अंतर्जात विकास सिद्धांत | Read this article in Hindi to learn about the endogenous growth theory.

आर्थिक विश्लेषण में बचतों का व्यवहार एवं कुशलता ने हमेशा एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है । एडम स्मिथ के समय से आगे 1950 के दशक तक जब रोबर्ट सोलोव ने वृद्धि के सिद्धान्त में क्रांतिकारी परिवर्तन किया और यह प्रदर्शित किया कि दीर्घकालीन प्रति व्यक्ति शुद्धि अंततः सभी प्रकार के प्रभावों से प्रतिरक्षित होती है सिवाय तकनीकी प्रगति के जिसे आर्थिक दृष्टि से एक बर्हिजात मात्रा की भांति देखा गया और फिर, 1980 के दशक में वृद्धि का विश्लेषण पुन: इस खोज से क्रांति के सकेत देने लगा कि तकनीकी परिवर्तन एवं आर्थिक वृद्धि दोनों ही अन्तर्जात हैं ।

आर्थिक वृद्धि के विश्लेषण में होने वाले इन नवीन परिवर्तनों को हम आर्थिक वृद्धि के दो नए सिद्धान्तों के द्वारा समझते हैं:

1. अर्न्तजात वृद्धि का नया सिद्धांत

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2. बर्हिजात वृद्धि का नवक्लासिकल सिद्धांत

वृद्धि के सिद्धान्तों में पहली क्रांति एडम स्मिथ व उसके अनुयायियों के द्वारा तथा प्रो० सेमुअलसन की पुस्तक Foundation of Economic Analysis (1948) व हैरोड व डोमर के गणितीय विश्लेषण द्वारा संभव हुई । दूसरी क्रांति थी नयक्लासिकल मॉडल जिसमें राबर्ट सोलोव ने सरल एवं अभिनव परिवर्तन के संकेत दिये ।

सोलोव ने माना कि उत्पादन श्रम व पूंजी के द्वारा प्रतिफल के स्थिर नियम के अधीन होता है, इस प्रकार कि आदाओं को दुगुना करने से प्रदा भी दुगुनी हो जाती है । इस प्रकार के उत्पादन फलन की अर्थशास्त्र में लम्बी परम्परा रही है ।

आगे फिर माना कि, दीर्घकाल में पूँजी उसी समान दर से बढती है जितना कि उत्पादन । अब यदि हम तकनीकी प्रगति की दृष्टि से विचार करें तो उत्पादन एवं पूँजी अवश्य हो साथ-साथ उस समान दर से बढ़ेंगे जिस दर से श्रम में वृद्धि हो रही है ।

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अब, जनसंख्या वृद्धि आधारभूत रूप से एक जनांकिकीय प्रवृति है, इसलिए, आर्थिक दृष्टि से यह बर्हिजात है । इससे यह अभिप्राय निकलता है कि आर्थिक वृद्धि भी बर्हिजात है । यही बात हैरोड ने जानी ।

उन्होंने वृद्धि की आवश्यक दर या वांछित दर Gw (जो बचत, कुशलता व ह्रासपर निर्भर करती है) तथा वृद्धि की प्राकृतिक दर Gn जो जनसंख्या वृद्धि पर निर्भर करती है) के मध्य भेद किया तथा यह बताया कि ऐसी कोई स्वचालित क्रियाविधि नहीं होती जिससे यह गारंटी दी जा सके कि यह दोनों विभिन्न दिशाओं से आकर एक बिंदु पर मिलें या अभिसरित हों । विशेष रूप से यदि Gw, Gn के साथ-साथ चल पाने में असफल रहती है तो बेरोजगारी अवश्य फैलेगी ।

आर्थिक वृद्धि तब बर्हिजात बनी रहेगी जब तकनीकी परिवर्तनों को ध्यान में रखा जाय । उदाहरण के लिए इसे बढती हुई श्रम उत्पादकता से समझा जा सकता है जो एक बर्हिजात दी हुई दर के द्वारा वृद्धि करती है । ऐसे में स्थिर प्रतिफल का उत्पादन फलन जो उत्पादन के श्रम व पूंजी से सम्बन्ध को प्रकट करता है, निरंतर रूप से बदलेगा उस दर पर, जिसमें तकनीकी प्रगति होती है । कारण यह है कि समान श्रम एवं पूंजी-समय के साथ-साथ अधिक से अधिक उत्पादन करेंगे ।

