खिलौना उद्योग कैसे स्थापित करें? | Are you planning to set up a toy industry? Read this article in Hindi to learn about how to set up and establish a toy industry.

भारत में खिलौने बहुत प्राचीनकाल से बनते आ रहे हैं । जिसका प्रमाण हड़प्पा और मोहनजोदड़ों की खुदाईयों से प्राप्त अवशेषों से भी मिलता है । ग्रीक और रोमन सभ्यताओं के प्राचीन केन्द्रों की खुदाइयों में भी प्राचीन काल के खिलौने प्राप्त हुए । इन प्रमाणों से यह पता चलता है कि खिलौने बनाना भारत की परम्परागत कला रही है ।

प्राचीन काल में खिलौने मिट्टी के बनाये जाते थे और बाद में इन्हें आग में पका दिया जाता है । समय बीतने के साथ ही कपड़े और लकड़ी के खिलौने भी बनना आरम्भ हो गया । भारत में खिलौना उद्योग को अंग्रेजी राज्यों में कोई संरक्षण नहीं दिया गया । प्रथम महायुद्ध के पश्चात विदेशों से यांत्रिक खिलौने भारी संख्या में आने लगे जिससे इस उद्योग को बहुत आघात लगा ।

इसके पश्चात् होनेवाले राष्ट्रीय आन्दोलनों ने इस उद्योग को थोड़ा सहारा दिया और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सरकारी प्रयत्नों ने न केवल इस उद्योग को समाप्त होने से बचाया है, बल्कि इसे आत्मनिर्भर बनाकर इसे विस्तार करने योग्य बना दिया ।

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खिलौने बनाने का उद्योग पूर्णत: घरेलू उद्योग है और सारे भाग्य में फैला हुआ है । इस उद्योग की एक विशेषता यह रही है कि यह बहुत से लोगों का पुश्तैनी पेशा रहा है और जिस स्थानों पर इस काम के पुश्तैनी करने वाली के कुछ परिवार रहते हैं उन्हीं स्थानों पर इस उद्योग के केन्द्र बन गये हैं ।

खिलौने बनाने के केन्द्रों में लखनऊ (उत्तर प्रदेश), कृष्णानगर (पश्चिम बंगाल) और पाटन (गुजरात) मिट्टी के खिलौने बनाने के लिए उल्लेखनीय है ।

लखनऊ, मिट्टी के खिलौने बनाने के लिए सैकड़ों वर्षों से प्रसिद्ध है । यहां पर इस उद्योग के विकास का एक कारण यह है कि लखनऊ के पास तरिया स्थान पर एक विशेष प्रकार की मिट्टी मिलती है जो खिलौने बनाने के लिए बड़ी अच्छी रहती है ।

लकड़ी के खिलौने बनाने का उद्योग मुख्यतः घरेलू उद्योग के रूप में है । परन्तु बहुत से स्थानों पर लघु उद्योग के रूप में कारखाने लगे हुए हैं जिनमें लकड़ी के खिलौनों के अतिरिक्त मांटेसरी व किन्डर गार्डन शिक्षा पद्धति में सहायक फलों के मॉडल, बिल्डिंग ब्लॉक पहेलियां नन्हें-मुन्हें फर्नीचर के नमूने, छोटी करें व इंजन आदि भी लकड़ी के बनाये जाते हैं ।

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पेपरमैशीं कला का उद्‌गम ईरान माना जाता है । आजकल भारत के अनेक स्थानों में पेपरमैशी के खिलौने बनते हैं । इस कला के महत्वपूर्ण केन्द्र हैं मध्यप्रदेश में ग्वालियर व इन्दौर, केरल में तैनीचेरी व कोझीकोडे, उत्तर प्रदेश में मथुरा व आगरा, राजस्थान में जयपुर, तमिलनाडु में पनरूपती, कुड्डालासेर और तन्जोर, आंध्र प्रदेश में मसूलीपट्टम, उड़ीसा में कटक तथा कश्मीर में श्रीनगर । इन केन्द्रों में पेपरमैशी के खिलौने, पशु-पक्षियों के चेहरे, दीवार पर यगने के रिलीफ चित्र, फल, पशु-पक्षी आदि बनते हैं ।

