शीर्ष पांच अर्थशास्त्री और उनके योगदान | Here is a list of economists and their contribution in Hindi language.

1. सर डेविस ह्यूम (Sir David Hume):

यद्यपि डेविस ह्यूम मुख्य रूप से एक दार्शनिक था, परन्तु उसको एक अर्थशास्त्री के रूप में भी जाना जाता है । एडम स्मिथ तथा उसके अनुयायियों पर उसका (ह्यूम का) काफी प्रभाव पड़ा था । उसकी दर्शन एवं साहित्य में विशेष रुचि थी उसके पास असाधारण विश्लेषणात्मक शक्ति एवं विभिन्न विचारों को अनुरूप बनाने की क्षमता थी यह कथन को स्पष्ट करने की अद्‌भुत शक्ति रखता था ।

आर्थिक समस्याओं पर उसके विचार अपने समय से काफी आगे थे तथा वह उदार वणिकवादियों के वर्ग में रखा जा सकता है । उसकी मुख्य कृति आर्थिक निबंधों का संग्रह Political Discourses थी जिसमें ‘Of Money’, ‘Of Interest’, ‘Of Commerce’ तथा ‘Of Balance of Trade’ बहुत महत्वपूर्ण हैं ।

वह व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए मुद्रा के महत्व पर अत्यधिक बल देता है किन्तु सम्पूर्ण रूप में, वह लॉक के विचारों का अनुसरण करता है कि मुद्रा एक संकेत मात्र है तथा एक राष्ट्र द्वारा मुद्रा की मात्रा धारण करना महत्वपूर्ण नहीं है मुद्रा के परिमाण सिद्धांत के संबंध में उसने व्यापार संतुलन संबंधी दलील को रह कर दिया और कहा कि सिक्कों के व्यापार (आदान-प्रदान) से कीमतों पर प्रभाव पड़ेगा और अन्ततः वाणिज्य, द्रव्य व्यापार भी प्रभावित होगा ।

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वह कहता था किसी भी देश का व्यापार संतुलन स्थायी रूप से न तो अनुकूल रह सकता है और न ही प्रतिकूल तथा दीर्घकाल में व्यापार संतुलन संबंधित देशों की सापेक्षिक आर्थिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है इस प्रकार, वह स्वतंत्र व्यापार की वकालत करता था ।

आर्थिक विचार में ह्यूम का मुख्य योगदान मुद्रा, कीमत और ब्याज संबंधी क्षेत्रों में था । वह मुद्रा के परिमाण का परिणाम कीमत को मानता था । मुद्रा के मूल्य को वह काल्पनिक मानता था । मुद्रा वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करती है तथा इसका मूल्य भी उसके विनिमय में प्राप्त होने वाली वस्तुओं की मात्रा द्वारा निर्धारित होता था ।

वह मुद्रा के परिमाण संबंधी परिवर्तनों को महत्वपूर्ण समझता था क्योंकि वे व्यक्तियों की आदतों में परिवर्तन के लिए कारगर होंगे । मुद्रा के परिमाण में परिवर्तन कीमतों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन ला सकते हैं, अगर लोगों की आदतें परिवर्तित हो जाती हैं । कीमतों में वृद्धि, मुद्रा में वृद्धि के परिणामस्वरूप हो तो ऐसी स्थिति में यह वृद्धि लाभदायक होगी क्योंकि इससे उद्योग प्रोत्साहित होंगे ।

इस अर्थ में अर्थशास्त्र में ह्यूम का स्थान सुरक्षित है क्योंकि उसने समस्या का विश्लेषण इस प्रकार किया कि यह उन अर्थशास्त्रियों द्वारा उपयोग किया गया था जो उनका अनुसरण करते थे । यहां तक कहा जाता है कि केन्ज ने भी उसके विचारों का उपयोग किया था ।

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वह मानता था कि ब्याज की नीची दर किसी भी देश की समृद्धि की अवस्था का निश्चित चिन्ह है वह राज्य द्वारा ब्याज के नियमन का विरोध करता था । वह कहता था ब्याज की दर का निर्धारण उधार लेने वाला (ऋणी Borrowers) तथा उधार देने वाला (महाजन, Lenders) की मांग एवं पूर्ति द्वारा होता है ।

