प्रवासी भारतीय पर निबंध! Here is an essay on ‘Non-Resident Indians (NRI)’ in Hindi language.

इस वर्ष 9 जनवरी को भारत कृतज्ञता से अपने सर्वश्रेष्ठ प्रवासी भारतीय महात्मा गाँधी की स्वदेश वापसी के शताब्दी वर्ष को मनाया । उनकी वतन वापसी न केवल भारत के लिए बल्कि विश्व के लिए भी युगान्तरकारी घटना सिद्ध हुई गाँधीजी ने न केवल भारतीय स्वतन्त्रता के आन्दोलन का नेतृत्व किया बल्कि विश्व को अहिंसक प्रतिरोध, शान्ति एवं मानवता का सन्देश भी दिया ।

गाँधीजी की ही तरह विश्व के अनेक देशों में प्रवासी भारतीय सदियों से निवास कर रहे है ।  प्रवासी भारतीयों के बारे में जानने के लिए यह जानना जरूरी है कि प्रवास क्या है, भारत से प्रवास की परम्परा कब प्रारम्भ हुई इत्यादि । जो लोग अपने जन्म स्थान को छोड़कर अन्यत्र बस जाते हैं, उन्हें प्रवासी कहते है ।

प्रवास अनेक कारणों से होता है, लेकिन सबसे मुख्य कारण आजीविका के बेहतर अवसरों की तलाश है । प्रवासी भारतीयों से आशय उन लोगों से है जो मूल रुप से भारतीय है परन्तु विभिन्न कारणों से विश्व के दूसरे देशों में जाकर बस गए है । ऐतिहासिक रुप से भारत से प्रवास का प्रथम उल्लेख हमें सम्राट अशोक के अभिलेखों में मिलता है ।

ADVERTISEMENTS:

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में श्रीलंका, यूनान, अफगानिस्तान, जावा-सुमात्रा आदि देशों में अपने दूत भेजे थे । इसके पश्चात 11वीं सदी में दक्षिण भारत के प्रतापी चोल सम्राटों ने जावा-सुमात्रा कम्बोडिया आदि सुदूर पूर्व देशों की विजय-यात्रा की, जिसके फलस्वरूप इन देशों में भारतीयों का प्रवास हुआ ।

यह एक मान्य तथ्य है कि इस काल के व्यापारियों ने अपने जहाजों से रोम तथा चीन तक व्यापारिक गतिविधियाँ संचालित की थीं । औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेजों द्वारा उत्तर प्रदेश और बिहार से मॉरिशस, कैरेबियन द्वीपों (ट्रिनिडाड, टोबेगो एवं गुयाना) फिजी और दक्षिण अफ्रीका, फासीसियों और जर्मनों द्वारा रियूनियन द्वीप, गुआडेलोप मार्टीनीक और सूरीनाम में डच और पुर्तगालियों द्वारा गोवा, यमन-दीव से अंगोला, मोजाम्बिक व अन्य देशों में कृषि कार्य हेतु करारबद्ध रुप से अर्थात् एग्रीमेण्ट के तहत लाखों भारतीयों को ले जाया गया, जिन्हें लोक भाषा में गिरमिटिया मजदूर कहा गया ।

आधुनिक समय में प्रवासियों की दूसरी तरंग व्यवसायियों, शिल्पियों, व्यापारियों और फैक्ट्री मजदूरों के रुप में आर्थिक अवसरों की तलाश में निकटवर्ती देशों जैसे-थाइलैण्ड, मलेशिया, सिंगापुर, इण्डोनेशिया, ब्रूनेई इत्यादि देशों में व्यवसाय के लिए गई । यह प्रवृत्ति अभी भी जारी है ।

1970 के दशक में पश्चिम एशिया में हुई सहसा तेल वृद्धि से उत्साहित भारत के अर्द्धकुशल एवं कुशल श्रमिकों का आर्थिक प्रगति हेतु अरब देशों में प्रयास अभी भी जारी है । प्रवास की नवीनतम लहर वर्ष 1960 के पश्चात प्रारम्भ होती है । यह मुख्य रुप से ज्ञान आधारित प्रवास लहर है ।

ADVERTISEMENTS:

इसके अन्तर्गत सॉफ्टवेयर इन्जीनियर डॉक्टर, इन्जीनियर, प्रबन्धन परामर्शदाता, वित्तीय विशेषज्ञ तथा वर्ष 1980 के पश्चात् से संचार प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ शामिल हैं । इन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), कनाडा, यूनाइटेड किंगडम (UK), ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, जर्मनी इत्यादि देशों में प्रवास किया ।

वर्तमान में विश्व के लगभग 200 देशों में रह रहे भारतीय प्रवासियों की संख्या करीब 2.5 करोड है । इनमें से 11 देशों में 6 लाख से अधिक प्रवासी भारतीय वहाँ की जनसंख्या के एक महत्वपूर्ण वर्ग के रुप में स्थापित हो चुके हैं । सूरीनाम, फिजी त्रिनिडाड एवं टोबेगो, मॉरिशस आदि देशों में तो राष्ट्राध्यक्ष या शासन प्रमुख भारतीय मूल के लोग ही हैं या रह चुके है ।

उदाहरण के लिए, न्यूजीलैण्ड के गवर्नर जनरल आनन्द सत्यानन्द, सूरीनाम के पूर्व उपराष्ट्रपति राम सर्दजोई, सिंगापुर के पूर्व राष्ट्रपति एस आर नाथन, तीन बार गुयाना के राष्ट्रपति रह चुके भरत जगदेव, मॉरिशस के राष्ट्रपति कैलाश पुरयाग एवं प्रधानमन्त्री अनिरुद्ध जगन्नाथ तथा त्रिनिडाड एवं टोबेगो की प्रधानमन्त्री कमला प्रसाद बिसेसर नाम प्रमुख हैं ।

इसके अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका के अनेक शीर्ष प्रशासनिक पदों पर भी अनेक भारतीय विराजमान हैं । इनमें लुइसियाना के गवर्नर बॉबी जिन्दल, साउथ कैरोलिना की गवर्नर निक्की हैली तथा कमला हैरिस (अटार्नी जनरल) आदि प्रमुख है । एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका के 38% डॉक्टर, 12% वैज्ञानिक तथा नासा के 36% कर्मचारी भारतीय है ।

ADVERTISEMENTS:

कारोबार क्षेत्र की दिग्गज माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी के सीईओ सहित लगभग 34% कर्मचारी भारतीय हैं । इसी तरह आईबीएम एवं इंटेल जैसी कम्पनियों के प्रशासनिक व कर्मिक पदों पर भी भारतीयों का वर्चस्व है । पेप्सिको की मुख्य कार्यकारी अधिकारी इन्द्रा नूयी हों या ब्रिटेन के शीर्ष धनी परिवारों में शामिल लक्ष्मीनिवास मित्तल, हिन्दुजा बन्धु हों या कापरो समूह के संस्थापक लार्ड स्वराज पाल इन सभी ने अपने-अपने क्षेत्रों में मील के पत्थर स्थापित किए हैं ।

विज्ञान के क्षेत्र में सर्वकालिक महान् वैज्ञानिकों में शामिल नोबेल विजेता डॉ. हरगोविन्द खुराना, अन्तरिक्ष वैज्ञानिक चन्द्रशेखर सुब्रह्मण्यम, 2009 के नोबेल विजेता रसायनशास्त्री बेंकट रमण रामकृष्णन, नोबेल विजेता अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन, नोबेल साहित्य पुरस्कार विजेता वी एस नायपाल, बुकर पुरस्कार विजेता सलमान रुश्दी, पुलित्जर पुरस्कार विजेता झुम्पा लाहिड़ी आदि भी प्रवासी भारतीय ही हैं ।

ऑकड़ों के अनुसार, इस समय अमेरिका में लगभग 30 लाख, कनाडा में 10 लाख, त्रिनिडाड में 6 लाख, गुयाना में लगभग साढ़े तीन लाख, सूरीनाम में डेड लाख, ब्रिटेन में 16 लाख, क्रास में तीन लाख, कुवैत में 5 लाख, कतर में पाँच लाख, यूएई में 17 लाख, दक्षिण अफ्रीका में 12 लाख, यमन में 1 लाख 20 हजार, श्रीलंका में 16 लाख, मलेशिया में 21 लाख, सिंगापुर में 6 लाख, फिजी में 3 लाख 22 हजार और ऑस्ट्रेलिया में लगभग साढ़े चार लाख भारतवंशी निवास कर रहे हैं ।

