सरसों का सफेद जंग (नियंत्रण के साथ) | Read this article in Hindi to learn about the white rust of mustard along with its control measures.

रोग जनक या रोग कारक (Pathogen or Causal Organism):

ये रोग ऐलब्यूगो केन्डीडा (Albugo Candida) से होता है ।

सरसों रोग के लक्षण (Disease Symptoms of Mustard):

सरसों रोग से प्रभावित पौधों में दो प्रकार के संक्रमण (Infections) पाए जाते हैं:

(a) स्थानीय (Local),

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(b) सर्वांगी (Systemic) ।

(a) स्थानीय संक्रमण (Local Infection):

इसमें पत्तियों (Leaves) की निचली सतह पर अलग-अलग स्फोट (Pustules) अथवा सोराई (Sori) बन जाते हैं जो उभरे (Raised) तथा सफेद (White) चमकीले (Shining) तथा 1.2mm व्यास वाले होते हैं ।

स्फोट या फफोले (Blisters) विभिन्न प्रकार के होते हैं जो एक दूसरे से मिलकर (अनियमित) (Irregular) धब्बों (Spots) के रूप में दिखाई देते हैं जो रस्ट (Rust) के समान होते हैं ।

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इसे ही श्वेत रस्ट रोग (White Rust of Crucifers) कहते हैं । इसमें अधिकतर पौधों की पत्तियाँ रूपान्तरित नहीं होती है । कुछ पोषक (Host) के संक्रमित तनों (Infected Stem) की पत्तियाँ मोटी, (Thick), मांसल (Fleshy) अथवा मुड़ जाती (Inrolled) हो जाती है ।

रोग के उग्र (Severe) होने पर यह पत्तियाँ छोटे आकार की रह जाती है । स्फोटो (Blisters) तथा पोषक पत्ती का एपीडर्मिस (Epidermis) फट जाती है । जिससे पक्षी की निचली सतह (Lower Surface) पर सफेद चूर्ण (White Powder) फैला हुआ दिखायी देता है ।

अधिक रोग ग्रस्त पत्तियों की ऊपरी सतह (Upper Surface) पर भी स्फोट बन जाते हैं । जब पोषक (Host) के शिशु (Young) तने तथा पुष्पीय भाग (Flowering Part) संक्रमित (Infected) हो जाते हैं ।

तो यह कवक (Fungi) सर्वांगी (Systemic) हो जाता है और ऊतकों (Tissues) को उद्दीपित (Stimulate) करके हायपर ट्रोफी (Hyper Trophy) हाइपर प्लाजिया (Hyper Plasia) प्रदर्शित करता है जिससे पौधे के अंग विरूपित (Distorted) तथा बहुत अधिक लम्बे (Elongated) हो जाते हैं । संक्रमण (Infection) के कारण सम्पूर्ण पुष्पनक्रम (Inflorescence) रोग ग्रस्त हो जाते हैं ।

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पुष्प (Flower) के विभिन्न भाग भी प्रभावित हो जाते हैं जिससे इनका अक्ष (Axis) कई गुना मोटा हो जाती है तथा प्रव्यों में कुरूपता (Determination) आ जाता है और अन्त में पुष्पों (Flowers) का बनना बंद हो जाता है तथा पुष्पों में निम्नलिखित रूपान्तरण हो जाते हैं:

(1) पुष्पीय अंग (Floral Organs) फूलकर (Swollen) मांसल (Fleshy) हो जाते हैं ।

(2) पुष्पों (Flowers) का सामान्य रंग (Common Colour) न रहकर पुष्प हरे (Green) रंग के हो जाते है ।

(3) चक्रीय (Cyclic) पुष्प शंकु जैसे (Strobilate) पुष्पों में बदल जाते हैं ।

(4) दलों (Petals) तथा स्टेमेन्स (Stamens) का झड़ना रूक जाता है ।

(5) दल (Petals) आकार में वृद्धि करते है तथा उनमें पूर्व रंग द्रव्य (Pigments) के स्थान पर क्लोरोफिल (Chloropylle) बनने लगता है । अत: ये हरे रंग (Green Colour) के दिखाई देते हैं ।

(6) प्रकेसर (Stamens) भी पत्ती की भाँति चपटे (Flat) व हरे रंग के हो जाते हैं ।

(7) जायांग (Gynoecium) फूल जाता है तथा बड़े आकार के हो जाता है ।

(8) पराग कण (Pollen Grains) तथा बीजाण्ड, बन्धय (Sterile) हो जाते है ।

(9) फल्लियाँ (Fruits) आकार में फूल जाती हैं तथा हरे रंग (Green Colour) की हो जाती है ।

(10) बीजों (Seeds) का सामान्य परिवर्द्धन रूक जाता है ।

रोग जनक (Pathogen) का कवक जाल (Mycelium) सुविकसित पट्ट रहित (Non-Septate), अन्त:कोशिकीय (Intercellular) होता है जिस पर अनेक घुण्डीनुमा (Knob-Like) चूषकांग (Haustoria) पाए जाते हैं ।

कवक जाल पोषक (Host) की एपीडर्मिस (Epidermis) के नीचे बनता है जो अनेक छोटे, सीधे, आधरीय शाखित कोनीडियोफोर्स (Conidiophores) का निर्माण करता है ।

जिस पर (Basipetal Succession) में अनेक कोनीडिया (Conidia) श्रृंखलाओं (Chains) में लगे रहते हैं जो एक दूसरे से चोंच (Beak) जैसी संरचना से पृथक रहते हैं । स्फोटों द्वारा पोषक एपीडर्मिस (Epidermis) पर दबाव पड़ता है जिससे कोनीडिया (Conidia) पत्ती की सतह पर बाहर निकल आते हैं ।

अनुकूल परिस्थितियों (Condition) में यह कोनीडिया (Conidia) अंकुरण करते हैं तथा अंकुरण नलिका (Germinating Tube) स्वस्थ्य पौधों के रन्धों (Stomata) द्वारा प्रवेश करते हैं । कुछ पोषकों में विशेष परिस्थितियों में ऊस्पोर्स (Oospores) का निर्माण होता है ।

एन्थ्रीडिया (Anthridia) तथा ऊगेनिया (Oogonia) पोषक की अन्तरा कोशिकीय स्थानों (Intracellular Spaces) में बनते हैं । ऊस्पोर (Oospores) का व्यास 40-55µ होता है तथा यह गोलाकार (Globular) होता है । जिस पर भूरे (Brown) रंग का आवरण एपीस्पोर (Epispore) पाया जाता है तथा इनका अंकुरण (Germination) काफी समय बाद होता है ।

सरसों रोग नियन्त्रण (Disease Control of Mustard):

सरसों रोग नियन्त्रण Disease Control के लिए निम्न उपायों ले उपयोग में लाते हैं:

(1) फसल-चक्र (Crop-Rotation) को अपनाना चाहिए ।

(2) स्वस्थ बीजों (Seeds) को जो रोग रहित हो, बोना चाहिए ।

(3) खरपतवारों (Weeds) को खेत से निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए ।

(4) पौधों पर समय-समय पर 0.8% बोर्डों मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए ।

(5) रोग प्रतिरोधी किस्मों को बोना चाहिए ।

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