भारत प्रतिवर्ष लाखों रुपये मूल्य के खिलौने निर्यात करता है लकड़ी तथा पेपरमैशी के कलात्मक खिलौनों का सबसे बड़ा विदेशी ग्राहक संयुक्त राष्ट्र अमेरिका है । अन्य ग्राहक देश हैं अफगानिस्तान, इग्लैंड, श्रीलका, मलेशिया, कुवैत और नाइजीरिया ।

मिट्टी व पेपरमैशी के खिलौने (Clay and Peppermint Toys):

मिट्टी व पेपरमैशी के खिलौने बारही महीने बिकते हैं, यद्यपि उनकी सबसे अधिक बिक्री दीपावली व अन्य त्यौहारों पर ही होती है । कुछ वर्ष पहले तक खिलौने केवल बच्चों का मन बहलाने के लिए खरीदे जाते थ । परन्तु आजकल ऐसी बात नहीं है ।

आजकल पड़े-लिखे व्यक्ति अपने घरों को सजाने एवं अपने ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ाने के लिए खिलौने खरीदते हैं, परन्तु यह खिलौने वास्तव में खिलौने नहीं कहलाते बल्कि कलाकृति (आर्ट पीस) कहे जाते हैं, क्योंकि इनमें कला का अंश अधिक होता है और बच्चों की पसंद से ये भिन्न हैं, ऊंचे मूल्य में बिकते हैं ।

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उदाहरण के लिए कोई बच्चा वीनस के स्टेच्यू को पसंद नहीं करेगा इसके विपरीत छोटी बिल्ली या हाथी का खिलौना तुरत उठा लेगा । अत्यंत की कलापूर्ण बनी हुई अजंता की नर्तकी की अपेक्षा वह गूजरी से ज्यादा खुश होगा । इस प्रकार आजकल के खिलौने दो वर्गों में रखे जा सकते हैं, सस्ते चमकदार रंगों वाले बच्चों के खिलौने और घरों की सजावट के लिए कलात्मक खिलौने ।

कलात्मक खिलौने में नग्न व अर्द्धनग्न स्त्रियां, अजन्ता एलोरा-खुजराहो की कलाकृतियां, दीवार पर टांगने के रिलीफ चित्र (उमर खय्याम, राधा-कृष्ण आदि), राष्ट्रीय नेताओं के बस्ट आदि सबसे ज्यादा बिकते हैं । वास्तव में अधिक मूल्य में कलात्मक खिलौने ही बनते हैं ।

मिट्टी के खिलौने बनाने की दो विधियां हैं एक विधि तो यह है कि अच्छी चिकनी मिट्टी लेकर सांचों में इसे जमाकर खिलौने बनाये जाते है । खिलौनों को आग में पका लिया जाता है ।

दूसरी विधि यह है कि चिकनी मिट्टी में कागज की कतरन गलाकर और कूटकर मिला दी जाती है तथा साथ में थोड़ा सा गोंद भी मिला दिया जाता है । इसे वास्तव में कुट्टो कहा जाता है । इस कुट्टो से बने हुए खिलौनों को आग में नहीं पकाना चाहिए । अतः इन्हें बनाने के बड़ी सुविधा रहती है ।

पेपरमेशी से खिलौने कम बनाये जाते हैं बल्कि थियेटरों में व राम-लीला में काम आने वाले पशु-पक्षियों, राक्षसों व देवताओं आदि के चेहरे, शृंगारदान जैसी चीजें बनाई जाती है । यह काम सबसे अच्छा कश्मीर में होता है और कश्मीर की बनी पेपरमैशी की वस्तुएं विदेशों में भी बहुत पसंद की जाती है ।

कागजों को किसी मिट्टी के बर्तन में गला लेना चाहिए । अगर प्रेस कटिंग के कागज हों तो बड़ी सुविधा रहेगी. परन्तु यदि अखबार या कापियों की रही हो तो इसे फाड़कर छोटे-छोटे टुकड़े करके भिगो लेना चाहिए । इनके ऊपर इतना पानी डाला जाता है कि कागज पूरी तरह डूबे रहें ।

कागजों को लगभग 15 दिन तक पानी में गलाना पड़ता है और प्रतिदिन एक बार कागजों को उलट-पलट कर देते हैं । जब कागज गलकर मुलायम हो जाय तो इन्हें ओखली में पत्थर पर रखकर लकड़ी की मोगरी से अच्छी तरह कूटना चाहिए । इस लुगदी को अब चिकनी मिट्टी पर डालकर और इसमें गोद का पानी मिलाकर अच्छी तरह मोगरी से कूटना चाहिए ।