इस दशा में श्रम व पूंजी दीर्घकाल में उस दर पर अवश्य बढेंगे जो श्रम-शक्ति की वृद्धि दर (या जनसंख्या, यदि श्रम-शक्ति सहभागिता दर स्थित हो) एवं तकनीकी प्रगति की दर के योग के बराबर होगा । इस प्रकार सोलोव ने स्पष्ट किया कि बचत का व्यवहार दीर्घकालीन वृद्धि के लिए सार्थक नहीं होता और न ही कुशलता का, जब तक कि यह तकनीक से सम्बन्धित न हो ।

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अब जनसंख्या और तकनीकी प्रगति को शुद्ध अर्थशास्त्र की परिधि से बाहर लिया जाता रहा इसलिए यह आर्थिक नीति की पहुंच से भी बाहर हो जाती है । इसलिए आर्थिक दृष्टि से दीर्घकाल में अपार्थक वृद्धि को बर्हिजात माना गया और इसीलिए यह आर्थिक नीति (भले ही वह अच्छी हो या बुरी) से प्रतिरक्षित रहती है । इतना होने के बाद भी सोलोव के लेखन में बचत और कुशलता को दीर्घकाल में महत्वपूर्ण भूमिका मिली ।

सोलोव का योगदान जो नवक्लासिकल मॉडल के रूप में जाना जाता है, आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण साहित्य के रूप में सामने आया । 1960 के दशक में नवक्लासिकल मॉडल के व्यापक विस्तार विभिन्न दिशाओं में हुए । 1970 के दशक में आर्थिक वृद्धि को महत्वहीन बनाकर सीमित कर दिया गया जब व्यापक अर्थशास्त्रियों ने अपना ध्यान अल्पकालीन नीतियों व समस्याओं पर केन्द्रित किया ।

युनाइटेड स्टेटस में विशेष रूप से 1970 व 1980 के दशक में की जा रही व्यापक आर्थिक शोध में अधिकांशतः, यह कहा गया है कि न केवल आर्थिक वृद्धि आर्थिक नीति को प्रतिरक्षित करती है जैसा कि सोलोव ने बताया था बल्कि अल्पकाल में बेरोजगारी भी मौद्रिक और राजकोषीय नीति को प्रतिरक्षित कर देती है, क्योंकि निजी आर्थिक एजेंट जिनके पास विवेकशील व समझदारी की आशाएँ होती है आवश्यक कदम उठा कर, नीतियों के द्वारा सभी सरकारी प्रयासों को बेरोजगारी दूर करने या उत्पादन बढाने हेतु निषभावी कर देते है ।

यह खोज कि, अंतत; दीर्घकालीन आर्थिक वृद्धि निर्भर करती है जनसंख्या वृद्धि और तकनीकी वृद्धि पर तथा अन्य किसी पर नहीं, ने वृद्धि पर हैरोड-डोमर के विचार के सामने सकट खड़ा कर दिया । यही नहीं सारी प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री, एडम स्मिथ से अलफ्रेड मार्शल और तदन्तर शुम्पीटर व कींज के विश्लेषणों पर भी यह सदेह उठ खडा हुआ ।

सोलोव ने हैरोड-डोमर मॉडल को इस स्थिति में डाल दिया कि यह एक अकेले चर, वृद्धि को, मात्र दो भिन्न समीकरणों के द्वारा निर्दिष्ट करता है । इनमें पहला समीकरण वृद्धि को बचत, कुशलता तथा ह्रासके द्वारा तथा दूसरा जनसंख्या वृद्धि व तकनीकी प्रगति के द्वारा ।

गणितीय कथन के द्वारा कहें तो यह पाँच स्थिर प्राचल मिल अन्तर्जात रूप से बने है, इस प्रकार कि दो समीकरण दो चरों को निर्धारित करते हैं जिनमें एक वृद्धि है तो दूसरा अन्य पाँचों में से एक । इस प्रकार के अति-निर्दिष्टीकरण की समस्या को सोलोव ने पूंजी-उत्पाद अनुपात के द्वारा सुलझाया ।

सोलोव की यह खूबी थी कि उन्होंने अपने मॉडल में पूंजी-उत्पादन अनुपात की इस चतुराई के साथ संरचना की कि यह प्रावैगिक क्रियाविधि या संचालन के साध स्वयं ही धीरे-धीरे समायोजित हो जाता था ।

साथ ही हैरोड-डोमर के मॉडल का दीर्घ काल में उल्लंघन या उपेक्षा भी नहीं करता था, तब भी जब वृद्धि बर्हिजात हो । जबकि निकोलस कालडोर ने बचत दर को अन्तर्जात लेते हुए ब्रानसन ने जनसंख्या वृद्धि को तथा ऐरो, रोमर व ग्रासमैन व हैल्पमैन ने तकनीकी वृद्धि को अन्तर्जात लेते हुए विश्लेषण प्रस्तुत किये ।

