डोमर की आर्थिक विकास का सिद्धांत | Read this article in Hindi to learn about Domar’s model of economic growth.

ई.डी. डोमर ने Essays in the Theory of Economic Growth (1957) में आर्थिक वृद्धि का विश्लेषण प्रस्तुत किया । डोमर का मॉडल अर्थव्यवस्था के संतुलन की दशाओं को अभिव्यक्त करने के साथ इस संतुलन को बनाए रखने की स्थितियों की व्याख्या करता है ।

डोमर के अनुसार अर्थव्यवस्था संतुलन में तब कही जाएगी जब उसकी उत्पादन क्षमता उसकी राष्ट्रिय आय के बराबर हो जाए । अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता एवम् उसकी राष्ट्रिय आय के साम्य पर विचार करते हुए डोमर ने उसे वृद्धि की दर को निर्दिष्ट करने का प्रयास किया जिसके अन्तर्गत अर्थव्यवस्था पूर्ण रोजगार की नियमित अवस्था में विकास करती रहती है ।

डोमर ने अपने मॉडल को निर्मित करने से पूर्व कींज के विश्लेषण की सीमाएँ स्पष्ट कीं । उनके अनुसार कीजियन प्रणाली वृद्धि की साम्य दर को निर्धारित करने वाले किसी उपकरण की जानकारी नहीं देती । कींज के विश्लेषण में वृद्धि की समस्या अनुपस्थित है, क्योंकि यह माना गया है कि रोजगार आय का फलन है । यह मान्यता केवल अल्पकाल में ही संभव है ।

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दीर्घकालीन विश्लेषण में यह गंभीर पूटियों को जन्म देगी । डोमर के अनुसार कींज ने विनियोग के दोहरे चरित्र को भी ध्यान में नहीं रखा जो वृद्धि की प्रक्रिया के निवर्चन हेतु अत्यंत आवश्यक है । डोमर के अनुसार विनियोग उत्पादन क्षमता को बढ़ाता एवम आय का सृजन करता है । इस प्रकार यह हमें वृद्धि की चाही जाने वाली दर को प्राप्त करने वाले समीकरण के दोनों पक्षों की जानकारी देता है ।

डोमर ने विनियोग के दोहरे चरित्र को ध्यान में रखते हुए समग्र माँग एवम समग्र पूर्ति के मध्य के संबंधों की व्याख्या की । डोमर के समीकरण का एक पक्ष उत्पादन क्षमता की वृद्धि एवम दूसरा आय की वृद्धि को प्रदर्शित करता है ।

यदि I = विनियोग की वार्षिक वृद्धि

σ = विनियोग की संभावित औसत उत्पादकता या उत्पादकता में वृद्धि । यह प्रत्येक इकाई अतिरिक्त विनियोग के परिणामस्वरूप उत्पादक क्षमता में होने वाली वृद्धि को सूचित करता है ।

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S = नवसृजित पूंजी की वार्षिक उत्पादन क्षमता

∆I = एक निरपेक्ष वार्षिक दर पर विनियोग में वृद्धि

∆Y = आय में निरपेक्ष वार्षिक वृद्धि

α = बचत की प्रवृति

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Y = उत्पादन में होने वाली शुद्ध वृद्धि

1. प्रणाली का पूर्ति पक्ष:

पूर्ति पक्ष पर विचार करते हुए डोमर ने स्पष्ट किया कि एक वर्ष में विनियोग की वृद्धि दर I है तथा प्रति डालर नवसृजित पूँजी की वार्षिक उत्पादन क्षमता औसत रूप से S है । अत: I डालर का विनियोग किए जाने पर उत्पादन क्षमता में कुल वृद्धि IS के बराबर होगी ।

वस्तुत: कुल क्षमता वर्ष में मुद्रा की IS इकाइयों के बराबर नहीं बढ़ती बल्कि यह इससे कुछ कम होती है । कारण यह है कि उद्योगों में या एक ही उद्योग की विभिन्न फर्मों में उत्पादन क्षमता एक जैसी नहीं होती । अत: डोमर के अनुसार उत्पादन क्षमता में I σ वृद्धि होती है । इस प्रकार I σ शुद्ध उत्पादन में होने वाली वार्षिक वृद्धि है तथा यह समग्र पूर्ति पक्ष को प्रकट करती है ।

डोमर ने (Simga) को विनियोग की संभावित सामाजिक औसत उत्पादकता के द्वारा निरूपित किया । वस्तुत: σ सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता को सूचित करता है । इस प्रकार यह न केवल राष्ट्रीय आय बल्कि अर्थव्यवस्था की संभावित उत्पादकता को भी बतलाता है ।