उसके विचार में ब्याज और लाभ दूसरे पर आश्रित होते थे । द्रव्य का नीचा लाभ व्यापारी को कम ब्याज स्वीकृत करने के लिए प्रेरित करेगा । कोई भी व्यक्ति कम लाभ स्वीकृत नहीं करेगा, जहां ऊंचा ब्याज है । वह भूमि को सभी उपयोगी वस्तुओं का स्रोत मानता था किन्तु उसे भूस्वामियों से कोई प्रेम नहीं था । उसके अनुसार भू-स्वामी, जो बिना किसी श्रम के आय प्राप्त करते थे, वे अतिव्यय से जुड़े होते थे । वे उपलब्ध पूंजी की मात्रा को घटा देते थे एवं इस तरह ब्याज की दर को बढाने में सहायता करते थे ।

दूसरी ओर, वाणिज्यिक वर्ग प्रचुर मात्रा में पूंजी का निर्माण एवं कम लाभ स्वीकृत करके राष्ट्र के हित में हमेशा काम में लगे रहते थे इस प्रकार, स्पष्ट है कि उसने ऐसे विचार प्रस्तुत किए थे जिनको बाद में आने वाले लेखकों ने अपनाया तथा यह भी नकारा नहीं जा सकता कि वह क्लासिकी अर्थशास्त्र के अग्रजों में से एक था ।

प्रकृतिवाद के सौ वर्ष बाद तक इंग्लैंड में जो सिद्धांत विद्यमान रहे उनको आर्थिक विचार में परम्परावाद के नाम से संबोधित किया जाता है । ये सिद्धांत एडम स्मिथ एवं उसके अनुयायियों द्वारा अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध काल में प्रतिपादित किए गए थे ।

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एडम स्मिथ ब्रिटिश परम्परावादी सम्प्रदाय का पिता एवं नेता माना गया है । इस सम्प्रदाय में बहुत से प्रसिद्ध अर्थशास्त्री सम्मिलित हैं जिनमें एडम स्मिथ, रिकार्डो, माल्थस एवं जे. एस. मिल प्रसिद्ध थे । वास्तव में स्मिथ, रिकार्डों एवं माल्थस परम्परावाद के स्तम्भ माने गए हैं । इन लेखकों ने नये सिद्धांतों को सूत्र रूप में वर्णित करके तथा पुराने सिद्धांतों को विस्तृत एवं परिष्कृत करके राजनीतिक अर्थशास्त्र के विज्ञान के विकास में सहायता की ।

परम्परा शब्द अर्थशास्त्र के साहित्य में तीन अर्थों को बताने के लिए उपयोग किया जाता है- प्रथम, इसका उपयोग एडम स्मिथ से जे. एस. मिल के आर्थिक लेखों के काल से संबंधित है । द्वितीय, जे. एम. केन्ज ने इस शब्द का उपयोग मार्शल तथा उसके अनुयायियों के विचारों को सूचित करने के लिए किया है ।

तृतीय, शुम्पीटर ने इस शब्द का प्रयोग मौलिक कार्य, जो उनसे पहले हुए थे, के अर्थ में किया है । यहां परम्परावाद सम्प्रदाय से तात्पर्य उन अर्थशास्त्रियों से है जिन्होंने 1750 से 1850 की अवधि के बीच लिखा । इस संप्रदाय के विचारों को परम्परागत नाम चुनने के विभिन्न कारण दिए गए हैं ।

प्रथम, विस्तृत लोकप्रियता के कारण इसे ‘परम्परा’ कहा जाने लगा । द्वितीय, इस सम्प्रदाय के सिद्धांतों ने आर्थिक विचारों में अत्यधिक परिवर्तन किया और अर्थशास्त्र के विषय का वैज्ञानिक तरीके से व्यवहार किया । तृतीय, इस सम्प्रदाय के सिद्धांतों का आज भी आधुनिक अर्थशास्त्रियों द्वारा अनुसरण किया जाता है ।

परम्परागत सम्प्रदाय की निम्न गुणात्मक विशेषताएं हैं:

(i) परम्परागत अर्थशास्त्रियों का विश्वास अबन्ध में था । उनके लिए वह सरकार सबसे अच्छी है जो न्यूनतम शासन करती है ।

(ii) परम्परावादी पूर्ण प्रतियोगिता पर आधारित बाजार अर्थव्यवस्था की बात करते थे । उत्पादन, विनिमय एवं वितरण बाजार की शक्तियों द्वारा निर्देशित होते हैं ।

(iii) वे मानते थे कि अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार का स्तर विद्यमान होता है ।

