दूसरी पीढ़ी के सुधार के तहत आर्थिक सुधार | Read this article in Hindi to learn about the seven main economic reforms under second generation reforms. The reforms are:- 1. उद्योग (Industries) 2. संरचना (Infrastructure) 3. व्यापार नीति (Trade Policy) 4. विदेशी सीधा निवेश (Foreign Direct Investment) 5. वित्तीय क्षेत्र (Financial Sector) and a Few Others.

Reform # 1. उद्योग (Industries):

1. कोयला और भूरा कोयला, पैट्रोलियम (कच्चे के अलावा) और उसके डिस्टीलेशन उत्पाद तथा औषध भण्डार को लाइसैन्स मुक्त करना ।

2. चीनी को लाइसैन्स मुक्त करना ।

3. कोयला और भूरा कोयला तथा खनिज तेलों को आरक्षण मुक्त करना ।

ADVERTISEMENTS:

4. कम्पनियों को अपने शेयर वापिस खरीदने की इजाजत होगी बशर्ते कि चुकता पूंजी तथा मुक्त भण्डार का 25 प्रतिशत के वापिस खरीदने पर प्रतिबन्ध होंगे ।

5. जुलाई 1998 में सूचना तकनीक और साफ्टवेयर विकास पर एक राष्ट्रीय कृतिक बल ने एक 108 बिन्दु वाली कार्य योजना प्रस्तुत की । सरकार द्वारा सुझावों को स्वीकार कर लिया गया तथा सम्बन्धित विभागों को यह सुझाव लागू करने के आदेश दे दिये गये ।

6. राज्य सभा द्वारा पेटैन्ट बिल स्वीकार कर लिया गया तथा साथ ही इसे एक अध्यादेश द्वारा लागू कर दिया गया ।

7. कुछ वस्तुएं जैसे कृषि के औजार तथा उपकरण को लघु स्तरीय क्षेत्र में उत्पादन के लिये आरक्षित वस्तुओं की सूची से निकाल दिया गया ।

Reform # 2. संरचना (Infrastructure):

ADVERTISEMENTS:

1. भारतीय विद्युत अधिनियम 1910 और विद्युत (पूर्ति) अधिनियम 1948 का इस प्रकार संशोधन किया गया कि विद्युत संचारण में निजी निवेश उपलब्ध हो सके ।

2. विद्युत नियमन आयोग (Electricity Regulatory Commission) की वैधानिकता के अधिनियम बनने के पश्चात केन्द्रीय विद्युत नियमन आयोग की स्थापना की गई तथा प्रान्तों को अपने स्वतन्त्र नियमन आयोग स्थापित करने की भी इजाजत दी गई ।

3. शहरी भूमि (सीमा तथा नियमन) अधिनियम 1976 एक अध्यादेश द्वारा दोहराया गया ।

4. इन्टरनेट सेवाएं उपलब्ध करवाने के लाइसैन्स जारी करने की नीति की घोषणा की गई । पहले पांच वर्षों के लिये कोई लाइसैन्स फीस नहीं होगी तथा पांच वर्षों के पश्चात एक रुपये की नाम मात्र फीस ली जायेगी ।

ADVERTISEMENTS:

5. एक राष्ट्रीय समाकलित राजमार्ग परियोजना आरम्भ की गई जो स्वर्ण चतुर्भुजीय को देहली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता को पूर्व-पश्चिम (सिलचर से सौराष्ट्र) तथा उत्तर-दक्षिण (कश्मीर से कन्याकुमारी) गलियारों को जोड़ेगी ।

6. एक नई दूर-संचार नीति ।

Reform #  3. व्यापार नीति (Trade Policy):

1. अप्रैल 1998 की एग्जिम नीति ने आयात की 340 वस्तुओं को प्रतिबन्धित करके उन्हें ओ.जी.एल. (OGL) सूची से लाइसैन्स मुक्त कर दिया ।

2. भारत ने सार्क (SAARC) देशों से आयात होने वाली लगभग 2300 वस्तुओं से सभी मात्रात्मक प्रतिबन्ध अपने आप एक अगस्त 1998 से समाप्त कर दिये ।

3. भारत एवं श्रीलंका के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता 28 दिसम्बर 1998 को सम्पन्न हुआ जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2007 तक दोनों ओर से बहुत सी वस्तुओं पर शून्य आयात शुल्क लागू होंगे ।

