विकासशील देशों में संसाधन प्रवाह: 4 स्रोत | Read this article in Hindi to learn about the four main sources of resource flow in developing countries. The sources are:- 1. बहुपक्षीय संस्थाओं द्वारा (By Multilateral Institutions) 2. केन्द्रीय रूप से नियोजित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा (By Centrally Planned Economies) and a Few Others.

विकासशील देशों में होने वाले साधन प्रवाह मुख्यतः सार्वजनिक एवं निजी दीर्घकालीन साधन प्रवाहों को समाहित करते है जिसका वितरण द्विपक्षीय समझौतों के अधीन या बहुपक्षीय संस्थाओं के द्वारा किया जाता है ।

द्विपक्षीय समझौतों में ऋणदाता एवं ऋणी देश साधन प्रवाहों को हस्तान्तरण की विशिष्ट शर्त एवं दशाओं के प्रति एक-दूसरे से समझौता करते है । इसके साथ ही इसके प्रबन्ध एवं नियन्त्रण की प्रणाली तय की जाती है ।

बहुपक्षीय समझौते अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा प्रबन्धित किये जाते हैं । यह संस्थाएं वास्तव में इस अर्थ में मध्यवर्ती होती है कि इनके पास स्वयं के साधन नहीं होते । यह सदस्य देशों द्वारा प्रदत्त अंशदान और/या चन्दे पर निर्भर होते हैं । इन्हें यह अधिकार होता है कि अपने वित्तीय साधनों हेतु ऋण प्रदान कर सकें एवं बॉण्ड का निर्गमन करें ।

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तब यह विकासशील देश में अपने सामनों का प्रवाह ऋण, सहायता अनुदान एवं विनियोग के रूप में करते हैं । बहुपक्षीय साधनों के प्रवाह की शर्तें एवं दशाएँ मुख्यतः सदस्य देशों के प्रशासकीय नियन्त्रण एवं नीतिगत निर्देशों पर निर्भर करते हैं । यह प्रवृत्ति भी देखी जा रही है कि जहाँ ऋणी देश बाह्य साधनों को अन्तर्राष्ट्रीय संसाधनों द्वारा प्राप्त करना चाहते हैं वहीं ऋणदाता देश अपने साधनों को द्विपक्षीय आधार पर प्रदान करना श्रेष्ठ समझते हैं ।

विकासशील देशों में कुल साधनों का प्रवाह मुख्यतः निम्न रूपों में होता है:

Source # 1. बहुपक्षीय संस्थाओं द्वारा (By Multilateral Institutions):

बहुपक्षीय संस्थाएँ जो विकासशील देशों को कोष उपलब्ध कराती है मुख्यतः अन्तर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय वर्गों में बाँटी जाती है । अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं में विश्व बैंक समूह के अधीन अन्तर्राष्ट्रीय विकास एवं पुनर्निर्माण बैंक अन्तर्राष्ट्रीय विकास संस्था अन्तर्राष्ट्रीय वित्त संघ एवं राष्ट्र की एजेन्सियां सम्मिलित हैं ।

क्षेत्रीय संस्थाओं में अन्त: अमेरिकी विकास बैंक, अफ्रीकी विकास बैंक, एशियाई विकास बैंक, केरेबियन विकास बैंक, यूरोपीय विकास बैंक, यूरोपीय विनियोग बैंक, आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए अरब कोष, अरब पेट्रोल निर्यात देशों का संगठन एवं अफ्रीका के लिए विशेष अरब कोष उल्लेखनीय हैं ।

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संयुक्त राष्ट्र ने विभिन्न विशिष्ट एजेन्सियों जैसे तकनीकी सहायता प्रशासन, खाद्य एवं कृषि संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं अन्तर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय के द्वारा तकनीकी सहायता प्रदान की है ।

यूरोपीय विकास फंड ने अफ्रीका की यूरोपियन कालोनी में विकास अनुदान प्रदान किए है । अतः अमेरिकन विकास बैंक ने अमेरिकी राज्यों के संगठन के सदस्यों को विशिष्ट विकास परियोजनाओं के लिए दीर्घकालीन ऋण प्रदान किए हैं । अफ्रीकी एवं एशियाई विकास बैंक ने अफ्रीकी एवं एशियाई विकासशील देशों के विकास हेतु विकास ऋण प्रदान किए हैं ।

Source # 2. केन्द्रीय रूप से नियोजित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा (By Centrally Planned Economies):