(iv) वे हितों में एकता के अस्तित्व में विश्वास करते थे ।

(v) परम्परावादियों ने आर्थिक नियमों को सार्वभौमिक माना ।

(vi) परम्परावादी अर्थशास्त्रियों ने सभी आर्थिक क्रियाओं के महत्व पर बल दिया ।

(vii) वे प्रथम अर्थशास्त्री थे जिन्होंने आर्थिक संवृद्धि एवं विकास की समस्या पर ध्यान दिया ।

(viii) वे अर्थव्यवस्था को सम्पूर्ण रूप में देखते थे । उनका विचार समष्टि प्रकृति का था ।

(ix) परम्परावादी अर्थशास्त्रियों का से के बाजार नियम में विश्वास था ।

2. थॉमस रॉबर्ट माल्थस (Thomas Robert Malthus):

थॉमस रॉबर्ट माल्थस तीन सूत्रधारों में दूसरा था जिसने अंग्रेजी क्लासिकी राजनीतिक अर्थव्यवस्था की नींव रखी । यद्यपि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उसके अनेक योगदान थे, किन्तु वह आर्थिक विचार के इतिहास में मुख्य रूप से अपने जनसंख्या सिद्धांत के लिए जाना जाता है । वह रिकार्डो के साथ निराशावादी भी कहा जाता है ।

कोई भी विचारक दशाओं से अप्रभावित नहीं रह सकता, जिसमें वह रहता है तथा कार्य करता है । इसलिए थामस रॉबर्ट माल्थस के साथ भी ऐसी ही स्थिति थी । इंग्लैंड में व्याप्त आर्थिक स्थिति एवं ऐतिहासिक वातावरण ने उसके बहुत सारे विचारों को रूपरेखा दी ।

अन्य के बजाय संभवतः एकमात्र कारक उसके लेखन से तत्काल पूर्व तथा उस समय की इंग्लैंड का स्थिति ने माल्थस के विचार को आकार दिया । अठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में इंग्लैंड में कृषि काफी उन्नत थी किन्तु शताब्दी के अंत में कृषि उत्पादन गिर गया तथा वस्तुओं की कीमतें काफी ऊंची हो गई ।

पड़ोसी देश आयरलैंड में खराब फसल तथा अकाल की अवस्था का पुनरागमन हुआ । प्रख्यात इतिहासवेत्ता टी. एच. ग्रीन के अनुसार, ”लोगों की दुर्गति बुरे प्रशासन के कारण बड़ी और अकाल ने देश को नरक में धकेल दिया” । औद्योगिक क्रांति के बुरे प्रभाव, जो एडम स्मिथ के समय के विचारों में मुश्किल से मिलते हैं, उजागर होने लगे जैसे-बेरोजगारी, गरीबी, बीमारी, झगड़े आदि । इन्होंने कृषि की स्थिति को और खराब बना दिया ।

इसके अतिरिक्त, इंग्लैंड का निर्धन कानून, वास्तविकता एवं प्रशासन दोनों में दोषपूर्ण था । अनाज की कीमत अत्यधिक ऊंची थी, मजदूरों की स्वतंत्रता काफी कम थी जिससे निर्धनता एवं अयोग्यता उत्पन्न हो गई । लोगों की दुर्गति ने माल्थस को इनके कारणों को खोजने के लिए उत्साहित किया । इस प्रकार उसमें एक व्यावहारिक उत्तेजना उत्पन्न हुई जिसने उसके आर्थिक सिद्धांतों को तैयार किया ।

3. डेविड रिकार्डो (David Ricardo):

स्मिथ के बाद डेविड रिकार्डों को महान अर्थशास्त्री समझा गया है । आर्थिक विचारधारा का मार्गदर्शन करने में रिकार्डों का इतना गहन प्रभाव है कि उसके कोई भी विरोधी इस परिप्रेक्ष्य में नहीं ठहरते । वह अपने समर्थकों एवं विरोधियों-दोनों के लिए प्रेरणा का स्रोत था ।

ग्रे ने कहा, ‘उसके हाथों में अंग्रेजी परम्परावादी राजनीतिक अर्थव्यवस्था ने अन्तिम तथा पूर्णरूप प्राप्त कर लिया था इसलिए अगली पीढ़ी के आर्थिक विचारों के नेता केवल एडम स्मिथ, रिकार्डो एवं माल्थस के विचारों की पुनर्व्याख्या के अतिरिक्त कुछ अधिक नहीं कर सकते थे…।

