डेविड रिकार्डो की शास्त्रीय सिद्धांत | आर्थिक विकास | Read this article in Hindi to learn about:- 1. डेविड रिकार्डों द्वारा प्रतिष्ठित सिद्धांत की प्रस्तावना (Introduction to the Classical Theory of David Ricardo) 2. प्रतिष्ठित सिद्धांत  की उत्पादन फलन (Production Functions of Classical Theory) and Other Details.

Contents:

  1. डेविड रिकार्डों द्वारा प्रतिष्ठित सिद्धांत की प्रस्तावना (Introduction to the Classical Theory of David Ricardo)
  2. प्रतिष्ठित सिद्धांत  की उत्पादन फलन (Production Functions of Classical Theory)
  3. रिकार्डो का वृद्धि मॉडल – अन्न अर्थव्यवस्था (Ricardo’s Model of Growth – The Corn Economy)
  4. रिकार्डो का द्विक्षेत्र वृद्धि मॉडल (Ricardo’s Two Sector Growth Model)
  5. चित्रात्मक निरूपण रिकार्डों सिद्धांत (Diagrammatic Representation of Ricardo’s Theory)

1. डेविड रिकार्डों द्वारा प्रतिष्ठित सिद्धांत की प्रस्तावना (Introduction to Classical Theory of David Ricardo):

डेविड रिकार्डों ने आर्थिक विकास संबंधी विचार अपनी पुस्तक Principal of Political Economy and Taxation में वर्णित किए गए हैं । उन्होंने आर्थिक विकास से अधिक मूल्य एवं वितरण के सिद्धान्त की व्याख्या की । रिकार्डो मुख्यत: सीमान्त एवं अतिरेक सिद्धान्तों पर आधारित रहे सीमाल सिद्धान्त राष्ट्रीय स्मष्ट्रन में लगान के अंश की व्याख्या करता है तथा ‘अतिरेक’ मजदूरी एवं लाभों के मध्य शेष अंश के विभाजन की व्याख्या करता है ।

मान्यताएँ (Assumptions):

ADVERTISEMENTS:

रिकार्डो का विश्लेषण निम्न मान्यताओं पर आधारित है:

(i) समस्त भूमि अन्न के उत्पादन हेतु प्रयुक्त होती है । अन्न की माँग पूर्णत: लोचदार होती है । कृषि में कार्यकारी श्रम शक्ति उद्योग में वितरण के निर्धारण हेतु सहायक होती है ।

(ii) भूमि पर प्रतिफल का घटता हुआ नियम लागू होता है ।

(iii) भूमि की पूर्ति स्थिर है । अनाज की माँग पूर्णत: बेलोचदार होती है ।

ADVERTISEMENTS:

(iv) श्रम एवं पूर्ति परिवर्ती आदाएँ है । पूँजी के अन्तर्गत प्रवाहित या चक्रीयगति करती पूँजी सम्मिलित है । पूँजी के अन्तर्गत पूँजी में एकरूपता पायी जाती है । पूँजी के संचय के परिणामस्वरूप लाभ की प्राप्ति होती है ।

(v) तकनीकी ज्ञान का स्तर दिया हुआ है ।

(vi) सभी श्रमिकों को जीवन निर्वाह मजदूरी प्रदान की जाती है ।

(vii) श्रम की पूर्ति कीमत दी हुई तथा स्थिर है । श्रम की माँग पूँजी के संचयों पर निर्भर करती है तथा माँग व पूर्ति कीमतें श्रम की सीमान्त उत्पादकता से स्वतन्त्र है ।

ADVERTISEMENTS:

(viii) पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति विद्यमान है ।


2. प्रतिष्ठित सिद्धांत  की उत्पादन फलन (Production Functions of Classical Theory):

उत्पादन फलन में भूमि श्रम एवं पूँजी को समाहित माना गया है । रिकार्डों ने सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को एक विशाल फर्म की भाँति देखा जिसकी पूर्ति स्थिर है तथा जो श्रम एवं पूँजी की एकरूप इकाइयों के प्रयोग से केवल उन्न का उत्पादन करती है ।