4. निर्यातकर्ताओं की शुल्क वापसियों में देरी अथवा शुल्क वापसी में दो महीनों से अधिक समय लगने के प्रकरण में राशि पर ब्याज का भुगतान ।

5. पूंजीगत वस्तुओं पर शून्य शुल्क योजना से निर्यात प्रोत्साहन को कुछ विशेषीकृत बायो-तकनीकों एवं लघुस्तरीय इन्जीनियरिंग उद्योग तक विस्तृत कर दिया गया ।

6. ई.ओ.यू./इ.पी.जैड (EOU/EPZ) के लिये दस वर्षों के लिये कर अवकाश, निर्यात के लिये निजी टैक्नालोजी पार्कों की स्थापना की आज्ञा ।

Reform # 4. विदेशी सीधा निवेश (Foreign Direct Investment):

बिजली के उत्पादन, संचारण और वितरण की परियोजनाएं और सड़कों, राजमार्गों, यातायातीय सुरंगों, यातायातीय पुलों, पोर्टों और बंदरगाहों सम्बन्धी परियोजनाओं पर स्वचलित मार्ग के अधीन 100 प्रतिशत तक विदेशी भागीदारी की इजाजत दी गई ।

स्वचलित मार्ग (Automatic Route) विदेशी इक्युटी पर 1500 करोड़ रुपयों की सीमा तक आश्रित है:

1. गैर-बैंकिग वित्तीय सेवाओं के अधीन विदेशी सीधे निवेश में ”क्रैडिट कार्डों का व्यापार” तथा ”मुद्रा परिवर्तन व्यापार” सम्मिलित नहीं है ।

2. बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं को इजाजत दी गई है कि एन.आर.आई. सम्पत्ति में कमी की सीमा तक भागों का योगदान कर सके । यह योगदान निजी क्षेत्र के बैंकों की 40 प्रतिशत व्यापक इजाजत योग्य सीमा के बीच होगा ।

3. सैटेलाइट सेवाओं द्वारा ग्लोबल, मोबाइल पर्सनल कम्यूनीकेशन (GMPCS) उपलब्ध करवा रही कम्पनियों में, लाइसैन्स होने की सूरत में 49 प्रतिशत इक्यूटी तक विदेशी सीधे निवेश की इजाजत है ।

4. सूचीबद्धता-रहित कम्पनियों को कुछ शर्तों पर ‘यूरो इशूज’ (Euro Issues) आरम्भ करने की इजाजत है ।

5. जी.डी.आर/ए.डी.आर. इशु की आय से अन्तिम प्रयोग प्रतिबन्ध उठा लिये गये केवल स्टाक मार्किट और भू-सम्पत्ति पर निवेशों के लिये ऐसा नहीं किया गया ।

6. भारतीय कम्पनियों को बोनस अथवा राइटस शेयर जारी करने अथवा उच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृति प्राप्त ठीक व्यापारिक पुनर्गठनों की इजाजत दी गई ।

एन.आर.आई. (NRIs):

1. सभी एन.आर.आई./पी.आई.ओ./ओ.सी.बी. द्वारा एक कम्पनी में कुल निवेश की स्टॉक एक्सचेंज द्वारा सीमा को एफ.आई.आई. के लिये उपलब्ध सीमा से अलग कर दिया गया ।

2. मात्र एक एन.आर.आई./पी.आई.ओ./ओ.बी.सी. द्वारा निवेश की सीमा चुकता पूंजी के 1 प्रतिशत से बढ़ा कर 5 प्रतिशत कर दी गई ।

3. एन.आर.आई./पी.आई.ओ/ओ.बी.सी. के लिये कुल निवेश सीमा एक कम्पनी की चुकता पूंजी को पांच प्रतिशत से बढा कर 10 प्रतिशत कर दिया गया ।

4. सूचीबद्ध भारतीय कम्पनियों के प्रकरण में एक सामान्य सभा प्रस्ताव के अधीन उच्चतम सीमा 24 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है ।

5. एन.आर.आई./पी.आई.ओ/ओ.बी.सी. को गैर-सूचीबद्ध कम्पनियों में प्रचलित आदर्शों, विधियों के अनुसार निवेश की इजाजत है तथा सूचीबद्ध कम्पनियों के प्रकरण में उपलब्ध सीमा लागू होगी ।