तीसरी क्रांति. अन्तर्जात वृद्धि (The Third Revolution : Endogenous Growth):

1980 के दशक के बाल। के साथ ही कई अर्थशास्त्री इस बात से असंतुष्ट थे कि नवप्रतिष्ठित मॉडल कुछ ज्वलंत प्रश्नों के स्तर देने में असमर्थ हैं जो आर्थिक वृद्धि से सम्बन्धित है । इनमें सबसे पहले तो कुछ अर्थशास्त्रियों को यह सदेह हुआ कि क्या आर्थिक दृष्टि से तकनीकी परिवर्तनों को बर्हिजात मानना विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता या समझदारी है ?

यह सोचा गया कि तकनीकी परिवर्तनों की गति या इसका अनुसरण निश्चित रूप से या बहुत निकट रूप से एक आर्थिक स्पष्टीकरण या विवेचना से जुड़ा होना चाहिए ।

कुछ अर्थशास्त्री नवप्रतिष्ठित मॉडल में दीर्घकालीन आर्थिक वृद्धि की बार्हिजात प्रवृत्ति को लेकर दुविधा में थे । उनका प्रश्न यह था कि यदि प्रति व्यक्ति उत्पादन उस दर से बढता है जो पूरी तरह से, वस्तुतः तकनीकी प्रगति की दर के बराबर होता है तो दीर्घकाल में विभिन्न देशों की वृद्धि की अनुकृति असमान रूप से भिन्न-भिन्न क्यों होती है ?

क्या तकनीकी प्रगति विभिन्न देशों में इतनी अधिक भिन्नता रखती है ? क्यों वृद्धि अन्य देशों में समान नहीं रह पाती ? क्या अर्थशास्त्र में इन प्रश्नों के उत्तर दे पाना नामुमकिन है ? इसके साथ ही नवक्लासिकल मॉडल हमें सापेक्षिक वृद्धि कार्यक्रमों के बारे में क्या बताता है । विशेष रूप से यह प्रश्न भी उठाया गया कि क्या निर्धन देश धनी देशों से अधिक तेजी से वृद्धि कर सकते है इसका अनुभव सिद्ध प्रमाण क्या है ?

हालांकि यह मुद्दे नवक्लासिकल विश्लेषण में पूर्णत: उपेक्षित नहीं थे । साइमन कुजनेट्‌स, हैलिस बी॰ चेनरी जैसे अर्थशास्त्रियों ने विकासशील देशों में वृद्धि की अनुकृतियों पर काफी शोध की । आर्थर लेविस ने अमेरिकन इकोनोमिक एसोसिएशन के अध्यक्षीय भाषण में 1983 में स्पष्ट रूप से कहा कि ‘विकास अर्थशास्त्र अपने बहुत भव्य व शानदार रूप में न सही, पर यह जीवित है व ठीक ठाक है’ ।

1980 के दशक में और भी नए प्रश्न उठे जिससे आर्थिक वृद्धि के बारे में नयी सोच पैदा हुई । कैनेथ ऐरो ने ‘करने के द्वारा सीखने की आर्थिक संलिप्तता’ नामक शोध-पत्र में अन्तर्जात वृद्धि पर सैद्धान्तिक विश्लेषण प्रस्तुत किया ।

रोमर ने बढ़ते प्रतिफल व दीर्घकालीन वृद्धि पर, राबर्ट लुकास ने आर्थिक विकास की क्रियाविधि व प्रक्रिया पर औसमैन व हेल्पमेन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में नवप्रवर्तन व वृद्धि पर तथा फिट्‌जगेराल्ड स्कॉट ने आर्थिक वृद्धि पर एक नयी दृष्टि जैसे विश्लेषण प्रस्तुत किये ।

और इस प्रकार एक नयी विचारधारा, नयी दृष्टि ‘वृद्धि के एक नए सिद्धान्त’ के रूप में सामने आई । इसका मूल विचार बहुत सरल था कि टेक्नोलोजी संभावित रूप से बर्हिजात नहीं है अधिक संभावना यह है कि यह आर्थिक घटकों पर निर्भर करती है उदाहरणार्थ, इसमें शामिल है श्रमिकों को उपलब्ध पूंजी की मात्रा, जो पूँजी/श्रम अनुपात की अधिकता से सम्बन्धित है ।