जहां मार्क्स और लेनिन की अर्द्धप्रतिमा हो, वहीं कहीं पीछे रिकार्डो के पुतले के लिए भी स्थान होना चाहिए’ ।  रिकार्डो मुख्य रूप से अपनी पुस्तक Principle of Political Economy के लिए जाना जाता है जिसका प्रकाशन 1817 में हुआ था । यह परम्परागत आर्थिक सिद्धांत का प्रथम पूर्ण कथन था ।

आर्थिक विचार में रिकार्डो के योगदान को लेकर मतभेद है । जीड और रिस्ट के अनुसार अर्थशास्त्र में स्मिथ के बाद रिकार्डो का नाम सबसे महान है । रिकार्डो अमूर्त तर्कविधि का अद्वितीय उदाहरण है । वह अर्थशास्त्र में निगमन के गुरु के रूप में याद किया जायेगा ।

एरिक रोल के अनुसार, ”रिकार्डो की मुख्य उपलब्धि मूल्य एवं वितरण के सिद्धांत में मिलती है ।”  हैनेके विचार में – ”उसकी (रिकार्डो) महान सेवाओं में से एक यह थी कि उसने अपने पूर्वजों से अधिक अर्थशास्त्र को ज्ञान की अन्य शाखाओं से विशेषकर राजनीति और नीतिशास्त्र से पृथक किया था ।” राजनीतिक अर्थव्यवस्था रिकार्डो से अर्थशात्र बन गया ।

उपर्युक्त सभी को रिकार्डो ने समाजवाद की नींव का पत्थर प्रदान किया । रिकार्डो का मूल्य का सिद्धांत आधुनिक समाजवाद का प्रारंभ बिन्दु है । मार्क्स ने अपने अतिरेकमूल्य के सिद्धांत का विकास केवल रिकार्डो के मूल्य के श्रम सिद्धांत के आधार पर किया ।

निजी स्वामित्व पर सामान्य प्रहार के लिए सभी मार्क्सवादियों के लिए रिकार्डो का लगान सिद्धांत शक्तिशाली निमित्त बन चुका है । रिकार्डो का मजदूरी का सिद्धांत समाजवाद का युद्ध-आह्वान बन चुका है । रिकार्डो ने कहा मजदूरी लाभ के व्यय पर बढ़ सकती है । इसमें पूंजीपति एवं मजदूरों के बीच विरोध निहित है जो वर्ग-संघर्ष के विचार का सुझाव देता है ।

इस प्रकार वैज्ञानिक समाजवादी कहे जाने वाले मूल्य, लगान, मजदूरी और लाभ पर रिकार्डो के कथन से सहमत हैं । किन्तु केन्ज का विचार था, ”रिकार्डो की बजाय, अगर केवल माल्थस पैतृक वंश होता जिससे उन्नीसवीं सदी का अर्थशास्त्र आगे बढ़ता तो यह विश्व आज अधिक बुद्धिमान एवं धनी स्थान में होता ।”

जेवन्स ने रिकार्डो को कहा- ”वह क्षमतावान किन्तु गलत मस्तिष्क का मानव था जिसने आर्थिक विज्ञान की कार का मार्ग गलत रास्ते की ओर मोड़ दिया ।”  उपरोक्त आलोचनाओं एवं विभिन्न मूल्यांकनों के बावजूद हम रिकार्डो को उसके महत्वपूर्ण कथनों के लिए लगभग एक शताब्दी तक राजनीतिक अर्थव्यवस्था में याद करते हैं ।

4. कार्ल मार्क्स (Karl Marx):

कार्ल हेनरिख मार्क्स का जन्म एक मध्यवर्गीय यहूदी परिवार में 1818 में जर्मनी के ट्रीयर नामक स्थान पर हुआ था । बचपन में उसके परिवार ने प्रोटेस्टेंट धर्म अपना लिया । कार्ल मार्क्स ने कानून, इतिहास और दर्शन का अध्ययन जर्मनी के विभिन्न विश्वविद्यालयों में किया (बोन, बर्लिन और जेना) और 23 वर्ष की अवस्था में पी-एच. डी की उपाधि प्राप्त की ।

डॉक्टरेट प्राप्त करने के उपरान्त वह हीगल के दर्शन से प्रभावित हुआ और उसने क्रांतिकारी पत्रकारिता को अपनाया । इसलिए वह जर्मनी, बेरियम और फ्रांस से निकाल दिया गया । अंततः वह लंदन आया जहां उसने अपने जीवन के अन्तिम 30 वर्ष गुजारे ।

