नई आर्थिक नीति के दूसरे चरण में सुधार | Read this article in Hindi to learn about the ten main policy reforms adopted for improving the second phase of new economic policy. The reforms are:- 1. राजकोषीय नीति सुधार (Fiscal Policy Reforms) 2. मौद्रिक नीति सुधार (Monetary Policy Reforms) 3. विदेशी नीति में सुधार (External Policy Reforms) 4. ओद्योगिक नीति सम्बन्धी सुधार (Industrial Policy Reforms) and a Few Others.

भारत में दूसरी स्थिति के आर्थिक सुधारों के मुख्य क्षेत्र निम्नलिखित ढंग से वर्णन किये जा सकते हैं:

1. राजकोषीय नीति सुधार (Fiscal Policy Reforms):

भारत सरकार ने राजकोषीय घाटे को वर्ष 1990-91 में कुल घरेलू उत्पाद 8.4 प्रतिशत से घटा कर वर्ष 1996-97 में 5 प्रतिशत तथा वर्ष 2002-03 में 5.3

प्रतिशत तक लाने के लिये विभिन्न राजकोषीय उपाय आरम्भ किये । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये सरकार ने व्यय पर विभिन्न नियन्त्रण लगाये तथा अपने कर एवं गैर-कर राजस्व को बढ़ाने के लिये कई पहल कदमियां कीं ।

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अन्य उपायों में केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारों द्वारा राजकोषीय नियन्त्रण लागू करना, वित्तीय रियायतों को कम करना, अधिक सुचारु व्यय प्रणाली विकसित करना, प्रान्तीय सरकारों को प्रान्तीय उद्यमों को व्यवस्थित करने के लिये उत्साहित करना विशेष रूप में प्रान्तीय बिजली बोर्डों तथा प्रान्तीय परिवहन निगमों को, तथा केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों से बजटीय सहायता वापिस लेना आदि सम्मिलित हैं । इसने उनकी लाभप्रदता और कार्य-कुशलता को सुधारने पर जोर दिया ।

2. मौद्रिक नीति सुधार (Monetary Policy Reforms):

सरकार ने स्फीतिकारी दबावों को कम करने लिये तथा भुगतानों के सन्तुलन की स्थिति को सुधारने के लिये प्रतिबन्ध युक्त मौद्रिक नीति का अनुसरण किया ।

3. विदेशी नीति में सुधार (External Policy Reforms):

भारत सरकार ने स्थिरीकरण एवं आयात रियायतों सम्बन्धी उपाय आरम्भ किये ताकि भुगतानों के सन्तुलन में चालू खाते के घाटे को वर्ष 1991-92 में कुल घरेलू उत्पाद के 2.1 प्रतिशत तक घटाया जा सके और वर्ष 1992-93 में कुल घरेलू उत्पाद को 2 प्रतिशत तक घटाया जा सके ।

4. ओद्योगिक नीति सम्बन्धी सुधार (Industrial Policy Reforms):

औद्योगिक नीति में सुधार लाने के लिये सरकार ने 24 जुलाई, 1991 को नई औद्योगिक नीति आरम्भ की ।

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औद्योगिक नीति के अन्तर्गत मुख्य सुधारों में सम्मिलित थे:

(i) 18 उद्योगों को छोड़ कर सभी औद्योगिक लाइसैंस योजनाओं को समाप्त करना, ये 18 उद्योग सुरक्षा तथा युक्ति संगत एवं पर्यावरणात्मक विषयों से सम्बन्धित है,

(ii) सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ क्षेत्रों को आरक्षण रहित करके 17 में से 8 उद्योग रहने देना ताकि निजी क्षेत्र के लिये निवेश का मार्ग खुल जाये,

(iii) एम.आर.टी.पी. कम्पनियों के निवेश निर्णयों की पूर्व प्रवेश जांच प्रणाली का विलोपन तथा केवल ”अनुचित तथा प्रतिबन्धात्मक व्यापारिक प्रथाओं” को नियन्त्रित करना,

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(iv) उदारवाद,

(v) देशीकरण की गति को बढाने के लिये पहले लागू किये निर्माण कार्यक्रमों को क्रमिक समाप्त करना और

