पपीता के रोग (नियंत्रण के साथ) | Read this article in Hindi to learn about to the three major diseases found in papaya along with its control measures. The diseases are:- 1. पपीते का पत्ती मोड़न विषाणु रोग (Leaf Curl of Papaya) 2. पपीते का मोजेइक (Mosaic of Papaya) 3. फुटरॉट ऑफ पपाया (Foot Rot or Collar Rot of Papaya).

Disease # 1. पपीते का पत्ती मोड़न विषाणु रोग (Leaf Curl of Papaya):

सर्वप्रथम थॉमस के रोग को मद्रास (Madras) में रिपोर्ट किया था । यह रोग ग्रस्त पौधे के रस को स्वस्थ पौधे में प्रवेश करा देने से उत्पन्न हो जाता है ।

रोगजनक (Pathogen):

टोबेको वायरस16 (Tobacco Virus-16) या निकोटियाना वायरस 10 (Nicotiana Virus-10) ।

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रोग के लक्षण (Disease Symptoms):

रोग ग्रस्त पपीते (Papaya) के पौधे की पत्तियाँ (Leaves) मुड़ी हुई दिखायी देती हैं जिनमें वेन किलयरिंग (Vein Clearing) लक्षण स्पष्ट होता है । रोग ग्रस्त पत्तियाँ (Diseased Leaves) आकर में छोटी (Small) रह जाती हैं और ये छूने में मोटी (Thick) तथा भुरभुरी (Brittle) होती है ।

पत्तियों (Leaves) की ऊपरी सतह (Upper Surface) पर अनेक उभार दिखायी देने लगते हैं । पत्तियों में सबसे मुख्य लक्षण उनका अन्दर की ओर मुड़कर कप जैसी (Cup Shaped) संरचना बनाकर नीचे की और झुकना (Downward) होता है ।

पत्तियों (Leaves) की शिराऐं (Veins) मोटी हो जाती है तथा वृन्त (Petioles) टेढ़े-मेढ़े (Zig-Zag) दिखायी देने लगते हैं । रोग की तीव्रता होने पर पौधे से पृथक होकर पत्तियाँ झड़ जाती हैं तथा पौधे की वृद्धि रुक जाती है ।

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संचरण (Transmission):

यह विषाणु प्राय: रोग ग्रस्त पौधे से रस (Sap) बीज (Seed) तथा यान्त्रिक विधियों द्वारा संचरण (Transmission) होता है ।

रोग नियन्त्रण (Disease Control):

(i) रोग ग्रस्त पौधों (Diseased Plants) को तुरन्त जड सहित उखाड़कर जला देना चाहिए ।

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(ii) कीटों (Insects) को नष्ट करने के लिए समय-समय पर कीटनाशियों (Insecticides) को छिड़कते रहना चाहिए ।

Disease # 2. पपीते का मोजेइक (Mosaic of Papaya):

रोग के लक्षण (Disease Symptoms):

यह रोग (Virus) के द्वारा फैलता है । पपीते (Papaya) की पत्तियों पर सर्वप्रथम मोजेएक (Mosaic) के लक्षण दिखायी देते हैं जो पत्ती के सम्पूर्ण पीले-हरे (Yellow-Green) पटल (Lamina) पर फफोलेनुमा (Blister Like) हरे ऊतकों (Green Tissues) पर बिखरे रहते हैं ।

अधिक तापमान (Temperature) 53°C पर इस विषाणु (Virus) की सक्रियता कम हो जाती है । यह विषाणु (Virus) 26 से 28 घंटों तक जीवित रह सकता है ।

संचरण (Transmission):

पपीते (Papaya) का विषाणु (Virus), बीज जनित (Seed Borne) नहीं होता है । यह एफिस मालवी (Aphis Malvae), एफिस गोसीपाई (Aphis Gossypi) तथा एफिस मेडीकेजिनिस (Aphis Medicaginis) नामक एफिडस (Aphidis) के द्वारा यान्त्रिक रस (Mechanical Sap) तथा कलिका ग्रफ्टिंग (Grafting) द्वारा होता है ।

