Read this article in Hindi to learn about the various consequences of climate changes in India.

जलवायु परिवर्तन वृद्धि का प्रादेशिक एवं क्षेत्रीय स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । भारत के भारतीय मौसम संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology -IITM) के वैज्ञानिकों के अनुसार, 21वीं शताब्दी के अंत तक भारत के कुछ भागों के तापमान में 5C वृद्धि हो सकती है । अधिक प्रभावित क्षेत्र में कच्छ (गुजरात) तथा राजस्थान का थार मरुस्थल सम्मिलित हैं । भीषण मौसम, तूफान, तीव्र वर्षा में 50 तक की वृद्धि हो सकती है ।

जलवायु परिवर्तन के भारत में निम्न प्रतिकूल प्रभाव पड़ हैं:

1. अननुमय मौसम (Unpredictable Weather):

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जलवायु परिवर्तन से वर्षा की तीव्रता में वृद्धि होगी तथा वर्षा अंतराल में भी वृद्धि । विशेषज्ञों अनुसार औसत में वृद्धि होगी; परंतु वर्षा के दिनों में कमी आयेगी । ऐसे मौसम के कारण बाढ़ तथा सूखे की बारंबारता में वृद्धि ।

जलवायु परिवर्तन का अर्थव्यवस्था, पारितंत्र, पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी पर प्रभाव पड़ सकता है । बारहवीं पंचवर्षीय योजना में भारत सरकार दो लाख करोड़ रुपये जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर का प्रावधान किया है ।

2. हिमनदों का पिघलना तथा लुप्त होना (Melting and Disappearance of Glaciers):

हिमालय तथा कराकोरम पर्वतों के हिमनद तीव्र गति से हैं और उनका आकार हो रहा है । संयुक्त राष्ट्र (UNO) की जलवायु रिपोर्ट के अनुसार तापमान में वृद्धि के कारण हिमालय कुछ पिघलकर वर्ष 2035 तक समाप्त हो जाएंगे एक के अनुसार गंगा के स्रोत, गंगोत्री पर्वत पर गोमुख ग्लेशियर प्रति वर्ष मीटर पिघल रहा है । ग्लेशियरों के पिघलकर समाप्त होने का भारत अर्थव्यवस्था एवं समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा ।

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3. बहुउद्देशीय योजनाओं पर प्रभाव (Impact on Multipurpose Projects):

एक अनुमान के अनुसार जलवायु परिवर्तन का बहुउद्देशीय योजनाओं पर भी खराब असर पड़ेगा । उदाहरण के लिए भाखड़ा नांगल बाँध, टिहरी बाँध, सलाल, दूलहस्ती, बगलियार (चिनाब नदी) परियोजनाओं तथा कोसी नदी परियोजना इत्यादि का जल स्तर ऊँचा होकर भारी बाढ़ का रूप धारण कर सकता है । इस प्रकार भारी बाद आने से जान-माल की भारी हानि हो सकती है । उत्तरी भारत की नहरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है । वर्ष 2035 के पश्चात उत्तर भारत की नदियों के जल अपवाह में भारी कमी आ सकती है ।

4. सूखा एवं बाढ़ की बारंबारता में वृद्धि (Increase in the Frequency of Droughts and Floods):

यदि पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि होती रही तो थोड़े समय में तीव्र मूसलाधार वर्षा होगी जिससे बाढ़ की बारंबारता बढ सकती है, इसके विपरीत बहुत दिनों तक वर्षा न होने के कारण प्रायः सूखा पड़ने लगेगा । वर्ष 2005 में मुंबई अचानक बाढ के जल में डूब गई थी, जबकि वर्ष 2006 में बीकानेर, जोधपुर जैसे मरुस्थलीय नगरों में भारी बाढ़ आई थी ।

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5. बहुत-से निचले द्वीप सागर में जलमग्न हो जाएंगे (Submergence of Islands):

लक्षद्वीप की प्रवाल भित्तियों से बने बहुत-से द्वीप सागर स्तर ऊँचा होने से जलमग्न हो सकते हैं । सबसे बडा खतरा सुंदरबन डेल्टा के सामने स्थित लोचहारा द्वीप को है, जो कि सागर के जल में डूबने वाला विश्व का सबसे पहला द्वीप होगा ।

