सही आलू के बीज का उपयोग करके आलू को कैसे पैदा करें | Read this article in Hindi to learn about how to cultivate potato using true potato seed.

सामान्यतः परंम्परागत ढंग से आलू की खेती कन्दों द्वारा की जाती है । परन्तु आलू के कन्द कई प्रकार के बिमारियों द्वारा आसानी से आक्रान्त हो जाते है जिससे आलू की पैदावार प्रभावित होती है ।

साथ ही कन्दों द्वारा की जाने वाली खेती में अधिक बीज की मात्रा के कारण फसल उत्पादन व्यय भी अधिक होता है तथा 15–20 प्रतिशत कन्दों की, जिनका उपयोग सामान्यत: खाने के लिए किया जा सकता है, हर वर्ष जमीन में बो करना पडता है ।

इस तकनीक के निम्न लाभ है:

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(i) प्रति हैक्टैयर उत्पादन के लिए बहुत कम सत्य बीज (150 ग्राम/हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है ।

(ii) सत्य बीज से उत्पादित फसल पिछेती झूलसा एवं पाले के लिए प्रतिरोधी ।

(iii) सत्य आलू बीज से कहीं भी आसानी से फसल उत्पान्न किया जा सकता है ।

(iv) सत्य आलू बीज द्वारा उत्पन्न कन्द से दूसरे वर्ष में उत्पादन अधिक होता है ।

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इस तकनीक को उपयोग में लाकर खाने के लिए आलू की बड़ी मात्रा को बचाया जा सकता है । साथ ही आलू उत्पादन में बीज के रूप में लगने वाली बड़ी लागत की भी कम किया जा सकता है । जिससे छोटे एवं सीमांत किसानों के व्यावसायिक उत्पादन आसान एवं सस्ता हो सकता है ।

सत्य आलू बीज का प्रभेद:

(a) टी० पी० एस० सी० – 3

(b) एच० पी० एस० – 1/13

(c) 92 पी० टी० – 27

फसल उत्पादन विधि:

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इस तकनीक से व्यावसायिक आलू का उत्पादन निम्न दो प्रकार से किया जाता है:

1. पौध रोपण से आलू उत्पादन ।

2. सीडलिंग ट्‌यूबर (केंदित) से आलू उत्पादन ।

प्रथम विधि में व्यावसायिक आलू उत्पादन के लिए संकरित सत्य आलू बीज के पौधों को नर्सरी (बीजस्थली) में उगते हैं । पुन: 21-25 दिन के पौधों को मेड पर लगते हैं । इस विधि में प्रथम वर्ष में 100-150 क्वि॰/हे॰ कन्द को सिडलिंग ट्यूबर कहते है । इसके बाद की अवस्था दूसरी विधि में आता हैं ।

प्रथम वर्ष में प्राप्त सीडलिंग ट्‌यूबर को व्यावसायिक उत्पादन के लिए बीज कन्द के रूप में उपयोग करते हैं । इसके उपयोग से ज्यादा उत्पादन (300 – 350 क्विंटल/हेक्टेयर) प्राप्त होता है । इस प्रकार संकरित सत्य आलू बीज की पूरी क्षमता का दोहन दूसरे वर्ष में होता है । लेकिन इस विधि द्वारा आलू का व्यावसायिक उत्पादन अत्यन्त सस्ता एवं सुगम है ।

1. पौधा रोपण से आलू उत्पादन:

जिन इलाकों में आलू की खेती के लिए तापमान अधिक दिनों तक अनुकूल रहता है और सिंचाई की व्यवस्था उत्तम हो सकती है इस विधि से आलू का उत्पादन किया जा सकता है । इस विधि का विस्तृत वर्णन नीचे दिया जा रहा है ।

i. बुआई का समय:

सामान्य कन्द आलू की बुआई से करीब 25 दिन पहले ही क्यारियों में पौध तैयार करने हेतु सत्य बीज की बुआई करते हैं ताकि रोपाई का कार्य अक्सर से 10 नवम्बर तक में पूरा हो जाय । इसके बाद की रोपाई में पैदावार कम होती है ।

ii. क्यारी बनाना:

