पूंजी आउटपुट अनुपात: मतलब और उपयोग | Read this article in Hindi to learn about:- 1. पूंजी उत्पाद अनुपात का परिचय (Meaning to Capital Output Ratio) 2. पूंजी उत्पाद अनुपात (COR) के प्रयोग (Uses of Capital Output Ratio (COR)) 3. सीमाएं (Limitations) 4. भारत में पूँजी उत्पाद अनुपात (Capital Output Ratio in India).

पूंजी उत्पाद अनुपात का परिचय (Meaning to Capital Output Ratio):

किसी भी अर्थव्यवस्था में पूँजी निवेश एवं आय वृद्धि के बीच घनिष्ट सम्बन्ध होता है । पूँजी न केवल एक आवश्यकता है बल्कि देश में वृद्धि दर का महत्वपूर्ण निर्धारक भी है । प्राय: यह स्वीकार किया जाता है कि वास्तविक राष्ट्रीय आय की वृद्धि पूँजी निर्माण का एक फलन है ।

पूँजी निवेश की मात्रा में वृद्धि तथा उत्पाद में परिणामित वृद्धि के सम्बन्ध को पूँजी उत्पाद अनुपात कहा जाता है । अल्पविकसित देशों में वृद्धि की समस्या के लिये इसका सरलता से प्रयोग किया जा सकता है । पूँजी उत्पाद अनुपात को राष्ट्रीय आय में वृद्धि की चालू दर के निर्धारण के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है यदि अर्थव्यवस्था में बचत अनुपात की जानकारी हो ।

पूँजी उत्पाद अनुपात की धारणा निवेश की गई पूँजी के मूल्य तथा उत्पाद के मूल्य के बीच सम्बन्ध का वर्णन करती है । अन्य शब्दों में पूँजी उत्पाद अनुपात, उत्पाद अथवा वास्तविक आय या पूँजी में एक वृद्धि का अनुपात है ।

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”पूँजी उत्पाद अनुपात को एक प्रदत्त अर्थव्यवस्था अथवा उद्योग में एक दिये गये समय के लिये निवेश के उस अर्थव्यवस्था अथवा उद्योग में उतने ही समय के लिये उत्पाद के सम्बन्ध के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ।” -जी. रोसेन

विभिन्न उद्योगों एवं अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिये भी भिन्न-भिन्न पूँजी उत्पाद अनुपात हो सकते हैं । यदि किसी अर्थव्यवस्था में पूँजी उत्पाद अनुपात 4: 1 है तो इसका अर्थ है कि उत्पाद की 1 इकाई उत्पन्न करने के लिये पूँजी की चार इकाइयों की आवश्यकता है । इसलिये पूँजी गुणांक 4 होगा ।

पूँजी उत्पाद अनुपात दो प्रकार का होता है औसत पूँजी उत्पाद अनुपात तथा सीमान्त अथवा बढ़ता हुआ पूँजी उत्पाद अनुपात । औसत पूँजी उत्पाद अनुपात पूँजी के वर्तमान संग्रह और उत्पादन के परिणामित बहाव के बीच सम्बन्ध दर्शाता है ।

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बढ़ता हुआ पूँजी उत्पाद अनुपात उत्पादन Y में वृद्धि की मात्रा, पूँजी के संग्रह ΔK में एक दी गई वृद्धि से सम्बन्ध दर्शाता है । इसे ΔK/ΔY के रूप में दर्शाया जा सकता है । यदि हमें सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर विचार करना है और हमारे पास एक दिया हुआ योजना काल है, यदि योजना n वर्षों को प्रच्छन्न करें तो-

जहां t + n योजना का अन्तिम वर्ष है । इस धारणा का प्रयोग मुख्यता अल्प विकसित देशों में होता है । अन्य शब्दों में- “औसत पूंजी उत्पाद अनुपात उस सब के सन्दर्भ में होता है जो भूतकाल में समग्र आय में निवेश किया गया है । सीमान्त अनुपात उस सब के सन्दर्भ में होता है जो हाल ही के समय में पूँजी अथवा आय में जोड़ा गया है ।”

