Read this article in Hindi to learn about the fourteen major consequences of climate change. The consequences are:- 1. सागरीय स्तर में परिवर्तन (Sea Level Changes) 2. वायुमंडलीय पवनों के प्रतिरूपों तथा जलधाराओं की दिशा में परिवर्तन (Atmospheric Circulation and Changes in the Direction of Ocean Currents) and a Few Others.

जलवायु परिवर्तन के परिणाम जटिल भविष्यवाणी करना भी कठिन होता है क्योंकि इस परिवर्तन में भौतिक तथा जैविक सम्मिलित होती है । वायु एवं वर्षण के प्रतिरूपों पर तापमान परिवर्तन का प्रभाव वर्षा के वितरण तथा वायु की राशि पर पड़ता है । तापमान की वृद्धि पर सागरों का स्तर ऊँचा हो जाता है ।

सागरीय स्तर पर जलमग्न हो है तथा कुछ द्वीपों पर सागर में डूबने का खतरा उत्पन्न हो जाता है । ऐसी परिस्थितियों में अकाल की परिस्थिति हो जाती है, भूस्खलन, हिमस्खलन, हरिकेन, प्राकृतिक आपदाओं तथा विध्वंस आपात की बारंबारता बढ़ जाती है ।

विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु का प्रभाव प्रादेशिक जलवायु है, तापमान एवं वर्षण के प्रतिरूपों में बदलाव आता है मृदा की नमी प्रभावित होती है और वायु राशियाँ की भौतिक विशेषताएँ बदल जाती हैं । यद्यपि अधिकतर वैज्ञानिक इस बात सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन से में हो रही है, परंतु इसका वर्षा के प्रतिरूप पर क्या प्रभाव इस में के साथ नहीं कहा जा सकता ।

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जलवायु परिवर्तन के संभावित परिणामों को संक्षिप्त में नीचे में दिया गया है:

1. सागरीय स्तर में परिवर्तन (Sea Level Changes):

जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप सागरीय स्तर ऊँचा हो सकता है । एक अनुमान के अनुसार 21वीं शताब्दी के अंत तक सागर का स्तर दो से तीन मीटर हो सकता है । सागर स्तर ऊँचा होने से तटीय भाग जलमग्न हो सकते हैं और कुछ द्वीपों के डूबने का खतरा पैदा हो सकता है ।

एक अनुमान के अनुसार सबसे बड़ा खतरा मालदीव, प्रशांत महासागर, हिंद महासागर अंटार्कटिका महासागर की प्रवाल भित्तियों को है । विश्व की कुल नगरीय जनसंख्या का लगभग 50 प्रतिशत सागरीय तटों पर बसा हुआ है । सागरीय स्तर ऊँचा होने से तटीय नगरीय जनसंख्या बुरी तरह प्रभावित सकती है । सागरीय परिस्थितिकी तंत्र में भी भारी परिवर्तन उत्पन्न हो सकता है ।

2. वायुमंडलीय पवनों के प्रतिरूपों तथा जलधाराओं की दिशा में परिवर्तन (Atmospheric Circulation and Changes in the Direction of Ocean Currents):

महासागर/जलमंडल तथा वायुमंडल एक-दूसरे के संपूरक हैं । मानव की प्रक्रियाओं से वायुमंडल में भेजे गये प्रदूषण के विश्वव्यापी खराब परिणाम हुये हैं । महासागरों के तापमान तथा लवणता में परिवर्तन होने से सागरीय जलधाराओं के प्रतिरूपों दिशा एवं गति में परिवर्तन हो जाता है ।

3. अंतर-ऊष्ण कटिबंधीय अभिसरित क्षेत्र का उत्तर दिशा में खिसकना (Northward Movement of the Inter-Tropical Convergence Zone):

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जलवायु परिवर्तन के कारण अंतर-ऊष्ण कटिबंधीय अभिसरित क्षेत्र अथवा उष्ण कटिबंधीय अमिरूपित क्षेत्र उत्तर की ओर खिसक सकता है, जिसके कारण ऊष्ण मरुस्थलों में अधिक वर्षा रिकार्ड की जा सकती है । इसका प्रभाव मानसून की उत्पत्ति, ऊष्ण-कटिबंधीय चक्रवातों तथा शीतकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति पर भी पड़ सकता है ।

