आर्थिक शक्ति का ध्यान: रूप और विकास | Read this article in Hindi to learn about the forms and growth of concentration of economic power.

आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण के प्रकार (Forms of Concentration of Economic Power):

एकाधिकार जांच आयोग (MIC) Monopoly Investigation Commission ने आर्थिक केन्द्रीकरण का अध्ययन मुख्यता: दो प्रकार से किया अर्थात् (क) उत्पाद के अनुसार केन्द्रीकरण और (ख) देश के अनुसार केन्द्रीकरण ।

उत्पाद के अनुसार केन्द्रीकरण वह है, ”जहां किसी विशेष वस्तु अथवा सेवा के उत्पादन अथवा वितरण के सम्बन्ध में नियन्त्रण शक्ति एक ही संस्था अथवा तुलनात्मक रूप में संस्थाओं की सीमित संख्या अथवा संस्थाओं की पर्याप्त रूप में बड़ी संख्या द्वारा किया जाता है । ये संस्थाएं या तो मात्र एक परिवार, या फिर कुछ परिवारों अथवा व्यापारिक घरानों द्वारा नियन्त्रित की जाती हैं, इसे उत्पाद के अनुसार केन्द्रीकरण कहा जा सकता है । देश के अनुसार केन्द्रीकरण तब घटित होता है जब विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन अथवा वितरण में व्यस्त संस्थाएँ किसी एक व्यक्ति अथवा परिवार अथवा लोगों के वर्ग के नियन्त्रण में होती हैं, वह संयुक्त हों या न हों वित्तीय अथवा अन्य व्यापारिक हितों में आपस में जुड़े हों ।”

1. उत्पादक केन्द्रीकरण (Productive Concentration):

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100 वस्तुओं के उत्पाद अनुसार केन्द्रीकरण की जाँच एकाधिकार जांच आयोग (MIC) द्वारा केन्द्रीकरण अनुपातों के निर्धारण द्वारा की गई है । यदि ऊपर के तीन उत्पादकों का भाग कुल बाजार का 75 प्रतिशत अथवा अधिक बनता है तो केन्द्रीकरण को वहुत ऊंचा कहा जायेगा ।

यदि यह भाग 60 प्रतिशत से अधिक है परन्तु 75 प्रतिशत से कम है तो केन्द्रीकरण को मध्यम माना जाता है यदि वही भाग 60 से 50 प्रतिशत के बीच है तो केन्द्रीकरण को नीचा माना जायेगा; और यदि तीन उच्च उत्पादकों का भाग कुल बाजार के 50 प्रतिशत से कम है तो केन्द्रीकरण को शून्य माना जायेगा ।

अतः एकाधिकार जांच आयोग ने उत्पादों के केन्द्रीकरण की मात्रा के साथ विस्तृत वर्गीकरण का निम्नलिखित अनुसार वर्णन किया:

(i) उच्च केन्द्रीकरण वाले उत्पाद (Products with High Concentration):

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इसमें सम्मिलित है छोटे बच्चों के दुग्ध आहार, पैट्रोल पदार्थ, मिट्‌टी का तेल, स्टोव (दबाव प्रकार का) फ्लोरोसैन्ट लैम्प, शुष्क बैटरियां, सिलाई मशीनें, घरेलू रैफ्रिजरेटर, घड़ियां, टाइम-पीस, टाइप-राइटर, साबुन, चमड़े के जूते, रबड़ और कैनवास के जूते, टुथपेस्ट, रेजर ब्लेड, टॉलक्म पाऊडर, सिगरेट, दवाइयां, व्यावसायिक वाहन, कारें, जीपें, स्कूटर, टायर, ट्‌यूब, पिस्टन, स्पार्क प्लग, स्टोरेज बैटरीज, छत्त पर डालने वाली चादरें, कलईदार चादरें (समतल) निर्माण बोर्ड ।

(ii) मध्यम केन्द्रीकरण वाले उत्पाद (Products with Medium Concentration):

इसमें सम्मिलित हैं बिस्कुट, बिजली के पंखे, बिजली के लैम्प, बाइसाइकिल, बाइसाइकिल चेन, फ्रीव्हील, लिवर एक्स्ट्रैक्ट (ओरल) और सीमेंट ।

(iii) कम केन्द्रीकरण वाले उत्पाद (Products with Low Concentration):