इतनी अच्छी तरह कूटना चाहिए कि यह गुन्दे हुए आटे की तरह हो जाए । अब कुट्टी खिलौने बनाने के लिए तैयार है । इसे गीले टाट में लपेटकर रख दिया जाता है, ताकि यह सूख न जाये । अब सांचों में कुट्टी से खिलौने कला लिये जाते हैं ।

 

 

सांचे (Molds):

मिट्टी कुट्टी के खिलौने के लिए जो सांचे प्रयोग किये जाते हैं, वह मिट्टी के बने होते हैं, परन्तु आग में पकाए हुए होते हैं । अतः काफी मजबूत रहते हैं । सांचा दो भागों में बना होता है । यह मिट्टी के सांचे आप स्वयं भी कुछ दिनों में अभ्यास हो जाने के पश्चात बना रहते हैं, परंतु यह अच्छा रहेगा कि आप बने बनाए सांचे उन लोगों से खरीद लें जो सांचे बनाने का ही काम करते हैं ।

इन लोगों से खरीदने में यह लाभ रहेगा कि आपको अपनी पसंद के सैकडों प्रकार के सुन्दर खिलौनों के सांचे तुरत मिल सकते हैं । तैयार सांचे आपको उन स्थानों पर मिल सकते हैं जहां खिलौने बनाने का काम होता है ।

सांचे से खिलौने बनाने की विधि इस प्रकार है:

उपयुक्त तैयार कुट्टी को एक समतल फर्श या पत्थर पर रखकर बेतन से रोटी की तरह पतला बेल लीजिए. अथवा हाथ से थपथपा कर पतली रोटी जैसा बना लीजिए । इसके ऊपर सांचे का आधा भाग रखकर इस आधे भाग के सहारे-सहारे चाकू चलाते हुए रोटी काट लीजिए ।

इस रोटी को जब सांचे के आधे भाग के अन्दर उगली की सहायता से अच्छी तरह दबा-दबाकर जमा लीजिए । अब सांचे के इन दोनों भागों को आपस में मिलाकर पूरा खिलौना बन जाएगा । अब सांचे के दोनों को सावधानी के साथ एक दूसरे से विपरीत दिशा में खींचते हुए तौर खिलौना बाहर निकाल लिया जाता है । इसे धूप में अच्छी तरह सूखा लीजिए ।

सूख जाने के बाद इन खिलौनों पर पॉलिश और रंग कर दिया जाता है । यह पॉलिश और रंग भी खिलौने बनाने वाले कारीगर बहुत सस्ते तैयार करते हैं और यह मानना पड़ेगा कि खिलौनो को रंगना भी काफी होशियारी का काम है ।

प्लास्टर ऑफ पेरिस के खिलौने (Plaster of Paris Toys):

 

प्लास्टर ऑफ पेरिस सफेद रग का पाउडर होता है । यह पाउडर बनाने के लिए जिप्सम नामक पत्थर को आग में उसी तरह फूंका जाता है जिस प्रकार चूना बनाने के लिए चूने के पत्थर को फूंका जाता है । बस भनु हुये पत्थर को अब चक्कियों में पीस लिया जाता है । यही प्लास्टर ऑफ पेरिस कहलाता है ।

प्लास्टर ऑफ पेरिस में कई गुण होते हैं जिनके कारण यह लोकप्रिय हो गया है । इसको थोड़े से पानी में घोलकर लेई जैसी बना लिया जाता है और इसे सांचे में भर दिया जाता है । पन्द्रह-बीस मिनट में यह जमकर सख्त और पत्थर जैसा हो जाता है । अब सांचे में से इसे निकाल लिया जाता है ।

अगर इस तैयार वस्तु को पानी में डाल दिया जाता है तो कमजोर नहीं होगी, न घुलेगी । यह एक ऐसा गुण है जिसके कारण प्लास्टर ऑफ पेरिस बहुत से प्रयोगों में आता है । ब्लैक-बोर्ड पर लिखने के चक भी इससे बनाए जाते है ।

प्लास्टर ऑफ पेरिस की वस्तु या खिलौना सांचे में 15-20 मिनट में ही तैयार हो जाता है और मिट्टी या छुट्टी की तरह इसे कूटने या भूखने आदि का झंझट नहीं करना पड़ता । इस दृष्टि से अगर देखा जाये तो प्लास्टर से बने खिलौने पेपरमैशी अथवा मिट्टी से बहुत साधारण से महंगे पड़ते है ।