भूमि के द्वारा किए गए समस्त उत्पादन का विभाजन भूमिपति, पूँजीपति एवं श्रमिकों के मध्य होता है । इन तीनों वर्गों के मध्य कुल राष्ट्रीय उत्पादन का वितरण लगान, लाभ एवं मजदूरी के रूप में होता है । रिकार्डों के उत्पादन फलन में भूमि को पूर्णत: बेलोच एवं उसकी गुणवत्ता की भिन्नता के कारण गिरती हुई सीमान्त उत्पादकता की मान्यता दी गई है ।

रिकार्डो ने यह भी स्पष्ट किया कि कृषि में नव-प्रवर्तन किए जाने से भूमि की गिरती हुई सीमान्त उत्पादकता में थोड़ा सुधार किया जाना संभव है, जबकि उद्योग में नव-प्रवर्तन बढ़ते हुए प्रतिफल की स्थिति लाने में सहायक होता है ।

रिकार्डो ने यह संभावना व्यक्त की कि अनुकूल परिस्थितियों में उत्पादन की शक्ति जनसंख्या वृद्धि से अधिक प्रभावशाली हो पर यह प्रवृति लम्बे समय तक चल नहीं पाती, इसका कारण यह है कि भूमि की मात्रा सीमित है एवं इसकी गुणवत्ता भिन्न-भिन्न होती है । भूमि पर पूंजी के अधिकाधिक प्रयोग से उत्पादन की दर में गिरावट होगी । रिकार्डों के अनुसार- अर्थव्यवस्था एक निरंतर रूप से गिरती हुई दर से विकास करती है ।

मजदूरी, ब्याज एवं लाभ की प्रवृत्ति (Trends in Wages, Rent and Profit):

रिकार्डों के अनुसार- उत्पादन में पूँजीपति भूमिपति एवं श्रमिकों द्वारा योगदान दिया जाता है । इस प्रकार राष्ट्रीय आय का विभाजन क्रमश: लाभ, लगान एवं मजदूरी के रूप में होता है । विकास की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप कुल उत्पादित अनाज में भूस्वामी अपना अंश लगान के रूप में प्राप्त करता है । औसत एवं सीमान्त उत्पाद के मध्य का अन्तर प्रति श्रम इकाई लगान है ।

इस प्रकार श्रम के औसत उत्पाद एवं सीमान्त के मध्य का अन्तर प्रति श्रम इकाई लगान है । इस प्रकार कुल लगान श्रम के औसत उत्पाद एवं सीमान्त उत्पाद के साथ भूमि पर लगी श्रम एवं पूँजी की मात्रा के गुणा द्वारा प्राप्त होता है । लगान को घटाकर शेष उत्पादन पूँजीपति एवं श्रमिक के मध्य लाभ एवं मजदूरी के रूप में वितरित होता है ।

लाभ के अन्तर्गत ब्याज को भी सम्मिलित कर लिया जाता है । मजदूरी की दर का निर्धारण मजदूरी कोष में जीवन निर्वाह स्तर पर रोजगार प्राप्त कर रहे श्रमिकों की संख्या से भाग देकर प्राप्त किया जाता है । पूँजीपति अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए अधिकाधिक बचत करते है तथा उत्पादकता उपक्रमों में विनियोजित करते हैं ।

मशीनरी पर रिकार्डों के विचार (Ricardo’s on Machinery):

रिकार्डो ने अपनी पुस्तक Principles (1821) के तीसरे संस्करण में मशीनरी के प्रयोग पर विचार प्रकट किए । उनके अनुसार- मशीनों के प्रयोग से समाज की शुद्ध आय बढ़ती है लेकिन सकल आय सामान्यत: अल्पकाल में कम रहती है, क्योंकि श्रम की मांग में कमी होती है । इससे रोजगार का स्तर भी कम होता है । रिकार्डो के अनुसार, पूँजी का प्रयोग करने वाले नव-प्रवर्तन श्रमिकों के लिए अधिक अहितकारी होते है ।

रिकार्डो ने अपनी व्याख्या को केवल मशीनों के परिचय तक ही सीमित नहीं किया बल्कि सुधरी हुई कार्यक्षमता की भी व्याख्या की । उन्होंने पूँजी का प्रयोग करने वाली नव-प्रवर्तनों पर भी विचार किया जो श्रम समय की तुलना में पूँजी की अधिक मात्राओं की आवश्यकता रखते हैं ।


