उदारीकरण का घरेलू उद्योगो पर प्रभाव! Read this article in Hindi to learn about the effects of liberalization on domestic industries.

भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण आजादी के बाद इसके नए अध्याय की शुरूआत । यह मिश्रित अर्थव्यवस्था के नियंत्रित चक्र की समाप्ति तथा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के निर्बाध चक्र का आरम्भ है ।

सन् 1991 के प्रारम्भ से ही भारतीय अर्थव्यवस्था में एक ओर विदेशी ऋण में बेतहाशा वृद्धि, विदेशी मुद्रा भण्डार में गिरावट सरकारी खर्च में बढ़ोतरी भारत से विदेशी पूंजी का पलायन सार्वजनिक क्षेत्र में बढ़ता घाटा औद्योगिक उत्पादन में गिरावट व कृषि उत्पादन में ठहराव दृष्टिगत हो रहा था ।

दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सोवियत रूस के विघटन के फलस्वरूप पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं का ध्रुवीकरण पूर्वी यूरोपीय देशों में पूंजीवाद के अनुकूल राजनीतिक उथल पुथल, खाड़ी युद्ध, विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं का ठहराव आदि नजर आ रहे थे ।

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इस प्रकार पूंजीवादी देशों की अर्थव्यवस्थाओं के दबाव और भारतीय अर्थव्यवस्था के अपने सकट के परिप्रेक्ष्य में सन् 1991 के उत्तरार्द्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था के मिश्रित स्वरूप के स्थान पर उदारीकृत अर्थव्यवस्था का अनेक आशाओं आशंकाओं वादों और विरोधों के बावजूद अपनाया गया ।

उदारीकरण को अनेक उद्देश्यों व कारणों से भारत में लागू किया गया । इसके परिणामस्वरूप कुछ उद्देश्य पूरे हुए, कुछ क्षेत्रों में सफलता मिली किन्तु बाद में नकारात्मक प्रभाव भी नजर आन लगे । सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव स्वदेशी उद्योगों पर पडा ।

उदारीकरण की प्रक्रिया के तहत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सक्रिय होने एवं आयातों में छूट से स्वदेशी उद्योग सकट में फँस गए जिससे वे बन्द होने के कगार पर आ गए । वर्ष 1991 में नयी औद्योगिक नीति लागू होने के बाद विभिन्न नियन्त्रणों को समाप्त करने का एक व्यापक कार्यक्रम शुरू किया गया । सुरक्षा, सामरिक और पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील उद्योगों की छोटी-सी सूची में शामिल छह उद्योगों को छोड्‌कर अन्य सभी वस्तुओं के लिए लाइसेन्स की अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी है ।

जिन उद्योगों के लिए लाइसेन्स लेना अनिवार्य है, वे है:

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(1) अल्कोहलयुक्त पेय पदार्थों का आसवन और निर्माण,

(2) तम्बाकू के सिंगार और सिगरेट तथा तम्बाकू से बनी वस्तुएँ,

(3) इलेक्ट्रानिक एयरोस्पेस तथा सभी प्रकार का रक्षा साज-सामान,

(4) औद्योगिक विस्फोटक,

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(5) जोखिम वाले रसायन और

(6) औषधि और फार्मास्युटिकल ।

पहले अनेक उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित थे । किन्तु अब परमाणु ऊर्जा और उससे सम्बन्धित विषय तथा रेल परिवहन का ही सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रखा गया है । रक्षा क्षेत्र को भी 26 प्रतिशत तक विदेशी पूंजी निवेश के साथ निजी क्षेत्र के लिए खोलने का निर्णय लिया गया है ।

सरकार लघु उद्योग क्षेत्र में ही कुछ वस्तुओं के निर्माण करने की विशेष व्यवस्था की नीति अपनाकर लघु उद्योग क्षेत्र को लगातार संरक्षण देती रहेगी । लघु उद्योग उद्यम को छोड्‌कर लघु उद्योग क्षेत्र के लिए विशेष रूप से आरक्षित वस्तुओं का निर्माण करने वाले सभी औद्योगिक उद्यमियों को औद्योगिक लाइसेन्स प्राप्त करना आवश्यक होगा और अपने वार्षिक उत्पादन के पचास प्रतिशत के निर्यात की जिम्मेदारी लेनी होगी ।

