मानव प्रजातियों का वर्गीकरण | Classification of Human Species in Hindi.

विश्व की मानव प्रजातियों के वैज्ञानिक वर्गीकरण का सर्वप्रथम प्रयास लिनेकस (Linnacus) द्वारा अठारहवीं शताब्दी में किया गया । विश्व में मुख्यतः तीन वृहद् प्रजातीय समूह पाए जाते हैं ।

जो निम्नलिखित हैं:

1. श्वेत प्रजाति अथवा काकेशायड

ADVERTISEMENTS:

2. पीत प्रजाति अथवा मंगोलायड

3. काली प्रजाति अथवा नीग्रोयड

1. श्वेत अथवा काकेशायड प्रजाति (White Species):

ये गौरवर्ण के होते हैं तथा विश्व में सबसे अधिक विस्तृत क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रजाति है । ये प्रायः सभी महाद्वीपों में पाए जाते हैं तथा विश्व की लगभग आधी जनसंख्या इसी प्रजाति के अंतर्गत शामिल की जा सकती है । इस प्रजाति का मूल स्थान काकेशस पर्वत के दक्षिण भाग हैं ।

ADVERTISEMENTS:

इस प्रजाति की तीन शाखाएँ हैं:

i. यूरोपियन शाखा:

इसे पुनः तीन उपवर्गों में बाँटा जाता है:

a. नार्डिक

ADVERTISEMENTS:

b. भूमध्यसागरीय

c. अल्पाइन

काकेशियन प्रजाति की यह शाखा विश्व के उन सभी क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ यूरोपीय उपनिवेश स्थापित हुए हैं । यद्यपि इनका सर्वाधिक केन्द्रीकरण यूरोप में है ।

ii. इंडो-इरानियन शाखा:

यह इराक, ईरान व पाकिस्तान क्षेत्र में मिलती है । भारत के पश्चिमोत्तर एवं मध्य भाग में भी यह प्रजाति मिलती है ।

iii. सेमाइट और हेमाइट:

यह प्रजाति उत्तरी और उत्तर-पूर्वी अफ्रीका में फैली हुई है । इसके अंतर्गत मोरक्को, अल्जीरिया, ट्‌यूनीशिया, लीबिया, मिस्र, इथियोपिया, सोमालिया, सऊदी अरब, यमन, जॉर्डन आदि क्षेत्र की जनसंख्या शामिल की जाती है ।

2. मंगोलायड प्रजाति (Mongoloid Species):

पीले-भूरे रंग के मंगोल प्रजाति का मुख्य विस्तार मध्य व पूर्वी एशिया में है । दक्षिण-पूर्वी एशिया व इंडोनेशिया में आस्ट्रेलॉयड लोगों से संपर्क के कारण इनका रंग हल्का भूरा हो गया है । मंगोल प्रजाति का विशिष्ट लक्षण उनकी तिरछी आँखें हैं, इनकी औसत ऊँचाई 1.66 मीटर है । जो भारी पलकों के कारण मुड़ी हुई दिखती हैं । इनके बाल काले, खड़े एवं अल्प होते हैं ।

ये लघु कापालिक होते हैं तथा इनके चार प्रमुख वर्ग हैं:

i. प्राचीन मंगोलायड:

ये उत्तरी व मध्य चीन, मंगोलिया एवं तिब्बत में पाए जाते हैं । कालमुख एवं कोरयाक कबीले इस वर्ग के प्रतिनिधि हैं ।

ii. आर्कटिक मंगोलायड:

ये कनाडा, ग्रीनलैंड, अलास्का और साइबेरिया के उपध्रुवीय भाग में रहते हैं । एस्किमो एवं उसी से सम्बंधित सेमोयेड्‌स व युकागीर जैसी अन्य जनजातियाँ इस वर्ग के अंतर्गत आती हैं । इनका कद कुछ छोटा (1.62 मी.) होता है । परंतु, प्राचीन मंगोलायड की तुलना में इनका सिर कुछ बड़ा (78.6 से 84.6) होता है । ये कुछ ताम्रवर्णी होते हैं ।

iii. अमेरिकन इंडियन:

उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका के रेड इंडियन में मंगोलों के शारीरिक लक्षण मिलते हैं । इनमें काकेशियन व नीग्रो का बड़े पैमाने पर मिश्रण हुआ है, इसीलिए इनकी आँखें तिरछी नहीं होती । इनके नेत्र का रंग भूरा होता है । ये मैक्सिको से अमेजन के उत्तरी व मध्य घाटी तक फैले हुए हैं ।

iv. इंडोनेशियन मलय:

इनमें मंगोलों के साथ-साथ काकेशियन व आस्ट्रेलायड तत्वों का सम्मिश्रण मिलता है । यह प्रजाति द. चीन, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया, थाइलैंड, म्यांमार, मलाया और इंडोनेशिया में पाई जाती है । इनका कद अपेक्षाकृत छोटा (1.55-1.58 मी.) एवंसिर कुछलंबा होता है ।

3. काली अथवा नीग्रोयड प्रजाति (Negroid Species):

ये काले, भूरे एवं कत्थई रंग के होते हैं । इनका मूल स्थान अफ्रीका महाद्वीप है ।

इन्हें दो शाखाओं में बाँटा जा सकता है:

i. अफ्रीकन शाखा

ii. एशियाई शाखा व

iii. अमेरिकन शाखा ।

i. अफ्रीकन शाखा:

ये सहारा मरूस्थल के दक्षिणी भागों में मिलते हैं । इनके कई उपवर्ग हैं । वास्तविक नीग्रो पश्चिमी अफ्रीका में सेनेगल नदी के मुहाने से नाइजीरिया के पूर्वी मुहाने तक फैले हुए हैं । नाइजीरिया, घाना, आइवरी कोस्ट, लाइबेरिया आदि देशों में वास्तविक नीग्रो पाए जाते हैं । इनका औसत कद 1.73 मी. एवं कापालिक परिमिति 73 से 75 सेमी. तक होता है ।

मध्य अफ्रीका में वनवासी नीग्रो एवं पूर्वी अफ्रीका में अर्द्ध-हेमेटी प्रजातियाँ पाई जाती हैं । केन्या, युगांडा, तंजानिया में पाई जाने वाली मसाई, बइसो आदि कबीले अर्द्ध-हेमेटी प्रकार के है । कालाहारी मरूस्थल में बुशमैन व हॉटेन्टाट रहते हैं । इस प्रजाति में मंगोल प्रजाति का मिश्रण भी पाया जाता हैं ।

पिग्मी नीग्रो अफ्रीका के कांगो क्षेत्र में मिलते हैं । इनका कद ठिगना (1.3 6 मी.) है, किन्तु ये मध्य कापालिक हैं । मध्य व दक्षिणी अफ्रीका में बंटू भाषी और तवा भाषी नीग्रो भी पाए जाते हैं ।

ii. एशियाई व अमेरिकन शाखा:

नीग्रो प्रजाति के अंतर्गत आनेवाली इस शाखा में द्रविड़ व आस्ट्रेलायड प्रजातियाँ आती हैं । दक्षिण भारत में द्रविड़ प्रजाति और दक्षिण-पूर्वी एशिया व उत्तरी आस्ट्रेलिया में आस्ट्रेलायड प्रजातियाँ पाई जाती हैं । पूर्वी भारत के गोंड व उराँव द्रविड़ प्रजाति के हैं, जबकि दक्षिण भारत में टोडा, कादर, कुरूंबा आदि जनजातियाँ आस्ट्रेलायड प्रजाति के हैं ।

मलेशिया के सेमांग व सकाई, पूर्वी सुमात्रा और फिलीपींस के पिग्मी, ऐवा, अंडमान के ओन्गे, न्यूगिनी के पापुआन एवं आस्ट्रेलिया के मूल निवासी एबोरिजनल आस्ट्रेलायड वर्ग के हैं । ये दीर्घ कापालिक होते हैं तथा उनकी औसत ऊँचाई 1.56 मीटर होती है ।

नीग्रो प्रजाति की अमेरिकन शाखा पश्चिम अफ्रीका के नीग्रो लोगों के स्थानांतरण से बनी है । ये कैरेबियन एवं दक्षिणी-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका में गन्ना व कपास की खेती के लिए गुलाम के रूप में लाए गए थे । अतः इनमें वास्तविक नीग्रो के लक्षण मिलते हैं ।

Home››Biology››Species››