3. रिकार्डो का वृद्धि मॉडल – अन्न अर्थव्यवस्था (Ricardo’s Model of Growth – The Corn Economy):

रिकार्डो ने Essay on Profits (1815) में कृषि क्षेत्र के मॉडल का विकास किया इस मॉडल में यह प्रदर्शित किया जाता है कि अन्न को किस प्रकार उत्पादक श्रम की सहायता से और अधिक अन्न में बदला जाता है ।

रिकार्डो एवं एडम स्मिथ के मॉडल में अन्तर यह है कि रिकार्डों ने भूमि को दुर्लभ साधन के रूप में लिया । उनके अनुसार- कृषि के विस्तार में भूमि की कमी बाधा बनती है । स्मिथ ने कहा था कि श्रम की कमी अर्थव्यवस्था के विस्तार हेतु एक सीमा है लेकिन रिकार्डों ने भूमि की कमी को अर्थव्यवस्था के विकास का आधार बताया । भूमि को मूल एवं अविनाशी शक्ति बताया गया । लगान को राष्ट्रीय आय के बढ़ते हुए अनुपात के रूप में तथा भूमि स्वामी को अर्थव्यवस्था में परजीवी माना गया ।

रिकार्डों ने अपने मॉडल में कृषि क्षेत्र द्वारा अन्न के उत्पादन को ध्यान में रखा जो एक फसल में दूसरी फसल के मध्य एक वर्ष का समय लेता है । एक ही आदा अन्न की आवश्यकता पड़ती है जिसे इस क्षेत्र द्वारा स्वयं उत्पादित किया जाता है । इसको बीज के रूप में विनियोजित किया जाता है तथा श्रमिकों की मजदूरी के रूप में भुगतान किया जाता है ।

रिकार्डो के मॉडल में श्रम व पूँजी को एक ही चर के द्वारा अभिव्यक्त किया गया । इसकी मात्रा एक विशिष्ट उद्योग के संदर्भ में उत्पादन के पैमाने के साथ बदलती नहीं है ।

माना एक वर्ष में रोजगार की विशिष्ट मात्रा के लिए अन्न का मजदूरी बिल = W (Wage Bill in Corn for a Year of Particular Amount of Employment) एक वर्ष के उत्पादन के लिए बीज = C (Seed for the Years Production)

एक वर्ष में श्रमिकों को रोजगार देने के लिए विनियोजित पूंजी, एक वर्ष में बीज एवं मजदूरी का योग है अर्थात् यह (C+V) है ।

आदमी + पूँजी द्वारा संयुक्त सीमान्त उत्पाद ƒ’ (L) की प्राप्ति की जाती है जो सीमान्त लगानहीन भूमि पर एक मानव वर्ष काम करने के उत्पाद के बराबर है ।

एक वर्ष में बीज एवं मजदूरी का बिल इस उत्पाद में घटाया जाता है जिससे पूंजी पर लाभ शेष रहता है जिसकी आवश्यकता आदमी को रोजगार पर लगाने हेतु आवश्यक है ।

यह लाभ (S), उत्पादन लागत (C + V) के ऊपर लगान रहित भूमि पर प्राप्त होने वाले उत्पादन का अतिरेक है जिसे अन्न की मात्रा के समान अभिव्यक्त किया जाता है । यह लाभ पूँजी को नियमित बनाए रखने एवं लाभ की प्रमाण दर (Standard Rate of Profit [r = S (C + V)] को बनाए रखने के लिए आवश्यक है ।

मजदूरी का भुगतान अन्न के रूप में किया जा रहा है तथा विभिन्न वस्तुओं की कीमतें ऐसी हैं जो लाभ की समान दर को प्राप्त कर रही हैं । कृषि में लाभ की दर सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में लाभ की दरों को निर्धारित करती है ।

रिकार्डो के अन्न अर्थव्यवस्था मॉडल को निम्न समीकरणों की सहायता से प्रदर्शित किया जा सकता है:

1. एक वर्ष में उत्पादित अन्न X = ƒ (L)

जबकि निम्न दो विशेषताएँ ध्यान में रखी जाएँ:

(i) F’ (L) > W0

(ii) F’ (L) < W0

जहाँ X = एक वर्ष में उत्पादित अन्न की मात्रा है

L = श्रम की मात्रा

W0 = स्थिर एवं संस्थागत रूप से निर्धारित मजदूरी दर

2. लगान (R) के निर्धारण हेतु सूत्र

R = ƒ (L) – ƒ (L), L

3. कुल मजदूरी W के निर्धारण हेतु सूत्र

W = WmL

जहाँ m = प्रति इकाई पूँजी में श्रमिकों की मात्रा

L = श्रमिकों की संख्या

4. कुल लाभ π हेतु सूत्र

π = Lƒ’ (L) – mW

जहाँ π = कुल लाभ (Total Profit)

W = अन्न के रूप में मजदूरी दर

अत: कुल लाभ को ज्ञात करने के लिए एक वर्ष में उत्पादित अन्न X में लगान R तथा कुल मजदूरी घटा दिया जाता है ।

अत: π = X – R – W

5. रोजगार प्राप्त प्रति व्यक्ति लाभ Z ज्ञात करने का सूत्र

Z = ƒ’ (L) – Mw

6. माना गया कि अन्न के रूप में मजदूरी दर W बराबर होती है स्थिर व संस्थागत रूप से निर्धारित मजदूरी दर W0 के, अर्थात W = W0

7. माना गया कि L = L̅

रिकार्डो के मॉडल को उपर्युक्त सात समीकरणों की सहायता से स्पष्ट किया गया है ।

इस प्रणाली में जनसंख्या में होने वाली वृद्धि W > W0, जनसंख्या में होने वाली कमी तब, जबकि W < W0 । जनसंख्या वृद्धि की दर से स्थायित्व की दशा तब स्थापित होती है जब W = W0 की स्थिति हो ।

रिकार्डो की व्याख्या में लगान को कुल उत्पाद ƒ (L) एवं परिवर्ती आदाओं को प्राप्त होने वाले कुल पुरस्कार ƒ’ (L) के अन्तर द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है ।

प्रतिव्यक्ति लाभ (Z) श्रम एवं पूँजी कर सीमान्त ƒ’ L एवं इस मात्रा में श्रम के घटक के पुरस्कार mW के अन्तर द्वारा सूचित होता है । मजदूरी एवं बीज पूँजी उत्पादन के तरीके के आवश्यक भाग के रूप में इस प्रकार देखे गए हैं कि आर्थिक प्रणाली के शुद्ध उत्पाद या अतिरेक में केवल लगान एवं शुद्ध लाभ महत्वपूर्ण बनते है ।

अन्न का वह भाग जिसका लगान की भाँति भूमिपति को भुगतान किया गया है, इसका उपयोग भूस्वामी द्वारा किया जाता है । पिछले वर्ष अन्न के उत्पादन का अतिरेक जिसमें लगान, मजदूरी बिल तथा बीज पूंजी का भुगतान किया है चालू वर्ष की शुद्ध बचत या लाभ कहलाता है । अन्न अर्थव्यवस्था के मॉडल की व्याख्या रिकार्डो ने अपनी पुस्तक Essay on Profits में की है ।


4. रिकार्डो का द्विक्षेत्र वृद्धि मॉडल (Ricardo’s Two Sector Growth Model):

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में गति के नियमों को प्रतिपादित करते हुए रिकार्डो ने कुल राष्ट्रीय उत्पाद या सकल आगम को दो भागों में बाँटा- (i) मजदूरी एवं (ii) शुद्ध आगम । शुद्ध आगम को लगान एवं लाभ के योग द्वारा परिभाषित किया गया । रिकार्डो के अनुसार- समाज के तीन वर्ग अपनी आय को भिन्न-भिन्न प्रकार से व्यय करते ।

अत: इसके मध्य कुल उत्पाद का विभाजन मजदूरी एवं शुद्ध आगमन के रूप में होता है जो अर्थव्यवस्था के विकास को संचालित करता है । वितरण के शेयर को नियामित करने वाले नियम के आधार पर रिकार्ड ने आर्थिक विकास का व्यापक प्रावैगिक मॉडल प्रतिपादित किया ।

