भारत में पहली बुलेट ट्रेन पर निबंध! Here is an essay on ‘India’s First Bullet Train’ in Hindi language.

आदिमानव द्वारा पहिये का आविष्कार किए जाने के पश्चात मानव ने विभिन्न प्रकार के वाहन बनाए । जहाज, रेलगाड़ी और बायुयान के आविष्कारों ने यातायात के साधनों को तकनीक सम्पन्न बनाया और नई रफ्तार दी ।  इसी क्रम में पटरियों पर अति तीव्र गति से दौड़ने बाली बुलेट ट्रेन का आविष्कार इस क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ ।

तेज रफ्तार और वायुगीतक आकृति के कारण ही इस रेलगाड़ी का नाम ‘बुलेट ट्रेन’ रखा गया । इन दिनों भारत में बुलेट ट्रेन चलाए जाने की चर्चा जोरों पर है । वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान हमारे वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों के सामने बुलेट ट्रेन चलाने के विचार रखे थे । उनका मानना है कि सडक या रेलमार्ग से किसी भी व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने में 24 घण्टे से अधिक समय नहीं लगना चाहिए ।

प्रधानमन्त्री के इन्हीं विचारों को मूर्त रूप देने की कोशिश करते हुए रेल मन्त्री श्री डॉ. वी सदानन्द गौडा ने 8 जुलाई, 2014 को अन्तरिम रेल बजट प्रस्तुत करते हुए देशवासियों को बुलेट ट्रेन देने का वादा किया है । वर्ष 2021-22 तक मुम्बई से अहमदाबाद के बीच देश में पहली बुलेट ट्रेन चलाने का लक्ष्य रखा गया है ।

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300 किमी प्रति घण्टे की तेज रफ्तार से दौड़ने वाली इस ट्रेन के द्वारा यह दूरी 3 घण्टों में पूरी की जाएगी । इसके लिए रेल बजट में Rs.100 करोड़ का प्रस्ताव रखा गया है । मुम्बई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल कॉरिडोर पर Rs.60,000 करोड के खर्च का अनुमान लगाया जा रहा है ।

बुलेट ट्रेन चलाए जाने के साथ-ही-साथ इस रेल बजट में दिल्ली-आगरा, दिल्ली-चण्डीगढ़, दिल्ली-कानपुरा, मुम्बई-गोवा, मुम्बई-अहमदाबाद, चेन्नई-हैदराबाद, नागपुर-सिकन्दराबाद, नागपुर-बिलासपुर और मैसूर-बंगलुरु चेन्नई के मध्य हाई स्पीड ट्रेने चलाने की घोषणा भी की गई है ।

दिल्ली से आगरा के मध्य 160 किमी प्रति घण्टे की गति से दौड़ने वाली सेमी हाई स्पीड ट्रेन के सफल परीक्षण ने भारत में शीघ्र ही बुलेट ट्रेन चलाए जाने की सम्भावनाओं को बल प्रदान किया है । वर्तमान समय में भारत में हाई स्पीड रेल कॉरिडोर (उच्च गति रेल गलियारा) से सम्बद्ध दो व्यवहार्यता अध्ययन किए जा रहे है ।

पहला अध्ययन भारत और जापान द्वारा संयुक्त रूप से, जबकि दूसरा अध्ययन फ्रांस रेलवे द्वारा किया जा रहा है । जापान द्वारा किया जा रहा अध्ययन महीनों में पूर्ण होगा और रिपोर्ट जून, तक जमा कर दी जाएगी ।

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रेल इण्डिया टेक्निकल एण्ड इकोनॉमिक सर्विस (आरआईटीईएस) द्वारा किए गए अध्ययन के आधार पर कहा जा रहा है कि मुम्बई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन पर वार्षिक संचालन एवं रख-रखाव खर्च Rs.412 करोड आएगा और इसके संचालन के प्रथम वर्ष में Rs.2499 करोड़ का वार्षिक राजस्व प्राप्त होगा ।

विश्व की पहली बुलेट ट्रेन जापान की राजधानी टोक्यो और ओसाका के मध्य टोक्यो ओलम्पिक के दौरान 1 अक्टूबर, 1964 को चलाई गई, जिसका आविष्कार जापान के हिड्यो शाइमा ने किया था । ‘शिनकानसेन’ नामक यह बुलेट ट्रेन उन दिनों 200 किमी प्रति घण्टे की रफ्तार से दौडती थी, पर आज इस ट्रेन की गीत 300 किमी प्रति घण्टा है ।