आर्थिक विकास की उच्च दर प्राप्त करने के लिए घरेलू पूजी निवेश बढाने में विदेशी पूजी निवेश से बड़ी मदद मिलती है । इससे न केवल घरेलू उद्योग लाभान्वित होता है बल्कि उपभोक्ताओं को उन्नत प्रौद्योगिकी, विश्व मैं प्रचलित प्रबन्धन कुशलता, मानव और प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग, भारतीय उद्योगों को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में स्पर्धात्मक बनाने, निर्यात बाजारों को खोलने, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का सामान और सेवाओं का लाभ भी मिलता है ।

इसीलिए भारतीय उद्योग को अपनी गतिविधियाँ चलाने में और सुविधा देने के उद्देश्य से सरकार ने नकारात्मक सूची को छोडकर अन्य सभी मामलों में स्वतः प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दे दी है । स्वतः विदेशी निवेश का सीधा-सा अर्थ यह है कि विदेशी निवेशकों को निवेश करने के तीस दिनों के भीतर और कोई शेयर जारी करने के भी तीस दिनों के भीतर भारतीय रिजर्व बैंक को इस बारे में सूचित करना है ।

गैर-प्राथमिकता वाले उद्योगों में विदेशी निवेश को उदार बनाने के लिए ‘विदेशी निवेश सम्बर्द्धन बोर्ड’ का गठन किया गया है-ताकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विदेशी निवेश सम्बन्धी मामलों का निपटारा यथाशीघ्र किया जा सके । सरकार ने उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में अन्तर्राष्ट्रीय तकनीकी सन्धियों को स्वतः स्वीकृति की सुविधा प्रदान करके विदेशी तकनीक के आयात का मार्ग प्रशस्त किया है ।

सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश के प्रति सरकार ने यह नीतिगत घोषणा की थी कि जीवनक्षम सरकारी क्षेत्र के कारखाना का पुनर्गठन कर उन्हें समुचित सहायता दी जायेगी दर न चल सकने वाले सरकारी कारखाने बन्द कर दिये जायेंगे । असामरिक महत्व के सभी कारखानों में सरकारी शेयर पूंजी घटायी जायेगी किन्तु कर्मचारियों के हितों की पूरी सुरक्षा की जायेगी ।

इस नीति के अन्तर्गत भारत एन्सीनियम कम्पनी, विदेश संचार निगम लिमिटेड, सी.एम.सी तथा आई.बी.पी. आदि का निजीकरण कर दिया गया । सरकारी क्षेत्र के कई होटल बाजार मूल्य से कम पर बेच दिये गये । सरकार न केवल लाभ अर्जित करने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का निजीकरण किया जिससे स्पष्ट है कि इस कार्यवाही में राजग सरकार की नीयत साफ नहीं थी ।

अब संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार ने जिस न्यूतनतम साझा कार्यक्रम की स्वीकार किया है उसमें कहा गया है कि जीवन बीमा निगम और साधारण बीमा निगम सार्वजनिक क्षेत्र में बने रहेंगे और लाभ कमाने वाली इकाइयों का आगे निजीकरण नहीं किया जायेगा ।

उदारीकरण के अन्तर्गत सरकार ने अर्व्यवस्था को सरकारी तंत्र के कठौर नियंत्रणों से निकाल कर बाजारोन्मुख एवं प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए आर्थिक सुधार तथा आर्थिक उदारीकरण की नई नीतियाँ शुरू कीं जहाँ एक और भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता की दूर करने के लिए भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन किया गया, सरकारी व्यय में फिजूलखर्ची की कटौती, भौतिक तरलता में वृद्धि तथा कृषि, उद्योग, परिवहन एवं संचार के क्षेत्र में नियंत्रणों में ढील देकर आर्थिक उदारीकरण के अल्पकालीन उपाय किए गए, वहीं दूसरी ओर दीर्घकालीन आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत अर्थव्यवस्था में संरक्षणवादी प्रशुल्क बाधाओं के समापन वित्तीय एवं बैंकिंग संस्थाओं के निजीकरण, सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवंश तथा उनमें भी निजीकरण को प्रोत्साहन देना, कृषि, उद्योग एवं परिवहन तथा संचार के क्षेत्र में नियंत्रणों में ढील एवं सुधारा का सिलसिला चालू किया ।

उदारीकरण के लिए भारत में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए । अधिकांश क्षेत्रों में औद्योगिक लाइसेंस प्रक्रिया को समाप्त कर दिया गया । उद्योगों के विस्तार या नए निवेश के लिए सरकार से अनुमति लेने के आवश्यक नहीं समझा गया । सरकारी क्षेत्र के लिए उद्योगों की संख्या 17 से घटाकर 6 कर दी गई ।