जितनी अधिक पूंजी श्रमिकों, कामगारों व खास ढंग से कार्य करने वाले व्यक्तियों को उपलब्ध होगी, उतनी अधिक सुविधाएँ कम्प्यूटर व अन्य तकनीकी यंत्र उपकरण उनके पास होंगे व उतनी ही अधिक कुशलता से वह पूंजी का प्रयोग कर पाएँगे ।

वह कार्य करते हुऐ सीखेंगे यदि विशेष रूप से पूंजी श्रम अनुपात पर टेक्नोलोजी की निर्भरता का वर्णन किया जाए और बिना तर्क नियम व योजना पर आधारित रह इसे लिया जाये तो पाल रोमर के अनुसार पूँजी/उत्पादन अनुपात अंततः स्थिर हो जाएगा, जैसा हैरोड-डोमर ने माना था ।

इस कारण से आर्थिक वृद्धि बचत, कुशलता व ह्रास में होने वाले परिवर्तनों से मुक्त हो जाएगी, यहां तक कि दीर्घकाल में भी । इस प्रकार अन्तर्जात वृद्धि आर्थिक वृद्धि को अन्तर्जात ही बनाएगी । इस प्रकार अन्तर्जात वृद्धि ने सभी खिडकियों को पूरी तरह खुला रखा ।

अन्तर्जात वृद्धि एवं तकनीक (Endogenous Growth and Technology):

अन्तर्जात वृद्धि की संलिप्तता को चित्र 66.1 की सहायता से स्पष्ट किया जा रहा है जहाँ हम अन्तर्जात वृद्धि के अधीन आर्थिक वृद्धि एवं तकनीकी प्रगति का निर्धारण करते है । चित्र में Y-अक्ष में आर्थिक वृद्धि की दर (अर्थात् राष्ट्रीय आर्थिक उत्पादन की वृद्धि दर तथा x-अक्ष में तकनीकी प्रगति (प्रति व्यक्ति उत्पादन में परिवर्तन) की दर को प्रदर्शित कर रहे है ।

वृद्धि की रेखा G उत्पादन की वृद्धि दर है जो तीन मुख्य चरों- बचत की दर, कुशलता एवं ह्रास को (ठीक हैरोड-डोमर मॉडल की तरह) दिखाती है । G रेखा X-अक्ष के समान्तर है, क्योंकि अन्तर्जात वृद्धि तकनीकी प्रगति पर आश्रित या निर्भर नहीं है । 45° रेखा T टेक्नोलोजी को प्रदर्शित करती है जो अन्तर्जात वृद्धि मॉडल का मुख्य गुण है । तकनीकी प्रगति से आशय है, करने के द्वारा सीखने से प्रति व्यक्ति उत्पादन में होने वाली वृद्धि । अतः जब भी कभी वृद्धि कम या अधिक होती है, तकनीकी प्रगति की चाल या गति बदलती है ।

चित्र में बिंदु B पर T रेखा Y-अक्ष को काटती है जो जनसंख्या वृद्धि को सूचित करता है । G व T रेखाएँ एक दूसरे को बिंदु A पर काटती है जो आर्थिक वृद्धि की दर का दीर्घकालीन अधिकतम मूल्य तथा तकनीकी प्रगति की दर है । इस बिंदु पर आर्थिक वृद्धि OC दूरी के द्वारा दिखाई गई है जिसमें OB जनसंख्या वृद्धि के कारण तथा BC (= CA) तकनीकी प्रगति के द्वारा होती है ।

आर्थिक वृद्धि एवं तकनीकी प्रगति की दर (जो दोनों ही अन्तर्जात है) पर कुछ बर्हिजात घटनाओं के प्रभाव देखें:

परीक्षण 1 : बचत की दर (Experiment 1 : The Saving Rate):

बचत की दर के बढ़ने से उपभोक्ता अपने उपभोग में कमी करते हुए भावी बचतों को बढाने के लिए प्रोत्साहित होते है । वैकल्पिक रूप से बचत दर तब भी बढती है जब सरकार राष्ट्रीय बचतों को सरकारी व्यय में कमी या करों में वृद्धि (जिससे वृद्धि को रोकने वाली वक्रताएँ उत्पन्न न हों) करें, बचत दर में वृद्धि होने से G रेखा G’ हो जाती है व संतुलन बिंदु A से उत्तर पूर्व हट बिंदु B पर स्थापित होता है जहाँ G’ रेखा को T रेखा अन्तर्छेदित करती है । तकनीकी प्रगति के सापेक्ष आर्थिक वृद्धि तेजी से बढ़ती है ।