6. भारतीय कृषि पर प्रभाव (Effect on Indian Agriculture):

भारतीय ऊष्ण कटिबंधीय मौसम संस्थान के विशेषज्ञों के अनुसार भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्र में कमी होगी, जिससे अधिक क्षेत्रफल पर कृषि संभव हो सकती है ।

7. भारत में ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की बारंबारता बढ़ सकती है (Increase in Frequency of Tropical Cyclones):

तापमान वृद्धि एवं जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप हिंद महासागर के तापमान में वृद्धि होगी । तापमान वृद्धि से वाष्पीकरण की प्रक्रिया बढ़ेगी । वायुमंडल में अधिक ऊष्मा के फलस्वरूप होने वाले वाष्पीकरण से चक्रवात उत्पत्ति के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी जिससे अधिक चक्रवात आपदा के रूप में आएंगे । बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में आने वाले चक्रवात भारी जान-माल की हानि का कारण बनते हैं ।

8. तटीय नगर जलमग्न हो सकते हैं (Submergence of Coastal Cities):

भारत में दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले 53 नगर हैं (2011), जिनमें से मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, कटक, भुवनेश्वर, वाल्टीयर, कोची, तिरूवनंतपुरम, सूरत आदि जैसे महानगर जलमग्न हो सकते हैं ।

9. महामारी का प्रकोप (Spread of Epidemics):

तापमान वृद्धि एवं जलवायु परिवर्तन से बहुत-सी बीमारियाँ महामारी का रूप धारण कर सकती हैं । ऊष्ण-आर्द्र जलवायु उत्पन्न होने से मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों में विशेष रूप से वृद्धि होगी ।

10. जैविक-विविधता में कमी तथा हॉट-स्पॉट में वृद्धि (Damage to Biodiversity and Increase in Hot-Spot):

जलवायु परिवर्तन का प्राकृतिक वनस्पति, पशु-पक्षियों तथा जीव-जंतुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिससे जैविक-विविधता प्रभावित होगी, और हॉट-स्पॉट की संख्या में वृद्धि हो सकती है ।

इस समय भारत में केवल दो हॉट-स्पॉट हैं:

(i) उत्तरी पूर्वी हिमालय हॉट-स्पॉट, तथा

(ii) पश्चिमी घाट हॉट-स्पॉट ।

11. मैंग्रोव के क्षेत्रफल में वृद्धि (Increase in the Areas of Mangroves):

जलवायु परिवर्तन से सागरीय तट जलमग्न होंगे । फलस्वरूप मैंग्रोव वनस्पति के क्षेत्रफल में वृद्धि होगी ।

12. फलोद्यान के क्षेत्रफल में कमी (Reduction in Orchards Area and Production):

शीतोष्ण कटिबंध के बगीचों के क्षेत्रफल में तापमान वृद्धि के कारण कमी आएगी अर्थात् सेब, संतरे, अंगुर, बादाम, अखरोट आदि के उत्पादन में कमी होगी ।

13. पर्वतों की प्राकृतिक वनस्पति में कमी (Change in Altitudinal Zonation):

जलवायु परिवर्तन में पर्वतीय ढलानों पर प्राकृतिक वनस्पति में परिवर्तन सम्मिलित है । पर्वतों में वृक्ष रेखा में भी परिवर्तन हो सकता है ।

14. आयात तथा निर्यात पर प्रभाव (Impact on Export and Import):

जलवायु परिवर्तन से फसलों के क्षेत्रफल तथा प्रतिरूपों में परिवर्तन संभव है । अनाज के उत्पादन एवं कृषि से कच्चे माल के उत्पादन से व्यापार प्रभावित होगा ।

15. गरीबी रेखा से नीचे जनसंख्या में वृद्धि (Increase in the Population below the Poverty Line):

अमीर तथा गरीब के बीच का अंतराल बढेगा । फलस्वरूप गरीब लोगों की जनसंख्या में वृद्धि होगी ।

16. स्वाद में कमी:

जलवायु परिवहन के कारण खाद्य फसलों के स्वाद में कमी आ रही है ।