विदेशी प्रौद्योगिकी पूंजी एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की आमंत्रित किया गया । सार्वजनिक क्षेत्र को आरक्षित क्षेत्रों में कार्य करने अपनी रुग्णता को ठीक करने तथा सरकारी भागीदारी को वित्तीय संस्थानों श्रमिकों एवं जनता तक विस्तृत किया गया । आयातित वस्तुओं में छूट दी गई, निर्यात की वस्तुओं की अधिक प्रोत्साहन दिया गया । इन निर्णयों से कुछ अच्छे परिणाम सामने आए, किन्तु ये नीतियाँ व निर्णय पूर्णतः कारगर साबित नहीं हो सके ।

भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की नीति मिश्रित अर्थव्यवस्था से भिन्न, पूंजीवादी निजीकरण उन्मुखी, देशी और विदेशी प्रतिस्पर्द्धा के आधार पर विकसित हुई है । भारत की लुंज-पुंज अर्थव्यवस्था को हुलमुल राजनीतिक नेतृत्व द्वारा जिस तरह से बिना ठोस तैयारी के विश्व प्रतिस्पर्द्धा में झोक दिया गया है, उससे नकारात्मक असर साफ नजर आने लगे है ।

बहुत से भारतीय उद्योग बद हो गए है । बेरोजगारी बढी है । भारतीय श्रमिकों के विदेशी तकनीक के साथ चलने के लिए योजनाबद्ध ढंग से कार्य कुशलता बढाने का कार्य नहीं किया गया है । सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की रुग्णता को दूर करने एवं उनके आधुनिकीकरण के ठोस उपाय नहीं किए गए है । ऐसी स्थिति में भारतीय पूंजी निवेशकों उद्योगपतियों एवं श्रमिकों में निराशा भी व्याप्त हुई है तथा विदेशी शक्तियों के हाथों भारतीय अर्थव्यवस्था के शोषण की स्थितियों पैदा हो गई है ।

उदारीकरण द्वारा विदेशी उद्योगों से प्रतिस्पर्द्धा के कारण स्वदेशी उद्योगों पर सकट उपस्थित हो गया है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से देश की सम्प्रभुता को खतरा बढेगा तथा स्वदेशी व स्वावलम्बन की भावना को धक्का लगेगा । विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपना वर्चस्व स्थापित करके शोषण कर रही हैं ।

इसके लिए राजनीतिक भ्रष्टाचार का भी सहारा लिया जा रहा है । ये अपने अधिकतम लाभ के लिए राष्ट्रीय हितों की बलि दे देते है । विदेशी मुद्रा में हेरा-फेरी करते हैं और देश के उद्योगों को कट्‌टर प्रतिस्पर्द्धा एवं मुद्रा अवमूल्यन करने की स्थिति उत्पन्न करने का दुस्साहस करते है ।

उदारीकरण के तहत आमंत्रित बहुराष्ट्रीय निगम एवं कम्पनियाँ अपने विशाल साधनों एवं महँगे भ्रमात्मक विज्ञापन साधनों द्वारा देश के उद्योगों के लिए कट्‌टर प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न करते हैं यहाँ तक कि कभी-कभी अपने उत्पादों को घाटे पर बेचकर भी स्वदेशी प्रतिस्पर्द्धी कम्पनियो को बाहर कर देते है जिससे उन्हें एकाधिकार की स्थिति में पहुँच कर लाभार्जन का मौका मिलता है ।

इसके कारण देश के उद्योगपति आगे नहीं आ पाते । स्वदेशी उद्योगों का अस्तित्व ही खतरे में पड जाता है । देश अपने औद्योगिक विकास के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियो पर आश्रित हो जाता है जो कभी भी घातक हो सकता है । देश अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए भी इन निगमों पर निर्भर हो जाता है जो देश की आत्मनिर्भरता एवं सुरक्षा दोनों के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं ।

उदारीकरण से प्रत्येक क्षेत्र में विदेशी सहायता के अन्तर्गत तकनीकी ज्ञान का प्रयोग होने से भारतीय तकनीकी ज्ञान को कम प्रोत्साहन मिला है । विदेशी माल व ट्रेडमार्क के प्रयोग से भारतीय माल को क्षति पहुँची है, जैसे- बी.जी. फोस, हॉर्लिक्स, वुडवर्ड ग्राइप वाटर, ओवल्टीन आदि नामों से भारतीय माल को घटिया माना है । अतः देश के उद्यमी भी प्रकारांतर से हतोत्साहित हुए हैं ।