6. सरकार भारतीय जन्म लेने वाले लोगों (PIO) के सम्बन्ध में एक योजना बना रही है जिसके अनुसार उन्हें पी.आई.ओ. के कार्ड दिये जायेंगे । जो उनको बीजा मुक्त वातावरण उपलब्ध करायेगा तथा इसके साथ विशेष आर्थिक, शैक्षणिक, वित्तीय एवं सांस्कृतिक लाभ भी उपलब्ध होंगे ।

विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional Investor):

1. विदेशी संस्थागत निवेशकों को खजाना बिल और सरकारी ऋण पत्र आरम्भिक एवं द्वितीयक बाजारों में व्यापक स्वीकृत ऋण सीमाओं के बीच, खरीदने अथवा बेचने की इजाजत होगी ।

2. अधिकृत व्यापारियों को इजाजत है कि वे विदेशी संस्थागत निवेशकों को उनके भारत में वृद्धि सम्बन्धी इक्युटी निवेशों के सम्बन्ध में फारवर्ड कवर उपलब्ध करवाये ।

3. विदेशी संस्थात्मक निवेशकों के बीच भारतीय भण्डारों सम्बन्धी वित्त व्यवहार को अब बाद में भारतीय रिजर्व बैंक से मन्जूरी की आवश्यकता नहीं होगी ।

4. विदेशी संस्थागत ऋण कोषों के 100 प्रतिशत भाग भारतीय कम्पनियों के सूचीबद्ध रहित ऋण सिक्योरिटी में निवेश की इजाजत होगी ।

बाहरी व्यापारिक ऋण (External Commercial Borrowing):

1. बाहरी व्यापारिक ऋणों से प्राप्त राशि अब परियोजना सम्बन्धी रुपया व्यय में कुछ शर्तों के आधार पर लगाई जा सकती है ।

2. सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक को बाहरी व्यापारिक ऋण स्वीकृतियां यू.एस. के 10$ मिलियन तक सभी ई.सी.बी. योजनाओं के लिये दे रखी है ।

3. निर्यातकर्ताओं के लिये योजना के अधीन बाहरी व्यापारिक ऋणों के लिये योग्यता को पिछले तीन वर्षों के दौरान औसत निर्यात निष्पादन से तीन गुणा बढ़ा दिया गया बशर्ते कि अधिकतम U.S. $100 मिलियन हो ।

4. बाहरी व्यापारिक ऋण के लिये औसत परिपक्व आवश्यकता, दीर्घकालीन परिपक्व विन्डो के अधीन जो ई.सी.बी. नियन्त्रण से बाहर हो उनको कम कर दिया जाये ।

5. घरेलू रुपये की मूल्य संरचना दायित्वों को अन्तर्राष्ट्रीय बैंकों/अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं/संयुक्त संस्थान भागीदारी द्वारा साख बढाने की इजाजत दे दी गई है ।

6. भारतीय कार्पोरेट द्वारा बाहरी व्यापारिक ऋणों के पूर्व भुगतान की इजाजत है यदि यह विदेशी इक्यूटी के बहाव से किया जाता है ।

Reform #  5. वित्तीय क्षेत्र (Financial Sector):

1. केन्द्र एवं राज्य सरकारों की सिक्योरिटियों की व्यवस्था की आवश्यकता, सरकार द्वारा गारन्टी दिये गये ऋण और मानक सम्पत्तियों के लिये सामान्य व्यवस्था के लिये बैंकों के तर्क संगत नियमों को कठोर कर दिया गया ।

2. सरकारी सिक्योरिटियों के बाजार जोखिम के लिये 2.5 प्रतिशत भार, प्रान्तीय सरकार की गारन्टी पर दी गई अग्रिम राशि में त्रुटि पर 20 प्रतिशत और विदेशी विनिमय की खुली स्थिति में 100 प्रतिशत का जोखिम भार ।

3. बैंकों के लिये न्यूनतम पूंजी से जोखिम भारित सम्पत्ति अनुपात (CRAR) अप्रैल 2000 तक 9 प्रतिशत तक बढेगा ।

