क्षेत्रीय असमानताओं के लिए जिम्मेदार ग्यारह मुख्य कारक | Read this article in Hindi to learn about the eleven main factors responsible for regional disparities. The factors are: 1. ऐतिहासिक कारण (Historical Causes) 2. सरकार द्वारा प्रोत्साहन (Encouragement by Government) 3. प्राकृतिक कारण (Natural Causes) 4. कृषि की नई प्रौद्योगिकी (New Technology of Agriculture) and a Few Others.

भारत जैसे देश में क्षेत्रीय असन्तुलन अथवा असमानताएँ अनेक कारणों से उत्पन्न होती हैं ।

कुछ महत्वपूर्ण कारकों का विश्लेषण करें:

Factor # 1. ऐतिहासिक कारण (Historical Causes):

अर्थशास्त्रियों और विद्वानों का मानना है कि असन्तुलनों का आरम्भ भारत में अंग्रेजों के आने पर हुआ । मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों में अंग्रेज पहले बसे और ये शहर बहुत तीव्रता से विकसित हुये । इसी प्रकार महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, जहाँ पहले से निर्माण और व्यापार गतिविधियों की सम्भावनाएं विद्यमान थीं वहां अंग्रेज व्यापारियों और उद्योगपतियों ने अधिक ध्यान दिया तथा इन क्षेत्रों ने उन्नति की ।

Factor # 2. सरकार द्वारा प्रोत्साहन (Encouragement by Government):

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कुछ प्रान्तों में जैसे पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु आदि में राज्य सरकारों ने विभिन्न राजकोषीय प्रोत्साहन, साख और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध की ताकि उद्यमी अधिक निवेश के लिये प्रेरित हों तथा यह प्रान्त उन प्रान्तों से आगे बढ़ गये जहाँ की सरकारों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया । इसलिये किसी क्षेत्र के क्षेत्रीय आयोजन में सरकारी प्रोत्साहन बहुत महत्व रखता है ।

Factor # 3. प्राकृतिक कारण (Natural Causes):

कुछ क्षेत्रों की उन्नति का श्रेय प्रकृति को जाता है । पंजाब की उपजाऊ भूमि तथा नदियों से प्राप्त होने वाला बहुत जल कृषि में सहायक हे जबकि राजस्थान की स्थिति दोनों दशाओं में सहायक नहीं है । इसी प्रकार लोहा, इस्पात के कारखाने तथा तेल शोधक कारखाने केवल वहां ही स्थापित किये जा सकते हैं जहाँ आवश्यक खनिज पदार्थ उपलब्ध हों ।

मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता जैसे शहर अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण खुशहाल व्यापार और वाणिज्य केन्द्रों के रूप में विकसित हुये । दूसरी ओर पहाड़ी क्षेत्र स्थलाकृति के लक्षणों के कारण पिछड़े रहे ।

Factor # 4. कृषि की नई प्रौद्योगिकी (New Technology of Agriculture):

नई कृषि प्रौद्योगिकी का प्रयोग अन्तरक्षेत्रीय असन्तुलनों को विस्तृत करने में बहुत हाथ है । इस कारण कीमती आधुनिक आगतों पर भारी व्यय करना आवश्यक हो जाता है । इस प्रौद्योगिकी का अधिक उपयोग केवल उन्हीं स्थानों पर हुआ है जहां किसान पहले से ही बहुत समृद्ध थे तथा जहां सिंचाई और बिजली की बहुत सी सुविधाएँ उपलब्ध थीं तथा इसी कारण हरित क्रान्ति पंजाब, हरियाणा, युपी तथा तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों में अधिक स्पष्ट थी । नई तकनीकों को अपनाने से इन राज्यों ने तीव्रता से उन्नति की ।

Factor # 5. लोगों की अभिवृत्तियां और गुण (Attitudes and Qualities of People):

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कुछ क्षेत्रों में रहने वाले लोग अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक मेहनती, उद्यमी, उन्नत विचारों के तथा निपुण होते हैं । पंजाब और हरियाणा के लोग जन्म से ही कृषिक में होते हैं । इसी प्रकार महाराष्ट्र और गुजरात के लोग व्यापार एवं वाणिज्य प्रवृत्ति के होते हैं । दूसरी ओर पर्वतीय क्षेत्रों तथा यू. पी., बिहार, उड़ीसा के क्षेत्रों का दृष्टिकोण पिछडा हुआ होता है तथा वह भी क्षेत्रों की धीमी वृद्धि के लिये उत्तरदायी हैं ।