पूर्वी यूरोप एवं चीन की केन्द्रीय रूप से नियोजित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा होने वाले साधन के प्रवाह के बारे में सीमित जानकारी उपलब्ध है । सामान्य रूप में केन्द्रीय रूप से नियोजित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा प्रवाहित सहायता द्विपक्षीय सहायता के रूप में प्रदान की जाती है एवं यह ऋणी देश की विशिष्ट परियोजनाओं में व्यय की जाती है ।

केन्द्रीय रूप से नियोजित अर्थव्यवस्थाओं में सोवियत संघ साख प्रदान करने वाला मुख्य देश रहा । अन्य देशों में रोमानिया, चैकोस्लोवाकिया एवं पोलैण्ड मुख्य थे । सोवियत संघ द्वारा प्रदान की जाने वाली विकास सहायता मुख्य रूप से दीर्घकालीन राज्य ऋण एवं सहयोग समझौतों के रूप में थी ।

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साख विशिष्ट परियोजनाओं में सम्बन्धित रही जो मशीनरी व अन्य पूंजी यन्त्रों के आयात को वित्त प्रदान करने तथा सोवियत विशेषज्ञों द्वारा प्रदान सेवाओं के वित्त प्रबन्ध में व्यय की जाती रही । पुर्नभुगतान सामान्यतः 12 से 15 वर्ष की अवधि में किया जाता था ।

सोवियत सहायता अधिकांशतः मध्य पूर्व एवं दक्षिण एशिया के कुछ देशों तक केन्द्रित रही । मुख्य देश मिस्र, अल्जीरिया, ईरान, इराक, अर्जेन्टाइना, चिली, मेक्सिको व अफगानिस्तान है ।

सोवियत संघ की तुलना में चीन ने अधिक व्यापक सहायता प्रदान की जो मुख्यतः निर्धन विकासशील देशों को दी गई । 1970 के दशक से चीन द्वारा सहायता आयात प्रतिस्थापकीय उद्योगों से हट कर ऐसे उद्योगों को प्रदान की जा रही है जो निर्यातों को उत्प्रेरित कर रहे है । इनमें खनिज एवं ऊर्जा साधनों का उपयोग मुख्य है ।

चीन के सहायता कार्यक्रम श्रम गहन है जो मध्यवर्त्ती एवं उचित तकनीक के विकास पर संकेन्द्रित हैं । सहायता का काफी अधिक भाग कृषिगत विकास में मुख्यतः खाद्यान्न उत्पादन एवं प्रोसेसिंग पर किया जा रहा है । अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र स्वास्थ्य, अन्तर्संरचना विकास एवं लघु उद्योग है । 1991 के उपरान्त सोवियत संघ में राजनीतिक उथल-पुथल के कारण प्रदान की जाने वाली सहायता के स्वरूप में भी आधारभूत बदलाव आया है ।

Source # 3. तेल उत्पादक एवं निर्यातक देशों द्वारा (By Oil Producing and Exporting Countries):

1973 में तेल की कीमतों में होने वाली वृद्धि के परिणामस्वरूप OPEC सदस्य देशों की निर्यात प्राप्तियों में तेजी से वृद्धि हुई है । ओपेक समूह के देशों में अल्वीरिया, इक्वाडोर, गाबोन, इण्डोनेशिया, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कतार, सम्मी अरब, वैनेजुला, बहरीन, ब्रूनई, ओमान, ट्रिनीडाड व टोबागो शामिल हैं ।

तेल की कीमतों में होने वाली वृद्धि से पूर्व केवल कुवैत, लीबिया व सब्जी अरब द्वारा अधिकांश सहायता प्रदान की जाती थी जो मुख्यतः बजट सहायता हेतु अनुदान के रूप में थी । दीर्घकालीन विकास हेतु दी जाने वाली सहायता काफी अल्प थी ।

तेल आगम में होने वाली तीव्र वृद्धि ने 1973 के उपरान्त स्थिति को परिवर्तित कर दिया । ओपेक सदस्यों के पास व्यापक निर्यात अतिरेक जमा हुए जिससे उनकी अर्थव्यवस्थाएं अल्पकाल में अवशोषित नहीं कर पाई । अतः उन्हें विदेशों में विनियोग करने का सुअवसर प्राप्त हुआ ।

इन अतिरेक कोषों का प्रवाह पुन: विकसित देशों को हुआ तथा गैर तेल निर्यातक विकासशील देशों के घाटे को कम करने तथा इनके आर्थिक व सामाजिक विकास के पुनरुत्थान हेतु भी कोष प्रवाहित किए गए । ओपेक देशों द्वारा अधिकांश सहायता द्विपक्षीय समझौतों के अधीन दी गई । 1976 में द्विपक्षीय समझौतों के साथ ही बहुपक्षीय सहायता प्रवाह बड़े ।