जैसे-जैसे σ बढ़ता जाएगा अर्थव्यवस्था अपने उत्पादन को सापेक्षिक रूप से अधिक तीव्र गति से बढ़ाने में सक्षम होगी । स्पष्ट है कि डोमर की प्रणाली में 1 σ पूर्ति पक्ष है जो उत्पादन में होने वाली उस वृद्धि को प्रदर्शित करता है जिसे अर्थव्यवस्था उत्पादित कर सकती है ।

2. प्रणाली का माँग पक्ष माँग पक्ष के अन्तर्गत डोमर ने कीज के गुणक सिद्धान्त का प्रयोग किया । यदि विनियोग में होने वाली वृद्धि की दर ∆I तथा α बचत की सीमांत क्षमता है तब आय में होने वाली वृद्धि ∆Y को ज्ञात किया जा सकता है, अर्थात् ∆Y = ∆I. I/α जहां गुणक 1 / α है ।

संतुलन एक वृद्धि कर रहे देश में संतुलन को निर्धारित करने के लिए डोमर ने माना कि अर्थव्यवस्था पूर्ण रोजगार संतुलन की दशा में है । इससे अभिप्राय है कि देश की राष्ट्रीय आय इसकी उत्पादन क्षमता के बराबर है यह दशा तब तक विद्यमान रहेगी जब तक आय एवम उत्पादन क्षमता में एक समान दर से वृद्धि होती रहेगी ।

अत: पूर्ण रोजगार संतुलन की दशा हेतु ∆I . 1 / α = I σ

समीकरण के दोनों पक्षों को α से गुणा करने एवम I से भाग देने पर ∆I / I = α σ

यहां ∆I / I से अभिप्राय है विनियोग वृद्धि की निरपेक्ष दर समीकरण से स्पष्ट है कि पूर्ण रोजगार बनाए रखने के लिए विनियोग एवम वास्तविक आय को अवश्य ही एक स्थिर वार्षिक प्रतिशत दर पर बढ़ना चाहिए जो बचत की प्रकृति एवम विनियोग की औसत उत्पादकता के गुणनफन अर्थात् α σ के बराबर होता है ।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण : डोमर के वृद्धि मॉडल को निम्न उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है । माना σ = 25% प्रति वर्ष α = 12% वार्षिक तथा Y = 150 बिलियन डालर वार्षिक ।

पूर्ण रोजगार हेतु आवश्यक है कि विनियोग की मात्रा 150 × 12/100 = 18 बिलियन डालर हो । इस विनियोग से अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता में विनियोग की मात्रा के बराबर वृद्धि होगी ।

उत्पादन क्षमता में वृद्धि = 150 × 12/100 × 25/100 = $ 4.5 बिलियन

यदि व्यर्थ उत्पादन क्षमता को रोकना हो तो राष्ट्रीय आय में भी बिलियन डालर की वृद्धि होनी चाहिए । आय में वृद्धि की सापेक्षिक दर को राष्ट्रीय आय की वृद्धि में राष्ट्रीय आय के आकार को विभाजित कर ज्ञात किया जा सकता है, अर्थात्

स्पष्ट है कि पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखने के लिए (जबकि व्यर्थ उत्पादन क्षमता उत्पन्न न हो) राष्ट्रीय आय में 3 प्रतिशत वार्षिक दर से वृद्धि करनी होगी । यह माना गया है कि α तथा σ में कोई परिवर्तन नहीं होता ।

चित्रात्मक निरूपण:

चित्र 6 के X अक्ष में वास्तविक आय तथा Y अक्ष में वास्तविक बचत व विनियोग को दिखाया गया है ।

चित्र में बचत फलन को OS रेखा के द्वारा प्रदर्शित किया गया है । OS रेखा का ढाल बचत की सीमांत प्रवृति α के द्वारा दिया जो काफी लंबे समय तक स्थिर मानी गयी है । आरंभिक विनियोग माँग रेखा I के द्वारा प्रदर्शित की गयी है । यह बचत फलन OS को बिंदु α पर अन्तर्छेदित करती है । बिन्दु α पर आय का संतुलन स्तर Oy है ।

नवीन पूँजी सृजन को OI द्वारा व्यक्त किया गया है । इसका विनियोग करने से आय में वृद्धि होती है अर्थात् आय OY से OY1 हो जाती है । आय में होने वाली वृद्धि (OY1-OY) एवम विनियोग में वृद्धि OI के मध्य के अनुपात को ‘उत्पादन पूँजी अनुपात’ σ द्वारा दिखाया गया है आय का एक नया संतुलन स्तर y1 केवल तब बना रह सकता है जब विनियोग OI से बढ़कर OI1 हो जाए । विनियोग के OI1 होने पर नया विनियोग माँग फलन I1I1 हो जाता है जिससे बचत फलन OS बिन्दु b पर अन्तर्छेदित करता है ।