पूर्वकथित (Former) एक स्थैतिक धारणा है जबकि पश्चात कथित (Latter) गतिशील है । औसत पूँजी उत्पाद अनुपात तथा ICOR का वर्णन रेखा चित्र 6.1 में किया गया है । उत्पाद को X अक्ष के साथ और पूँजी को Y अक्ष के साथ लिया गया है ।

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औसत पूँजी उत्पाद अनुपात का माप एक रेखा की ढलान द्वारा किया गया है जो उत्पत्ति से पूँजी को कुल उत्पाद से सम्बन्धित करने वाले फलन तक जाती है । रेखा चित्र 6.1 में, OLQ एक ऐसा फलन है और ON वह किरण है जो बिन्दु L से गुजरती है ताकि ACOR = LM/OM है और ICOR का माप उस स्पर्श रेखा द्वारा किया जाता है जो फलन की ओर बिन्दु L पर खींचा गया है ।

पूँजी उत्पाद अनुपात की धारणा केवल एक अर्थव्यवस्था पर प्रयोज्य नहीं बल्कि इसके विभिन्न क्षेत्रों पर भी प्रयोज्य है, परन्तु पूँजी उत्पाद अनुपात भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न होता है । यदि क्षेत्र पूँजी गहन तकनीक का प्रयोग कर रहा है तो पूँजी वस्तुओं के उद्योगों के बहुत ऊँचे क्षेत्रीय पूँजी उत्पाद अनुपात होते हैं, जबकि श्रम गहन तकनीकों का प्रयोग करने वाले क्षेत्रों में पूँजी उत्पाद अनुपात कम होगा ।

परिवहन, संचार और पूँजी गहन उद्योगों के उच्च पूँजी उत्पाद अनुपात होंगे जबकि कृषि निर्मित उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योगों और सेवा उद्योगों के क्षेत्रों में पूँजी उत्पाद अनुपात प्राय: नीचे होते हैं ।

पूंजी उत्पाद अनुपात (COR) के प्रयोग (Uses of Capital Output Ratio (COR)):

पूँजी उत्पाद अनुपात आयोजन विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । यह नियोजन कर्ताओं के हाथ में एक महत्वपूर्ण उपकरण है । जिस द्वारा वह अर्थव्यवस्था की पूँजी आवश्यकताओं का अनुमान लगाते हैं । क्षेत्रीय पूँजी उत्पाद अनुपात एक अर्थव्यवस्था में निवेश के नमूने का निर्णय लेने में सहायता कर सकती है ।

जो अर्थव्यवस्था प्राय: पूँजी साधनों के अभाव से पीड़ित होती है अत: उसके पूँजीगत साधनों का विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक होता है । यह उद्योगों को वरीयता अनुसार व्यवस्थित करने में सहायता करता है ।

अत: इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि समग्र पूँजी उत्पाद अनुपात का उपयोग सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की पूँजीगत आवश्यकताओं का अनुमान लगाने के लिये किया जा सकता है जबकि व्यक्तिगत क्षेत्रों उद्योगों अथवा प्रक्रियाओं के लिये पूँजी उत्पाद अनुपात का प्रयोग सैक्टर से सैक्टर पूँजी आवश्यकताओं के अनुमान के लिये किया जा सकता है ।

ICOR का प्रयोग किसी देश की आय वृद्धि की चालू दर को निर्धारित करने के लिये किया जाता है । इसकी प्राप्ति चालू निवेश दर को बढ़ते हुये पूँजी उत्पाद अनुपात द्वारा विभाजित करने से प्राप्त की जा सकती है ।

Y → निबल राष्ट्रीय आय

ΔY → निबल राष्ट्रीय आय में निरपेक्ष वृद्धि

F → अर्थव्यवस्था में निबल निवेश

I/Y → निवेश की दर

ICOR → I/Y तो राष्ट्रीय आय वृद्धि का दर है

यदि 1/Y = 10% और ICOR = 4 तो g = 2.5%

अल्पविकसित देशों में पूँजी उत्पाद अनुपात के विभिन्न अनुमान विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत किये गये है । इनमें कुछ अनुमान बहुत ऊँचे हैं तथा कुछ बहुत नीचे हैं । क्या अल्पविकसित देशों में पूँजी उत्पाद अनुपात ऊँचा होना चाहिये अथवा नीचा, यह एक विवाद का विषय है ।

कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि अल्पविकसित देशों में पूँजी उत्पाद अनुपात विकसित देशों की तुलना में ऊँचा होना चाहिये जबकि अन्यों का मत है कि यह नीचा होना चाहिये । निर्धन देशों में पूँजी उत्पाद अनुपात के अनेक अनुमान प्रस्तुत किये गये हैं ।

संयुक्त राष्ट्रों द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के एक वर्ग ने 2:1 से 5:1 के बीच अनुपात का प्रयोग किया । कुरीहारा (Kurihara) का मानना था कि अधिकांश अल्प विकसित देशों में यह अनुपात 5:1 हों ।

सिंगर (Singer) अपने आर्थिक विकास के मॉडल में 6:1 के अनुपात गैर-कृषि क्षेत्रों के लिये तथा 4:1 का कृषि क्षेत्रों के लिये अनुमान लगाते हैं तथा औसत अनुपात 5:1 मानते हैं । रासनटीन-रोडन (Rosen) का मानना है कि अनुपात कम से कम 3:1 और 4:1 है जबकि ल्युस इस अनुपात को 3:1 और 4:12 के बीच मानते हैं ।

एच. के. मनमोहन सिंह के अनुसार विकसित देशों में पूँजी उत्पादन अनुपात 2.9:1 और 4:1 के बीच है और अल्पविकसित देशों में इसकी कल्पना 1.5:1 और 2:13 के बीच की जा सकती है । भारत में ICOR औसत रूप में तीन योजना कालों के दौरान 2.4 रही है ।

पूँजी उत्पाद अनुपात की सीमाएं (Limitations of Capital Output Ratio):

इस अवधारणा की मुख्य सीमाएं निम्नलिखित हैं:

1. विश्वसनीय आंकड़ों का अभाव (Lack of Reliable Data):

योजना आयोग के शब्दों में- ”पूँजी उत्पाद अनुपात की सुनिश्चित गणनाएं केवल विकास के सुदृढ़ कार्यक्रमों और लागतों एवं उत्पाद सम्बन्धी तकनीकी आंकड़ों के प्रकाश में ही की जा सकती हैं ।” परन्तु अल्पविकसित देशों में परिशुद्ध आंकड़े उपलब्ध नहीं होते ।

2. पूँजी उत्पाद अनुपात स्थिर नहीं रहता (Capital Output Ratio Does Not Remain Constant):

 

पूँजी उत्पाद अनुपात लम्बे समय तक स्थिर नहीं रहता । अत: अग्रगामी आयोजन के लिये इसका प्रभावपूर्ण प्रयोग नहीं किया जा सकता । उदाहरणार्थ भारत में पहली योजना के आरम्भ में 3:1 सीमान्त पूँजी उत्पाद अनुपात की कल्पना की परन्तु योजना के अन्त में यह 1.8:1 थी और परिणामस्वरूप प्रक्षेपित तथा वास्तविक अनुपात में विस्तृत असमानता थी ।

3. विश्लेषण का विश्वसनीय उपकरण नहीं (Not a Reliable Tool of Analysis):

पूँजी उत्पाद अनुपात अनेक मान्यताओं पर निर्भर है अत: यह विकास आयोजनकर्ताओं के हाथों में एक विश्वसनीय उपकरण नहीं हो सकता । मुख्य कारक जो पूँजी उत्पाद अनुपात के मूल्य को परिवर्तित करेगा, वह सीमा है, जिस तक उत्पादन के अन्य कारक उत्पादक प्रक्रिया में प्रयुक्त किये जाते है परन्तु जिन्हें पूँजी स्टाक में वृद्धि का भाग नहीं माना जाता । इस प्रकार उत्पादन में किसी भी पूरक कारक की दक्षता में परिवर्तन का अर्थ होगा पूँजी उत्पाद अनुपात में अनुकूल परिवर्तन ।

4. मन्दी में प्रयोज्य नहीं (Not Applicable in Depression):

मन्दी के दौरान, पूँजी में सभी वृद्धियों का परिणाम उत्पाद में गिरावट होता है अत: इस स्थिति में पूँजी उत्पाद अनुपात की धारणा व्यर्थ हो जाती है ।

5. मानवीय पूँजी की उपेक्षा करती है (Ignores Human Capital):