परिभाषानुसार जनसंख्या वृद्धि में परिवर्तन नहीं होता अतः उत्पादन वृद्धि के साथ प्रति व्यक्ति उत्पादन भी बढता है । आर्थिक वृद्धि इस कारण होती है कि अधिक पूंजी का संचय किया जाता है तथा करने के द्वारा सीखने की प्रक्रिया में तकनीकी प्रगति त्वरित होती है । अधिक पूंजी के साथ कार्य करने में व्यक्ति यह जानते हैं कि पूंजी का अधिक समर्थ प्रयोग कैसे किया जाए ।

प्रश्न यह है कि अर्थव्यवस्था A से B की ओर कितनी तेजी से गति करेगी । अन्तर्जात वृद्धि सिद्धान्त इस महत्वपूर्ण प्रश्न का कोई उत्तर नहीं देता, क्योंकि सिद्धान्त में कोई प्रावैगिक समायोजन शामिल नहीं होते ।

परीक्षण 2 : कुशलता (Experiment 2 : Efficiency):

प्रश्न यह है कि तब क्या होगा जब कुशलता बढ़े ? यहाँ कुशलता से अभिप्राय उत्पादन की उस मात्रा से है जो पूँजी के विद्यमान स्टाक का प्रयोग करने से उत्पादित होती है । कुशलता कई कारणों से उत्पन्न होती है जैसे विदेश व्यापार का उदारीकरण जिसे एडम स्मिथ व डेविड रिकार्डों के समय से महत्वपूर्ण माना जाता रहा ।

अधिक व बेहतर शिक्षा जो एलफ्रेड मार्शल के अनुसार कुशलता बढ़ाती है । इस का स्रोत चाहे कुछ भी हो, कुशलता की G रेखा को G’ तक बढाती है (जैसा चित्र 66.2 में दिखाया गया है) साथ ही आर्थिक वृद्धि व तकनीकी प्रगति भी होती है ।

बचत व कुशलता का अन्तर्छेदन यह बताता है कि बचतों के एक दिए स्तर पर, बढी कुशलता और अधिक वृद्धि को तथा कुशलता के एक दिए स्तर पर बढी हुई बचतों को और अधिक वृद्धि की ओर ले जाती है । इस कारण, बढी बचत व बढी कुशलता गुणात्मक रूप से आर्थिक वृद्धि व तकनीकी प्रगति पर समान प्रभाव डालती है ।

परीक्षण 3 : ह्रास (Experiment 3 : Depreciation):

प्रश्न यह है कि यदि पूंजी पहले की तुलना में अधिक तेजी से ह्रास करें तब क्या होगा ? ऐसा तब होगा जब गुण में ह्रास दिखेगा अर्थात् विनियोग की लाभदायकता कम होगी यदि पूंजी का काफी अधिक ह्रास हो तो पूंजी का स्टाक गिरेगा, इससे उत्पादन कम होगा तथा आर्थिक वृद्धि ऋणात्मक हो जाएगी ।

कई देशों में लंबी समय अवधियों तक ऋणात्मक वृद्धि दिखाई दी है । विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 1980 से 1990 में 12 देशों में ऋणात्मक वृद्धि उत्पादन में देखी गई ।

चित्र 66.3 में दिखाया गया है कि जब पूंजी स्टाक में अधिक तेजी से ह्रास होता है तब रेखा नीचे की ओर विवर्तित होकर G’ हो जाती है तथा वृद्धि का संतुलन A बिंदु से दक्षिण-पश्चिम की ओर खिसक कर B बिंदु पर आ जाता है । आर्थिक वृद्धि धीमी हो जाती है व तकनीकी प्रगति भी, क्योंकि यह प्रति व्यक्ति वृद्धि को समाहित करती है । संक्षेप में अधिक ह्रास का आशय है कम वृद्धि ।

परीक्षण 4 : जनसंख्या वृद्धि (Experiment 4 : Population Growth):

प्रश्न यह है कि एक देश जनसंख्या में वृद्धि होने पर किस प्रकार का प्रत्युत्तर देता है ? चित्र 66.4 में T वक्र बाई ओर बढकर T’ होता है, क्योंकि, अधिक जनसंख्या वृद्धि से उत्पादन वृद्धि की एक दी हुई दर, पहले की तुलना में कम तकनीकी वृद्धि से संगति रखती है ।