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इसमें सम्मिलित है गर्म कपड़ा, बुनाई की ऊन (ऊनी धागे से बनी), लिखाई और छपाई वाला कागज, पैंसिल, लालटेन, शिलामॉण्ड, पाइप ।

(iii) शून्य केन्द्रीकरण वाले उत्पाद (Products with Nil Concentration):

इसमें सम्मिलित हैं चाय, कॉफी, कपडा, वस्त्र (पापलीन, केप, बुनाई वाले), कम्बल, गलीचे, कोयला, लैम्प आदि, सैनेटरी का सामान और व्यावसायिक प्लाइवुड ।

2. देश अनुसार केन्द्रीकरण (Country-Wise Concentration):

देश अनुसार केन्द्रीकरण का अर्थ है थोड़े से व्यक्तियों अथवा वर्गों का सम्पूर्ण देश की अर्थव्यवस्था में आर्थिक शक्तियों की पर्याप्त मात्रा पर नियन्त्रण । यह पूजी, आय अथवा रोजगार के अनुपात के रूप में भी मापा जाता है जिसका नियन्त्रण थोड़ी संख्या में लोगों अथवा वर्गों द्वारा किया जाता है ।

आयोग ने देश के बीच 2259 कम्पनियों का परीक्षण किया जिनका संचालन 83 बड़े घरानों में से किसी न किसी द्वारा किया जा रहा था । 83 व्यावसायिक घरानों में से 8 को छोड़ दिया गया क्योंकि उनकी कुल सम्पत्ति 5 करोड़ रुपयों से अधिक नहीं थी ।

अतः आयोग ने 75 व्यावसायिक घरानों की जाँच की जो 1536 कम्पनियों का नियन्त्रण करते है । इन 75 वर्गों की कुल सम्पत्ति और प्रदत्त पूजी का सभी गैर-सरकारी और गैर-बैंकिग कम्पनियों से अनुपात क्रमशः लगभग 47 और 44 प्रतिशत था ।

भारत में आर्थिक शक्तियों के केन्द्रीकरण की वृद्धि (Growth of Concentration of Economic Powers in India):

भारत में एकाधिकारिक घरानों की उत्पत्ति और आर्थिक शक्तियों के केन्द्रीकरण की वृद्धि की विभिन्न विशेषज्ञ वर्गों और आयोगों द्वारा व्यवस्थित जानव-पड़ताल की गई है ।

इनमें, अधिक निम्न महत्वपूर्ण अध्ययनों का कालक्रमिक संचालन किया गया:

1. महालेनोबिस कमेटी (महालेनोबिस- अक्तूबर, 1960)

2. महालेनोबिस जांच आयोग (श्री. के.सी. गुप्ता-अप्रैल, 1964)

3. डॉ. आर.के. हजारी (आर.के. हजारी-जुलाई 1966)

4. औद्योगिक लाइसैंस जाँच समिति अथवा दत्त समिति (एम.एस. ठाकुर और डॉ. एच.के. परांजपे)

वृद्धि समस्या का विस्तार (Magnitude of the Growth Problem):

एक अनुमान के अनुसार निजी क्षेत्र में 251 कम्पनियां हैं जो भारतीय दृष्टिकोण से ‘महाकाय निगम’ (Corporate Giants) की श्रेणी में आते हैं । इनमें से 101 को महाकाय की श्रेणी में रखा गया है तथा शेष 150 को छोटे महाकाय की श्रेणी में रखा जाता है ।

उच्च निगमित महाकाय कम्पनियों के सम्बन्ध में जानकारी इस तथ्य से ली जा सकती है कि 101 महाकाय कम्पनियों में प्रयुक्त पूजी की राशि वर्ष 1987-88 में 27,720 करोड़ रुपये थी और उनकी शुद्ध बिक्री की राशि उस वर्ष 23,284 करोड़ रुपये थी (इन 101 कम्पनियों में 6 कम्पनियों के आँकड़े वर्ष 1986-87 से सम्बन्धित हैं), निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कम्पनी ”रिलायन्स इण्डस्ट्रीज” है जिसके 1986 दिसम्बर में 2002.66 करोड़ रुपयों की सम्पत्ति थी ।

