गरीबी का अनुमान कैसे करें! Read this article in Hindi to learn about how to estimate poverty.

गरीबी का अर्थ उस स्थिती से है जिसमें समाज का एक भाग अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को संतुष्ट करने में असमर्थ रहता है, तीसरी दुनिया के देशों में व्यापक निर्धनता पाई जाती है । गरीबी की बात करते है आज सरकार राजनीतिज्ञ समाज-सुधारक आदि सभी को गरीबी के बारे में सही अर्थ का बोध नहीं है । सामान्य तथा गरीबी का आशय लोगों के निम्न जीवन ऋण में लगाया जाता है ।

गरीबी को दो तरह से देखा जाता है:

(1) निरपेक्ष गरीबी,

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(2) सापेक्ष गरीबी ।

(1) निरपेक्ष गरीबी:

”एक व्यक्ति की निरपेक्ष गरीबी से अर्थ है कि उसकी आय या उपयोग व्यय इतना कम है कि वह न्यूनतम भरण पोषण के स्तर के नीचे स्तर पर रह रहा है” दूसरे शब्दों में हम इस प्रकार कह सकते है, ”गरीबी से अर्थ उस न्यूनतम आय से है जिसकी एक परिवार के लिए आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यक होती है तथा जिसे वह परिवार जुटा पाने में असमर्थ होता है ।” गरीबी से अर्थ मानव की आधारभूत आवश्यकताओं- खाना, कपड़ा, स्वास्थ्य आदि की पूर्ति हेतु पर्याप्त वस्तुओं व सेवाओं को जुटा पाने में असमर्थता से है ।

(2) सापेक्ष गरीबी:

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सापेक्ष गरीबी आय की असमानताओं के आधार पर परिभाषित की जाती है इस संबंध में विभिन्न वर्गों या देशों के निर्वाह स्तर या प्रति व्यक्ति आय की तुलना करके गरीबी का पता लगाया जाता है । जिस वर्ग या देश के लोगों का जीवन स्तर या प्रति व्यक्ति आय का स्तर नीचा रहता है वे उच्च निर्वाह स्तर या प्रति व्यक्ति आय वाले लोगों की तूलना में गरीब माने जाते है निर्वाह स्तर को आय एवं उपयोग व्यय के आधार पर मापा जाता है ।

भारत में गरीबी का अनुमान आधुनिक मापदण्ड सहित:

भारत में अनेक अर्थशास्त्रीयों एवं संस्थानों ने निर्धनता के निर्धारण के लिए अपने-अपने मानदण्ड बनाए । इन सभी अध्ययनों का आधार कैलोरी को बनाया गया है । योजना आयोग द्वारा गठित विशेष दल की रिपोर्ट के अनुसार- “ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 2100 कैलोरी प्रतिदिन के हिसाब जिन्हें प्राप्त नहीं हो पाता उसे गरीबी से नीचे माना जाता है ।”

निर्धनता रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की पहचान का मुददा पिछले कुछ नियम से विहादस्पद बना हुआ है योजना आयोग राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के सर्वेक्षणों के आधार पर निर्धनता की गणना करता है ।

वही प्रो.डी.टी. लकड़ावोलो की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञों दल ने योजना आयोग के इन आकडों के अविश्वसनीय बताते हुए निर्धनता की पहचान के लिए वैकल्पिक फार्मूले का उपयोग किया जिसके तहत प्रत्येक राज्य में मूल्य स्तर के आधार पर अलग-अलग निर्धनता रेखा का निर्धारण लकडावोलो फार्मूले में शहरी निर्धनता के आकलन हेतु ओद्योगीक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांको को आधार बनाया गया है । इस प्रकार लकड़ावोलो फार्मूले के तहत सभी राज्यों में अलग निर्धनता रेखायें (कुल 35) होंगी ।

निर्धनता आकलन हेतु रंगराजन समिति 2012:

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योजना आयोग द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक शपथ पत्र के अनुसार शहरी क्षेत्रों में 28.65 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उपभोग व्यय तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 22.42 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उपभोग व्यय को निर्धनता रेखा निरूपित किये जाने की तीखी आलोचनाओं के बीच योजना आयोग ने इसकी वकालत की है ।

डी डीसी. रंगराजन- एक नवीन विशेष टेस्नीकल समूह का गठन 24 मई, 2012 को किया है । जो निर्धनता आकलन की सर्वमान्य एवं स्पष्ट विधि सुझाएगा इंदिरा गाँधी विकास अनुसधान सस्थान के निर्देशक प्रो महेन्द्र देव. सेन्टर फॉर, मानीटरिंग इण्डियन इकोनॉमी के के सुन्दरम एव महेश व्यास तथा योजना आयोग में परामर्शदाता के.ए. दत्ता इस विशेष समूह के अन्य सदस्य है ।

संयुक्त राष्ट्र रिर्पोट:

भारत में निर्धनता अनुपात घटने की दर धीमी होने के बावजूद सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (मिलेनियम डेवलपमेंट गोल) प्राप्त होने की सम्भावना संयुक्त राष्ट्र रिर्पोट में व्यक्त की गई हे । भारत में निर्धनता अनुपात घटने की दर पूर्वी व दक्षिण पूर्वी एशियाई तेशो की तुलना में कॉफी कम है । जिसके बावजूद निर्धनता अनुपात 50 प्रतिशत कटोती मिलेनियम सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा ।

मिलेनियम डेवलमेंट लक्ष्य पर संयुक्त राष्ट्र की 2010 की रिर्पोट में इस सम्बंध में बताया गया है कि भारत में निर्धनता अनुपात, जो 1990 में 51 प्रतिशत था, 2015 में 24 प्रतिशत तक आने की सम्भावना है । 23 जून, 2010 को नई दिल्ली में जारी इस रिपोर्ट ने बताया है कि निर्धनता अनुपात घटाने के मामले में पूर्वी व दक्षिण पूर्वी एशियाई देश सबसे आगे है ।

बहुआयामी निर्धनता निर्देशक:

अर्न्तराष्ट्रीय निर्धनता माप का सूचक है जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के लिए आक्सफोर्ड निर्रीनता एवं मानव विकास पहल द्वाश ध्वजवाहक मानव विकास रिर्पोट हेतु विकसित किया गया है । यह निर्देशक व्यक्तिगत स्तर पर निर्धनता की प्रकृति तथा गहनता का आकलन करते हुए विभिन्न देशों क्षेत्रों एवं विश्व में निर्धनता के मकड़जाल में फँसे लोगों का विहगम दृश्य प्रस्तुत करता है । बहुआयामी निर्धनता निर्देशक में तीन आयाम है- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर । इसके आकलन हेतु निम्नलिखित 10 सूचकों को प्रयुक्त किया जाता है ।

शिक्षा:

शिक्षा को 1/6 के बराबर भारांकन दिया गया है ।

(i) विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के वर्ष- 5 वर्ष का कोई बच्चा विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने से वंचित तो नहीं रहा है ।

(ii) विद्यालय में उपस्थिति- यदि एक से आठ वर्ष तक कोई बच्चा विद्यालय जाने से वंचित रहा हो ।

स्वास्थ्य:

स्वास्थ्य को 1/6 के बराबर भाराकन दिया गया है ।

(i) बालमृत्यु:

स्वारथ्य सेवाओं में वंचित रह कर यदि किसी बच्चे की मृत्यु हो गई हो ।

(ii) पोषण:

यदि कोई बच्चा कुपोषित हो गया हो ।

(iii) जीवन स्तर:

जीवन स्तर को 1/6 के बराबर भारांकन दिया गया है ।

(a) विद्युत – यदि कोई घर बिजली संयोजक से वंचित है ।

(b) पेयजल – यदि किसी परिवार में पेय जल स्त्रोत नहीं है ।

(c) स्वच्छता – यदि किसी परिवार या घर में शौचालय उपलब्ध न हो ।

(d) फर्श – यदि फर्श गोबर से लीपा गया हो ।

(e) भोजन – पकाने का ईंधन गोबर से बने उपले का प्रयोग किया जाता हो ।

(f) साधन – ऐसे परिवार जिनके पास रेडियो, टी.वी., टेलिफोन, साइकिल, मोटर साईकिल, रेफ्रीजरेटर में से कोई नहीं हो ।

उर्पयुक्त वस्तुगत अभिलक्षणों के आधार पर ऐसे सभी व्यक्तियों को बहुआयामी निर्धन माना जाता है, जो इनमें से एक तिहाई या इससे अधिक उपयोग से वंचित हो ।

भारत में निर्धनता की स्थिति:

निर्धनता अनुपात में लगातार कमी के बावजूद भारत ने कई राज्यों में निर्धनता की स्थिति चिंताजनक पायी है, बनाए गए एक नए मल्टीडायमेंशनल पावर्टी डेडेक्स के आधार पर यह पाया गया कि भारत के आठ राज्यों में ही निर्धनता अफ्रीका के 26 निर्धनतम देशों में निर्धनों की कुल संख्या से अधिक है ।

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की मानव विकास रिर्पोट में निर्धनता की स्थिति के आकलन हेतु मानव गरीबी सूचकांक हयून पावर्टी इंण्डेक्स का उपयोग 1997 से किया जाता रहा है । उपर्युक्त नया ‘बहु उद्देश्यीय गरीबी सूचकांक’ वर्ष 2010 की मानव विकास रिर्पोट में ही पहली बार शामिल किया गया था । यह रिर्पोट अक्टूबर, 2010 में प्रकाशित की गई थी ।

भारत में गरीबी के निवारण हेतु सुझाव:

भारत में गरीबी के निवारण की गति धीमी होने के कारण इन्हें निम्न सुझावों के माध्यम से गरीबी को कम किया जा सकता है ।

ये प्रमुख सुझाव निम्नानुसार है:

(1) आर्थिक विकास की गति को तेज करना बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन करके एवं पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि कर आर्थिक विकास की दर में वृद्धि की जा सकती है । फलस्वरूप आय में वृद्धि होगी ओर निर्धनता भी कम होगी ।

(2) कुटीर एवं लघुउद्योगों का विकास करके अधिक व्यक्तियों को रोजगार प्रदान किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त आय के साधनों का विकास होगा और गरीबी दूर होगी ।

(3) कृषि विकास देश की 5 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में आज भी संलग्न है अतः देश में कृषि विकास की ओर ध्यान देना अति आवश्यक है । यदि कृषि का विकास हो जाये तो निर्धनता स्वयं कम हो जायेगी ।

(4) ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक निर्माण कार्य इसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण, नहर, कुएँ, ग्रामीण आवास विद्युत के निर्माण कार्य किये जाए जिससे लोगों को रोजगार मिलेगा और आर्थिक स्थिति में सुधार होगा ।

(5) समाजिक न्याय को बढ़ावा देना गरीबी दूर करने के लिए गरीबों की हिस्सेदारी बढ़ाना आवश्यक है साथ ही गरीबों को अनुदान, रियायती दरों पर ऋण उपलब्ध कराना जिससे गरीबों की मदद हो सके ।

(6) जनसंख्या नियंत्रण गरीब परिवारों में जन्मदर ऊची होती है, अत: इसे घटाया जाना बहुत आवश्यक है इसके लिए इनके बीच परिवार कल्याण कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिये ।

इस तरह देश में गरीबी दूर करना तथा बेरोजगारी की समस्या से निजात पाना बड़ा चुनौती भरा कार्य है । इस समस्या से छुटकारा प्राप्त करने के लिए सघन आर्थिक एवं समाजिक प्रयास तथा दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता है । इस सबके द्वारा ही हम गरीबी जैसे बुराई से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं ।

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