इस प्रणाली में आर्थिक वृद्धि पूँजीपति के द्वारा लायी जाती है जो समाज के उत्पादक वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है । पूँजीपति बहुत कृपण होता है तथा अल्प उपभोग करता है । यह अपने लाभ के बड़े हिस्से को पूँजी निर्माण की ओर लगा देता है ।

रिकार्डो के मॉडल में पूँजी का संचय सकल विनियोग के रूप में होता है । यह उत्पादक श्रमिक को रोजगार प्रदान करता है । श्रम इस प्रकार एक अतिरेक उत्पादन करता है जिसे पूँजी स्टाक के स्वामियों द्वारा प्राप्त किया जाता है । इस अतिरेक का एक भाग लगान के रूप में भूस्वामी प्राप्त करता है ।

रिकार्डो के मॉडल में पूँजी का संचय सकल विनियोग के रूप में होता है । यह उत्पादक श्रमिक को रोजगार प्रदान करता है । श्रम इस प्रकार एक अतिरेक उत्पादन करता है जिसे पूँजी स्टाक के स्वामियों द्वारा प्राप्त किया जाता है । इस अतिरेक का एक भाग लगान के रूप में भूस्वामी प्राप्त करता है ।

रिकार्डो की प्रणाली में कुल उत्पादन को तीन भागों के अधीन रखा जा सकता है:

i. चक्रीय रूप से गति करती पूँजी का वह भाग जो मजदूरी कोष में क्य में रखा जाता है ।

ii. पूँजीपतियों को प्राप्त होने वाला लाभ जिसका प्रयोग वह पूँजीस्टाक में वृद्धि (शुद्ध विनियोग) के रूप में करते हैं ।

iii. लगान जिसे भूस्वामियों के अनुत्पादक वर्ग द्वारा प्राप्त किया जाता है तथा जो संचय हेतु उपलब्ध नहीं होता ।

रिकार्डो की प्रणाली में प्रतिष्ठित उत्पादन ऋण लगान सकल विनियोग या पूँजी संचय को प्रदर्शित करता है, जबकि यह मान्यता दी जाये कि सभी लाभों को बचाया व विनियोग किया जाता है तथा सभी मजदूरियाँ पुन: उत्पादक उपभोग हैं ।

रिकार्डो के मॉडल में आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया, उत्पादन ऋण लगान को सकल विनियोग में रूपान्तरित करती है । इसे पूँजी संचय की प्रक्रिया के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जिसके अधीन पूँजी वस्तुओं के स्टाक या स्थिर पूँजी में आरंभिक वृद्धि के साथ-साथ चक्रीय पूँजी में वृद्धि होती है ।

इसे उत्पादन की निरंतर अगली अवधियों में उत्पादक श्रम के रोजगार हेतु मजदूरी कोष के रूप में प्रयोग किया जाता है । यदि पूँजी संचय की प्रक्रिया में स्थिर पूँजी से चक्रीय पूँजी का अनुपात नहीं बदलता तब सकल विनियोग में फैलाव होगा । इस दशा में पूँजी संचय न केवल वस्तुओं के स्टाक में वृद्धि करता है बल्कि मजदूरी कोष में भी वृद्धि करता है जिससे श्रम की माँग बढ़ती है ।

जीवन निर्वाह या मजदूरी की प्राकृतिक दर पर श्रम की पूर्ति के दिए होने पर श्रम की अतिरिक्त माँग रोजगार में तब तक वृद्धि करेगी जब तक पूर्ण रोजगार की दशा प्राप्त नहीं हो जाती । यह स्वचालित रूप से होता है । एक बार पूर्ण रोजगार पर जब श्रम की पूर्ति बेलोचदार हो जाए तो पूँजी संचय से होने वाली वृद्धि मजदूरी की बाजार दर में इसकी प्राकृतिक दर से अधिक वृद्धि कर देगी ।