इनकी दो प्रवृतियाँ उल्लेखनीय है । पहला तो यह कि इसके अधिकांश द्विपक्षीय साधन प्रवाह अरब देशों में प्रवाहित किए गए । अन्य देशों में अफ्रीका, पाकिस्तान एवं भारत थे । दूसरा, ओपेक द्वारा प्रवाहित सहायता की प्रवृति में भी परिवर्तन हुआ ।

द्विपक्षीय समझौतों के अधीन पहले भुगतान सन्तुलन उद्देश्यों हेतु अधिक सहायता प्रदान की जाती थी किन्तु बाद में परियोजना हेतु सहायता को प्राथमिकता दी गई । सहायता का अधिकांश भाग अन्तर्संरचना एवं ऊर्जा परियोजनाओं खनिज संसाधन विकास, कृषि एवं उद्योग में प्रवाहित हुआ ।

Source # 4. विकास सहायता समिति द्वारा (By Development Assistance Committee):

विकास सहायता समिति के मुख्य देश ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैण्ड, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैण्ड, न्यूजीलैण्ड, नार्वे, स्वीडन, स्विट्‌जरलैण्ड, यूनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका है । विकासशील देशों की प्रदान की जाने वाली द्विपक्षीय साधन प्रवाह सहायता का लगभग 85% भाग विकास सहायता समिति द्वारा प्रदान किया जाता है ।

अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं जिनमें क्षेत्रीय एवं अन्य विशिष्ट एजेन्सियों भी सम्मिलित है, को मुख्य अंशदान प्रदान करती हैं जो तदन्तर विकासशील देशों को कोष प्रदान करती हैं ।

विकास सहायता समिति द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता को चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

(i) सरकारी विकास सहायता

(ii) अन्य सरकारी सहायता प्रवाह ।

(iii) निजी प्रवाह ।

(iv) यूरो करेंसी उधार

उपर्युक्त में से पहले दो वर्ग सार्वजनिक पूंजी प्रवाहों को, तीसरा निजी पूंजी या विनियोग प्रवाह एवं चतुर्थ वर्ग चैरिटी प्रदान करने वाले संगठन, जैसे- क्रिश्चियन सहायता तथा आक्सफोम को सम्मिलित करता है ।

(i) सरकारी वित्तीय प्रवाह:

सरकारी वित्तीय प्रवाहों से आशय विकासशील देशों एवं बहुपक्षीय संस्थाओं को किये जाने वाले सरकारी प्रवाहों से है जो सरकारी एजेंसियों को प्रदान किए जाते है । सरकारी वित्तीय सहायता के अधीन द्विपक्षीय सरकारी निर्यात साख-गैर छूट शर्तों पर ऋण भार में कमी करने हेतु इक्विटी एवं अन्य द्विपक्षीय परिसम्पत्तियों का क्रय एवं बहुउद्‌देशीय निगमों को प्राप्त करने वाले अंशदान सम्मिलित हैं ।

(ii) अन्य सरकारी प्रवाह:

यह गैर-छूट पर प्राप्त होने वाले प्रवाह हैं जिनकी शर्तें एवं दशाएँ सरकारी वित्तीय सहायता से अधिक दृढ हैं । अन्य सरकारी प्रवाहों की मात्रा में सरकारी वित्तीय सहायता से अधिक वृद्धि हुई है ।

(iii) निजी पूँजी के प्रवाह:

इसके अधीन निजी प्रत्यक्ष विनियोग, पोर्टफोलियों विनियोग एवं निर्यात साख सम्मिलित है । निजी पूंजी के प्रवाहों में निजी समुद्र पार प्रत्यक्ष विनियोगों की मात्रा सर्वाधिक है ।

पोर्टफोलियो विनियोग मुख्यतः विकासशील देशों एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को बाण्ड के क्रय, विकास बैंक, विकासशील देशों की अन्य एजेन्सियों व कम्पनियों में शेयरों के अधिग्रहण व निजी उधार के रूप में किया जाता है । 1970 के दशक से पोर्टफोलियो विनियोग में काफी अधिक वृद्धि हुई तथा विकासशील देश में इसका अधिक प्रयोग हुआ ।

