तेज़ चक्रवात: उत्पत्ति और लक्षण | Read this article in Hindi to know about:- 1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति (Origin of Temperate Cyclones) 2. शीतोष्ण चक्रवात की विशेषताएं (Characteristics of Temperate Cyclones) 3. मौसम: (Weather) 4. भौगोलिक वितरण (Geographical Distribution).

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति (Origin of Temperate Cyclones): 

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति को साइकलोजेनेसिस (Cyclogenesis) कहते हैं । सामान्यत: एक शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति में तीन दिन से लेकर दस दिन तक लग सकते हैं ।

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात मध्य अक्षांशों में चलते हैं । इनकी उत्पत्ति उत्तरी अटलांटिक महासागर में आइसलैड के निकट तथा उत्तरी प्रशान्त महासागर में एल्युशियन द्वीपों के दक्षिण में होती है । दक्षिणी गोलार्द्ध में भी इनकी उत्पत्ति 30° तथा 45° अक्षाशों में होती है । दक्षिणी गोलार्द्ध में इनकी आवृत्ति तथा नियमितता अधिक होती है ।

वाताग्र (Front):

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वायु राशि के अगले भाग को वाताग्र कहते हैं ।

वाताग्रों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

(a) शीत वाताग्र (Cold Front):

ठंडी वायु राशि के अगले भाग को शीत वाताग्र कहते हैं । शीत वाताग्र को मौसम मानचित्र पर त्रिभुजाकार नोकों (Spikes) के द्वारा दिखाया जाता हैं शीतवाताग्र की गति गर्म वायु राशि की तुलना में अधिक होती है  ।

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(b) उष्ण वाताग्र (Warm Front):

उष्ण वाताग्र के अगले भाग को अर्द्धवृत्त के द्वारा दिखाया जाता है जो गति की दिशा की ओर बने हुये होते हैं  उष्ण वाताग्र की गति, ठंडे वाताग्र की गति की तुलना में कम होती है  ।

(c) अवरुद्ध अथवा मिश्रित वाताग्र (Occluded Front):

ऊपर उठती ऊष्ण वाताग्र तथा उसके क्षेत्र में प्रवेश करने वाले ठंडे वाताग्र जब एक-दूसरे में मिश्रित हो जाएं तो उसको अवरुद्ध वाताग्र कहते हैं ।

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ध्रुवीय वाताग्र सिद्धान्त (Polar Front Theory):

एक आगे बढ़ती हुई वायु का अगला सिरा वाताग्र कहलाता है । बीसवीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थाश में नॉर्बे के मौसम विशेषज्ञ वी. बिरकनेस (V. Birkenes 1862-1951) और उसके पुत्र जैकब बिरकनेस (Jacob Birkenes) ने शीतोषण चक्रवात की उत्पत्ति का ध्रुवीय सिद्धान्त प्रस्तुत किया था । यह सिद्धान्त मौसम की पूर्व सूचना देने और मौसम की व्याख्या एवं भविष्यवाणी के लिये उपयोगी सिद्ध हुआ ।

इस सिद्धान्त के अनुसार किसी शीतोषण चक्रवात की उत्पत्ति निम्न छह चरणों में होती है (Fig. 3.27):

प्रथम चरण (Stage I):

इस अवस्था में उष्ण वायुराशि तथा ठंडी वायु राशियाँ एक-दूसरे के समानान्तर स्थित होती हैं और वायुमण्डल लगभग शान्त होता है ।

दूसरा चरण (Stage II):

इसको चक्रवात की आरम्भिक अवस्था कहते हैं । इस अवस्था में उष्ण वायुराशि ऊपर उठने लगती है तथा ठंडी वायुराशि, गर्म वायुराशि की ओर अग्रसर होती है ।

तीसरा चरण (Stage III):

यह चक्रवात की युवा अवस्थिति कहलाती है । इस अवस्था में चक्रवात की वायु भार रेखायें वृत्ताकार होने लगती हैं ।

चौथा चरण (Stage IV):

इस अवस्था में गर्म तथा ठंडी वायु राशियाँ एक-दूसरे के निकट आ जाती हैं ।

पाँचवाँ चरण अवस्था (Stage V):