रिकार्डो का विश्वास था कि यह एक अस्थायी दशा है, क्योंकि बाजार मजदूरी में श्रम शक्ति के मूल्य से अधिक वृद्धि होने पर श्रम की पूर्ति में वृद्धि होती है जिससे मजदूरी की दर पुन: जीवन निर्वाह स्तर पर आ जाती है । पुन: वृद्धि की प्रक्रिया तब बढ़ेगी जब पूँजी संचय में वृद्धि होती दिखाई देगी । रिकार्डो के मॉडल में जनसंख्या वृद्धि को एक निर्भर चर माना गया है । अत: वृद्धि की प्रक्रिया को सीमित करने में कुछ बर्हिजात परिसीमाओं का प्रभाव होता है जो पूँजी पर प्राप्त होने वाले लाभ की दर में संकुचन करते हैं और इस प्रकार पूँजी संचय की प्रक्रिया मंद पड़ जाती है ।

रिकार्डो के विश्लेषण में यह परिसीमा भूमि की उत्पादकता को अभिव्यक्त करती है । पूँजी का संचय श्रम शक्ति की वृद्धि को अप्रत्यक्ष रूप से प्रेरणा प्रदान करता है । जनसंख्या में होने वाली वृद्धि से घटिया भूमि पर भी खेती की जाती है जिससे उपज में न्यून वृद्धि हो पाती है । इस प्रकार जीवन की आवश्यकताओं को बढ़ती हुई लागत पर प्राप्त करना ही संभव होता है ।

इससे श्रम शक्ति के मूल्य में वृद्धि होती है तथा इसके परिणामस्वरूप उत्पादन में लाभ का अनुपात गिरता जाता है । रिकार्डो के कथनानुसार जो भी कारक श्रमिक की मजदूरी में वृद्धि करता है वह लाभ में कर्म करने की प्रवृत्ति रखता है । स्पष्ट है उन्होंने कृषि में गिरते हुए प्रतिफल की व्याख्या की ।

भूमि की समान मात्रा या कम उपजाऊ भूमि में पूंजी एवं श्रम की मात्राएँ लगाने से गिरता हुआ प्रतिफल प्राप्त होता है इससे समय के साथ लगान वास्तविक एवं मौद्रिक रूप से बढ़ता है । मौद्रिक मजदूरी भी बढ़ती है । जब वास्तविक मजदूरी सीमान्त पर उत्पाद के समानुपात में बढ़ती है तब लाभ की दर गिरती है, इससे स्थिर अवस्था आ जाती है ।

इस प्रकार रिकार्डो ने प्रदर्शित किया कि भूमि की कमी किस प्रकार कृषि के विस्तार हेतु एक सीमा को तय करेगी जिसे सामान्य रूप से अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में भी देखा जा सकता है रिकार्डो का वृद्धि मॉडल उन अर्द्धविकसित देशों के सन्दर्भ में प्रासंगिक हो जाता है जहाँ कृषि उत्पादन वृद्धि की दर अर्थव्यवस्था की समूची वृद्धि के ऊपर एक सीमा तय कर देती है ।

आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation):

रिकार्डो का विकास विश्लेषण मुख्यत: दो आधारभूत सिद्धान्तों ह्रासमान प्रतिफल के नियम एवं जनसंख्या वृद्धि से संबंधित माल्थस की व्याख्या पर आधारित था । रिकार्डो के अनुसार- कृषि विकास एवं आर्थिक वृद्धि आपस में संबंधित है । उन्होंने स्पष्ट किया कि भूस्वामी कवि सुधारों का विरोध करते हैं, क्योंकि इससे उनके हित प्रभावित होते है । रिकार्डो के अनुसार- जनसंख्या की वृद्धि के साथ भूमि की उर्वरता में कमी आती है ।

रिकार्डो की व्याख्या के अनुसार- विकास मुख्यत: पूँजी संचय पर निर्भर करता है । पूँजी संचय के अधिक होने के लिए लाभ की अधिक तथा मजदूरी दरों का कम होना आवश्यक होता है । रिकार्डो ने कहा कि लाभों में वृद्धि करने के उद्देश्य से उन पर कर नहीं लगाए जाने चाहिएँ । रिकार्डो स्वतंत्र व्यापार नीति के समर्थक थे । उन्होंने देश की आर्थिक दशा में सुधार हेतु तुलात्मक लागत सिद्धान्त को अपनाये जाने पर जोर दिया ।

रिकार्डो की व्याख्या की सीमा यह है कि:

(i) उन्होंने विकास की प्रक्रिया में राज्य के योगदान को स्वीकार नहीं किया वरन अबंध नीति पर आस्था प्रकट की ।

(ii) शुम्पीटर के अनुसार- रिकार्डो का सिद्धान्त वस्तुत: वितरण का सिद्धान्त है जो श्रमिकों, भूस्वामियों एवं पूँजीपतियों को प्राप्त होने वाले अंश का विवेचन प्रस्तुत करता है । रिकार्डो की व्याख्या लगान, मजदूरी एवं लाभ के निर्धारण का पृथक उल्लेख करती है तथा वितरण का एक क्रियात्मक विश्लेषण प्रस्तुत नहीं करती ।

(iii) रिकार्डो आर्थिक विकास की प्रक्रिया में संस्थागत घटकों की भूमिका को ध्यान में नहीं रखते ।

(iv) रिकार्डो ने ब्याज की दर को एक स्वतन्त्र घटक मानते हुए इसे लाभों में सम्मिलित किया । इसके आधार पर वह पूंजीपति एवं उपक्रमी में भेद नहीं कर पाए ।

(v) रिकार्ड का यह कथन है कि अर्थव्यवस्था स्वचालित रूप से स्थिर अवस्था प्राप्त करती है सत्य नहीं, कयोंकि कोई भी अर्थव्यवस्था तब स्थिर अवस्था प्राप्त नहीं कर पाती जब लाभ बढ़ रहे हो उत्पादन बढ़ रहा हो तथा उत्पादन सम्भव हो रहा हो ।

(vi) रिकार्डों का विश्लेषण मुख्यत: पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल पर आधारित था । आधुनिक तकनीक द्वारा उत्पादन में होने वाली तीव्र वृद्धि की संभावनाओं पर उन्होंने विचार नहीं किया । रिकार्डों ने माना कि पूँजी एवं श्रम उत्पादन के स्थिर गुणक हैं जो सत्य नहीं है ।

(vii) हिक्स के अनुसार- रिकार्डो ने एक प्रावैगिक प्रक्रिया की व्याख्या के लिए स्वैतिक विधि का प्रयोग किया जो चक्रीय एवं पूँजी की समरूपता की मान्यता पर आधारित है । वास्तव में यह नियमित रूप से वृद्धि कर रही अर्थव्यवस्था का सम्यक विश्लेषण नहीं करता । यह स्थिर अवस्थाओं की स्थैतिक संतुलन की तुलना से संबंधित है, इसी कारण इसे प्रावैगिक प्रक्रिया की व्याख्या में प्रयुक्त किया जाना संभव नहीं बनता । रिकार्डो के विकास के संदर्भ में प्रभावपूर्ण माँग एवं मंदी तथा व्यापार चक्रों का विवेचन नहीं किया ।

उपर्युक्त सीमाओं के बावजूद रिकार्डो ने कृषि विकास के द्वारा होने वाले पूँजी संचय, बचत के विभिन्न स्रोतों एवं लाभ की दर में होने वाली वृद्धि की महत्ता को रेखाकिंत किया । उनके द्वारा प्रस्तुत ह्रासमान प्रतिफल एवं जनसंख्या विश्लेषण अर्द्धविकसित देशों हेतु उपयोगी है ।


5. चित्रात्मक निरूपण रिकार्डों सिद्धांत (Diagrammatic Representation of Ricardo’s Theory):

रिकार्डो की प्रणाली में मान्यता है कि- (1) प्रत्येक उद्योग में पूँजी व श्रम स्थिर अनुपातों में प्रयोग किए जाते हैं, (2) कृषि में ह्रासमान प्रतिफल लागू होता है ।

यदि मात्र एक वस्तु के उत्पादन की दशा को ध्यान में रखा जाए । तब चित्र 9.1 के अनुसार सीमान्त भौतिक उत्पाद की अनुसूची को M द्वारा तथा औसत उत्पाद को A द्वारा प्रदर्शित किया जाएगा ।

