कश्मीर त्रासदी पर निबंध! Here is an essay on ‘Kashmir Tragedy’ in Hindi language.

यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो यही है, यही है, यही है । निश्चय ही दुनिया के कोने-कोने से हर साल लाखों की संख्या में आने वाले सैलानी कश्मीर के बारे में कही गई इस बात को सत्य साबित करते हैं, किन्तु जिस प्रकृति ने अनुपम छटा बिखेर कर कश्मीर को धरती का स्वर्ग बनाया है, उसी ने सितम्बर, 2014 के शुरू होते ही यहाँ जल-प्रलय का ऐसा ताण्डव रचा कि चारों ओर हाहाकार मच गया और यहाँ का जन-जीवन पूरी तरह ठप पड़ गया ।

सितम्बर की दूसरी तारीख से लगातार होने बाली मूसलाधार बारिश के कारण जम, और कश्मीर राज्य के कई क्षेत्र जलमग्न हो गए । झेलम सहित राज्य की सभी नदियाँ उफान पर आ गई । नाले नदियों में बदल गए । कई जगह सड़कें बह गई । भूस्खलन के कारण श्रीनगर हाई-वे बन्द करना पड़ा ।

जम्मू-डोड़ा, भद्रवाह-किश्तवाड और श्रीनगर-लेह हाई-बे पर भी यातायात अवरुद्ध हो गया । जम्मू में सर्वाधिक तबाही पुँछ, राजौरी और रियासी में हुई । जम्मू के नौशेरा में बादल फटने के पश्चात बारात से लदी एक बस के नदी की तेज धार में बह जाने से करीब 50 लोगों की मौत हो गई । दक्षिण कश्मीर स्थित कुलगाम और अनन्तनाग के मट्टन की स्थिति अति दयनीय थी ।

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यहाँ के 30 गाँव बाढ की चपेट में आ चुके थे । प्रकृति द्वारा बरसाए जा रहे इस कहर से जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर भी अछूती न थी बेमिना, लसजन, महजूरनगर, नट्टीपुरा, आदि क्षेत्र पूरी तरह बाद के प्रभाव में आ चुके थे । बेमिना की स्थिति सबसे दयनीय थी ।

बरजुला का अस्पताल पानी में डूब चुका था । श्रीनगर एयरपोर्ट परिसर सहित एयरपोर्ट जाने का रास्ता भी जलमग्न था । बारिश, खराब मौसम और बाद की स्थिति को देखते हुए सारी उड़ाने रद्द कर दी गईं । इस कारण हज यात्री भी वहाँ से बाहर न निकल सके ।

अब तक लगातार तीन दिनों की बरसात 70 लोगों की जान ले चुकी थी । मरने वालों में बचाव कार्य में लगे कुछ सैनिक, सीमा सुरक्षा बल का एक अधिकारी और कुछ बच्चे भी शामिल थे किन्तु इतना सब कुछ होने के बाद भी बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ।

लगातार पाँच दिनों तक होने वाली भारी वर्षा के कारण झेलम सारे बाँधों को तोड़ती हुई श्रीनगर शहर में घुसकर तबाही मचाने लगी । देखते-देखते मकान पानी में डूबने लगे । पशु एवं इंसान सभी त्राहि-त्राहि कर उठे । बाद का पानी सब कुछ निगल लेने के लिए मंजिल-दर-मंजिल ऊपर चढता जा रहा था ।

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बेबस लोग अपनी आंखों के सामने अपने बच्चों को मौत के मुंह में समाते देख रहे थे । जलप्रलय में इंसान, जानवर, गाड़ी-मोटर, सामान, सब कुछ डूब-उतश रहे थे । भूस्खलन के कारण स्थिति और भी भयानक हो गई थी । प्रकृति के कहर के सामने इंसान बिल्कुल बौना प्रतीत हो रहा था ।

सामान्यतः सड़क से 20 फुट नीचे रहने बाली डल झील ने सड़क समेत श्रीनगर के सम्पूर्ण क्षेत्रों को अपने में समा लिया था । सिर्फ झेलम ही नहीं, चिनाब, तवी, मुनाबर, जान-माल की क्षति पहुँचा रही थी । बारिश, बाढ और जगह-जगह हुए भूस्खलनों के कारण समूचा राज्य मरघट-सा सूना पड़ गया था । इस तबाही ने धरती के स्वर्ग को नरक में बदल दिया था ।