(vi) अनिवार्य परिवर्तन योग्य धारा को समाप्त करना ।

5. विदेशी निवेश नीति के सुधार (Foreign Investment Policy Reforms):

नई उद्योग नीति 1991 ने तकनीकी स्थानान्तरण, विपणन विशेषज्ञता और आधुनिक प्रबन्धकीय तकनीकों के लिये विदेशी निवेश को बढ़ाने की व्यवस्था की । इस प्रकार नई नीति ने संलग्न 111 में 34 प्राथमिकता वाले उद्योग सम्मिलित किये जिनमें 51 प्रतिशत विदेशी शेयरों तक के लिये सीधे विदेशी निवेश की स्वचलित इजाजत होगी ।

विदेशी तकनीकी समझौतों के प्रकरण में उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों के लिए स्वचलित इजाजत उपलब्ध होगी, घरेलू बिक्री पर 5 प्रतिशत अधिकार शुल्क भुगतान, विदेशी बिक्री पर 8 प्रतिशत अथवा एक करोड़ रुपये का अधिकतम भुगतान उपलब्ध होगा । विश्व बाजार में भारतीय वस्तुओं में निर्यात के संवर्धन के लिये विदेशी व्यापारिक कम्पनियों को अपनी विदेशी इक्वटी सम्पत्ति को निर्यात गतिविधियां बढ़ाने के लिये 51 प्रतिशत तक बढ़ाने की इजाजत होगी ।

6. मूल्यकरण नीति के सुधार (Pricing Policy Reforms):

बजटीय वित्तीय सहायताओं को आरम्भ करने के इरादे तथा अधिक लोचपूर्ण मूल्य संरचना के संवर्धन के लिये भारत सरकार ने विभिन्न वस्तुओं तथा आगतों जैसे उर्वरकों और पैट्रोलियम उत्पादों के प्रबन्धित मूल्य बढ़ा दिये । इससे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को बाजार शक्तियों के अनुसार मूल्य स्थापित करने की स्वतन्त्रत मिली ।

7. सार्वजनिक क्षेत्र के नीति सुधार (Public Sector Policy Reforms):

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा बड़ी मात्रा में अनुभव किये गये घाटों को ध्यान में रखते हुये भारत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कार्यशैली को सुधारने के लिये अनेक उपाय आरम्भ किये ।

ये उपाय हैं:

(i) सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत पहले से आरक्षित उद्योगों की संख्या 11 से घटा कर 8 कर दी गई ।,

(ii) उन सार्वजनिक निवेशों पर पुन: विचार जो उन क्षेत्रों की अवहेलना के लिये की गई है जहां सामाजिक विचार महत्वपूर्ण नहीं हैं और जहां निजी क्षेत्र के निवेश अधिक लाभदायक होंगे, ।

(iii) वह उद्यम जो उच्च लाभ कमा रहे हैं तथा जिन्हें उचित माना जाता है उनको एम.ओ.यू प्रणाली द्वारा उच्चस्तरीय प्रबन्धकीय स्वायत्ता दी जायेगी,

(iv) सार्वजनिक उद्यमों को बजटीय सहायता धीरे-धीरे कम करना

(v) बाजार अनुशासन बढ़ाने के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी को आमन्त्रित करना तथा चुने हुये उद्योगों के कुछ अंशों के विनिवेशन द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की प्रतियोगी क्षमता को बढ़ाना तथा

(vi) सार्वजनिक क्षेत्र के रुग्ण उद्योगों को औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण मण्डल (BIFR) के पास पुनर्स्थापना, पुनर्निर्माण अथवा तर्क संगत बनाने के लिये भेजना ।

उपरोक्त उपायों के अलावा भारत सरकार ने कुछ उद्योगों को आरक्षण रहित करने का निर्णय लिया, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की संख्या घटा कर 8 कर दी गई तथा चयनित क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भागीदारी की आज्ञा दे दी गई । विदेशी कम्पनियों के साथ साझे व्यापार की भी आज्ञा दी गई ।

सरकार ने सार्वजनिक उद्यमों के 20 प्रतिशत भागों को विनिवेशित करके चुने हुये निजी क्षेत्र के उद्यमों को सौंपने का निर्णय किया । वर्ष 1991-92 से 1993-94 तक कुल 4,904 करोड़ रुपयों का विनिवेशन हुआ । सरकार ने 4,000 करोड़ रुपयों के लक्ष्य के प्रतिकूल 5237 करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई के भागों का विनिवेशन करके, गतिशील करने की योजना बनाई ।