प्लास्टर ऑफ पेरिस से खिलौना बनाने के लिए मिट्टी अथवा धातु के सांचे काम नहीं दे सकते, क्योंकि जब यह इन सांचों में जम जाता है तो उनमें बुरी तरह फंस जाता है फिर सांचे में से निकालना बड़ा कठिन और कभी-कभी असम्भव हो जाता है ।

इस कठिनाई को देखते हुए आजकल प्लास्टर के खिलौने बनाने के लिए रबड़ के सांचे बनाए जाते हैं । चूंकि रबड़ लचकदार और खिचने वाली होती है । अतः प्लास्टर की वस्तु सांचे में फंसती नहीं है ।

रबड़ के सांचे स्वयं ही बनाए जा सकते है परन्तु प्रारंभ में बने-बनाए सांचे खरीदना सुविधाजनक रहेगा । यह सांचे पकी रबड़ के बने होते हैं । अतः सांचे से सैकड़ों खिलौने तैयार किये जा सकते हैं । प्लास्टर के खिलौने बनाने की भूरि कला को प्लास्टर कास्टिंग कला कहा जाता है ।

लकड़ी के खिलौने (Wooden Toys):

लकड़ी के खिलौने को दो वर्गों में रखा जा सकता है । एक तो भारत की परम्परागत कला के अनुसार बनाए हुए खिलौने जिनमें देवी-देवता तथा अन्य आकृतियों के खिलौने अत्यंत ही चमकदार रंग-बिरंगे पेन्टों से पेन्ट किए होते हैं । इस प्रकार के खिलौने बनाना एक खानदानी पेशा और नए आदमियों के लिए यह काम ठीक नहीं रहेगा ।

लकड़ी के दूसरी प्रकार के खिलौने आधुनिक डिजाइन के होते हैं, जैसे हवाई जहाज, टैंक, मोटर आदि । यह खिलोने बड़ी सरलता से बनाए जा सकते हैं और आजकल इन्हीं की बिक्री ज्यादा है ।

नर्सरी और किण्डर गार्डन स्कूलों में खरीदे जाने वाले वर्ड बिल्डिंग (अक्षर ज्ञान व शब्द सिखाने वाले चौकोर टुकड़े) पहेलियां, बिल्डिंग ब्लॉक, गुड़ियों के घर व गुडियों को नन्हा मुन्हा फर्नीचर तथा खेल में शिक्षा देने वाले पचासों प्रकार के खिलौने बनाकर इनको बड़ी-बड़ी दुकानों पर बेचा जा सकता है ।

कच्चा माल (Raw Material):

लकड़ी के खिलौने तैयार करने के लिए मुख्य माल है लकड़ी लेकिन खिलौने बनाने के लिए सख्त लकड़ी काम नहीं देती. बल्कि हल्की मुलायम और लम्बे रेशों वाली सस्ती लकड़ी का प्रयोग करते है । खिलौने बनाने के लिए सेमल, चीड़, आम आदि की लकड़ियों प्रयोग की जाती है ।

लकड़ी के बड़े ही सुन्दर मॉडल हवाई जहाज बनाए जाते हैं । इन्हें बनाने के लिए बालसा नामक एक विशेष प्रकार की लकड़ी प्रयोग की जाती है । यह लकडी बड़ी मजबूत और अत्यंत हल्की होती है । भारत में यह लकड़ी बहुत कम मात्रा में मिलती है । अतः विदेशों से ही आयात की जाती है । इसके तख्ते 18 इंच व इससे भी पतले मिल सकते हैं जिनसे हवाई जहाज बनाये जाते हैं ।

अच्छे खिलौने बनाने के लिए कभी-कभी प्लाईबुड का भी प्रयोग किया जाता है । प्लाईबुड लकड़ी के मुकाबले में बहुत ज्यादा मजबूत होती है लेकिन साथ ही काफी महंगी भी पड़ती है । प्लाईबुड हर शहर में मिल सकती है और भारत में बनाई जाती है । यह पतली और मोटी कई प्रकार की होती है ।

खिलौने बनाने के लिए मशीनें आदि (Machines Required for Making Toys):

लकड़ी के खिलौने बनाने के लिए एक फ्रेटसा मशीन की आवश्यकता पड़ेगी । यह मशीन पैरों से चलाई जाती है । काम करने वाला एक कुर्सी या स्टूल पर बैठ जाता है और पैरो से मशीन को चलाता रहता है । अधिक पूजी होने की दशा में बिजली से चलने वाली जिगसा मशीन खरीदी जा सकती है ।