निर्यात साख का गहन रूप से प्रयोग विकासशील देशों को मशीनरी एवं अन्य पूँजीगत वस्तुओं के निर्यात हेतु विकास सहायता समिति द्वारा प्रदान किया जाता है । सामान्यतः निर्यात सहायता का अधिकांश भाग 5 से 15 वर्ष की परिपक्व अवधि के लिए किया जाता है ।

निजी निर्यात साख की शर्तें सरकारी साख से अधिक कठोर होती हैं । यद्यपि सरकारी विकास सहायता ऋणों की तुलना में निर्यात साख की शर्तें अधिक कठोर है, परन्तु कई विकासशील देशों द्वारा निर्यात में वृद्धि एवं विदेशी विनिमय में वृद्धि हेतु अनुदान भी प्रदान किया जाता है ।

निर्यात साख के परिमाण में होने वाली वृद्धि मुख्यतः तीन कारणों से सम्बन्धित है:

(a) विकासशील देशों में एक तरफ निर्यात प्राप्तियाँ तेजी से गिर रही हैं तथा दूसरी ओर खाद्यान्नों, ऊर्जा साधनों, खाद व अन्य पूँजीगत आयातों की लागतों में तेजी से कमी हो रही है । इससे उत्पन्न व्यापार अन्तराल को पूर्ण करने हेतु निर्यात साख उपयोगी बनती है ।’

(b) तीव्र गति से बढ़ते मुद्रा प्रसार ने निर्यात साख की वास्तविक लागतों में वृद्धि की है ।

(c) बाह्य वित्त के सस्ते स्रोतों को प्राप्त करना सम्भव नहीं बन पा रहा है अतः विकासशील देश निर्यात साख की बढ़ती हुई मात्रा प्राप्त करने में उत्सुकता प्रकट करते है ।

(iv) यूरो करेंसी उधार:

विकासशील देशों को मध्य समय अवधि के बैंक ऋण प्रदान करने में यूरो ऋण की उपादेयता बढ रही है । अधिकांश विकासशील देशों ने यूरो करेंसी बाजारों में ऋण प्राप्त किया है । अधिकांश यूरो करेंसी ऋण उच्च आय वाले विकासशील देशों को प्राप्त हुए है । यूरो करेंसी ऋणों की विशेषता यह है कि इनकी ब्याज दरें परिवर्ती है ।

साधनों के प्रवाह में होने वाली वृद्धि साधनों की प्रवृति एवं वितरण के कारण एवं प्रभाव को निर्धारित . करती है । साधनों के प्रवाह में जैसे-जैसे वृद्धि होती जा रही है वैसे-वैसे इनकी विविध उपप्रणालियाँ विकसित हुई है जिनमें से प्रत्येक की भिन्न-भिन्न विशेषताएं है ।

(a) ब्रिटिश एवं फ्रांसीसी प्रणाली में उपनिवेशवाद एवं आर्थिक साम्राज्य की एतिहासिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक प्रवृत्तियाँ विद्यमान है । इसलिए इनके द्वारा प्रदान सहायता कार्यक्रम का भौगोलिक वितरण बहुत कम परिवर्तित हुआ है । इनके द्वारा अधिकांश पूंजी प्रवाह पूर्ववर्ती अफ्रीका व एशियाई उपनिवेशों में किया गया है ।

(b) ऐसे देश जो एतिहासिक बन्धनों से मुक्त है उन्होंने साधनों के प्रवाह हेतु कुछ विशिष्ट नीतियों या अन्तर्राष्ट्रीय, राजनीतिक अथवा आर्थिक विकास की गतिविधियों के प्रत्युत्तर से विभिन्न क्षेत्रों की ओर साधनों का प्रवाह किया है ।

उदाहरणार्थ जर्मनी के सहायता कार्यक्रम अधिकांश प्राप्तकर्त्ता देशों में पूँजीवादी स्वतन्त्र उपक्रम अर्थव्यवस्था स्थापित करने के उद्देश्य को समाहित करते हैं । संयुक्त राज्य अमेरिका ने विभिन्न देशों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते विश्वव्यापी प्रणाली का चयन किया है ।

तेल उत्पादक एवं निर्यातक देशों द्वारा किए जाने वाले प्रवाह लेनदार और देनदार देशों के मध्य सुदृढ सांस्कृतिक एवं धार्मिक सम्बन्धों पर आधारित रहे हैं । बाह्य साधनों को प्रदान किये जाने की प्रवृति भी बदली है । विदेशी कोषों के मुख्य स्रोतों के रूप में अनुदानों का स्थान ऋणों ने ले लिया है । 1970 के दशक से विदेशी सहायता की मात्रा में होने वाली वृद्धि सीमित हुई है ।