पूँजी उत्पाद अनुपात, आर्थिक वृद्धि की एक विशेष दर की प्राप्ति के लिये सामाजिक ऊपरी व्ययों के रूप में वांछित मानवीय पूँजी में निवेश के सम्बन्ध में कुछ भी बताने में असफल है ।

6. तकनीकी परिवर्तन (Technological Changes):

पूँजी उत्पाद अनुपात की धारणा इस मान्यता पर आधारित है कि उत्पाद की सामान्य कला में कोई परिवर्तन नहीं होता जब कि यह देखा जाता है कि तकनीकी नवप्रर्वतन पूँजी की उसी मात्रा से उत्पाद बढ़ा सकते हैं अथवा कम पूँजी से वही उत्पाद प्राप्त कर सकते है ।

7. कीमतों में उतार-चढ़ाव (Price Fluctuations):

पूँजी उत्पाद अनुपात सुनिश्चित करने में कीमतों में उतार-चढ़ाव एक अन्य उलझन खड़ी करता है । पूँजी एवं उत्पाद की ऊपर नीचे होती कीमतें पूँजी उत्पाद अनुपात की लाभप्रदता पर एक गम्भीर प्रतिबन्ध लगाती है ।

8. क्षमता के अल्पउपयोग की उपस्थिति (Presence of under Utilisation of Capacity):

आर्थिक नियोजन के उपकरण के रूप में पूँजी उत्पाद अनुपात का प्रयोग अल्प रोजगार अथवा क्षमता के अधिक्य द्वारा प्रतिबन्धित होता है जोकि सामान्यत: अल्पविकसित देशों में प्राय: पाये जाते हैं । अत: पूँजी उत्पादक अनुपात की सही गणना कठिन है ।

9. पूँजी पर अधिक बल (Over Emphasis on Capital):

पूँजी उत्पाद अनुपात की धारणा आर्थिक विकास में पूँजी में दर पर अधिक बल देती है । पूँजी उत्पाद अनुपात इस पूर्वग्रह को जन्म देता कि अल्पविकसित देशों में केवल पूँजी ही विकास की मुख्य स्रोत है परन्तु यह सत्य नहीं है क्योंकि उत्पाद अन्य अनेक कारकों द्वारा भी प्रभावित होता है जैसे जनशक्ति की गुणवत्ता और देश का तकनीकी स्तर आदि ।

10. निरर्थक मान्यताएं (Absurd Assumptions):

पूँजी उत्पाद अनुपात की धारणा अस्पष्ट मान्यताओं पर आधारित है कि जब पूँजी बढ़ती है तो सहयोगी कारकों की पूर्ति भी बढ़ती है । परन्तु अल्पविकसित देशों में तकनीकी कर्मचारियों की उद्यमवृत्ति, बिजली, यातायात आदि दुर्लभ हैं अत: इसे अल्पविकसित देशों की समस्याओं के लिये प्रयुक्त नहीं किया जा सकता ।

निष्कर्ष:

विभिन्न सीमाओं के बावजूद, पूँजी उत्पाद अनुपात का सिद्धान्त आयोजन के महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में व्यापक रुप से प्रयोग किया जाता है । यद्यपि यह दुर्बल है, फिर भी प्रतीत होता है कि यह लघु काल की तुलना में दीर्घकाल में अधिक सार्थक परिणाम उपलब्ध करता है । आर्थिक विकास में पूँजी के महत्व को प्रदर्शित करने के लिये यह विश्लेषणात्मक रूप में लाभप्रद है ।

हिग्गनज़ ने पूँजी उत्पाद अनुपात की धारणा के सफल प्रयोग के लिये निम्नलिखित मार्गदर्शक सिद्धान्त प्रस्तुत किये हैं:

 

1. ICOR के माप का प्रयास तभी किया जाये यदि दीर्घकाल के लिये आंकड़े उपलब्ध हैं ।

2. यदि आंकड़ों द्वारा प्रच्छन्न अवधि तीन-चार वर्षों से कम है, तो यह सुनिश्चित करने का प्रयत्न किया जाये कि अवधि सामान्य है ।

3. विकास योजना का आरम्भण स्वयं पूँजी उत्पाद अनुपात को बदल देता है और उसी देश में ICOR का सीधा प्रक्षेपण सन्तोषजनक नहीं होता ।