(जून 1988 तक इसकी सम्पत्ति 2500 करोड़ रुपयों से कहीं अधिक हो गई) । इसके पश्चात् क्रमशः टाटा स्टील, लारसन एण्ड टोबरो, टाटा इंजीनियरिंग, (टेलको) जे. के. सिंघानिया, सदरन पैट्रो कैमीकल्ज (SPIC) का क्रम है (सम्पत्ति के सन्दर्भ में) । वर्ष 1987-88 में तीन कम्पनियां थीं जिनकी सम्पत्ति 500 से 100 करोड़ रुपयों के बीच थी । जहां तक कि वर्ष 1987-88 में 101 महाकाय कम्पनियों में सबसे छोटी महाकाय कम्पनी की सम्पत्ति 115 करोड़ रुपये थी ।

20 सर्वोच्च कम्पनियों की कुल सम्पत्ति जोकि वर्ष 1972 में 2511 करोड़ रुपये थी वर्ष 1980 में बढ़ कर 7118 करोड़ रुपये हो गई तथा फिर दिसम्बर 31, 1991 तक बढ़ कर 41,522 करोड़ रुपये हो गई । 20 उच्च व्यापारिक घरानों की सम्पत्ति की वृद्धि की दर वर्ष 1972 से 1989-90 तक 16.9 प्रतिशत प्रति वर्ष अनुमानित की गई । पुन: वर्ष 1980 से 1991 की अवधि के दौर में सर्वोच्च 20 औद्योगिक घरानों की सम्पति की वृद्धि दर 483 प्रतिशत हो गई ।

दिसम्बर, 1991 में इन 20 उच्च औद्योगिक घरानों के अधीन 646 कम्पनियां थीं । सबसे बड़ा औद्योगिक घराना टाटा था जिसके पास 85 कम्पनियों का स्वामित्व था और उनकी कुल सम्पत्ति 8,531 करोड़ रुपयों थी । दूसरे क्रम पर बिरला के स्वामित्व वाले उद्योग थे जिनकी संख्या 66 थी और सम्पात्त का मूल्य हैं- 8,473 करोड़ रुपये था ।

अतः 20 उच्च घरानों में, 5 उच्च घराने थे-टाटा, बिरला, रिलायन्स, थीपर और सिंघानिया, इनकी कुल सम्मति का मूल्य 31 दिसम्बर, 1991 को 24,930 करोड रुपये था, जोकि सर्वोच्च 20 कम्पनियों की कुल सम्पति का लगभग 20 प्रतिशत था । वर्ष 1980 में इन पांच घरानों की सम्पत्ति का अनुपात लगभग 612 प्रतिशत था ।

अतः 20 उच्च औद्योगिक घरानों के इस वर्ग में पांच उच्च घरानों में केन्द्रीकरण की मात्रा ऊंची थी । उच्च 20 घरानों में रिलायन्स वर्ग जिसका स्थान तीसरे क्रम पर था । अपनी सम्पत्ति की वृद्धि में शानदार सफलता प्राप्त की है । वर्ष 1980 में इसकी सम्पत्ति 166 करोड़ रुपये थी जो 1991 में बढ़कर 3,600 करोड़ रुपये हो गई, जो 33.3 प्रतिशत का उच्चतम वार्षिक औसत वृद्धि दर दर्शाती है ।

इसी प्रकार टाटा की कुल बिक्री वर्ष 1980 में 1,943 करोड से बढ़ कर 10,094 करोड़ रुपये हो गई और बिरला घराने की 1845 करोड़ रुपयों से बढ़ कर 7,614 करोड़ रुपये हो गई । इसी समय के दौरान रिलायन्स की कुल बिक्री 299 करोड़ रुपयों से बढ़ कर 2,917 करोड़ रुपये हो गई ।

अर्थव्यवस्था की बढती हुई उदारता और एम.आर.टी.पी. और एफ.ई.आर.ए. के प्रतिबन्धों को समाप्त करने से, व्यापारिक घराने, विशेषतया उच्च 20 घरानों ने हाल ही के वर्षों में अपनी सम्पत्ति के वृद्धि दरों में अत्याधिक वृद्धि प्रदर्शित की है । इसके परिणामस्वरूप देश के कुछ बड़े व्यापारिक घरानों के हाथों में सम्पत्ति और आर्थिक शक्ति का अत्याधिक केन्द्रीकरण हुआ है ।

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