एक राष्ट्रीय नवीकरण कोष की स्थापना की गई जिससे श्रमिकों को प्रशिक्षण दिया जायेगा तथा उन्हें पुनर्नियुक्त की सुविधा दी जायेगी और स्वेच्छा से सेवा मुक्त होने वाले कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति की जायेगी ।

8. सार्वजनिक क्षेत्र के सुधारों के लिये योजना (1994-95) (Game Plan for Public Sector Reforms):

सरकार ने वर्ष 1994-95 में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सुधार के लिये एक मुक्ति की घोषणा की, इस योजना ने कार्य कौशल को सुधारने तथा निष्पादन की गुणवत्ता को सुधारने पर बल दिया । सार्वजनिक क्षेत्र में निष्पादन को सुधारने के लिये लाभ और लाभ से सम्बन्धित एम.ओ.यू. को अधिक भारित देने (50 प्रतिशत) का निश्चय किया गया ।

पहले जब 1988 में एम.ओ.यू. का आरम्भण हुआ था तो लाभ को कोई भरित नहीं दी गई थी । पुन: वर्ष 1993-94 में इसे 35 प्रतिशत तक बढ़ा दिया शक और वर्ष 1994-95 में 50 प्रतिशत तक बढ़ाया गया । सार्वजनिक क्षेत्र के पुनर्निर्माण के लिये छ: वर्षीय योजना तैयार की गई । यह सार्वजनिक उद्यमों को व्यापारिक ढंगों से चलाने में सहायक होगी ।

9. व्यापार नीति में सुधार (Trade Policy Reforms):

अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण के सन्दर्भ में, घरेलू उद्योगों को दिये अत्याधिक संरक्षण को धीरे-धीरे समाज करना आवश्यक हो गया । इससे एक सनसनीखेज निर्यात क्षेत्र का निर्माण होगा तथा मूल्य आधारित प्रणाली का वातावरण बनेगा । वास्तव में इससे भारतीय अर्थव्यवस्था का अन्तर्राष्ट्रीय समायोजन होगा ।

इसका लक्ष्य विशेष रूप में पूंजीगत वस्तुओं और कच्चे माल के सम्बन्ध में धीरे-धीरे लाइसैंस प्रणाली तथा मात्रात्मक प्रतिबन्धों का विलोपन होगा ताकि इन वस्तुओं को आसानी से खुले सामान्य लाइसैन्स (OGL) पर रखा जाये । नई नीति में बहुत सी निर्यात वस्तुओं और आयात से सम्बन्धित सार्वजनिक क्षेत्र के एकाधिकार को कम करने की व्यवस्था की गई ।

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुये सरकार ने निर्यात-आयात नीति 1992-97 और आने वाले पाँच वर्षों 1997-2002 के लिये अप्रैल 1998 में पेश की । इसने अपनी एग्जिम नीति 2000-01 और 2001-02 की घोषणा की । पुन: 31 मार्च 2002 को सरकार ने अपनी नई एग्जिम नीति 2002-07 की घोषणा की जिसमें वर्ष 2007 तक विश्व निर्यातों में एक प्रतिशत का भाग प्राप्त करना था ।

10. सामाजिक नीति में सुधार (Social Policy Reforms):

सामाजिक क्षेत्र के संदर्भ में सरकार ने आरम्भिक शिक्षा, ग्रामों में पीने के जल की पूर्ति, छोटे तथा सीमान्त किसानों की सहायता, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा समाज के अन्य कमजोर वर्गों की भलाई के कार्यक्रमों पर व्यय के लिये उच्च मात्रा राशि निर्धारित की जाये ।

स्त्रियों तथा बच्चों के लिये कार्यक्रम, संरचना एवं रोजगार के कार्यक्रम आरम्भ किये गये । वर्ष 1995-96 के बजेट में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना गृह निर्माण सहायता, वृद्ध आयु पैन्शन, मातृत्व लाभ, निर्धनता सेवा से नीचे के लोगों के लिये वर्ग बीमा योजना आरम्भ की गई ।