जलवायु परिवर्तन से उष्ण मरुस्थल उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर की ओर खिसक सकती है और दक्षिणी-पक्षियों, जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों पर पड़ेगा । फलस्वरूप गर्म मरुस्थलों तथा आर्द्र मरुस्थलों की पारिस्थितिकी तथा पारितंत्र में परिवर्तन हो जाएगा ।

4. ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की संख्या में वृद्धि (Increase in the Number of Tropical Cyclone):

जलवायु परिवर्तन से चूकि सागरों के तट जलमग्न हो जाएँगे, इसलिये सागरों के क्षेत्रफल में वृद्धि होगी । परिणामस्वरूप सागरों तथा महासागरी से वाष्पीकरण की प्रक्रिया में वृद्धि होगी । अधिकतर मूसलाधार वर्षा होगी । ऐसी मूसलाधार वर्षा से अचानक बाढ की संभावना बढ जाएगी ।

5. वर्षा के प्रतिरूपों में परिवर्तन (Change in the Pattern of Precipitation):

जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा की पेटियाँ उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण की ओर खिसक सकती हैं । यदि मध्य अक्षांशों की वर्षा के प्रतिरूपों की ओर खिसक सकती है । यदि मध्य अक्षांशों की वर्षा के प्रतिरूपों में परिवर्तन होगा तो यह वर्षा के दिनों में वृद्धि के दिनों के रूप में नहीं, बल्कि वर्षा के कम दिनों में अधिक मूसलाधार वर्षा के रूप में होगी ।

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मूसलाधार तीव्र वर्षा से बाढ़, भूस्खलन, हिमस्खलन तथा प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होगी । मृदा अपरदन की संभावना बढ जाएगी ।

6. मृदा एवं प्राकृतिक वनस्पति की पेटियों में परिवर्तन (Alteration in Vegetation and Soil Belts):

सामान्यतः प्राकृतिक वनस्पति की पेटियाँ तथा मृदा पेटियाँ परस्पर व्यापन होती हैं । यदि जलवायु परिवर्तन से वनस्पति की पेटियों में बदलाव होगा तो उसका प्रभाव मृदा पेटियों पर भी पड़ेगा । शीतोष्ण कटिबंध के कोण धारी वन उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर की और खिसक जाएंगी । एक अनुमान के अनुसार टैगा-वन उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर की ओर 200 किलोमीटर खिसक जाएंगे ।

7. हिमाच्छदित क्षेत्रों, कृषि भूमि तथा फसलों के प्रतिरूपों में परिवर्तन (Changes in Crysophere, Arable Land and Cropping Patterns):

सभी फसलों के सफलतापूर्वक उत्पादन के लिये किसी विशेष न्यूनतम तथा अधिकतम तापमान की आवश्यकता होती है । अनुकूल तापमान पर ही फसलें अधिक उत्पादन दे पाती हैं । कार्बन-डाइ-ऑक्साइड (Co2) की वृद्धि से पेड़-पौधों में प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया में वृद्धि हो जाती है, जिसका प्रभाव उत्पादन पर पड़ता है, विशेषकर धान तथा दलहन की पैदावार बढ़ जाती है । यह उत्पादन वृद्धि 30 से 100 प्रतिशत तक हो सकती है ।

हिमाच्छिदत प्रदेशों में सूर्य की प्रतिबिंबिता अधिक होती है । इस प्रतिबिंबिता को एलबीडो कहते हैं । हिम के क्षेत्रों में एलबीडो की मात्रा 95 प्रतिशत तक होती है । अधिक एलबीडो से वायुमंडल के तापमान में वृद्धि हो जाती है । परिणामस्वरूप गर्म वायुमंडल के कारण बर्फ तेजी से पिघलने लगती है, जिससे धरातल के कुछ भागों में बर्फ पूर्णरूप से पिघल जाती है ।

धरातल की चट्टानें सूर्य की गर्मी को अपेक्षाकृत तेजी से सोखती हैं । चट्टानों की गर्मी से बर्फ तेजी से पिघलने लगती है । वायुमंडल में कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा बढती जाती है और वायुमंडल के तापमान में वृद्धि हो जाती है, जो अंततः जलवायु परिवर्तन का कारण बनती है ।