एक मीटर चौड़ी एवं आवश्यकतानुसार लम्बी क्यारी बनावें । क्यारियों में मिट्‌टी भुरभुरा कर 15 सें०मी० गहराई से ली गई मिट्‌टी में उचित मात्रा में सड़ी गोबर या वर्मीकम्पोस्ट मिलाकर 10 सें०मी० मोटी तह लगा देते हैं । इनमें 16.5 ग्राम यूरिया 5० ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 16.7 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिट्‌टी में अच्छी तरह मिलाकर 10 सें०मी० मोटी तह लगा देते हैं । इस प्रकार लगभग 150 ग्राम बीज को 75 वर्ग मीटर की क्यारी की आवश्यकता पड़ती है । जिससे तैयार पौधा लगभग एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 21 से 25 दिन बाद प्रतिरोपित किया जा सकता है ।

iii. सत्य बीज की पौध तैयार करना:

मैदानी क्षेत्रों में जब दिन का न्यूनतम तापमान 20 ± 2° सें०ग्रे० हो जाय तब बीज की बुआई क्यारियों में करना चाहिए । बीज की बुआई के एक दिन पहले क्यारियों का हल्की सिंचाई करते हैं । सामान्यतया बीज को 24 घंटे तक पानी में फुलाकर एवं अंकुरित करने के बाद क्यारियों में लगाना चाहिए ।

कभी-कभी आलू का सत्य बीज सुसुप्ता अवस्था में रहता है तो इसको उचित रासायन (जैविक अम्द 3 प्रतिशत) से उपचारित करते हैं । जिससे यह आसानी से अंकुरित हो जाय । क्यारियों में 2 पंक्तियों के बीज 10 सें०मी० के दूरी रखकर, करीब आधा सें०मी० गहरी लाइने बनाने के बाद 2 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से आलू का सत्य बीज बो देते हैं तथा बीज को सड़ी हुई गोबर खाद से ढक देते हैं ।

आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए ताकि क्यारियों में नमी बनी रहें । बुआई के 8 – 10 दिन बाद बीज का अंकुरण प्रारम्भ हो जाता है । जब अंकुरण समाप्त हो जाता है और पौधों से पत्ते निकलने प्रारम्भ होते है तब हर तीसरे दिन के अन्तराल पर पौधों पर 0.1 प्रतिशत यूरिया के घोल का भी छिड़काव कर सकते है । इस प्रकार बुआई के 25 से 30 दिन बाद जब पौधों में 4-5 पत्तियां आ जाय तब पौधा रोपई के लिए तैयार हो जाती है ।

iv. खेत की तैयारी:

आलू के पौधा की रोपाई के लिए खेत उसी तरह तैयार करना चाहिए जैसा कन्द आलू के लिए तैयार करते हैं । खेत में 20 टन/हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद या 4 टन/हेक्टेयर वर्मीकम्पोस्ट मिलायें । खेत की उर्वरा शक्ति के अनुसार तीन चौथाई भाग यूरिया (108 कि० ग्रा०) एवं पूरी मात्रा फॉस्फेट (560 कि०ग्रा० सिंगल सुपर फॉस्फेट) तथा पोटाश (167 कि०ग्रा० म्यूरेट ऑफ पोटाश) का अनुशंसित मात्रा मिलायें । उसके बाद खेत में 20 सें०मी० उँचाई का मेड 60 सें०मी० के अंतर पर पूर्व से पश्चिम दिशा में बनाते हैं । रोपाई से 3-4 दिन पहले मेड के आधे भाग तक पानी भर दें जिससे रोपाई के समय पर्याप्त नमी मिल सके ।

v. पौधों की रोपाई:

पौधों की रोपाई दोपहर के बाद करना चाहिए । साथ ही पौधों की सावधानी पूर्वक नर्सरी से उखाड़कर खेत में पहुँचाना चाहिए ताकि जड़ को कम से कम नुकसान पहुँचे । पौधों की रोपाई मेड के उत्तरी हिस्से में 10 सें०मी० के अंतर पर भींगी मिट्‌टी में करें ।

प्रत्येक जगह पर सिर्फ एक ही पौधा लगायें । रोपाई के बाद पौधों के नीचले हिस्से तक सिंचाई करें । प्रत्येक 3-4 दिन पर पौधों के प्रतिरोपण के बाद तब तक सिंचाई करना चाहिएं जब तक पौधा अच्छा से नहीं लग जाय । उसके बाद आवश्यकतानुसार पौधों का सिंचाई करें ।