इसके अतिरिक्त-लकड़ी को चिकना करने के लिए रन्दे, छोटी बड़ी हथोडिया छेद करने के लिए बरमे, चौरासी (चीजल) व अन्य बढ़ईगिरी के औजारों की जरूरत पड़ती है ।

खिलौनो में पहिए भी लगाए जाते हैं । पहिए तैयार करना भी एक समस्या है, परन्तु इसको बड़े कम खर्चे में ही हल किया जा सकता है । किसी खराद करने वाले बढ़ई से लकड़ी के मोटे-मोटे डटे खराद पर उतरवाकर गोल बनवा लिए जाते है ।

जब जरूरत पड़े तो लकड़ी काटने की अति से इसमें उचित मोटाई के पहिए काट लिये जाते है । जब काम बढ़ जाये तो लकड़ी की खराद मशीन लगाई जा सकती है जिससे खराद के काम के खिलौने व अन्य कलात्मक वस्तुएं तैयार की जा सकती है ?

खिलौने कैसे बनाये जाते हैं ? (How are Toys Made?):

खिलौने बनाने के लिए यह उचित रहेगा कि बाजार में बिकने वाले कुछ अच्छी क्वालिटी के सुन्दर खिलौने के नमूने देख लिये जाते हैं । लकड़ी के खिलौने के नमूने देखने के लिए इंग्लैंड अमेरिका आदि से प्रकाशित होने वाली दस्तकारी संबंधी पत्रिकाएं पढ कर भी लाभ उठाया जा सकता है लकडी से सुन्दर खिलौने व अन्य कलात्मक वस्तुओं के पैटर्न भारत में भी मिल जाते हैं । यह पैटर्न अधिकतर इंग्लैंड के छपे हुए है ।

यह सब खिलौने इतने सुन्दर हैं कि बच्चे इन्हें देखकर आकर्षित हो जाते हैं । यह फ्रेटसा मशीन ही सहायता के बनाये जा सकते है । लकड़ी के बने हुए बच्चों के ये सुन्दर खिलौने फ्रेटसा मशीन की सहायता से छोटे गांवों में भी बनाये जा सकते हैं ।

खिलौने बनाने का साधारण तरीका यह है कि उचित मोटाई के लकड़ी के तख्ते पर (जिसे हपेल रंदा फेरकर चिकना कर लिया गया हो) डिजाइन बना लिया जाता है और फ्रेटसा से यह नमूना काट लिया जाता है । बाद में इसमें लकड़ी के पहिए लगा दिये जाते हैं और फिर पेट कर दिया जाता है ।

खिलौने के अतिरिक्त लकड़ी या प्लाईबुड से बेल बूटेव सीने सीनरियां आदि काटकर सुन्दर कलैंडर, टाई, रैक, दीवारगिरी, बुक शैल्फ, बुक एडस, और साइनबोर्ड आदि भी बनाए जा सकते हैं । इन्हें शहरों में बेचा जा सकता है ।

कपड़े के खिलौने व गुड़िया (Fabric Toys & Dolls):

भारतीय स्त्रियां बहुत प्राचीन काल से अपने बच्चें के मन बहलाव के लिए कपड़े की गुड़िया बनाती आ रही हैं । इस गुड़ियों के अन्दर कपडा या रूई भरी जाती है । इन गुड़ियों को बच्चों के हाथ में विश्वास के साथ दिया जा सकता है, क्योंकि इनमें कोई चीज धारदार, सख्त या नोकीली प्रयोग नहीं होती ।

अतः इनको बच्चे मुंह में दबा लें या अपने ऊपर गिरा लें या फैंक दें तो बच्चों को या खिलौनो को कोई क्षति नहीं पहुंचती । इसके विपरीत टीन या प्लास्टिक के खिलौने से हानि पहुंचने की सम्भावना बनी रहती है ।

कपड़े की गुडिया और कपड़े के खिलौने आजकल बहुत बिकते हैं और इनको बनाने का काम थोड़ी सी पूजी से ही शुरू किया जा सकता है । अगर आधुनिक डिजाइनों के खिलौने बनाए जाए तो इनकी बिक्री ज्यादा बढ़ सकती है और इनके निर्यात की भी काफी सम्भावना है । इस काम में भारी शारीरिक परिश्रम नहीं करना पड़ता । काम हल्का-फुल्का है इसलिए स्त्रियों के लिए बहुत अच्छा रहता है ।