वर्तमान समय में शिनकानसेन नेटवर्क 7 कॉरिडोर में 2000 किमी के ट्रैक पर बुलेट ट्रेनें दौड़ा रहा है, जो विश्व का सबसे लम्बा हाई स्पीड रेल रूट (उच्च गीत रेलमार्ग) है । जापान के साथ-साथ चीन भी बुलेट ट्रेन के मामले में काफी आगे है । उसके पास 200 किमी प्रति घण्टे की रफ्तार से दौड़ने वाली 2660 हाई स्पीड बुलेट ट्रेनें हैं । चीन के पास दुनिया का सर्वाधिक लम्बा हाई स्पीड नेटवर्क है ।

वह अपनी इस तकनीक को लन्दन, थाइलैण्ड और तुर्की में भी बढ़ावा दे रहा है । यूरोप के देशों में फ्रांस ने सर्वप्रथम वर्ष 1981 में पेरिस से लिन के मध्य हाई स्पीड रेल लाइन बिछाई, जिस पर शुरू-शुरू में 270 किमी प्रति घण्टे की रफ्तार से बुलेट ट्रेने दौड़ती थी, किन्तु आज क्रास के जीटीवी नेटवर्क द्वारा 1840 किमी लम्बी हाई स्पीड रेल लाइनें बिछा दी गई हैं, जिन पर वर्तमान समय में 800 से 820 किमी प्रति घाटे की रफ्तार से बुलेट ट्रेनें दौड़ती हैं ।

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भारत में आज से 160 वर्ष पूर्व 16 अप्रैल, 1853 को 33.81 किमी लम्बे मार्ग पर बम्बई (मुम्बई) से थाणे के बीच 8 किमी प्रति घण्टे की रफ्तार से पहली रेलगाड़ी चलाई गई थी, किन्तु आज भारत के रेल नेटवर्क ने न सिर्फ वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है, बल्कि विश्व के पाँच बड़े रेल नेटवर्कों में इसका स्थान है ।

वर्ष 2013-14 में भारतीय रेल को Rs.1,441.67 बिलियन का राजस्व प्राप्त हुआ, जिसमें यात्री टिक से Rs.940.0 बिलियन और माल ढुलाई से Rs.375.0 बिलियन का राजस्व सम्मिलित है ।  कर्मचारियों की वृहत संख्या के आधार पर भी 1.307 मिलियन कर्मचारियों वाली भारतीय रेल विश्व की नौवीं सबसे बड़ी व्यावसायिक संस्था है ।

बावजूद इसके जापान, चीन, फ्रांस, इटली जैसे बुलेट ट्रेन सम्पन्न देशों की तुलना में भारत का रेल तन्त्र काफी कमजोर है । भारत जैसे विकासशील देश में बुलेट ट्रेन चलाने की योजना से यहाँ की अर्थव्यवस्था पर भी भारी बोझ पड़ेगा । दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम रेलवे की कुछ परियोजनाओं को पूर्ण होने में पाँच दशक का समय भी लग सकता है क्योंकि परियोजना के अनुरूप रुपये आवण्टित नहीं किए जा सके ।

फिर भारत जैसे देश में जहाँ राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस जैसी महँगी ट्रेनों पर आम जनता को यात्रा करने के पहले काफी कुछ सोचना पड़ता है, बही हबाई किराए के तर्ज पर चलाई जाने वाली बुलेट ट्रेनों को पटरियों पर दौड़ाना आर्थिक स्तर पर कितना लाभप्रद और लोगों के हित में होगा, यह तो आने बाला समय ही बताएगा ।

इन सब समस्याओं के बाबजूद हमें विकास की दौड़ से बाहर नहीं होना चाहिए । रेल मन्त्रालय को आमदनी के नए-नए स्रोतों का पता लगाना चाहिए । राज्य सरकारों को ऐसी परियोजनाओं हेतु मुफ्त में जमीन देने और परियोजना लागत का आधा खर्च उठाने के लिए स्वेच्छा से तैयार रहना चाहिए, क्योंकि कोई भी नई शुरूआत अपने साथ समस्याएँ लेकर आती है, पर आगे चलकर बह जनहित और देशहित में मददगार साबित होती है ।

एफडीआई और पीपीपी के माध्यम से रेलवे अपने संसाधनों का विस्तार कर सकता है । रेलवे में हर स्तर पर सुधार किया जाना चाहिए, तभी भारत में बुलेट ट्रेन चलाने का लक्ष्य पूरा हो सकेगा और देशवासी इसका व्यापक लाभ उठा सकेंगे ।

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