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए स्वदेशी उद्योगों, लघु व कुटीर उद्योगों का महत्व कभी भी कम नहीं होगा । परन्तु उदारीकरण के फलस्वरूप आयातों से मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटाने से एक ओर भारतीय लघु व कुटीर उद्योगों द्वारा तैयार होने वाली वस्तुओं के समान विदेशी वस्तुएँ भारतीय बाजार में कम कीमत होने के कारण छा रही हैं, वहीं दूसरी और विकसित देशों द्वारा सामाजिक व्यवस्थाओं जैसे बाल श्रमिकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के आयात पर प्रतिबन्ध, श्रमिकों को उतनी ही मजदूरी देना जितनी विकसित देशों के श्रमिकों को प्राप्त होती है आदि के नाम पर प्रतिबन्ध लगाया जाता रहेगा ।

भारतीय कालीन उद्योग एवं चूड़ी उद्योग पर उठाए गए सवाल इसका स्पष्ट उदाहरण है । उदारीकरण के तहत आयात पर से मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटाने का प्रत्यक्ष असर लघु एवं कुटीर उद्योग पर पड रहा है । अब भारतीय बाजार में कोरिया, थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया और विशेषरूप से चीन से अनेक उपभोक्ता वस्तुओं का सस्ती कीमतों पर आयात किया जा रहा है, इलैक्ट्रानिक, कैलकुलेटर, साइकिल, कलपुर्जे, टी. वी. सूखी बैटरी जैसी अनेक वस्तुएँ आधी से कम कीमत पर उपलब्ध होगी तो उपभोक्ता भारत में विनिर्मित वस्तुएँ ऊँचे मूल्य पर क्यों कर खरीदेंगे । ऐसे में एटलस साइकिल जैसे उत्पाद जो लघु व कुटीर उद्योग का वृहद रूप है, कितने दिनों तक बाजार में टिक पाएंगे ।

उदारीकरण के फलस्वरूप बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अधिकांशतः उन क्षेत्रों मैं लगाई जाती हैं, जहाँ परिपक्वता अवधि छोटी होती है तथा अधिकाधिक लाभ प्राप्त होते हैं । उदाहरणार्थ-उपभोक्ता वस्तु उद्योग जैसे टूथपेस्ट, चॉकलेट, साबुन और डिटर्जेन्ट आदि जिन्हें घरेलू उत्पादों द्वारा स्वदेशी उद्योगों में आसानी से उत्पादित किया जा सकता है ।

घरेलू स्तर पर आलू के चिप्स जो इन कम्पनियों द्वारा उत्पादित चिप्स के समरूप ही है, लेकिन चूकि इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पास पर्याप्त वित्तीय साधन होते हैं, अतः श्रेष्ठ विज्ञापनों के प्रचार के माध्यम से इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने देश के बडे बाजार पर कब्जा करने में सफलता प्राप्त की है ।

परिणामस्वरूप स्वदेशी उद्योगों के सामने सकट उपस्थित हो रहा है । उदारीकरण का ही दुष्परिणाम आज रूस झेल रहा है । कभी विश्व की प्रमुख महाशक्ति रहा, उसी रूस को आज उदारीकरण ने दिवालियेपन के कगार पर लाकर खडा कर दिया है ।

जापान जैसा विकसित राष्ट्र भी उदारीकरण के शिकंजे से नहीं बच सका । दोनों ही देशों के उद्योग-धन्धों को क्षति पहुँची है । उदारीकरण से क्षेत्रीय विषमता पहले से कहीं अधिक बड़ी है । अन्य पिछड़े प्रदेशों की तुलना में महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, कर्नाटक, तामिलनाडु जैसे औद्योगिक दृष्टि से विकसित प्रदेश और अधिक विकसित हुए हैं ।

इसी तरह राष्ट्रीय आय के वितरण में भी अधिक असमानता बढी है । उन बडे व्यापारिक घरानों एवं समृद्ध व्यक्तियों की समृद्धि बड़ी है, जो विदेशी कम्पनियों से जुड़े रहे हैं । सामान्यतः उदारीकरण करते समय यह अपेक्षा रखी गयी थी कि इससे विदेशी पूंजी देश में आएगी और इसकी कमी की समस्या समाप्त हो जाएगी, लेकिन एक अध्ययन के अनुसार भारत में विदेशी कम्पनियाँ मात्र 5.6% पूँजी ही अपने साथ लाई हैं और शेष 94.4% पूंजी इन्होंने घरेलू बाजार से ही प्राप्त की है ।