Factor # 6. संरचना (Infrastructure):

जिन क्षेत्रों में परिवहन, संचार, विद्युत, बीमा, बैंकों आदि की सुविधाएँ विकसित हो चुकी हैं वे उद्यमियों से अधिक निवेश आकर्षित करते हैं और आर्थिक विकास में उन्नति करते हैं । दूसरी ओर वे क्षेत्र जहां संरचना का विकास नहीं हुआ वे पिछड़े रहते हैं । यही मुख्य कारण है कि पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे क्षेत्र नागालैण्ड, असम, उड़ीसा आदि प्रान्तों से शीघ्र उन्नत हुये हैं । बिहार और उड़ीसा जैसे प्रान्त भरपूर खनिज पदार्थों के होते हुये भी आर्थिक रूप में पिछड़े हुये हैं तथा इस विरोधाभासी स्थिति के लिये संरचना एक मौलिक कारक है ।

Factor # 7. आधारभूत सुविधाओं की कमी (Lack of Basic Facilities):

पिछुडे प्रान्तों में आधारभूत सुविधाओं, जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, हाउसिंग, सड़कें पीने का पानी, बिजली आदि का अभाव होता है । जनसाधारण लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि होता है । आधारभूत सुविधाओं के अभाव में लोगों की योग्यताएं विकसित ही नहीं हो पाती, इससे उनकी आय अर्जन क्षमता का अभाव रहता है ।

Factor # 8. पिछड़े क्षेत्रों में सहायक औद्यगिक इकाइयों का कम विकास (Poor Growth of Ancillary Units in Backward State):

पिछडे प्रदेशों के विकास के लिए सरकार ने इन राज्यों में बडी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की है । सरकार का मानना है कि बडी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से इनकी सहायक औद्योगिक इकाइयों का यहाँ स्वतः ही विकास होगा । इन सहायक औद्योगिक इकाइयों के विकास से इन पिछड़े क्षेत्रों का विकास में सहयोग मिलेगा किन्तु सरकार द्वारा यहाँ बड़ी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के बावजूद भी यहाँ सहायक औद्योगिक इकाइयों का विकास नहीं हुआ । अतः क्षेत्रीय असमानताएँ बढ़ती ही जा रही हैं ।

Factor # 9. राज्य सरकारों में पहल की कम भावना (Less Initiative on the Part of State Government):

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कुछ राज्यों की सरकारी; जैसे- बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान इत्यादि ने अपने राज्यों के विकास की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया है । उन्होंने अपने राज्यों में अदयोसंरचना के विकास पर विशेष ध्यान नहीं दिया, विदेशी कम्पनियों के को औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए आकर्षित नहीं किया ।

इसी प्रकार कुछ राज्य सरकारें अपनी राज्यों में कानून-व्यवस्था व शान्ति बनाये रखने तथा विकास के लिए दीर्घकालीन योजनाएं बनाने में असफल रही हैं । दूसरी ओर महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा की राज्य सरकारें अपने राज्यों के विकास की ओर अधिकतम ध्यान देती हैं ।

Factor # 10. वित्तीय-संस्थाओं की त्रुटिपूर्ण ऋण-नीति (Defective Lending Policy of Financial Institutions):

हमारी वित्तीय संस्थाएँ वित्तीय-ऋण प्रायः उन्हीं राज्यों को देती हैं जो पहले से विकसित हैं, जैसे- महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा आदि । किन्तु पिछड़े राज्यों; जैसे- असम, बिहार, राजस्थान आदि को इन वित्तीय संस्थाओं से बहुत कम ऋण प्राप्त हुए हैं ।

Factor # 11. राजनैतिक अस्थिरता (Political Instability):

क्षेत्रीय असमानताएँ का अन्य कारण राजनैतिक अस्थिरता भी मानी जाती है । देश के कुछ राज्यों में राजनैतिक अस्थिरता के कारण विकास दर बहुत धीमी रही है । राज्य-सरकार के बार-बार बदलने के कारण दीर्घकालीन विकास-योजनाओं का निर्माण नहीं किया जा सकता । फलस्वरूप क्षेत्रीय असमानताएँ निरन्तर बढती जा रही हैं ।