शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) पर निबंध! Here is an essay on ‘Right to Education Act’ in Hindi language.

किसी भी देश के विकास में हमेशा से शिक्षा का विशेष महत्व रहा है । इसी कारण प्रत्येक राष्ट्र द्वारा शिक्षा व्यवस्था में निरन्तर सुधार लाने की कोशिश करना अत्यन्त स्वाभाविक है ।

अतीत में संसार को प्रेम-शान्ति का सन्देश देने और ज्ञान-विज्ञान का पाठ पड़ाने वाला ‘विश्वगुरु’ के नाम से विख्यात हमारा देश भारत आज भी शिक्षा के महत्व से भली-भांति परिचित है और यही कारण है कि आज हमारा देश साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान, अध्यात्म इत्यादि सभी क्षेत्रों में अपने जैसे विकासशील देशों को ही नहीं, बल्कि दुनिया के सभी विकसित देशों को भी चुनौती दे रहा है ।

आज विश्व के सभी राष्ट्रों द्वारा भारतीय युवाओं की प्रतिमा का मुक्त कण्ठ से गुणगान किया जाना इसका प्रमाण है । बावजूद इसके सम्पूर्ण राष्ट्र की शिक्षा को आधार मानकर विश्लेषण किया जाए तो अभी भी भारत शिक्षा के क्षेत्र में विकसित राष्ट्रों की तुलना में काफी पीछे है ।

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वर्तमान में भारतीय शिक्षा दर अनुमानतः 74% है, जो वैश्विक स्तर पर बहुत कम है । तब इस अनुपात में और वृद्धि करने के लिए बुद्धिजीवियों ने अपने-अपने सुझाव दिए । उन सभी के सुझावों पर गौर अते हुए भारत सरकर ने शिक्षा को अनिवार्य रूप से लागू करने हेतु शिक्षा का अधिकार कानून (RTE Act) बनाकर पूरे देश में समान रूप से प्रस्तुत कर दिया ।

‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009’, 1 अप्रैल, 2010 से सम्पूर्ण भारत में लागू कर दिया गया । इसका प्रमुख उद्देश्य है- वर्ष आयु तक के सभी बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य, गुणवतायुक्त शिक्षा को सुनिश्चित करना । इस अधिनियम को सर्व शिक्षा अभियान तथा वर्ष 2005 के विधेयक का ही संशोधित रूप कहा जाए, तो समीचीन ही होगा ।

वर्ष 2002 में संविधान के सहर्ष संशोधन द्वारा अनुच्छेद-21A के भाग-3 द्वारा, 6-14 वर्ष आयु तक के सभी बच्चों को मुक्त एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया था ।  इसको प्रभावी बनाने के लिए 4 अगस्त, 2009 को लोकसभा में यह अधिनियम पारित कर दिया गया तथा 1 अप्रैल, 2010 से इसे लागू कर दिया ।

अपने इस कदम के साथ ही ममत भी शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा देने बाले विश्व के 135 देशों में सम्मिलित हो गया ।  इस अधिनियम को पारित करने की प्रक्रियावश, सर्वप्रथम इसकी एक संक्षिप्त रूप-रेखा वर्ष 2005 में ही निर्मित कर ली गई थी, परन्तु उस वक्त कुछ लोगों के मत वैमनस्य के कारण यह पूर्णतः लागू नहीं किया जा सका, तदुपरान्त नियमीत प्रयास के दवा इसे वर्ष 2009 में पास कर दिया गया ।

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प्रस्तावित बिल कैबिनेट द्रारा 2 जुलाई, 2009 को पास किया गया । तत्पश्चात राज्यसभा में 20 जुलाई, 2009 को इसे मंजूरी दी गई तथा 4 अगस्त, 2009 को लोकसभा ने भी इस प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की ।  अपने अन्तिम पड़ाव में यह बिल महामहिम राष्ट्रपति जी के अनुमोदन के लिए भेजा गया तथा उनकी मंजूरी के उपरान्त 26 अगस्त, 2009 को यह एक कानून बन गया, जिसके अन्तर्गत सभी हैं- वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त है ।

केवल जम्मू और कश्मीर को छोड़कर यह कानून 1 अप्रैल, 2010 से पूरे राष्ट्र में लागू हो गया । तब इस एक्ट के पास होने के पश्चात भारतीय इतिहास में पहली बार किसी प्रधानमन्त्री ने किसी कानून को अपने सम्बोधन द्वारा जनता को प्रस्तुत किया । अपने इस सन्देश में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह जी ने कहा था-”भारत नौजवानों का देश है, बच्चों और नौजवानों को उनकी शिक्षा एवं उनके विशिष्ट गुणों का परिमार्जन करके देश को खुशहाल और शक्तिशाली बनाया जाएगा ।”