स्थानीय लोग बच्चों एवं महिलाओं को सुरक्षित स्थानों पर ले जा रहे थे । पशुओं को नावों पर लादकर बचाने की कोशिश की जा रही थी । उधर बाढ़ और भूस्खलन के कारण जम्मू में तवी नदी पर बने पुल के टूट जाने से वैष्णो देवी यात्रा भी रुकी पड़ी थी । जम्मू और कश्मीर का सम्पर्क टूट गया था । भूस्खलन का मलबा गिरने से जम्मू-कटरा रेलमार्ग बाधित था ।

उधमपुर जिले में भूस्खलन के कारण अलग-अलग दो मकानों के गिरने से सात लोगों की मौत हो गई थी ।  इसी जिले के सदाल गाँव के 30 घर कीचड के तेज बहाव की चपेट में आकर दब गए थे, जहाँ मलबे से 40 से अधिक शव निकाले गए । पुलवामा जिले में बचाव कार्य के दौरान सेना के जवानों की नाव झेलम में डूब गई थी, पर दो हेलीकॉप्टरों की मदद से किसी तरह उस पर सवार जवानों को बचा लिया गया ।

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उधर लेह घूमने गए बाद में फँसे एनआईटी के 150 छात्रों को भी श्रीनगर से दिल्ली रवाना कर दिया गया । अपने कुछ साथियों सहित कश्मीर घाटी स्थित एक होटल में ठहरी हुई पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नेशनल) की सांसद आयशा जावेद भी इस बाढ़ में फँस गई थी, किन्तु बाढ़ में घिरने के दो दिनों के बाद ही इण्डियन आर्मी और एयरफोर्स की मदद से उन सबको श्रीनगर में सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया गया ।

इस कारण उन लोगों ने भारतीय सेना की खूब जमकर तारीफ की । जम्मू में सेना की 12 टीमें, 3 मेडिकल टीमें और सिविल टीमों के करीब 3,000 लोग राहत कार्य में जुटे थे । राज्य में आई इस भीषण बाढ़ में फँसे लोगों को बचाने हेतु भारत की तीनों सेना (जल, थल एवं वायु) सहित एनडीआरएफ की टीमें जी-जान से जुटी थी ।

वहीं एनजीओ से सम्बद्ध लोगों एवं स्थानीय साहसी युवाओं ने भी बाढ़ पीड़ितों की मदद में कोई कसर नहीं छोडी । इण्डियन आर्मी के लेफ्टिनेण्ट जनरल सुब्रत साहा के शब्दों में- ”घाटी में स्थानीय युवाओं द्वारा किए गए प्रयासों को आर्मी सलाम करती है । यदि ये हमें सही जगह न पहुँचाते, तो हम अपने अभियान को कैसे अंजाम दे पाते ।”

इन सबके अलावा गाल भी बाढ़ प्रभावित से अधिक लोगों का डेटाबेस अपलोड करके उन्हें मदद पहुँचा रहा था । पर्सन फाइण्डर नामक भाल एप्प आपदा पीड़ित व्यक्तियों की स्थिति जानने एवं उनके परिजनों के लिए पोस्ट करने हेतु खास तौर पर बनाया गया था ।

बाढ़ पीड़ितों की रक्षा करने के लिए विश्व के सबसे बड़े हेलीकॉप्टर एमआई-26 सहित सी-17 ग्लोबमास्टर थ्री और सी-130 जे सुपर हरक्यूलिस बिमानों की मदद ली जा रही थी । पीठ पर बैग टांगे बाढग्रस्त इलाकों में फँसे लोग मीलों पैदल चलकर बायु सेना के बेस पर बड़ी संख्या में पहुंच रहे थे, उनमें अधिकतर बाहरी राज्यों से आए मजदूर थे, पर लोगों की अत्यधिक भीड़ के कारण विमान में बच्चों, महिलाओं, बीमारों और बुजुर्गों को चढाने में प्राथमिकता दी जा रही थी ।

विमान में सवार होने वाले लोग खुद को खुशनसीब मान रहे थे । प्रकृति की इस विनाश लीला के दौरान राज्यभर में आधिकारिक तौर पर 281 लोगों के मरने की खबर है, किन्तु वास्तविक कटा इससे कहीं अधिक हो सकता है ।

इस आपदा में भारतीय सेनाओं एवं नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (NDRF) सहित देशवासियों ने जिस एकता और लगन के साथ बाढ़ में फँसे लोगों की सहायता की है, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है । इस भीषण बाढ में फँसे दो लाख से अधिक लोगों को भारतीय सेनाओं के जवानों ने जान पर खेलकर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया ।