नयी रेखा T’ y-अक्ष को बिंदु I पर काटती है जो H बिंदु से ऊपर है । जनसंख्या वृद्धि की दर OH से बढ्‌कर OI होती है पर आर्थिक वृद्धि अपरिवर्तित ही रहती है, क्योंकि G रेखा में कोई गति नहीं होती (यह तो केवल बचत दर, कुशलता व ह्रास में परिवर्तन के प्रत्युत्तर से बदलती है) अब प्रति व्यक्ति उत्पादन की वृद्धि दर HJ से गिरकर HI हो जाती है । ठीक यही बात माल्थस ने भी कही थी कि सम्पत्ति में होने वाली धीमी वृद्धि तब भी संभव है जब जनसंख्या में होने वाली प्रेरक वृद्धि बहुत अधिक हो ।

प्रति व्यक्ति आय के स्तर के साथ अन्तर्जात वृद्धि (The Level of Income Per Head with Endogeneous Growth):

मुख्यतः अब हम आर्थिक वृद्धि के फलों या परिणामों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जो अंतत: आय के स्तर एवं आर्थिक पहुंच के भीतर पाए जा सकने वाले जीवन-स्तर से सम्बन्धित हैं । अर्थात् हम यह जानना चाहते हैं कि अन्तर्जात वृद्धि का सिद्धान्त हमें दीर्घकाल में प्रति व्यक्ति उत्पादन के स्तर के बारे में क्या जानकारी देता है ।

चित्र 66.5 में प्रति व्यक्ति उत्पादन को Y-अक्ष में तथा प्रति श्रमिक पूंजी को X अक्ष में प्रदर्शित करता है । चित्र में दो अनुसूचियाँ हैं । सीधी रेखा ट एक स्थिर पूँजी/उत्पादन अनुपात को प्रदर्शित करती है जो इस मान्यता का फल है कि वास्तविक ब्याज की दर हित स्थिर है ।

C रेखा तथा x-अक्ष की क्षैतिज रेखा के मध्य का कोण, C रेखा के ढ़ाल को बताता है । जब तक सकल वास्तविक ब्याज की दर (अर्थात् वास्तविक ब्याज की दर धन ह्रास जो कि पूंजी की लागत का भाग है नहीं बदलता तथा साथ ही राष्ट्रीय आय में पूंजी का अंश नहीं बदलता, जो हम मानकर चल रहे हैं कि लगातार स्थिर रहता है) नहीं बदलती ।

यदि ब्याज की दर या ह्रास बढ़ता है तो प्रयोग की दृष्टि से पूंजी अधिक महंगी हो जाएगी जिससे पूंजी उत्पादन अनुपात में कमी होगी तब C रेखा घड़ी की विपरीत दिशा में गति करेगी तथा X-अक्ष की क्षैतिज रेखा से इसका कोण बढ़ जाएगा ।

चित्र 66.5 में P वक्र उत्पादन फलन है जो यह प्रदर्शित करता है कि किस प्रकार प्रति व्यक्ति उत्पादन बदलता है प्रति श्रमिक पूंजी के प्रति । उत्पादन फलन पूँजी के ह्रासमान प्रतिफल की दशा को ध्यान में रख वक्राकार खींचा गया है जो बताता है कि प्रति श्रमिक पूंजी की मात्रा को दुगुना करने से प्रति श्रमिक उत्पादन दुगुने से कम होता है ।

P व C वक्र का अन्तर्छेदन बिंदु e पर प्रति व्यक्ति उत्पादन OH तथा प्रति श्रमिक संतुलन Cw, के साम्य को प्रदर्शित करता है । वास्तव में यह अल्पकालीन संतुलन मूल्य को भी प्रदर्शित करेगा, क्योंकि कोई सन्निहित प्रावैगिक समायोजन प्रक्रिया यहाँ शामिल नहीं है ।

लेकिन यह एक स्थैतिक संतुलन की दशा नहीं है, क्योंकि यह समय के साथ बदलेगी । जैसे-जैसे तकनीकी परिवर्तन होंगे वैसे-वैसे उत्पादन फलन ऊपर की ओर गति करेगा । यह बताएगा कि X-अक्ष में प्रति श्रमिक पूंजी व Y-अक्ष में प्रति श्रमिक उत्पादन समय के साथ बदलता है ।

अब हम चित्र 66.5 के साथ कुछ परीक्षण करते हैं:

 

परीक्षण 1 : वास्तविक ब्याज की दर (Experiment 1 : The Real Interest Rate):