4. मार्च 31, 2001 तक घटिया श्रेणी की सम्पत्ति को 24 महीनों के स्थान पर 18 महीनों के पश्चात सन्देहपूर्ण के रूप में वर्गीकृत करना ।

5. एन.बी.एफ.सी. (NBFCs) न्यायोचित कम्पनियां जो संशोधित आदर्शों के साथ लोक जमा राशि का अनुसरण करने वाली कम्पनियों के लिये नियमन योग्य संरचना बनाना ।

6. उन कम्पनियों की संख्या बढ गई जिनके शेयरों का आवश्यक रूप में सामग्री रहित रूप में व्यापार किया जाये ।

7. संरचनात्मक कम्पनियों द्वारा पब्लिक इशु के लिये शर्तें आसान कर दी गई ।

8. आरम्भिक इशु अनिवार्य रूप से जमा होना चाहिये ।

9. 25 करोड़ रुपये से ऊपर की इशु के लिये 100 प्रतिशत बुक बिल्डिंग की इजाजत ।

10. दृढ़ स्वतन्त्र बीमा नियन्त्रण प्राधिकरण के लिये अधिनियम, निजी कम्पनियों के लिये बीमा एवं पैन्शन फण्डो के खोलने सम्बन्धी अधिनियम संसद में पेश करना, 26 प्रतिशत विदेशी हिस्से तथा 14 प्रतिशत एन.आर.आई. और एफ.आई.आई. सम्पत्ति की इजाजत का प्रस्ताव दिया गया ।

11. सिक्योरिटीज कन्टरैक्टस (रेग्युलेशन) एक्ट 1956 के संशोधन के लिये संसद में बिल पेश किया गया ताकि ”सिक्योरिटीज” की परिभाषा को विस्तृत किया जा सके ।

12. फेरा (FERA) को परिवर्तन करने के लिये विदेशी विनिमय प्रबन्धन के लिये नया बिल संसद में पेश किया गया ।

Reform # 6. कर प्रणाली (Taxation System):

1. 1.10.98 को अथवा इसके बाद दिये गये उपहारों को वित्तीय (संख्या 2) अधिनियम 1998 द्वारा उपहार-कर से मुक्त कर दिया गया ।

2. मुक्त व्यापार क्षेत्रों में स्थित औद्योगिक उद्यमों में तथा सॉफ्टवेयर तकनीकी पार्कों में इकाइयों के लिये कर-अवकाश को पांच वर्ष से बढा कर 10 वर्ष कर दिया गया ।

3. आन्तरिक जल मार्गों, आन्तरिक बन्दरगाहों, रेडियो-पेजिंग, ट्रैकिंग और ई.डी.आई. नेटवर्क तथा घरेलू सैटेलाईट सेवाओं पर कर-अवकाश के लाभ बढ़ा दिये गये ।

4. सूचना सुधार एवं कर-आधार को विस्तृत करने के प्रशासनिक उपायों में सम्मिलित है:

(i) एक पृष्ठ वाले कर-दाता हितैषी रिटर्न फार्म की प्रस्तुति जिसे सरल (SARAL) कहते हैं, तथा जो सभी गैर-कार्पोरेट कर-दाताओं पर लागू होंगे ।

(ii) सभी निर्धारकों के लिये कुछ उच्च मूल्य वाले वित्तीय व्यवहारों में अपने पैन (PAN) अथवा जी.आई.आर. (GIR) का वर्णन करना आवश्यक बनाना

(iii) अनुमानित कर योजना जोकि वर्ष 1997-98 के बजट में 12 शहरों में आरम्भ की गई थी अब 23 और शहरों में बढ़ा दी गई- अब भारत में यह कुल 35 शहरों में लागू थी तथा दो अतिरिक्त आर्थिक मानक जोड़ दिये गये ।

(iv) एक नई योजना जिसे ”कर विवाद समाधान स्कीम” (KAR VIVAD SAMADHAN SCHEME) कहते थे लागू की गई जिसका लक्ष्य प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों करों के मुकद्दमेबाजी के कारण रुके धन को वसूल करना था ।

5. सूचना तकनीक क्षेत्र में निवेश के प्रोत्साहन के लिये 75 विशेष मशीनरी वस्तुओं पर आयात शुल्क को 25 प्रतिशत से घटा कर 11 प्रतिशत करना ।