बर्फ पिघलने से साइबेरिया, रूस, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ प्रदेश कृषि एवं चरागाह योग्य बनते जा रहे हैं । दूसरे शब्दों में, उपरोक्त देशों में कृषि का क्षेत्रफल बढ रहा है । जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ नये कृषि क्षेत्रों में जी, चुकंदर तथा चारे की फसलें उगाई जाने लगी हैं ।

8. मरुस्थलों का विस्तार (Expansion of Deserts):

पृथ्वी पर तापमान में वृद्धि के कारण वाष्पीकरण की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है । मृदा से अधिक वाष्पीकरण से मरुस्थलीकरण बढता है तथा रेगिस्तानों के क्षेत्रफल में वृद्धि होने की संभावना बढ़ जाती है ।

9. खाद्य पूर्ति पर प्रभाव (Effect on Food Supply):

वर्तमान समय में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा विश्व में सबसे अधिक अनाज की अप्रिर्त करने वाले देश हैं । ये दोनों देश भारी मात्रा में विकासशील तथा विकसित देशों को अनाज का निर्यात करते हैं । यदि साइबेरिया और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका) की बर्फ पिघल जाये तो विश्व में अनाज के व्यापार के प्रतिरूपों में परिवर्तन हो सकता है ।

10. पीने के पानी की आपूर्ति (Fresh Water Supply):

जलवायु परिवर्तन का पीने के पानी की आपूर्ति पर भारी प्रभाव पड़ सकता है । विशेषज्ञों के अनुसार जल की मात्रा गुणवत्ता तथा वितरण जल प्रणाली प्रभावित हो सकती है । अंतर्राष्ट्रीय नदियों के जल के बँटवारे की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है ।

11. विकासशील देशों की गरीब जनसंख्या में वृद्धि होगी (Increase in Poverty in Developing Countries):

विश्व की लगभग 17 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है । अधिकतर गरीब जनसंख्या ऊष्ण-कटिबंधीय तथा उपोष्ण कटिबंधीय देशों में रहती है । जलवायु परिवर्तन से इन लोगों के रोजगार एवं कारोबार पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है । गरीबी उन्मूलन में जलवायु परिवर्तन एक मुख्य रुकावट हो सकती है ।

12. खाद्य सामग्री आपूर्ति को खतरा (Threat to Food Supply):

जलवायु परिवर्तन से यदि फसलों का उत्पादन घटता है तो खाद्य पदार्थ का मूल्य ऊँचा हो जाएगा । संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेषज्ञों के अनुसार खाने की वस्तुएँ 60 प्रतिशत महँगी हो जाएंगी । वास्तव में विश्व बाजार में खाने-पीने की वस्तुएँ महँगी होती जा रही हैं, जिससे गरीब लोगों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड रहा है ।

13. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effect on Human Health):

अमेरिकन भूगोलवेत्ता हंटिंगटन महोदय के अनुसार जलवायु तथा मानव-स्वास्थ्य में प्रत्यक्ष संबंध है । मानव स्वास्थ्य पर तापमान, वर्षण एवं सापेक्षिक आर्द्रता इत्यादि का भारी प्रभाव पड़ता है । जलवायु परिवर्तन के कारण ऊष्ण कटिबंध तथा शीतोष्ण कटिबंध में रहने वालों के स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ सकता है । नाना प्रकार की नई बीमारियाँ फैल सकती हैं । बीमारी के कारण लोगों की कार्यक्षमता कम होगी जिससे पूरे समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है ।

14. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रभाव (Impact on International Trade):

सामान्यतः किसी वस्तु का अधिक उत्पादन करने वाले देश उन देशों को निर्यात करते हैं जहाँ उस वस्तु का उत्पादन कम तथा माँग अधिक हो । यदि रूस के साइबेरिया में जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि का क्षेत्रफल बढ़ जाये तो रूस में अनाज इत्यादि का उत्पादन बढ जाएगा । फलस्वरूप रूस जो अनाज एवं खाद्य पदार्थों का आयात करने वाला देश है कृषि पदार्थों का निर्यात करने वाला देश बन जाएगा जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रतिरूप में बदलाव होगा तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठनों का पुनर्सगठन होगा ।