प्रस्तुत अधिनियम के अन्तर्गत जिन प्रावधानों को प्रमुखता दी गई है, उनमें विशेष है- 6-14 आयु वर्ग के सभी बच्चों को मुफ्त एवं आधारभूत शिक्षा उपलब्ध कराना । इसके अन्तर्गत अनिवार्य शिक्षा से अभिप्राय है कि सम्बन्धित सरकार द्वारा इस आयु वर्ग के बच्चों को आवश्यक रूप से विद्यालय में प्रवेश दिलाना तथा साथ ही उन बच्चों की विद्यालय में नियमित उपस्थिति का प्रबन्ध करना ।

‘मूफ्त’ शब्द से अभिप्राय है कि शिक्षणरत बच्चों से किसी भी प्रकार का शुल्क न लेना तथा सम्पूर्ण शिक्षा नि:शुल्क प्रदान करना । किसी कारणवश 6 वर्ष से अधिक आयु का बच्चा यदि विद्यालय नहीं जा सका है, तो उसकी आयु के अनुरूप उसे उचित कक्षा में प्रवेश दिलाना होगा । यदि नजदीक के क्षेत्र में कोई विद्यालय मौजूद नहीं है, तो नए विद्यालय का प्रबन्ध करना होगा ।

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क्षेत्रीय सरकारों, अधिकारियों तथा अभिभावकों का यह दायित्व है कि वे बच्चे को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा दिलाने का प्रबन्ध करें । इस कार्य हेतु वित्तीय प्रबन्धन का पूर्ण दायित्व केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा मिश्रित रूप से उठाया जाएगा । कोई भी बच्चा किसी समय विद्यालय में प्रवेश पाने को स्वतन्त्र है ।

आयु प्रमाण-पत्र न होने के बावजूद, बच्चा विद्यालय में प्रवेश ले सकता है । बच्चों की आवश्यकता का ध्यान रखते हुए पुस्तकालय, खेल के मैदान, स्वच्छ व मजबूत विद्यालय कक्ष, इमारत आदि का प्रबन्ध राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा ।

शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार हेतु 35 छात्रों पर एक शिक्षक का प्रावधान किया गया है तथा साथ ही यह सुनिश्चित किया गया है कि ग्रामीण ब शहरी किसी भी क्षेत्र में यह अनुपात प्रभावित न हो ।  इसके साथ ही अध्यापन की गुणवत्ता हेतु केवल प्रशिक्षित अध्यापकों को ही नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है जो अप्रशिक्षित अध्यापक, प्राचीन समय से अध्यापनरत हैं, उन्हें सीमित अवधि में अध्यापक-प्रशिक्षण पूर्ण करने का आदेश पारित किया गया है, अन्यथा उन्हें पद-मुक्त किया जा सकता हे ।

इसके अतिरिक्त निम्न कार्यों का पूर्ण रूप से निषेध है:

1. छात्रों को शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना देना ।

2. प्रवेश के दौरान छात्रों से कोई लिखित परीक्षा लेना ।

3. छात्रों या उनके अभिभावकों से किसी प्रकार का शुल्क लेना ।

4. छात्रों को ट्‌यूशन पढ़ने के लिए बाध्य करना ।

5. बिना मान्यता प्राप्ति के विद्यालय का संचालन करना ।

इसी प्रकार निजी विद्यालयों में भी कक्षा 1 से प्रवेश के समय आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों के छात्रों हेतु 25% आरक्षण का प्रावधान सुनिश्चित किया गया है । इस अधिनियम को प्रभावी बनाने का उत्तरदायित्व केन्द्र ब राज्य सरकार दोनों का है, जिसका वित्तीय बहन भी दोनों संयुक्त रूप से करेंगे ।

इस अधिनियम के अनुसार, वित्तीय बहन का दायित्व सर्वप्रथम राज्य सरकार को सौंपा गया था, परन्तु राज्य सरकार ने अपनी विवशता का हवाला देते हुए इसे अस्वीकार कर दिया तथा केन्द्र सरकार से मदद का अनुरोध किया, तदुपरान्त केन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा 65 : 36 अनुपात के तहत वित्तीय प्रबन्धन का विभाजन किया गया । उत्तर-पूर्वी राज्यों में यह अनुपात 90 : 10 है ।