माना ब्याज की दर बढ़ती है तथा माना कि कुछ समय के लिए कोई तकनीकी प्रगति नहीं होती । एक खुली अर्थव्यवस्था में शुद्ध व्याज की दरें तब बढ़ सकती है जब विश्व बाजार में व्याज की दरें बढ सकती है जब विश्व बाजार में ब्याज की दरें बढ़ें या सरकार घरेलू स्तर पर संरक्षित मौद्रिक नीति का अनुसरण करें ।

किसी भी दशा में ब्याज की दर में होने वाली वृद्धि पूंजी उत्पादन अनुपात को कम करेगी व C रेखा घड़ी की विपरीत दिशा में C’ हो जाएगी । अतः उत्पादन फलन से इसका अन्तर्छेदन बिंदु A से खिसक कर B बिंदु पर होगा ।

नए संतुलन बिंदु पर उत्पादन OH से बढ़कर OH1 हो जाता है ब्याज की दर में होने वाली वृद्धि से पूँजी/उत्पादन अनुपात गिरता है तथा कुशलता बढती है इसलिए आर्थिक वृद्धि होती है जैसा कि चित्र 66.2 में दिखाया गया था ।

अत: चित्र 66.6 में दिखाया गया उत्पादन फलन पहले की तुलना में अब तेजी से ऊपर चढेगा । उच्च ब्याज दर के वृद्धि पर धनात्मक प्रभाव लंबे समय तक बने रहेंगे, यदि ब्याज दर में होने वाली वृद्धि बचतों की दर में वृद्धि करें ।

परीक्षण 2 : ह्रास (Experiment 2 : Depreciation):

अब माना कि ह्रास बढ़ता है । इससे पूंजी की लागत बढ़ेगी, इसका वही गुणात्मक प्रभाव होगा जैसा ब्याज दर बढने पर होता है अर्थात् पूंजी उत्पादन अनुपात गिरेगा और पूंजी प्रति श्रमिक व उत्पादन प्रति व्यक्ति दोनों हारेंगे ।

बढे ह्रास से विनियोग निर्णयों की गुणवत्ता एवं लाभ प्रदान करने की कुशलता कम होगी । विनियोग की गुणवत्ता के गिरने से चित्र 66.6 की भाँति न केवल प्रति व्यक्ति उत्पादन का स्तर गिरेगा बल्कि चित्र 66.3 की भाँति वृद्धि की दर भी गिरेगी । यहाँ हम एक ऐसी दशा देख रहे हैं जहाँ प्रति व्यक्ति उत्पादन की वृद्धि का स्तर एवं दर समान दिशा में चल रहे हैं ।

परीक्षण 3 : कुशलता (Efficiency):

माना स्थैतिक कुशलता बढ़ती है । इससे अभिप्राय है कि प्रति श्रमिक पूंजी की मात्रा के बढने पर प्रति व्यक्ति उत्पादन का स्तर बढ़ता है । अतः उत्पादन फलन चित्र 66.7 की भाँति P से P’ हो जाएगा ।

इससे पूंजी प्रति श्रमिक Cw से बढ Cw1 तथा उत्पादन प्रति श्रमिक OH से बढ OH1 हो जाता है । लेकिन पूँजी-उत्पादन अनुपात अपरिवर्तित रहता है, क्योंकि C रेखा में कोई परिवर्तन नहीं होता ।

प्रति व्यक्ति आर्थिक वृद्धि अवश्य ही अस्थायी रूप से बढ़ कर बिंदु न से 8 की ओर गति करेगी । यदि पूर्व चित्र 66.2 को ध्यान में रखें तो हमें ज्ञात है कि बढती कुशलता से दीर्घ-कालीन वृद्धि बढ़ती है ।

इससे आशय है कि चित्र 66.7 में उत्पादन फलन और अधिक तेजी के साथ ऊपर बढेगा । इस प्रकार हमने एक ऐसी दशा को देखा जिसमें एक वाह्य घटना ने प्रति व्यक्ति उत्पादन के स्तर व दर में वृद्धि की अर्थात् बढ़ती हुई स्थैतिक कुशलता से प्रावैगिक कुशलता में भी वृद्धि होती है ।

हमें यह ध्यान रखना होगा कि ऐसा हमेशा नहीं होता, कदाचित बढ़ती हुई कुशलता उत्पादन के स्तर को कम भी करती है । व्यापार के उदारीकरण से विदेशी प्रतिस्पर्द्धा के बढ़ने पर श्रमिक अस्थायी रूप से अपनी सही जगह या पद से बाहर भी निकाल दिए जाते है या फिर ऐसे उपक्रम जो पहले राज्य के स्वामित्व में थे और अब निजीकरण के नये स्वामित्व के प्रबंध में है । यद्यपि ऐसे में दीर्घकाल में उत्पादन की अधिक वृद्धि का आधार सुनिश्चित होता है ।