6. सूचना तकनीक से सम्बन्धित बहुत सी वस्तुओं पर मौलिक आयात शुल्क को यथा-मूल्य 5 प्रतिशत तक घटाना ।

7. कुछ वस्तुएं जिनको पहले उत्पादन शुल्क से छूट दे दी गई थी, पर अब नाम-मात्र 8 प्रतिशत शुल्क लगेगा ।

8. बहुत से उत्पादों का उत्पादन शुल्क, जोकि पहले शुल्क के निम्न दर को आकर्षित करते थे अब पांच प्रतिशत से शुल्क बढ़ा दिया गया ।

9. सेवा कर की प्रच्छन्नता को विस्तृत कर दिया गया तथा इसे 12 अन्य सेवाओं पर भी लगा दिया गया ।

वर्ष 2001-02 में आर्थिक सुधार:

संरचनात्मक सुधार पहलकदमियां (Structural Reform Initiation):

1. लघु बचतों पर ब्याज दर घटा दिये गये ।

2. चयनित सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सरकारी भाग का विनिवेश कर दिया गया जैसे वी.एस.एन.एल., आई.बी.पी., सी.एम.सी.एच.टी.एल., बी.पी.एल. भारतीय अल्युमिनियम कम्पनी (BALCO) तथा कुछ आई.टी.डी.सी. होटल ।

3. सरकारी कर्मचारियों के अतिरिक्त संघ के लिये वी.आर.एस. आरम्भ की गई ।

4. वर्ष 2002-03 के दौरान चीनी को पूर्ण रूप से नियन्त्रण रहित कर दिया गया (भविष्य व्यापार के आरम्भण की शर्त पर) ।

5. आवश्यक वस्तु अधिनियम (Essential Commodities Act) के अधीन प्रच्छन्न वस्तुओं की संख्या 29 से घटा कर 17 कर दी गई ।

6. लाईसैन्स की आवश्यकताएं और भण्डारण पर प्रतिबन्ध तथा गेहूं, चावल, चीनी, खाने के तेल बीजों और खाने के तेलों के आवागमन पर प्रतिबन्धों को समाप्त कर दिया गया ।

7. नई फार्मास्टिकल नीति की घोषणा की गई जो मूल्य नियन्त्रणों के विस्तार को कम करेगी, कई समूह औषधियों तथा निरुपणों पर कड़ाई ।

8. केवल लघु क्षेत्र द्वारा निर्माण के लिये आरक्षित वस्तुओं की सूची से 14 वस्तुओं को आरक्षण रहित कर दिया गया ।

9. संसद में रुग्ण औद्योगिक कम्पनियों की समाप्ति सम्बन्धी (विशेष व्यवस्था) अधिनियम प्रस्तुत किया गया ।

10. कम्पनी एक्ट को संशोधित करके, एक ‘राष्ट्रीय कम्पनी ली ट्रिब्यूनल’ (National Companies Law Tribunal) की स्थापना सम्बन्धी अधिनियम संसद में पेश किया गया ।

11. वर्ष 2001-02 के संघीय बजट ने औद्योगिक विवाद अधिनियम (Industrial Disputes Act) और ठेका श्रम अधिनियम में संशोधनों द्वारा श्रम बाजार में वर्तमान संरचनात्मक कठोरता को दूर करने का प्रस्ताव रखा ।

Reform # 7. राजकोषीय सुधार (Fiscal Reforms):

1. बचत के विभिन्न उपाय आरम्भ किये गये जिसमें कुछ विभागों के आकार के छोटा करना भी सम्मिलित है ।

2. वर्ष 2000-01 में उत्पादन शुल्क संरचना को 16 प्रतिशत सैनवेट (CENVAT) के एक मात्रा दर द्वारा तर्क संगत किया गया (केन्द्रीय मूल्य जोड़-कर) । वर्ष 2001-02 के बजट ने पहले तीन विशेष दरों 8 प्रतिशत, 16 प्रतिशत और 24 प्रतिशत को 16 प्रतिशत के मात्र एक दर में परिवर्तित कर दिया ।

3. सीमा शुल्क पर सरचार्ज को समाप्त करके सीमा शुल्क के उच्चतम स्तर को 38.5 प्रतिशत से घटा कर 35 प्रतिशत कर दिया गया । विशेषीकृत वस्त्र मशीनों, सूचना तकनीक, दूर संचार तथा मनोरंजन उद्योग पर सीमा शुल्क कम कर दिया गया ।