इस बचाव कार्य में कितने ही जवानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा । वहीं बचाव कार्य में जुडे स्थानीय युवाओं में से भी कुछ को इस बाढ़ ने हमेशा-हमेशा के लिए छीन लिया । भारत के गृह सचिव अनिल गोस्वामी के अनुसार, इस बचाव कार्य में 82 विमानों और हेलीकॉप्टरों, सीमा सुरक्षा बल की 10 बटालियनों, इण्डियन आर्मी के 329 दस्तों सहित 300 बोट की सहायता ली गई ।

एक ओर बचाव दल के द्वारा बाढ पीड़ितों को भोजन, पेयजल, टेण्ट, कम्बल, दवाइयाँ आदि जरूरी वस्तुएँ उपलब्ध कराई जा रही थी, तो दूसरी ओर पाकिस्तान अपनी गलत हरकतों से बाज नहीं आ रहा था । यद्यपि वहाँ भी चिनाब नदी में आई भीषण बाढ से जान-माल का काफी नुकसान हुआ था ।

बावजूद इसके जमकर कश्मीर राज्य में बाढ़ के कारण दूरदर्शन और आकाशवाणी के प्रसारण बन्द होने की खबर सुनने के पश्चात् पाकिस्तानी दूरदर्शन चैनलों द्वारा वस्तु और कश्मीर राज्य में भारत सरकार के विरुद्ध सूचनाएँ फैलाई जा रही थी, किन्तु इसकी जानकारी होते ही जल्द ही दिल्ली से डीडी कश्मीर का प्रसारण शुरू होने से यह स्थिति समाप्त हो गई ।

उधर सीमारेखा पर कुछ स्थानों पर तारों के बाढ़ के बाढ़ में बह जाने से उस स्थानों से पाकिस्तानी आतंकवादियों के घुसने की आशंका भी बनी हुई थी, किन्तु सीमा पर सैटेलाइट व अन्य माध्यमों की मदद से स्थिति पर नजर रखी जा रही थी ।

उद्योग चैम्बर एसोचैम के अनुसार, इस भीषण बाढ़ से राज्य को Rs. 5400 से 5,700 करोड़ का तात्कालिक नुकसान का अनुमान है । होटल, व्यापार, कृषि, सड़क एवं पुलों को Rs.2630 करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया गया है ।

रेलवे, बिजली एवं संचार जैसे उच्च लागत वाले अधारभूत ढाँचे को Rs.2700 से 3,000 करोड़ के नुकसान की आशंका है । एसोचैम के महानिदेशक डीएस राबत के शब्दों में- यह मात्र प्रारम्मिक अनुमान है अर्थव्यवस्था को वास्तविक नुक्सान काफी अधिक हो सकता है ।

बही राज्य के मुख्य सचिव इकबाल खाण्डे ने इस बाढ़ से राज्य को Re.1 लाख करोड़ से अधिक का नुकसान बताया । उनके अनुसार, झेलम में गिरने बाली उसकी सहायक नदीयों में बादल फटने से बड़े जल स्तर के कारण बाढ़ प्रलयकारी हो गई । उन्होंने बताया कि भविष्य में ऐसी विनाश लीला रोकने हेतु कश्मीर में संगम स्थित झेलम नदी के पास से ही एक स्पिल चैनल या फ्लड चैनल बनाने की योजना है ।

यह नहर उत्तरी कश्मीर में बुल्लर झील तक फैली होगी और आवश्यकता होने पर झेलम के बदे हुए पानी को बुल्लर तक पहुंचाया जाएगा ।  खाण्डे के अनुसार, केन्द्र सरकार झेलम में स्पिल चैनल निर्माण हेतु Rs.22 हजार करोड़ की योजना के प्रस्ताव को मंजूरी दे देगी ।

राज्य सरकार के मुताबिक राज्य में आई इस बाढ़ से होने वाली तवाही और नुकसान का ब्यौरा इस प्रकार है:

1. बाढ़ से 5,642 गाँव प्रभावित हुए जिनमें 800 गांव 15 दिनों से अधिक समय तक जलमग्न रहे ।

2. बाढ़ से 12.50 लाख परिवार प्रभावित हुए ।

3. कंक्रीट से बने 83,044 मकान पूर्णतः नष्ट हो गए एवं 96,089 मकान आशिक रूप से प्रभावित हुए ।