इस अवस्था में गर्म तथा ठंडी वायु राशियाँ मिश्रित हो जाती हैं ।

छठा चरण (Stage VI):

इस अवस्था में उष्ण सेक्टर पूर्ण रूप से लुप्त हो जाता हैं और चक्रवात पूर्ण रूप से विकसित हो कर आगे बढ़ने लगता है (Fig. 3.27) ।

शीतोष्ण चक्रवात की विशेषताएं (Characteristics of Temperate Cyclones):

(1) शीतोष्ण चक्रवात की सम्भार रेखायें लगभग अण्डाकार होती हैं ।

(2) शीतोष्ण चक्रवात का विस्तार 1600 किलोमीटर चौड़ा हो सकता है । कभी-कभी एक ही चक्रवात पूरे यूरोप पर फैला हुआ होता है ।

(3) शीतोष्ण चक्रवात स्थिर हो सकते हैं तथा 900 से 1000 किलोमीटर प्रति दिन की गति से गतिमान हो सकते हैं ।

(4) इनकी उत्पत्ति महासागरों के उन क्षेत्रों में होती है जहाँ उष्ण कटिबंधीय वायु. शीत कटिबंधीय वायु से मिलती है ।

(5) इनकी सामान्य दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में पश्चिम से पूर्व की ओर होती है ।

(6) प्रत्येक शीतोष्ण चक्रवात की गति भिन्न होती है परन्तु अधिकतर चक्रवात 30 से 50 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ते हैं ।

(7) इनसे हल्की वर्षा फुहार के रूप में होती है कभी-कभी तेज बोछार पड़ती है ।

(8) वर्षा में कोहरा का मौसम बना रहता है ।

(9) चक्रवात के अन्तिम भाग में बिजली की चमक तथा बादलों की गरज-कडक होती है ।

(10) झंझा और तड़ित के पश्चात मौसम साफ हो जाता है, आकाश नीला हो जाता है तथा प्रतिचक्रवात की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।

शीतोष्ण चक्रवात के मौसम: (Weather for Temperate Cyclones):

शीतोष्ण चक्रवात के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार का मौसम एवं वर्षा होती  है । पश्चिम की दिशा से आने वाला चक्रवात जब निकट आ जाता है तो वायु दाब गिरने लगता है तथा चन्द्रमा और सूर्य के चारों ओर प्रभामण्डल (Halo) स्थापित हो जाता है ।

तत्पश्चात् जैसे-जैसे चक्रवात करीब आता है तापमान बढ़ने लगता है, वायु की दिशा बदल कर दक्षिण-पूर्व से आने लगती है बादलों की ऊँचाई कम होने लगती है तथा हल्की वर्षा आरम्भ हो जाती है । उष्ण वाताग्र के आने पर घने काले बादल (Nimbus Clouds) आकाश में छा जाते हैं ।

वर्षा मन्द गति से विस्तृत क्षेत्र पर होने लगती है । इसके पश्चात तापमान में गिरावट आती है तथा वर्षा की बौछार तेज हो जाती है । इसके पश्चात् बादलों में गरज-चमक (Thunder and Lightning) होती है । इस प्रकार का मौसम चक्रवात के अन्त का संकेत देता है । इस प्रकार से मौसम साफ हो जाता है तथा प्रतिचक्रवात की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।

शीतोष्ण चक्रवातों का भौगोलिक वितरण (Geographical Distribution of Temperate Cyclones):

शीतोष्ण चक्रवात का वितरण 3.29 में दिखाया गया है । सामान्यत: शीतोष्ण चक्रवात 40° तथा 60° अक्षांशों में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होते हैं । इनकी बारम्बारता दक्षिणी गोलार्द्ध अक्षांशों के बीच सब से अधिक होती है । मौसम परिवर्तन के साथ इनके मार्गों में भी परिवर्तन होता रहता है ।

शीतोष्ण चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिक वर्षा देते हैं, जिसका मुख्य कारण जल तथा थल का असमान वितरण है। दक्षिणी गोलार्द्ध में सागर का क्षेत्रफल अधिक है ।

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