यद्यपि भारत इस समय प्रतिभा पलायन की समस्या का सामना कर रहा है परन्तु फिर भी भारत के लिए प्रवासियों का आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है । वर्ष 1915 में एक प्रवासी भारतीय मोहनदास करमचन्द गांधी भारत लौटे और भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम के अग्रदूत बने ।

वास्तव में, भारतीय वर्षों पहले अवसरों व सम्भावनाओं की तलाश में भारतीय प्रवासी बने, किन्तु अब भारत स्वयं सम्भावनाओं व अक्सरों की भूमि है । अतः इसके विकास में इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है । भारत विश्व में प्रवासियों द्वारा भेजी गई विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में प्रथम स्थान पर है । भारतीय प्रवासियों द्वारा प्राप्त यह बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है ।

भारतीय प्रवासियों के महत्व को देखते हुए एवं उन्हें अपनी जडों से जोडने के लिए भारत सरकार भी प्रयत्नशील है । इसीलिए वर्ष 2003 से प्रतिवर्ष 9 जनवरी को ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ मनाया जाता है । इसी दिन महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटे थे ।

इस क्रम में 13वां प्रवासी भारतीय दिवस 7-9 जनवरी, 2016 के मध्य गांधीनगर गुजरात में आयोजित किया गया । इस बार सम्मेलन के मुख्य अतिथि गुयाना के राष्ट्रपति डोनाल्ड आर रामओतार थे । इस बार इस सम्मेलन की थीम ‘अपना भारत-अपना गौरव’ रखी गई थी ।

इसमें 60 देशों के 4,500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया । 13वां प्रवासी दिवस एक अन्य कारण से भी महत्त्वपूर्ण था । इस वर्ष महात्मा गाँधी के भारत लौटने का शताब्दी वर्ष था । इस अवसर पर भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने प्रवासी भारतवंशियों से देश के विकास में अपना योगदान देने की बात की । इसके अलावा उन्होंने भारतवशियों से स्वच्छ गंगा मिशन से जुड़कर धार्मिक एवं पर्यावरणीय विकास में मदद करने की अपील की ।

प्रधानमन्त्रीजी ने इस अवसर पर प्रवासी भारतीय सम्मान, 2016 ऑस्ट्रेलिया की सांसद लीजा सिंह को प्रदान किया गया । साथ ही उन्होंने प्रवासी भारतीयों के लिए वीजा ऑन अराइवल सुविधा उपलब्ध कराने की घोषणा की, जो विश्व के 43 देशों के प्रवासियों के लिए उपलब्ध है ।

इसके अलावा भारत सरकार अनेक ऐसे कार्यक्रम संचालित कर रही है, जो प्रवासी भारतीय को अपनी जड़ों से जोड़ने हेतु प्रतिबद्ध हैं । इनमें भारत अध्ययन कार्यक्रम, अपनी जडों को जानो कार्यक्रम, भारत को जानो कार्यक्रम आदि उल्लेखनीय हैं ।

शास्त्रों में कहा गया है, ”यस्तु संचरते देशान सेवते यस्तु पाण्डेतान, तस्य बिस्तारिता बुधिस्तैल बिन्दु रिवाम्भसि” अर्थात् जो विश्व में भ्रमण करता है वह ज्ञान और अनुभव अर्जित करता है । उसके द्वारा अर्जित किया गया ज्ञान व अनुभव इतना पैना होता है कि कितना ही गहरा समन्दर क्यों न हो, पानी का कितना ही बड़ा सागर क्यों न हो, लेकिन उस पर एक बूँद तेल की पड़े तो वह प्रभावी रुप से फैल जाती है ।

इसी तरह विश्व भर से अर्जित ज्ञान भी व्यापक होता है । इस प्रकार का ज्ञान भारत को अब नए वैश्विक परिदृश्य में अपेक्षित है । भारतीय जहाँ भी गए है वहाँ उन्होंने ज्ञान, विज्ञान, कारोबार, सेवा आदि क्षेत्रों में सफलता के कीर्तिमान स्थापित किए हैं ।

भारत विकास के पथ पर अग्रसर है । इस समय भारत विश्व की प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्यों में से एक है । अतः इसे विकसित बनाने तथा भारत को विचारों की भूमि से अवसरों की भूमि बनाने में प्रवासी भारतीय उल्लेखनीय भूमिका का निर्वाह कर सकते है ।

Home››Essay››