4. सेमी कंक्रीट बाले 12,162 मकान पूर्णतः एवं 54,624 मकान आशिक तौर पर तबाह हुए ।

5. बाढ़ में 10,050 दुधारू पशुओं एवं 33 हजार भेड़-बकरियों की मौत हुई ।

6. खेतों में लगी फसलों को Rs.4,043 करोड़ का नुकसान हुआ ।

7. बागों में Rs.1568 सोड़ का नुक्सान हुआ ।

8. 6.51 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि प्रभावित हुई ।

9. 3 हजार पेयजल परियोजनाएँ तबाह हुई ।

10. 6 हजार किलोमीटर सड़कें क्षतिग्रस्त हुई ।

11. 450 छोटे-बड़े पुल क्षतिग्रस्त हुए ।

12. शिक्षा, स्वास्थ्य एवं बिजली विभाग को लगभग Rs.3 हजार करोड से ज्यादा का नुकसान हुआ ।

नि:सन्देह राज्य में आई यह बाद अति भयानक थी, पर इस दौरान राज्य और केन्द्र सरकार के मध्य अच्छे तालमेल म बाढ़ पीड़ितों तक सहायता पहुँचाने के कार्य को ठीक तरह से पूरा किया जाना राज्य और देश के हित में है ।

केन्द्रीय गृहमन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने राज्य के मुख्यमन्त्री श्री उमर अबला के साथ बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर राज्य सरकार को राज्य आपदा प्रबन्धन कोष से, जिसमें 89% धन केन्द्र सरकार का होता है, तत्काल राहत कार्यों हेतु Rs.1100 करोड़ देने का निर्देश दिया ।

हमारे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी संकट की इस घड़ी में राजधर्म निभाते हुए न सिर्फ निजी तौर पर बार का जायजा लिया, बल्कि प्रधानमन्त्री राहत कोष से मृतकों के परिजनों को Rs.2-2 लाख एवं गम्भीर रूप से घायलों को Rs.50-50 हजार देने की घोषणा भी की ।

उनके द्वारा पाकिस्तान के कब्जे बाले कश्मीर में भी मदद की पेशकश किए जाने पर भारत के कांग्रेसी नेताओं सहित पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री श्री नवाज शरीफ ने भी तारीफ की । इतना ही नहीं हमारे प्रधानमन्त्री ने इस वर्ष की दीपावली भी सियाचिन के सैनिकों एवं कश्मीर के बाढ़ पीड़ितों के बीच बनाई ।

सियाचिन में एक घण्टे तक जबानों के बीच रहने के दौरान उन्होंने मिठाइयाँ बांटी और जवानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि देश को सेना के जबानों पर नाज है ।  इस प्रकार इस भीषण आपदा में उन्होंने जम्मू-कश्मीर के लोगों को यह अहसास दिलाया कि वह उनके भी प्रधानमन्त्री है और भारतीय सेनाओं ने भी अपना कर्तव्य बखूबी निभाते हुए यह साबित कर दिया कि वे कश्मीरियों के हितों के रक्षक हैं ।

प्रधानमन्त्री ने इस यात्रा के दौरान राज्य को Rs.746 की सहायता की घोषणा भी की । उन्होंने इस त्रासदी के दौरान देशवासियों से बाद पीडितों की मदद का आग्रह करते हुए कहा था, ”अपने समय और संसाधनों के जरिए खुद को जम्मू-कश्मीर में राहत कार्यों के लिए समर्पित कर दीजिए । इस वक्त जम्मू-कश्मीर में हमारे भाइयों और बहनों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़े होने की जरूरत है ।”

जम्मू और कश्मीर के मुख्यमन्त्री के द्वारा भी इस संकट काल में जम्मू क्षेत्र एवं घाटी की सहायता हेतु Rs.200 करोड़ एवं मृतकों के परिजनों को Rs.35 लाख देने की घोषणा की गई साथ ही उन्होंने इस तबाही में घर गँवाने बालों को भी Rs.75 हजार की तात्कालिक वित्तीय सहायता की घोषणा की ।

उनके द्वारा बाद प्रभावित लोगों के लिए छ: महीनों तक 50 किलोग्राम चावल की नि:शुल्क आपूर्ति करने की घोषणा भी की गई । देश के अन्य राज्यों ने भी इस घोषित राष्ट्रीय आपदा हेतु खुलकर सहायता की । महाराष्ट्र एवं तेलंगाना के मुख्यमन्त्रियों ने मुख्यमन्त्री राहत कोष से Rs.10-10 करोड़ की सहायता प्रदान करने की घोषणा की ।

इसके अतिरिक्त, तेलंगाना के मुख्यमन्त्री द्वारा Rs.2.5 करोड़ के 50 बाटर प्यूरिफायर की सहायता करने की भी घोषणा की गई ।  गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु की सरकारों ने भी Rs.5-5 करोड़ की राशि बाढ़ पीडितों की मदद के लिए देने का ऐलान किया । वही बिल गेट्‌स ने 7 लाख डॉलर एवं महिन्द्रा समूह द्वारा Rs.2 करोड दान देने की घोषणा की गई ।

बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) ने बीमा कम्पनियों को राज्य में भीषण बार से हुए नुकसान के दावों का जल्द निपटान करने का निर्देश दिया, ताकि सामान्य स्थिति बहाल होने में मदद मिल सके । प्रधानमन्त्री ने कुमैत में रहने बाली 12वीं की छात्रा दुवुरी रोहिणी प्रत्युषा की सराहना करते हुए उसे पत्र लिखा जिसने भारतीय मूल के परिवारों से बाढ़ पीड़ितों के लिए आरएस. 216 लाख की राशि एकत्र की थी । यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी ने भी राज्य के मुख्यमन्त्री को Re.1 करोड़ का चेक दिया ।

इस प्रकार, देश में आई इस आपदा से उबरने में सबने मिलकर हाथ बँटाया, जिससे बाद और उसके बाद उत्पन्न स्थिति को ठीक करने में काफी बल मिला ।  केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री डॉ. हर्षवर्धन ने भी दो बार जम्मू-कश्मीर राज्य का दौरा कर स्थितियों का जायजा लिया और थे राज्य में फिर से नए सिरे से स्वास्थ्य सेवाएँ बहाल करने में भरपूर मदद की । डॉक्टरों की टीम ने भी पीड़ितों की दिल से सेवा की, फलस्वरूप बाद में फँसे लोगों को संक्रमण एवं महामारियों से बचाया जा सका ।

राहत के नाम पर इतना सब कुछ होने के बावजूद राज्य में पूर्व की-सी स्थिति बहाल होने में काफी समय लगेगा, क्योंकि ऐसी भीषण त्रासदी अपने साथ ऐसा विनाश लाती है, जिसका असर भविष्य में लम्बे समय तक रहता है । इस बात की प्रत्यक्ष गवाह है पिछले वर्ष 2013 की उत्तराखण्ड त्रासदी, जिससे वहाँ के लोग अब तक नहीं उबर सके है । उस त्रासदी को हुए एक वर्ष से अधिक बीत चुका है, पर आज भी वहाँ पर्यटकों का आवागमन शुरू नहीं हुआ है ।

निश्चित तौर पर जम्मू-कश्मीर में आई भीषण बाढ़ का भी वहाँ के पर्यटन उद्योग पर प्रतिकूल असर पड़ेगा । अब प्रश्न यह उठता है कि बार-बार होने बाली ऐसी घटनाओं से हम सबक क्यों नहीं ले पाते? हम प्रकृति द्वारा बार-बार दी जाने वाली चेतावनियों को क्यों नहीं समझ पाते? हमें हर हाल में स्वीकारना होगा कि प्रकृति के इन विकराल रूपों में आने के पीछे हम इंसान कम दोषी नहीं हैं ।

हम अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु प्रकृति से खिलवाड़ करने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते । हमारे द्वारा बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई, बन उन्मूलन, पहाड़ों को तोड़े जाने, नदियों के प्रवाह को रोकने या बदलने, नदियों के रास्तों में भवन निर्माण करने और पर्यावरण को हर प्रकार से प्रदूषित करने के कारण प्रकृति विध्वंसक रूप धारण कर लेती है और तब प्रकृति के कहर के सामने हम इंसानों की एक नहीं चलती ।

जिस ज्ञान-विज्ञान का दुरुपयोग कर मानव प्रकृति के साथ क्रूर मजाक करता है, उसी प्रकृति के गुस्साने पर उसका ज्ञान-विज्ञान किसी काम का नहीं रहता । कश्मीर त्रासदी में भी यही हुआ था मानव ने फ्लड चैनलों पर बसना प्रारम्भ कर दिया, जिससे जल-निकासी का रास्ता अवरुद्ध हो गया, तत्पश्चात कुछ ही दिनों की बारिश ने थे राज्य में बाढ़ और जहाँ-तहाँ भूस्खलन करके चारों तरफ मौत का ताण्डव रचा दिया ।

निश्चय ही प्रकृति ने इस भीषण त्रासदी के माध्यम से हम मानवों को एक बार फिर से अपनी सीमा, अपनी मर्यादा में रहने की चेतावनी दी है । आज फिर से आवश्यकता आन पड़ी है कि प्रकृति को दोस्त मान लिया जाए और हम उसके साथ किए जाने बाले खिलवाड़ों को बन्द कर दे, तभी भविष्य में होने वाली ऐसी त्रासदियों की संख्या कम होगा या फिर उनका इतना विध्वंसात्मक प्रभाव नहीं होगा ।

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