पौधों के रोपाई के बाद 30-35 दिन बाद बची हुई नत्रजन की मात्रा (86 कि०ग्रा० यूरिया/हे० देकर इस प्रकार मिट्‌टी चढाये कि पौधे मेड के बीज आ जाय । लगभग 85-90 दिन पूरे होने पर सिंचाई बंद करके पत्तियां काट दें और उसके 15-20 दिन बाद कन्दों का छिलका सख्त होने पर खुदाई करें ।

इस बीच आवश्यकतानुसार खरपतवार भी निकालना आवश्यक है अन्यथा पैदावार पड़ सकता है । यदि रोपाई के समय वातावरण का तापमान अधिक न हो तो पौधों को मेड के बीच में भी लगाया जा सकता है । इसके लिए मेंड् की उँचाई कम रखें । इस विधि द्वारा एक हेक्टेयर खेत से लगभग 250 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है ।

इस पैदावार को आवश्यकतानुसार अगले वर्ष के लिए बीज के रूप में भी उपयोग में लाया जा सकता है । परन्तु जिन इलाकों में भूमि कुछ विशेष बीमारियों जैसे भूरी गलन या साधारण पपड़ी (स्क्रेब) से ग्रसित हो तो उत्पादित कंद को केवल खाद्‌य रूप में बेच देनी चाहिए ।

2. सीडलिंग ट्‌यूबर (कन्द) से आलू का उत्पादन:

जिन क्षेत्रों में फसल अवधि कम हो तापमान कम समय के लिए अनुकूल हो, सीड प्लॉट तकनीक से आलू उत्पादन किया जा सकता है और भण्डारण की व्यवस्था हो वहाँ यह विधि अधिक उपयोगी है ।

इस विधि का विवरण नीचे दिया जा रहा है:

i. बुआई का समय:

अक्तूबर का दूसरा सप्ताह जब कन्द बीज की बुआई आरम्भ होती है ।

ii. बुआई से संबंधित कार्य:

इस विधि में प्रथम वर्ष सत्य बीज से सीडलिंग ट्‌यूबर तैयार कर, उन्हें अगले वर्ष बीज आलू कन्द के रूप, में उपयोग कर आलू का उत्पादन कर सकते हैं । सीडलिंग ट्‌यूबर उत्पादन के बाद कन्दों को आकार के हिसाब से अलग-अलग छाँटकर लगाया जाता है ।

साधारणतया 2-5, 5-10, 10-20 और 20-40 ग्राम के कन्दों की छंटाई करते हैं । शीतगृह में रखने से पहले विभिन्न आकार के सीडलिंग ट्‌यूबरों को बोरिक एसीड के 3 प्रतिशत घोल (3 ग्राम प्रति लीटर) से उपचारित करके रखें ।

इस तरह से सीडलिंग ट्‌यूबर को अगले साल आलू उत्पादन में व्यावसायिक रूप से सामान्य कन्दों द्वारा खेती की तरह उपयोग कर सकते हैं। आलू की व्यावसायिक उत्पादन के लिए सीडलिंग ट्‌यूबर की निम्न सारणी-2 के अनुसार लगाते है । छोटे सीडलिंग ट्‌यूबर (5 ग्राम से छोटा) को पहले नर्सरी में लगाते हैं, फिर पौधों की खेत में लगाते हैं ।

अन्य सस्य क्रियायें एवं पौधा संरक्षण प्रक्रिया सामान्य कन्द से उगाये जाने वाले आलू के तरह ही रखा जाता है । इस विधि द्वारा खेती करने से 90-110 दिन की फसल से लगभग 300-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार ली जा सकती है और जिन क्षेत्रों में आलू की फसल के दौरान माहू (एफीड) कीट की संख्या कम रहती है तो इसकी पैदावार को तीन वर्ष तक बीज के उपयोग में लाया जा सकता है ।

ध्यान रहे कि अगले वर्षों में केवल बीज के आकार के कन्दों को ही बुआई हेतु रख अन्यथा पैदावार कम हो सकती है । इन विधियों द्वारा खेती करने से पिछेती झूलसा जैसी महामारी से बचा जा सकता है जो किसानों के लिए बहुत उपयुक्त एवं सहायक है ।

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