यदि

Q = कुल उत्पादन

N = रोजगार में लगे श्रम की कुल मात्रा

W = मजदूरी बिल

w = वास्तविक मजदूरी की दर

R = कुल लगान भुगतान

P = कुल लाभ

M = सीमान्त भौतिक उत्पाद

A = औसत भौतिक उत्पाद

तब ON मात्रा कुल श्रम रोजगार से कुल उत्पाद Q = QERN या OCDN

कुल ब्याज भुगतान R = BER या BCDR

यदि जीवन निर्वाह मजदूरी दर (w) OW हो तब,

कुल मजदूरी बिल W = OWSN

अवशेष WBRS = OERN – BER – OWSN

= OCDN – BCDR – OWSN

मजदूरी एवं लाभों के सापेक्षिक शेयरों में होने वाले परिवर्तन को चित्र 9.2 से प्रदर्शित किया गया है ।

यदि रोजगार में लगे श्रम की मात्रा N से बढ़ाकर N1 कर दी जाये तो मजदूरी बिल OWSN से बढ़कर OWS1N1 हो जाता है ।

अत: मजदूरी बिल की वृद्धि OWS1N – OWSN = NSS1N1

लाभ एवं लगान के शेयर किस प्रकार व्यवहार करेंगे यह उत्पादन की लोच पर निर्भर करेगा जब रोजगार बढ़ रहा हो ।

उत्पादकता की लोच = M/A दर

इसका मूल्य उत्पादन फलन के स्वरूप पर निर्भर करेगा ।

उत्पादन फलन के स्वरूप के सम्बन्ध में यह माना गया है कि वह निम्न दो सम्भावनाओं को जन्म देगा:

(1) रोजगार में होने वाले परिवर्तनों से उत्पादकता की लोच पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।

(2) रोजगार में होने वाले परिवर्तनों से उत्पादकता की लोच गिरती है ।

पहली सम्भावना- पहली सम्भावना स्थिर लगान अंश को सूचित करेगी इस दशा में मजदूरी का अंश बढ़ेगा तथा लाभ का अंश गिरेगा ।

दूसरी सम्भावना- दूसरी सम्भावना में सापेक्षिक लगान एवं मजदूरी में वृद्धि होगी तथा लाभ का अंश गिरेगा ।

चित्र 9.2 में रोजगार में वृद्धि होने पर उत्पादकता की लोच गिरती है तथा लगान एवं मजदूरी के अंश बढ़ते हैं ।

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यह माना गया है कि:

(i) उत्पादन की भौतिक सीमाएँ है ।

(ii) तकनीक का स्तर दिया हुआ है ।

(iii) वास्तविक मजदूरी की दर स्थिर है ।

रिकार्डो का सिद्धान्त अब पूर्वानुमान करता है कि:

(1) रोजगार के बढ़ते स्तरों के साथ कुल उत्पाद में सापेक्षिक मजदूरी का बढ़ता है क्योंकि ह्रासमान प्रतिफल की दशा विद्यमान होती है ।

(2) मजदूरी का अंश बढ़ने पर लाभ का अंश गिरता है ।

(3) कुल उत्पादन के एक अनुपात के रूप में लगान या तो स्थिर रहता है या बढ़ता है । यह इस बात पर निर्भर करता है कि सीमान्त एवं औसत उत्पाद के मध्य का अनुपात स्थिर है या गिर रहा है ।

लाभ, मजदूरी व लगान के अंशों या शेयर के व्यवहार के इस पूर्वानुमान में रिकार्डो ने अनुभव किया कि तकनीकी प्रगति गिरते हुए प्रतिफलों की दशा को ठीक कर देगी परन्तु यह एक अस्थायी दशा होगी ।

प्रगति आरम्भ में लाभ के अंश को बढ़ाती है, लेकिन इससे पूँजी का संचय भी बढ़ेगा जो जनसंख्या की वृद्धि को प्रेरित करेगा । जनसंख्या में होने वाली वृद्धि को देखते हुए तब खेती की सीमा में विस्तार करना जरूरी होगा ।

अत: तकनीकी प्रगति ह्रासमान प्रतिफल को पूरी तरह प्रभावित करने में समर्थ नहीं होती जिससे अन्तत: लाभ एवं पूँजी संचय पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा । वृद्धि की दरें गिरते हुए शून्य हो जायेंगी । यह स्थिर अवस्था है ।