मशीन व औजार (Machine and Tools):

कपड़े के खिलौने बनाने के लिए आवश्यक मशीनें व औजार प्रत्येक घर में मिल सकते हैं । सबसे जरूरी चीज एक तेज धार वाली कैंची है जो प्रत्येक घर में होती है । इसके अतिरिक्त दो तीन छोटी-बड़ी सुइयां, थोड़ा सा मजबूत धागा विभिन्न रंगों का और एक कपड़ा सीने की मशीन ।

इनके अतिरिक्त खिलौने के नमूने (पैटर्न) बनाने के लिए एक इंच वर्गों वाला ग्राफ पेपर लगभग 2 दस्ते और पतला कागज (पतंग का कागज) लगभग एक दस्ते की भी जरूरत पड़ती रहती है ।

कपड़ा:

खिलौने बनाने के लिए साफ, पक्के रंग का और मजबूत कपड़ा चाहिए जो मशीन या हाथ से सिलाई करने में फटे नहीं । घरके पुराने कपडे भी प्रयोग किए जा सकते हैं, बशर्ते कि वह खूब मजबूत हों । ऊनी कपड़ों में भी खिलौने तैयार किए जा सकते हैं । कपड़े के खिलौने के खुर चोंक व नाक बनाने के लिए चमडे की करतनें प्रयोग की जाती है ।

भरने का मसाला (Filling Spice):

खिलौनों के अन्दर प्रायः पुराने चिथड़े, रूई, रूअड़ व लकड़ी का बुरादा भरा जाता है । अगर बच्चों के स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाए तो इनमें रोगों के किटाणु छिपे रह सकते हैं जो बच्चों के स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकते हैं ।

दूसरे यह कि रूअड़ व पुराने चीथड़े खिलौने के अन्दरगाते के रूप में एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं और खिलौनों की शेप बिगड जाती है । खिलौनों में भरने के लिए सबसे अच्छी चीज वुड वूल रहती है ।

यह वजन में हल्की होती है और जिन खिलौनों में यह भरी हो उनको धोया जा सकता है । रूई या कपड़ा पानी में भीगकर भारी हो जाता है, परन्तु वुड वूल में यह दोष नहीं है ।

 

अन्य छोटी-मोटी चीजें (Other Small Things):

खिलौनों पर लगाने की छोटी-मात्र चार्जों मे आंखें महत्वपूर्ण है । गुड़ियों और जानवरों की तैयार आंखें कांच की बनी हुई मिल जाती है । गुड़ियों के बाल व जेवर बाजार से खरीदे जा सकते हैं ।

डिजाइन व पैटर्न (Design and Pattern):

खिलौनों का डिजाइन जितना अच्छा होगा वह उतने ही जल्दी और अधिक संख्या में बिक सकेंगे । जिन लोगों के पास काफी है, वह खिलौने बेचने वाली कलकत्ता, मुम्बई और दिल्ली की बड़ी-खड़ी दुकानों से अच्छे-अच्छे डिज़ाइनों के खिलौने खरीदकर उस नमूने के खिलौने बना सकते हैं ।

एक नमूने के दो खिलौने खरीदने चाहिए, एक खिलौना नमूना का अपने पास रखा रहे और दूसरे-खिलौने को खोलकर उसके समस्त भाग अलग-अलग कर लिये जाय और उनके नाप के टुकड़े में से काटकर खिलौने तैयार किए जा सकते हैं । परन्तु ऐसा करने में काफी पैसा खर्च करना पड़ता है ।

वास्तव में जब व्यापारिक रूप मेख खिलौने बनाने हों तो खिलौने के कागज पर छपे हुए पैटर्न खरीद लिए जाते हैं । इन पैटर्नों को कपड़े पर रखकर डिजाइन टेस कर लिये जाते हैं । और कपड़े में से खिलौने के विभिन्न अंग काटकर उन्हें सी दिया जाता है ।

कभी-कभी ऐसा भी होता हे कि हमें पैटर्न से बनने वाले साइज से बड़े या छोटे साइज का खिलौना तैयार करना होता है । ऐसे समय ग्राफ का तरीका प्रयोग किया जाता है ।

