादों का आदान-प्रदान करने लगे हैं ।

मंगलयान के मंगल की कक्षा में प्रवेश करने से कुछ दिन पूर्ण क्यूरॉसिटी ने कभी नम रहे मंगल ग्रह के ठण्डे व शुष्क होने के रहस्य को उद्‌घाटित करने के लिए वहाँ स्थित पाँच किलोमीटर ऊँचाई वाले पर्वत ‘माउण्ट शार्प’ के एक चिन्हित स्थान पर लगभग ढाई इंच गहरा छिद्र कर महत्वपूर्ण नमूने जुटाए हैं ।

इन नमूनों से पर्वत निर्माण काल के वातावरण की स्थिति का पता चल सकेगा । नासा द्वारा भेजा गया यह अन्तरिक्षयान अगस्त, 2012 में मंगल पर उतरा था । नासा ने वर्ष 2033-34 तक मंगल ग्रह पर प्रथम मानव कदम रखे जाने की योजना को ध्यान में रखते हुए 13 वर्षीय अमेरिकी बालिका एलिसा कार्सन को अभी से प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है ।

ऐसे में सौर पवन एवं चुम्बकीय क्षेत्र का पूछी पर प्रभाव देखने हेतु भारत द्वारा वर्ष 2015-16 तक सूर्य की ओर ‘आदित्य-1’ उपग्रह के साथ-साथ आने वाले कुछ वर्षों में शुक्र, चन्द्रमा एवं मंगल ग्रहों पर अन्य अन्तरिक्षयानों को भेजे जाने की योजना को मूर्त रूप देना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है । आशा है भारत इसमें भी पीछे नहीं रहेगा ।

भारतीय मंगल मिशन (मॉम) को कामयाब बनाने में इसरो के अध्यक्ष डॉ. के राधाकृष्णन, मंगल मिशन के कार्यक्रम निदेशक एम अन्नादुरई, विक्रम साराभाई स्पेस सेण्टर के निदेशक एस रामाकृष्णन, इसरो सैटेलाइट सेंटर के निदेशक एसके शिवकुमार, पीएसएलवी कार्यक्रम के निदेशक पी कुहीकृष्णन, इसरो के सैटेलाइट एप्लीकेशन सेण्टर के निदेशक एएस किरण कुमार, प्रोपल्सन सिस्टम के निदेशक चन्द्रराथन, सतीश धवन स्पेस सेण्टर के निदेशक एमबाईएस प्रसाद, मंगल मिशन के परियोजना निदेशक एस अरुणन, पीएसएलवी के सहयोगी परियोजना निदेशक बी जयाकुमार, श्रीहरिकोटा रकिट केन्द्र के सीमा संचालन के महाप्रबन्धक एमएस पन्तरिसेत्वम, मंगल मिशन के संचालन निदेशक पी रॉबर्ट, मंगल यान के मिशन निदेशक वी केशबराजू आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।

भारतवर्ष इनके योगदान को कभी नहीं भुला सकेगा । इन सबके अथक परिश्रम का ही फल है कि अमेरिका की टाइम पत्रिका ने मंगल यान को वर्ष 2014 के विश्व के 26 सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल किया है ।

भारतीय मंगल मिशन की सफलता ने एक ओर अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की साख बढ़ाकर देश के अन्तरिक्ष बाजार के विस्तार की सम्भावना बढ़ाई है, तो दूसरी ओर इससे देश की नई पीढ़ियों में विज्ञान के अध्ययन में रुचि लेने की नई आशा भी बँधी है ।

इसरो के संस्थापक सदस्यों में से एक और देश के जाने-माने वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल ने भारतीय मंगल मिशन की सफलता को मानव इतिहास की कालजयी घटना कहा है । उनके शब्दों में ”यह सिर्फ भारत की ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विज्ञान जगत की सफलता है” ।

आज उनके इस कथन से देश के युवा वर्ग को सीख लेने की आवश्यकता है- ”हमने अपना रास्ता खुद बनाया । स्वदेशी तकनीक, कम साधन, कम इंजन क्षमता व वजन, ये इस मंगल मिशन के गुण बन गए, इसके माध्यम से हमने दूसरे देशों को भी रास्ता दिखाया । हमारा पहला अन्तर्ग्रहीय अभियान दूसरे ग्रहों पर जीवन ढूँढने या उसकी सम्भावना तलाशने की दिशा में महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि हम थकने वालों में से नहीं हैं और विज्ञान के क्षेत्र में विकसित देशों से प्रतिस्पर्द्धा करने लगे है ।”

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