नवप्रतिष्ठित मॉडल में किए गए परीक्षणों के परिणामों का सार (Summary of the Result of Experiments on the Neoclassical Model):

अब हम नवप्रतिष्ठित मॉडल में किए गए पाँचों परीक्षणों के परिणामों का सार संक्षेप निम्न प्रकार करते हैं:

1. बचतों की दर में होने वाली एक वृद्धि से बचत दर की वृद्धि चित्र 66.9 द्वारा प्रदर्शित है ।

2. स्थैतिक कुशलता में होने वाली वृद्धि से प्रति व्यक्ति उत्पादन में वृद्धि चित्र 66.9 द्वारा प्रदर्शित है ।

3. बस्ती हुई ह्रास की दशा प्रति व्यक्ति उत्पादन को गिराता है चित्र 66.11 द्वारा प्रदर्शित है ।

4. बढती हुई जनसंख्या वृद्धि से प्रति व्यक्ति उत्पादन गिरता है चित्र 66.11 द्वारा प्रदर्शित है ।

5. प्रावैगिक कुशलता में होने वाली वृद्धि से प्रति व्यक्ति उत्पादन में वृद्धि होती है चित्र 66.12 द्वारा प्रदर्शित है ।

इन निष्कर्षों से स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि:

प्रति व्यक्ति उत्पादन का दीर्घकालीन संतुलन स्तर निर्भर करता है बचत दर, स्थैतिक कुशलता, ह्रास, एवं जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ प्रावैगिक कुशलता पर । तब भी, जबकि प्रति व्यक्ति उत्पादन में होने वाली वृद्धि की दीर्घकालीन संतुलन दर पूर्णतः निर्भर करती है प्रावैगिक कुशलता पर- अर्थात् टेक्नोलोजी की प्रगति पर, दूसरे शब्दों में, एक उच्च बचत की दर का प्रभाव उत्पादन वृद्धि की दीर्घकालीन दर पर नहीं पड़ता, यह दीर्घकाल में उत्पादन के स्तर हैं को प्रभावित करती है ।

(Mathematical Explanation of Endogenous Growth):

 

जहाँ E एक स्थिर है । इससे आशय है करने के द्वारा सीखना अर्थात् पूंजी का प्रयोग कर, श्रमिक यह सीखते हैं कि अधिक उत्पादकता हेतु इसका बेहतर प्रयोग कैसे करें । माना गया है कि तकनीक की लोच पूँजी/श्रम अनुपात के संदर्भ में, समीकरण (2) में, ठीक बराबर होती है श्रम के संदर्भ में उत्पादन की लोच के बराबर समीकरण (1) के अर्थात् सरलता के लिए समीकरण (2) को समीकरण (1) में प्रतिस्थापित करने पर-

Y = EK …. समीकरण (3)

यहाँ E कुशलता को सूचित करता है । इस प्रकार उत्पादन पूर्णतः निर्भर करता है पूंजी स्टाक एवं उस कुशलता पर जिसका उत्पादन में प्रयोग किया जा रहा है । दूसरे शब्दों में उत्पादन निर्भर करता है पूंजी की मात्रा एवं गुणवत्ता पर ।

समीकरण (2) के दोनों पक्षों के लघुगुणक लेने एवं इसे समय के प्रति Differentiate करने पर हम तकनीकी प्रगति की दर हेतु निम्न सम्बन्ध की प्राप्ति करते हैं जिसे aq के द्वारा प्रदर्शित किया गया है:

समीकरण में E पूँजी/उत्पाद अनुपात का व्युत्क्रम है जो यह प्रदर्शित करता है कि सीखने के द्वारा करने के द्वारा, प्रति श्रमिक पूंजी पर, किस प्रकार तकनीक निर्भर रहती है ।

दूसरा, हैरोड-डोमर मॉडल के विपरीत, यह दशा कि प्रति व्यक्ति उत्पादन बराबर होता है तकनीकी प्रगति की दर के बराबर, न तो एक असंगति रखती है (क्योंकि अब हमने पूंजी की उत्पादन से आनुपातिकता को ज्ञात कर लिया है, मात्र मान्यता नहीं ली है) और न ही यह दशा आर्थिक वृद्धि को बर्हिजात बताती है स्पष्ट रूप से अब तकनीकी प्रगति स्वयं में अन्तर्जात है । अत: यह अन्तर्जात वृद्धि का सार है ।