यह तरीका स्कूलों में ड्राइंग के विद्यार्थियों को अच्छी तरह सिखा दिया जाता है और इसकी सहायता से किसी भी चित्र या आकृति को बड़ा या छील करने में सुविधा रहती है । बाजार में 14 इंच, 12 इंच और 1 इंच वर्ग वाले ग्राफ पेपर मिलते हैं । इनकी सहायता से पैटर्न को छोटा या बड़ा किया जा सकता है ।

कपड़े के खिलौने बनाने के कारखानों में आमतौर पर ऐसा किया जाता है कि कागज पर छपे हुए पैटर्न को टीन की चादर पर चिपका कर टीन के पैटर्न काट लिये जाते हैं । एक बार पैटर्न काटकर रख लिये जाते हैं और यह वर्षों तक काम देते रहते है । कपड़े पर पैटर्न रखकर पेंसिल से ट्रेस कर लिया जाता है ।

कपड़ा काटना (Cloth Cutting):

कागज या टीन के पैटर्न को कपडे की पाँच छह तहों के ऊपर रखकर ट्रेस कर लिया जाता है । और फिर ट्रेस की हुई रेखा से बाहर सिलाई और मुडाई के लिए फालतू कपड़ा छोड कर काट लिया जाता है ।

कपड़ा सीना (Cloth Sew):

सिलाई इस तरह करनी चाहिए कि मुड़ा हुआ कपड़ा अन्दर की ओर रहे । खिलौने के विभिन्न भाग अलग-अलग सी लिये जाते हैं और इनको एक दूसरे के साथ सी लेते हैं ।

फिर इस पूरे सिले हुए खिलौने को पलटकर सीधा कर लिया जाता है, ताकि सिलाई अन्दर को हो जाये । खिलौने की सिलाई करते समय थोड़ी सी जगह बगैर सिली छोड़ दी जाती है, ताकि इसमें से होकर कई या वुड वूल भरी जा सके ।

वुड वूल भरना (Filling Wood):

अब खुली हुई जगहों में खिलौने के अन्दर वुड वूल भरी जाती है । थोड़ी-थोड़ी वुड वूल के गोले बनाकर खिलौने के अन्दर ठूंस-ठूंस कर भर दें, ताकि खिलौना खूब सख्त बने और फुसफुसा न मालूम दे । यहां एक और महत्वपूर्ण बात याद रखना की यह है कि खिलौने के हाथ-पैर कुछ ही दिनों के प्रयोग के बाद टेढ़े-मेढ़े होकर खिलौनों की शेप बिगाड देते हैं ।

इनकी शेप बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि टांगो या हाथों की आकृति के लोहे के तार तोड़कर खिलौने के अन्दर लगाकर फिर वुड वूल भरी जाय । इस काम के लिए जस्ती लोहे का एक सूत मील तार बहुत अच्छा रहता है । तार को टांगों व हाथों के झुकाव के अनुसार मोड़ लेना चाहिए औ इसके अन्तिम सिरी को भी मोड़कर कुंडी जैसी आकृति का बना लेना चाहिए । ताकि अगर किसी समय टांगें या हाथ बाहर निकल आवे तो उनकी नोक से बच्चों को क्षति न पहुंच सके ।

अन्तिम तैयारी (Final Preparation):

खिलौने में तार लगाकर और वुड वूल भरने के बाद जो थोड़ी सी जगह खुली हुई छोड़ दी जाती है अब उसे हाथ से सी कर बंद कर दिया जाता है । अब केवल ऊपर लगने वाली चीजें लगानी शेष रह जाती है । सबसे पहले आंखें लगाई जाती है ।

अगर महंगे मूल्य में बिकने वाले अच्छी क्वालिटी के खिलौने बनाने हों तो आंखें वैसी ही लगानी चाहिए जैसी जीवित पशु की होती है । नाम और मुंह डी.एम.सी. के डोर या रेशम के डोरे से बना दिए जाते हैं ।

नाक कभी-कभी रेशम के टुकड़े या (कुत्ते, बिल्ली की नाक) पतले चमड़े की बनाकर सी दी जाती है । खुर या पंजे कभी-कभी चमड़े के बनाकर सी दिए जाते हैं । बिल्ली और कुत्तों की मूछें घोड़े के बाल सीकर बना दी जाती है । कुत्ते के गले में चमड़े की पेटी डालकर उसमें एक छील सा बकलिस लगा दिया जाता है ।

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