चावल के रोग | Read this article in Hindi to learn about the diseases found in rice.

चावल के रोग (Disease of Rice):

चावल का वानस्पतिक नाम (Botanical Name) ओराइजा सैटाइवा (Oryza Sativa) है । उष्णकटिबन्धीय (Tropical) देशों में चावल विभिन्न प्रकार के धान्यों (Cereals) की जगह भोजन के रूप में प्रयोग होता हैं । संसार की आधी से अधिक आबादी भोजन के लिए चावल पर निर्भर है ।

भारतवर्ष में चावल की खेती का प्रारंभ ई॰पू॰ 3000 वर्ष में हुआ । कार्बनीकृत चावल (Carbonised Rice) के दाने हस्तिनापुर (मेरठ), उत्तर प्रदेश में प्राप्त हुए हैं जो लगभग 1000-750 B.C. पुराने हैं । चावल की खेती लगभग सभी एशियाई देशों में की जाती है ।

भारत वर्ष में इसकी खेती मुख्य रूप से आन्ध्र प्रदेश, आसाम, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों एवं उड़ीसा में की जाती है । चावल का पौधा एकवर्षीय शाक है । इसके स्तम्भ को कल्म (Culm), दानों को कैरियोप्सिस और छिलका युक्त चावल को धान (Paddy) कहते हैं ।

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चावल उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों की फसल है । इसकी खेती ऐसे स्थानों पर की जाती है जहाँ का औसत तापमान 77°F से ऊपर ही रहता है । इसके लिए अच्छी वार्षिक वर्षा (बारिश) की आवश्यकता होती है । मानसून में आने वाली बाढ़ (Flood) चावल की खेती के लिए सहायक होती है ।

जब फसल पकने लगती है तो खेतों से पानी निकाल कर उन्हें सूखने दिया जाता है । पकी हुई फसल को काट लिया जाता है । इस प्रकार प्रतिवर्ष 3-4 चावल की फसलें प्राप्त की जाती हैं ।

चावल अधिकांश मनुष्यों के भोजन का आधार है । लगभग 90% चावल पकाकर खाया जाता है । इसमें लगभग 90% कार्बोहाइड्रेट, 8-10% प्रोटीन, 1% बसा व 1% खनिज पदार्थ होते हैं । चावल का आटा पेस्ट्री, मिठाई तथा आइसक्रीम उद्योग में प्रयोग होता है ।

दक्षिणी भारत में चावल का किण्वन युक्त भोजन, जैसे- इडली, डोसा तथा उपमा बनाया जाता है जो वहाँ का प्रमुख भोजन कहलाता है । चावल के भूसे से जापान तथा चीन में उत्तम प्रकार का कागज बनाया जाता है । इसका प्रयोग छप्पर, टोप, चटाई, टोकरियाँ तथा रस्सियाँ बनाने में किया जाता है ।

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चावल का घुन (Rice Weevil):

सामान्यतः इसे चावल के घुन के नाम से जाना जाता है किन्तु इसका वैज्ञानिक नाम साइटोफिलस ओराइजी (Sitophilus Oryzae) है । कई स्थानों पर इसे शूण्ड वाली सुरसुरी भी कहा जाता है । यह सामान्यतः 3सेमी., के कीट (Insect) होते हैं ।

जिनकी शुण्ड (Proboscis) होती है और इनका रंग भूरा (Brown) या काला (Black) होता है । यह कीट अधिकांश रूप से गेहूं, चावल, मक्का एवं बाजरा में पाए जाते हैं । वयस्क तथा लार्वा चावल को हानि पहुँचाते हैं । वयस्क (Adult) अनाज में छेद करते हैं और लार्वा उसे खोखला करते हैं ।

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