4. 100 प्रतिशत ई.ओ.यू तथा एफ.टी.जैड और एस.ई.जैड. में इकाई द्वारा आयात की वस्तुओं को एन्टी डम्पिंग तथा सेफ गार्ड शुल्कों से छूट दे दी गई ।

5. गुजरात के 2 प्रतिशत भूकम्प सरचार्ज को छोड़ कर जोकि सभी गैर-कार्पोरेट एवं कार्पोरेट निर्धारतों पर (विदेशी कम्पनियों को छोड़ कर) लगाया गया था, व्यक्तिगत और कार्पोरेट आय कर दरों से सभी सरचार्ज समाप्त कर दिये गये ।

6. बायो टैक्नोलोजी को उपलब्ध करवाये गये शोध एवं विकास पर व्यय को 150 प्रतिशत भारित कटौती दी गई ।

7. खाद्य अनाजों की समाकलित सम्भाल, परिवहन और भण्डारण में व्यस्त उद्यमों को 5 वर्षीय कर-अवकाश तथा लाभों पर 30 प्रतिशत कटौती को अगले पांच वर्षों के लिये और बढ़ा दिया गया ।

8. प्रान्तों में राजकोषीय सुधारों के प्रोत्साहन के लिये प्रोत्साहन कोष की स्थापना की गई ।

संरचना (Infrastructure):

1. संरचनात्मक परियोजनाओं के लिये दस वर्षीय कर-अवकाश के उपयोग के लिये आरम्भिक काल को तर्कसंगत किया गया तथा 15 से 20 वर्षों के लिये बढ़ा दिया गया ।

2. 5 वर्षीय कर अवकाश तथा लाभों से 30 प्रतिशत की कटौती को अगले पांच वर्षों के लिये दूर संचार के लिये वृद्धि को इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराने वालों तथा ब्राड बैंड नेटवर्क तक विस्तृत करना ।

3. बिजली अधिनियम 2001 और संचार अभिसरण बिल 2001 संसद में प्रस्तुत किया गया ।

4. प्रान्त के विद्युत क्षेत्रीय सुधारों के प्रोत्साहन के लिये सम्बन्धित कार्यक्रम आरम्भ किये गये ।

5. ग्रामीण सड़कों को आपस में जोड़ने की गतिविधि को तीव्र करने के लिये प्रधानमन्त्री की ग्राम सडक योजना के लिये बजटों में निर्धारित राशि बढ़ा दी गई ।

6. ग्रामीण विद्युत प्रच्छन्नता के लिये पी.एम.जी.वाई. योजना का विस्तार किया गया ।

7. विशेष रेलवे सुरक्षा कोष आरम्भ किया गया जिसके लिये वित्त व्यवस्था यात्री भाड़ों और बजटीय सहायता से की जायेगी ।

8. राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना आरम्भ की गई ।

पूंजी एवं धन बाजार (Capital and Money Market):

1. क्लीयरिंग कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड (CCIL) की स्थापना । नैगोशियेटिड डीलिंग प्रणाली (NDS) की प्रस्तुति ।

2. अस्थायी दर वाले सरकारी बान्ड पुन: जारी किये गये ।

3. ‘बदला’ की मनाही तथा ‘रौलिग सैटलमैन्ट’ का आरम्भ ।

4. स्टाक एक्सचेंज के निगम का सुझाव दिया गया जिसमें स्वामित्व, प्रबन्धन और आपस में सदस्यता का व्यापार का पृथक्करण सम्मिलित है ।

5. सूचक विकल्पों में व्यापार, व्यक्तिगत सिक्योरिटियों पर विकल्प और स्टॉक भावी सौदे आरम्भ किये गये ।

6. एफ.आई.आई. (FII) पोर्टफोलियो निवेश के लिये कुल सीमा को 49 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया और शीघ्र बाद विभागीय सीमा तक बढा दिया गया ।

बाहरी क्षेत्र (External Sector):

व्यापार (Trade):

1. भुगतानों के सन्तुलन (BoP) के आधारों पर मात्रात्मक प्रतिबन्ध (QRS) को शेष 715 वस्तुओं पर प्रतिबन्ध हटा कर समाप्त कर दिया गया ।

