पूंजी निर्माण में बचत की भूमिका | Read this article in Hindi to learn about the role of savings in capital formation.

विकास की प्रक्रिया में बचतों की महत्वपूर्ण भूमिका है । जब तक बचतों में वृद्धि नहीं होगी आर्थिक वृद्धि सम्भव नहीं है । लेविस के अनुसार आर्थिक विकास विश्लेषण में केन्द्रीय समस्या उस प्रक्रिया को समझने की है जिसके द्वारा अपनी राष्ट्रीय आय का 4 या 5 प्रतिशत बचत व विनियोग करने वाला समुदाय अपने आपको राष्ट्रीय आय के 12 प्रतिशत या 15 प्रतिशत या इससे अधिक ऐच्छिक बचत करने वाले समाव में परिवर्तित करता है ।

यह केन्द्रीय समस्या है, क्योंकि आर्थिक विकास का केन्द्रीय घटक तीव्र पूंजी संचय है । लेविस के अनुसार किसी भी औद्योगिक क्रान्ति को तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक यह व्याख्या न की जाये कि बचतें राष्ट्रीय आय के सापेक्ष क्यों बढ़ती है ।

लेविस के अनुसार अर्थव्यवस्था की वृद्धि उस देश में पूँजीवादी क्षेत्र की बढ़ती हुई बचत से सम्बन्धित है जिससे राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि होती है तथा रोजगार का स्तर बढ़ता है । व्यावहारिक रूप से बचत उन लोगों द्वारा की जाती है जो लाभ या लगान प्राप्त करते है ।

ADVERTISEMENTS:

लेविस के अनुसार अर्द्धविकसित देशों में लगान प्राप्त करने वाले व्यक्ति बहुत अधिक अनुत्पादक उपभोग करते है । अत: इनकी बचतों का योगदान अल्प होता है । इसी प्रकार व्यापारी, साहूकार, भूमिपति, सैनिक व राजपरिवार के व्यक्ति बचत एवं विनियोग के बारे में विचार नहीं करते अत: इन देशों के विकास के लिए आवश्यक है कि ऐसा पूँजीपति वर्ग पैदा हो जो पूँजी का उत्पादक विनियोग करने में समर्थ हो ।

श्रमिकों की बचत करने की क्षमता अल्प होती है तथा मध्य वर्ग भी अधिक बचत कर पाने में समर्थ नहीं होता । सामान्यत: मजदूरी प्राप्तकर्ता एवं वेतनभोगी राष्ट्रीय आय का मुश्किल से 3 प्रतिशत भाग बचत कर पाते है ।

लेविस के अनुसार देश में सामान्यत: 10 प्रतिशत लोग ही बचत कर पाते हैं । इसका कारण यह नहीं है कि वह कम उपभोग का निर्णय ले लेते हैं बल्कि यह है कि उनकी आय का स्तर जिसे पूँजीपति अतिरेक या लाभ कहा जाता है लगातार बढ़ता जाता है ।

इस प्रकार बचत राष्ट्रीय आय की वृद्धि के सापेक्ष बढ़ती है इसका कारण यह है कि बचतकर्त्ताओं की आय में राष्ट्रीय आय के सापेक्ष वृद्धि होती जाती है । स्पष्ट है कि आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाला एक मुख्य कारक यह भी है कि राष्ट्रीय आय बचत करने वाले वर्ग के प्रति अधिक वितरित होती है ।

ADVERTISEMENTS:

लेविस ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिकांश देशों में निजी पूँजीपति द्वारा ही बचत की गई है । यह ऐसे नवीन अवसरों के साथ सम्बन्धित है जो बाजार के विस्तार तथा श्रम की उत्पादकता में वृद्धि करने वाली नयी तकनीक के साथ जुड़ी होती है । देश में एक बार पूँजीवादी क्षेत्र के विकसित होने पर उसमें लगातार विस्तार होता जाता है ।

यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यदि तकनीकी प्रगति की दर अल्प है तब पूँजीपति अतिरेक में कम वृद्धि होगी । जब कभी पूँजी का उत्पादक उपयोग करने के अवसर तेजी से बढ़ेंगे तब पूँजीवादी अतिरेक में भी तीव्रता से वृद्धि होगी व साथ ही साथ पूंजीवादी वर्ग का भी विकास होगा ।

लेविस के अनुसार एक देश में पूँजीवधी क्षेत्र का जितना अधिक विस्तार होगा उस देश की राष्ट्रीय आय में लाभ भी इसी के अनुसार बढ़ेंगे । पूँजीवादी क्षेत्र का विस्तार मुख्यत: पूँजीवादी एवं जीवन-निर्वाह क्षेत्र के मध्य आय की असमानताओं के बढ़ने से है । यदि आय की समानताएँ अल्प हों तब बचतों की अधिक दर संयोजित कर पाना सम्भव नहीं है । यह देखा जाता है कि अर्द्धविकसित देशों में उन्नत देशों के सापेक्ष आय की असमानताएँ अधिक होती है । इसका कारण यह है कि विकसित देशों में कृषि से प्राप्त लगान का अंश अधिक होता है ।

लेविस के अनुसार दो देशों में असमान आय दिए होने पर बचतें वहाँ अधिक होंगी जहाँ आय का वितरण अधिक समान होता है यदि लाभ लगान की अपेक्षा अधिक हो ।