साथ ही इनके द्वारा पूँजी निवेश तो एक ही बार किया जाता है जबकि रायल्टी के रूप में पूँजी का एक बडा भाग वे अपने देश में भेज देती हैं । भारत में कोलगेट कम्पनी अपने द्वारा निवेश का लगभग 18 गुना भाग अपने देश में भेज चुकी है। कुल मिलाकर उदारीकरण का लाभ विश्व के विकसित देशों को ही मिला है ।

उदारीकरण उस नशीले पदार्थ के समान है जिनके सेवन से प्रारम्भ में अत्यधिक आनन्द की अनुभूति होती है, लेकिन उसका नियमित प्रयोग शरीर को कंकाल बना देता है । उदारीकरण अपनाने वाली अर्थव्यवस्थाओं की वर्तमान में यही स्थिति हुई है । दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों-दक्षिणी कोरिया ।

थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया, मलेशिया आदि ने उदारीकरण की प्रारम्भिक अवस्था में विदेशी पूंजी की बहुतायत से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को सुदृढ़ बनाया लेकिन चूकि विदेशी पूंजी को ‘अच्छे मौसम का साथी’ कहा जाता है, अतः अर्थव्यवस्था में स्थिरता का अभाव होते ही विदेशी पूंजी मालिकों ने अपनी पूंजी समेटनी शुरू कर दी । आज इन एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था पूर्णतः जर्जर हो चुकी है ।

उदारीकरण के कारण बहुराष्ट्रीय निगमों का वर्चस्व बढ़ गया है, जिससे स्वदेशी उद्योगों व भारतीय कम्पनियो पर खतरा उत्पन्न हो गया है । जिस तरह बडी मछली छोटी मछली को निगल जाती है, ठीक उसी प्रकार भीमकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारतीय परम्परागत उद्योग धन्धों को निगलती जा रही हैं ।

उदारीकरण भारत की आर्थिक व्यवस्था एवं स्वदेशी उद्योगों का अहित कर रहा है । चीन की निर्मित वस्तुएँ भारत में बहुत सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं, जिससे यहाँ उद्योग धन्धे नष्ट हो रहे हैं । अलीगढ़ का ताला उद्योग जिसकी देश में एक अलग पहचान थी में तालाबन्दी शुरू हो गई है इसी तरह देश के कपड़ा व चीनी उद्योग का हाल खस्ता है, गन्ना उत्पादक किसान बेहाल हैं, कृषि जो हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आधार है, आज उदारीकरण के कारण उपेक्षित व संकटग्रस्त है ।

भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या जो कृषि पर निर्भर है तबाह हो रही है । उदारीकरण ने हमारी अर्थव्यवस्था के ढाँचे पर ही प्रहार किया है जिन स्वदेशी उद्योगों के बलबूते पर हमारी अर्थव्यवस्था ने इतना विकास किया था आज पूंजी एवं तकनीकी प्रतिस्पर्धा के युग में ये पिछड़ते जा रहे हैं, जिससे एक ओर कृषि पर दबाव बढ़ रहा है तो दूसरी ओर अत्यधिक पूंजी निवेश, विदेशी कम्पनियों का भारतीय बाजार पर कब्जा ।

भारतीय औद्योगिक घरानों पर विदेशी वर्चस्व शेयर बाजार में अत्यधिक पूंजी की उपस्थिति इत्यादि हमें आर्थिक दासता में बाँधे जा रही है । हमें उदारीकरण की विकसित देशों के नारे और उकसावे के रूप में नहीं बल्कि अपने सामाजिक-आर्थिक यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए, हमें कोरिया सिंगापुर, इंडोनेशिया, फिलीपीन्स, मलेशिया आदि देशों की वर्ष 1997 में हुई आर्थिक दुर्गति से सबक लेकर अपनी बैंकिंग व्यवस्था आत्म-निर्भरता बरकरार रखने वाली निजी उत्पादकता एवं स्वदेशी उद्योगों को मजबूत करने पर नजर रखनी चाहिए तथा विदेशी कर्ज के दुम्बक्र से बचना चाहिए ।

बड़े औद्योगिक निवेश के साथ-साथ भारी पैमाने पर रोजगार उपलब्ध कराने वाले लघु उद्योगों के विकास के प्रति सचेत होना चाहिए । अर्थव्यवस्था का कोई भी उदारीकरण घातक साबित होगा यदि वह भारत के साधारण दरिद्र व्यक्ति की जिन्दगी को बेहतर बनाने में सहायक साबित नहीं होता वह भारतीय कृषि और कृषि आधारित उद्योगों एवं स्वदेशी उद्योगों को गति नहीं देता और भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक एवं आत्मनिर्भर एवं समतामूलक नहीं बनाता ।

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