2. आय-कर अधिनियम के सैक्शन 80-एच.एच.सी. के अधीन निर्यातकों को दिये गये कर लाभों की वापसी का आंशिक पृष्ठ भरण (Back Loading) ।

3. विशेष उत्पादों तथा भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर कृषि निर्यात के संवर्धन के लिये कृषि-आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना ।

4. निर्यातों की गति को तीव्र करने के लिये ‘बाजार पहुंच पहलकदमी’ (Market Access Initiations) (MAI) योजना लागू की गई ।

5. निर्यात क्रैडिटों पर पी.एल.आर. सम्बन्धित सीमा दर के रूप में ब्याज दर का संकेत कर के निर्यात क्रैडिट पर ब्याज दरों को तर्क संगत बना दिया गया ।

6. चुनी हुई वस्तुओं के उच्च मूल्य निर्यात (100 करोड़ से अधिक वार्षिक निर्यात) का विशेष वित्तीय पैकेज आरम्भ किया गया ।

7. तीन सौ से अधिक निर्यात उत्पादों के लिये कम शुल्क दर तथा लगभग 400 निर्यात वस्तुओं पर अक्तूबर 2001 से डी.ई.पी.बी. के मूल्य आवरण को समाप्त करना ।

8. अगले पाँच वर्षों में निर्यातों में मात्रात्मक वृद्धि की प्राप्ति के लिये मध्यकालीन निर्यात युक्ति का निर्माण किया गया ।

पूंजी खाता (Capital Account):

1. निजी बैंकिंग क्षेत्रों में 49 प्रतिशत तक एफ.डी.आई. की सभी स्रोतों से इजाजत दी गई ।

2. 100 प्रतिशत एफ.डी.आई. की इजाजत वाणिज्य, परिवहन सेवाओं, तेल शोध, होटलों एवं पर्यटन क्षेत्र, औषध एवं फार्मास्टिकल्ज, ‘मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम’ जिसमें भू-सम्पत्ति का वाणिज्यात्मक विकास भी सम्मिलित है, के लिये दी गई ।

3. नॉन बैकिंग फाइनैन्शियल कम्पनियां (NBFCs) को 100 प्रतिशत तक विदेशी भाग धारक-कम्पनियों में रखने की इजाजत दी गई ।

4. विदेशी निवेशकों को 100 प्रतिशत संचालित सहायक यूनिट स्थापित करने की इजाजत दी गई जिसमें न्यूनतम 25 प्रतिशत भाग विनिवेशित करने की शर्त नहीं होगी ।

5. संयुक्त उद्यम गैर बैंकिग वित कम्पनियां (NBFCs) जिनमें 75 प्रतिशत अथवा 75 प्रतिशत से कम विदेशी निवेश हो को एन.बी.एफ.सी. की अन्य गतिविधियों को आरम्भ करने के लिये सहायक यूनिट स्थापित करने की इजाजत दी गई ।

6. 22 उपभोक्ता वस्तुओं से लाभ सन्तुलन शर्तें (Dividend Balancing Conditions) वापिस ली गईं ।

7. ऑफ-शोर वैन्चर कैपीटल फण्डज/कम्पनियों को घरेलू उद्यम पूंजी इकाइयों में निवेश की इजाजत दी गई ।

8. समाकलित नगर क्षेत्र के विकास के लिये 100 प्रतिशत तक एफ.डी.आई की इजाजत सरकार की पूर्व स्वीकृति के साथ दी गई ।

9. भारतीय कम्पनियों द्वारा 100 प्रतिशत निजी क्षेत्र की भागीदारी से खोला गया सुरक्षा उद्योग जिसमें 26 प्रतिशत तक एफ.डी.आई. की इजाजत होगी दोनों के लिये लाइसैन्स आवश्यक होगा ।

10. अन्तर्राष्ट्रीयय वित्तीय संस्थाएँ जैसे ए.डी.बी., आई.एफ.सी., सी.डी.सी., डी.ई.जी. आदि को स्वचालित मार्गों द्वारा घरेलू कम्पनियों में निवेश की इजाजत, यह सेबी (SEBI) तथा भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों और एफडी आई पर क्षेत्र विशेष आवरणों पर आधारित होगी ।

Home››Economics››Reforms››