इस वित्तीय समस्या के निवारण हेतु एक कमेटी का गठन किया गया, जिसने सर्वप्रथम इसके पूर्ण खर्च हेतु अप्रैल 2010 में Rs.17,100 करोड़ का अनुमान लगाया था, परन्तु बाद में मई, 2010 में यह राशि बढकर Rs.23,100 करोड निश्चित की गई, तदुपरान्त केन्द्र सरकार इसका 68% हिस्सा देने के लिए सहमत हो गई ।

इस पूर्ण अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु उत्तरदायित्वों का विभाजन कर दिया गया, जो निम्न प्रकार हैं:

1. स्थानीय अधिकारी तथा माता-पिता के दायित्व:

इस अधिनियम के प्रावधान के तार सरकार और स्थानीय अधिकारी अपने-अपने क्षेत्र के अधीन, जिन स्थानों पर विद्यालय नहीं है, बहा 8 वर्ष के अन्दर विद्यालय स्थापित करेंगे । (धारा-6 के अन्तर्गत); माता-पिता अपने बच्चों को नजदीकी विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराएंगे । (धारा-10 के अन्तर्गत)

2. केन्द्र सरकार के दायित्व:

यह शैक्षणिक अधिकारों की मदद से ढाँचा विकसित करेगी, जो निम्न विषयों पर होगा:

(i) बच्चों का चहुँमुखी विकास ।

(ii) संवैधानिक मूल्यों का विकास ।

(iii) जहाँ तक हो सके, मातृभाषा में शिक्षण दिया जाए ।

(iv) बच्चों के मानसिक बिकास के अनुरूप, उनका नियमित विश्लेषण । (धारा-29 के अन्तर्गत)

(v) बच्चों को भयमुक्त माहौल प्रदान कराना तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का विकास करना ।

3. राज्य सरकार के दायित्व:

(i) वह प्रत्येक बच्चे को नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगी ।

(ii) अपने क्षेत्र के 14 वर्ष आयु तक के बच्चों का पूर्ण रिकॉर्ड रखेगी ।

(iii) शैक्षणिक कलेण्डर का निर्धारण करेगी (धारा-9 के अन्तर्गत) ।

सर्व शिक्षा अभियान द्वारा पारित लक्ष्य वर्ष 2010 तक पूर्ण न हो पाया था, इसके अतिरिक्त यह अधिनियम भी लागू कर दिया गया । अतः यह कहना समीचीन ही होगा कि इस अधिनियम में सर्व शिक्षा अभियान के सभी नियम समाहित है ।

यह भी कहा जा सकता है कि ये दोनों साध्य-साधन की अवस्था प्राप्त कर गए ।  शिक्षा का मौलिक अधिकार लागू होने से बच्चों के विकास में कुछ तेजी आई है, परन्तु मात्र अधिकार बनाने के उपरान्त, इसके पूर्णतः क्रियान्वयन पर ध्यान न देना भी इसके औचित्य को सन्देह के घेरे में लाता है ।

वर्तमान में अनेक पिछड़े राज्यों में अपेक्षा के अनुरूप परिणाम न मिलना तथा सम्भावित लक्ष्य प्राप्त न होना, इसकी उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह भी लगा रहा है? केन्द्र व राज्य सरकार को इस लक्ष्य के प्राप्त करने हेतु प्रयास तेज करने होंगे । आवश्यकतानुसार अध्यापकों को यथाशीघ्र नियुक्त करना होगा ।

किसी भी देश का भविष्य शिक्षित नागरिकों पर ही निर्भर होता है । शिक्षा द्वारा ही राष्ट्र की शक्ति व समृद्धि का विकास-होता है । भारत सरकार ने शिक्षा के महत्व को समझते हुए, शिक्षा को अनिवार्य रूप से लागू करने के उद्देश्य से यह अधिनियम लागू करने का प्रशंसनीय कदम उठाया था ।

हमें पूर्ण उम्मीद है कि राज्य तथा केन्द्र सरकारों के परस्पर सहयोग व भारतीय जनता के संयुक्त प्रयास के साथ भारत देश एक निश्चित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर होगा तथा एक विकसित देश बन पाएगा ।

तब स्वतः ही किसी कवि की यह पंक्ति सार्थक हो पाएगी-

‘पढ़ा-लिखा हो हर इन्सान, तब ही होगा देश महान् ।’

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