लंदन में मार्क्स ने अपना अत्यधिक समय ब्रिटिश अजायबघर के विशाल पुस्तकालय में बिताया । उसका पूरा जीवन गरीबी से भरा और कष्टमय था । उसके मित्र और शिष्य एंजिल्स ने उसे वित्तीय रूप से सहायता दी । मार्क्स के विचारों के विकास में एंजिल्स सहयोगी भी था । उन दोनों ने पुस्तकों की एक प्रभावशाली श्रृंखला प्रकाशित की । उनके सभी जगह अतिवादी समूहों के साथ सम्पर्क थे ।

5. एल्फ्रेड मार्शल (Alfred Marshall):

एल्फ्रेड मार्शल नव-परम्परागत सम्प्रदाय का संस्थापक था । वह प्रथम अर्थशास्त्री था जिसने राजनीतिक अर्थव्यवस्था का अर्थशास्त्र के रूप में पुन: नाम रखा । वह प्रथम अर्थशास्त्री था जिसने मानवीय आवश्यकताओं और उपभोग के अध्ययन को अत्यधिक महत्व दिया । उसका Principle of Economics प्राचीन विचारों की आधुनिक, अद्वितीय व्याख्या और विवरण है ।

मार्शल का जन्म 1842 में क्लेफाम में हुआ था । उसकी पुस्तक Principle of Economics 1890 में प्रकाशित हुई । आठवां संस्करण 1920 में आया और यह ग्यारह बार पुनर्मुद्रित हुई । यह छ: पुस्तकों में विभाजित है – पुस्तक 1, प्राथमिक सर्वेक्षण का वर्णन करती है; पुस्तक 2 कुछ आधारभूत विचारों का परीक्षण करती है; पुस्तक 3 आवश्यकताओं और उनकी संतुष्टि का वर्णन करती है; पुस्तक 4 उत्पादन के साधनों का विवरण देती है; पुस्तक 5 मांग, पूर्ति और मूल्य का वर्णन करती है और पुस्तक 6 राष्ट्रीय आय और इसके वितरण का विश्लेषण प्रस्तुत करती है ।

मार्शल अर्थशास्त्र को परिभाषित करते हुए कहता है, ”राजनीतिक अर्थव्यवस्था या अर्थशास्त्र मानव-जीवन के सामान्य व्यवसाय का अध्ययन है । इसमें व्यक्तिगत एवं सामाजिक क्रियाओं के उस भाग का अध्ययन किया जाता है जिसका कल्याण के भौतिक साधनों की प्राप्ति एवं उपयोग से अत्यन्त घनिष्ठ संबंध होता है” ।

इस प्रकार यह एक ओर धन का अध्ययन है और दूसरी ओर तथा इससे अधिक महत्वपूर्ण मनुष्य के अध्ययन का एक भाग है । मार्शल के अनुसार, अर्थशास्त्र मानव-जाति का अध्ययन है न कि पशुओं या जानवरों या पौधों का । यह मनुष्य के आर्थिक पहलू का वर्णन करता है न कि उसके जीवन के सामाजिक या राजनीतिक या धार्मिक पहलू का ।

यह उनके जीवन के सामान्य व्यवसाय की व्याख्या करता है जिसमें उनके जीवन की अनिवार्यताओं जैसे भोजन, कपड़ा और मकान की संतुष्टि के लिए अर्जित और व्यय मुद्रा सम्मिलित होती है । मार्शल मानव क्रियाओं को वर्गीकृत करता है-जो क्रियाएं भौतिक कल्याण में योगदान देती हैं और जो क्रियाएं भौतिक कल्याण में योगदान नहीं देतीं । मार्शल ने धन की जगह मनुष्य पर बल दिया । धन कल्याण का केवल एक साधन है । इस प्रकार उसने मनुष्य को प्राथमिक स्थान दिया और धन को द्वितीयक स्थान दिया ।

आर्थिक नियम आर्थिक प्रवृत्तियों का कथन हैं और अनुमानित हैं । चूँकि आर्थिक नियम मनुष्य की क्रियाओं का वर्णन करते हैं जो अनेक तथा अनिश्चित हैं इसलिए इनकी तुलना गुरुत्वाकर्षण के सरल और यथार्थ नियम की अपेक्षा ज्वार- भाटा के नियम से होनी चाहिए ।

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