चित्र में नव सृजित पूँजी को अब OI1 के द्वारा दिखाया जाएगा जिसके विनियोग से आय y2 तक बढ़ेगी । आय का नया स्तर केवल तब तक बना रहेगा जब विनियोग OI से बढ़कर OI2 हो जाए अत: नया विनियोग वक्र I2 I2 है जो बचत फलन OS को बिन्दु C पर अन्तर्छेदित करता है । इस प्रकार यह प्रक्रिया तब तक चलती रहेगी जब तक विनियोग प्रत्येक अगली अवधि में बढ़ते रहेंगे । इससे आय में पूर्व वर्ष के विनियोग गुणा σ के बराबर वृद्धि होती रहेगी । प्रत्येक अवधि में विनियोग आय में वृद्धि गुणा α के बढ़ेगी अत: आय α σ की दर से बढ़ती रहेगी ।

आधारभूत समीकरण ∆I/I = α σ से स्पष्ट है कि α का मूल्य जितना अधिक होगा, आय को बनाए रखने के लिए विनियोग की मात्रा उतनी ही अधिक होगी । इस प्रकार σ का मूल्य जितना अधिक होगा । अतिरिक्त क्षमता को दूर करने के लिए आय में वृद्धि भी उतनी ही अधिक होगी । अत: आय में वृद्धि मात्र तब संभव है जब विनियोग में अवश्य वृद्धि से जिसकी वार्षिक दर α σ के द्वारा दी हुई है ।

यदि ∆I/I < α σ, तब इससे अभिप्राय है कि पर्याप्त विनियोग नहीं किया जा रहा है । यदि आज पर्याप्त विनियोग न हो तब बेरोजगारी तुरंत ही उत्पन्न होने लगेगी, लेकिन यदि आज पर्याप्त विनियोग किया जाता है तब कुल माँग में वृद्धि करने के लिए और अधिक विनियोग की आवश्यकता होती है जिससे कि बढ़ी हुई उत्पादन क्षमता का प्रयोग किया जा सके एवम अत्यधिक पूँजी संचय से बचाव हो सके ।

मेयर एवं बाल्डविन के अनुसार अर्थव्यवस्था को उसी स्थान पर बने रहने के लिए तीव्रता से भागना होगा अन्यथा वह नीचे की ओर गिरने लगेगी ।

यदि ∆I/I > α σ, तब इससे अभिप्राय है कि विनियोग वांछित दर से कम हो इससे व्यर्थ पूँजी क्षमता की स्थितियाँ दिखाई देगी । यदि व्यर्थ पूँजी को दूर करना है तो अधिक पूँजी का सृजन आवश्यक है । लेकिन यदि वृद्धि की दर तीन होगी तो इससे विद्यमान पूँजी क्षमता पर दबाव पड़ेगा । अत: पूँजी की कमी को दूर करने के लिए विनियोग को कम करना पड़ेगा, माँग घटानी होगी तथा क्षमता पर दबाव डालना होगा ।

 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि डोमर ने अपने मॉडल में निम्न दो पक्षों को रेखाकिंत किया:

1. विनियोग अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है जो इसका पूर्ति पक्ष है ।

2. विनियोग द्वारा आय का सृजन होता है जो अतिरिक्त उत्पादन को अवशोषित करता है । यह माँग पक्ष है । इस प्रकार उत्पादन की माँग उत्पादन की पूर्ति के बराबर होनी चाहिए ।

हैरोड डोमर मॉडल के मुख्य बिंदु (Main Points of Harrod-Domar Model):

हैरोड-डोमर मॉडल का सार निम्न बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जाता है:

1. पूँजी संचय की दोहरी भूमिका है । यह एक ओर आय का सृजन करता है तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करता है ।

2. उत्पादन क्षमता की वृद्धि बढ़े हुए उत्पादन को सूचित करती है ।

3. आय का व्यवहार महत्वपूर्ण है जिसके द्वारा एक समय अवधि में पूर्ण रोजगार बनाए रखना संभव होता है । वृद्धि की साम्य दर वृद्धिमान पूँजी उत्पाद अनुपात एवं गुणक के आकार पर निर्भर करती है ।

4. यदि वृद्धि की वास्तविक दर वृद्धि की साम्य दर से अधिक है तो अर्थव्यवस्था मुद्रा प्रसारिक अंतराल का अनुभव करेगी । दूसरी ओर यदि वृद्धि वास्तविक दर वृद्धि की साम्य दर से कम है तो मुद्रा विस्फीतिक अंतराल उत्पन्न होंगे ।

5. व्यापार चक्र के द्वारा सतत् या अविरल या अविरल वृद्धि विचलन का अनुभव करती है । यह स्वयं सुधरने की नहीं बल्कि और अधिक बढ़ने की प्रवृत्ति रखता है । विचलन की उच्च सीमा पूर्ण सीलिंग द्वारा तथा निम्न सीमा का निर्धारण स्वायत्त व्यय द्वारा होता है ।

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