4. ICOR की गणना का प्रयोजन केवल पूँजी की कुल आवश्यकताएं निर्धारित करना होता है । इसका प्रयोग निवेश परियोजनाओं अथवा क्षेत्रों में वरीयताओं की स्थापना के लिये नहीं किया जाना चाहिये ।

भारत में पूँजी उत्पाद अनुपात (Capital Output Ratio in India):

पूँजी उत्पाद अनुपात की धारणा का प्रयोग निवेश के आकार का अनुमान लगाने के लिये किया जाता है जो राष्ट्रीय आय का प्रस्तावित वृद्धि दर प्राप्त करने के लिये आवश्यक है । विभिन्न उद्योगों के लिये पूँजी उत्पाद अनुपात के कुछ अनुमान अर्थशास्त्रियों द्वारा तैयार किये गये हैं ।

दिवाता (Divata) और त्रिवेदी (Trivedi) ने भारतीय निर्माण उद्योगों के पूँजी गुणांकों का अनुमान सन् 1938-39 में 2.045 पर लगाया । बी.एन.मुखर्जी (B.N. Mukherjee) के अनुसार भारत में निर्माण उद्योगों का पूँजी उत्पाद अनुपात सन् 1964-65 में 1976 था ।

सन् 1952 में यह अपने शिखर 2.31 पर और सन् 1958 में न्यूनतम 1.51 पर पहुंचा । पहली पंच वर्षीय योजना में, योजना आयोगने 3.1 के सीमान्त पूँजी उत्पाद अनुपात की कल्पना की और 1.25 प्रति वर्ष जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि की कल्पना करते हुये पूँजी निवेश निश्चित किया गया ।

बहुत से भारतीय अर्थशास्त्रियों का विचार था कि विकास के आरम्भिक वर्षों में यह पूँजी उत्पाद अनुपात अवास्तविक था । डा. वी.वी. भट्ट के अनुसार यह 2.1:1 से नहीं बढ़ सकता । पहली योजना के दौरान वास्तविक पूँजी उत्पाद अनुपात विशेषतया कृषि क्षेत्र में बड़े हुये उत्पाद के कारण बहुत नीचा रहा ।

दूसरी पंच वर्षीय योजना में पूँजी उत्पाद अनुपात के अनुमान नीचे की ओर संशोधित किये गये और अनुपात 2.3:1 रखा गया तीसरी योजना के लिये यह 2.6:1 था, चौथी के लिये 3.4:1 और पांचवीं योजना के लिये यह 3.7:1 था ।

जी रोसेन (G. Rosen) का विचार था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान 2.3:1 का पूँजी उत्पाद अनुपात भारतीय अर्थव्यवस्था में लिये बहुत नीचा था । दूसरी योजना के दौरान उच्च पूँजी उत्पाद अनुपात इस तथ्य के कारण था कि कोई प्रयुक्त क्षमता उपलब्ध नहीं थी तथा मानसून हितकर नहीं था ।

तीसरी पंचवर्षीय योजना में पूँजी उत्पाद अनुपात 2.5:1 था । नीचे पूँजी उत्पाद अनुपात की कल्पना का कारण दूसरी योजना की अवधि में रचित अप्रयुक्त क्षमता का अस्तित्व और कृषि उत्पाद में वृद्धि की प्रत्याशा था । पूँजी उत्पाद अनुपात का यह अनुमान नीचा था तथा यह कम से कम 3:1 होना चाहिये था ।

तीसरी योजना काल में उत्पाद लक्ष्यों की प्राप्ति में पर्याप्त कमी के कारण, इस समय के दौरान पूँजी उत्पाद अनुपात 7.2:1 निकला । चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान, कारक लागत पर सकल मूल्य योग 9843 करोड़ रुपयों से बढ़ना था और सकल निश्चित निवेश का अनुमान 22,892 करोड़ रुपयों का था ।

जिससे पूँजी उत्पाद अनुपात 2.33:1 था । क्षेत्रीय ICOR कृषि में 1.06:1 से बिजली और गैस में 15.2:1 के बीच रहा । खनन और निर्माण में यह 3.23:1 तथा यातायात और संचार में यह 9.39:1 था ।