यह संचरण प्राकृतिक रूप में कीट रोगवाही (Insect Vectors) जैसे एफिस गोसीपाई (Aphis Gosspyi) तथा एफिस मेडीके जिनिस (Aphis Medica Ginis) द्वारा होता है । कपूर एवं वर्मा (1958) के अनुसार यह रोग मृदा जनित (Soil Borne) नहीं होता है ।

रोग नियन्त्रण (Disease Control):

(i) रोग प्रतिरोधी पपीते की किस्मों (Quality) को बोना चाहिए ।

(ii) भार्गव एवं पॉल खुराना के अनुसार पपीते के पेड़ों पर 1% मूंगफली के तेल के छिड़काव से रोग नियन्त्रण हो सकता है ।

Disease # 3. फुटरॉट ऑफ पपाया (Foot Rot or Collar Rot of Papaya):

यह रोग पाइथियम अफेनिडर्मेटम (Aphanidermatum Rhizoctonia Solani) से फैलता है ।

रोग के लक्षण (Disease Symptoms):

पपीते (Papaya) के फुट रॉट रोग (Foot Rot Disease) के विशिष्ट लक्षण तने की छाल (Bark) पर जल सिक्त (Water Soaked) स्पंजी (Spongy) धब्बे तने (Stem) के कॉलर भाग (Collar Region) में बनने लगते हैं । तने का कॉलर भाग (Collar Region) मृदा लाइन (Soil Line) के ठीक ऊपर होता है ।

इस प्रकार के बने धब्बे (Patches) बहुत शीघ्रता के साथ वृद्धि करते हैं तथा रोग ग्रस्त तने के चारों और गर्डिल (Girdle) बना लेते हैं जिससे तने के ऊतक (Tissues) गलने (Rot) लगते हैं और काले रंग का हो जाता है । सम्पूर्ण तना वायु के हल्के झोंके द्वारा ही टोपिल डाउन (Teple Down) हो जाता है ।

अन्त में तने की छाल (Bark) को प्रकाश करने पर भीतरी ऊतक (Internal Tissues) शुष्क (Dry) तथा मधुमक्खी (Honey Comb) छत्ते की भाँति दिखायी देता है तने की गलन (Rotting) जड़ों (Roots) तक पहुंच कर उन्हें नष्ट कर देती है ।

रोग नियन्त्रण (Diseases Control):

रोग नियन्त्रण के निम्नलिखित उपाय है:

(1) रोग ग्रस्त पौधों (Diseased Plants) को खेतों से जड़ सहित उखाड़कर जला देना चाहिए ।

(2) ऐसे खेतों में जिनमें पानी आसानी से निकल जाता है । उनमें ही पपीते की खेती करनी चाहिए ।

(3) हमेशा इस बात की सतर्कता रखनी चाहिए कि पपीते के पेड़ के निचले भाग (Basal Region) में कोई चोट या घाव नहीं होना चाहिए ।

(4) ऐसी जमीन जिनमें पपीते का गलन रोग हो चुका हो कभी भी पपीते के पेड़ नहीं लगाना चाहिए ।

(5) पौधों को प्रभावित क्षेत्रों में कवक नाशियों का लेप कर देना चाहिए ।

(6) खेती की मिट्टी में बोर्डो पेस्ट (1:1:3) (Bordeaux Mixture Past) का छिड़काव करना चाहिए ।

(7) 0.3% कॉपर ऑक्सी क्लोराइड (Copper Oxychloride) को 5 लीटर प्रति पौधे के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए ।

(8) कैप्टान (Capton), मैकोजेब (Mancozab), कैप्टाफॉल (Captafal) आदि का प्रयोग करके मृदा से Pathogens को हटाया जा सकता है ।

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