मैरी क्यूरी की जीवनी | Marie Curie Kee Jeevanee | Biography of Marie Curie in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. उनका जीवन परिचय व वैज्ञानिक उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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मैडम क्यूरी विश्व की उन महान् महिला वैज्ञानिकों में अपना श्रेष्ठ स्थान रखती हैं, जिन्होंने अपनी वैज्ञानिक उपलब्धि रेडियम की खोज से समूचे विश्व को चकित कर दिया था ।

आजीवन कष्टों और संघर्षों का सामना करते हुए मैडम क्यूरी ने रेडियोएक्टिविटी पदार्थों पर शोधकार्य करके अपने  स्वास्थ्य की भी चिन्ता नहीं की । विश्व को अपने शोधकार्य के द्वारा जो देन उन्होंने दी है, वह निश्चय ही उनकी विलक्षण प्रतिभा का परिचायक है ।

2. उनका जीवन परिचय व वैज्ञानिक उपलब्धियां:

मैडम क्यूरी का जन्म पोलैण्ड के वार्सा शहर में 7 नवम्बर 1887 को हुआ था । उनका बचपन का नाम मान्या स्कलोदोवस्की था । तत्कालीन समय में पोलैण्ड रूस की गुलामी में था । अत: पोलैण्डवासियों को रूसी स्थान-स्थान पर प्रताड़ित करते थे ।

मैडम क्यूरी बचपन से देशभक्त थीं । देशभक्ति की खातिर कई बार वे रूसियों द्वारा अपमानित होती रहीं । उनके माता-पिता अकसर बीमार रहा करते थे, अत: ट्‌यूशन के साथ-साथ वे नौकरी भी करती रहीं । उनके पिता गणित तथा भौतिकी के विद्वान् थे । देशभक्ति के जज्बे ने उन्हें नौकरी छोड़ने पर विवश किया ।

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11 वर्ष की अवस्था में मां की मृत्यु के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी । उनकी बहिन ब्रोन्या भी ट्‌यूशन पढ़ाकर जो कुछ कमाई करती थी, उसे लेकर वह पेरिस चली गयी । कुशाग्र बुद्धि की क्यूरी ने मेट्रिकुलेशन की परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त करके स्वर्ण पदक प्राप्त किया ।

18 वर्ष की अवस्था में गवर्नेस का कार्य किया । क्यूरी ने जो रुपये इकट्‌ठे कर रखे थे, वह बहिन बोन्या की आगे की पढ़ाई में दिये । बाद में बोन्या के आत्मनिर्भर होने पर उन्होंने अपनी मेडिकल पढ़ाई पूरी की । क्यूरी ने खराब आर्थिक स्थिति के कारण एक सीलन-भरा, धूप और हवा से रहित कमरा कम किराये पर लिया, जिसमे रहकर वह आगे की पढाई करती रहीं ।

इस दौरान उन्होंने कई भौतिकविदों के सम्पर्क में आकर उनसे काफी कुछ सीखा । उनके पास तो भोजन के लिए भी पैसे न होते थे । एक बार भोजन के अभाव में वह विश्वविद्यालय में चक्कर खाकर गिर पड़ी थीं । ब्रोन्या के पति कैसिमीर को जब यह बात मालूम हुई, तो उन्होंने क्यूरी के सीलन भरे कमरे को देखा और क्यूरी का इलाज कराते हुए उनके अच्छे भोजन का प्रबन्ध किया ।

1893 में भौतिक विज्ञान में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त कर विश्वविद्यालयीन परीक्षा उत्तीर्ण की । 1894 में गणित की परीक्षा में द्वितीय स्थान प्राप्त किया । इसी वर्ष उनकी भेंट पियरे क्यूरी से हुई, जो चिन्तनशील वैज्ञानिक, आविष्कारक मस्तिष्क वाले भौतिक तथा गणित के ज्ञाता थे ।

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विद्युत सम्बन्धी खोज में वे व्यस्त थे । स्वभाव से शान्त, सरल और गम्भीर होने के कारण मेरी ने उन्हें पसन्द किया और 25 जुलाई 1895 को उनसे विवाह किया । पियरे क्यूरी ने तापीय तरंगों की लम्बाई तथा क्रिस्टल पदार्थों का वर्गीकरण के आयतन सम्बन्धी प्रयोग किये, जो आगे चलकर पीजोइलेक्ट्रिसिटी में काम आये ।

पियरे ने भार मापक भी तैयार किया था तथा चुम्बकत्व का गहरा अध्ययन करते हुए उस पर शोधकार्य किया था । उनके द्वारा क्यूरी चुम्बकीय तराजू का आविष्कार एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है । पियरे को क्यूरी अत्यन्त प्रखर बुद्धिवाली, मेहनती लड़की लगी थीं ।

वे दोनों एक दूसरे को जीवनसाथी के रूप में पाकर काफी प्रसन्न थे । उन्होंने अध्यापन से होने वाली अपनी अल्प आय से एक छोटी-सी प्रयोगशाला भी स्थापित कर ली थी । उस समय एक्स-रे तथा रेडियोधर्मिता की कुछ खोजें हो चुकी थीं ।

रेडियोधर्मिता की खोज करने वाले ए॰एच॰ बैकरैल को यह न मालूम था कि यूरेनियम से निकलने वाली महीन किरणें अंधेरे में क्यों नष्ट नहीं होतीं और उसका विकिरण कैसे होता है ? अपने वैज्ञानिक पति की प्रेरणा से मैडम क्यूरी ने अपना शोधकार्य प्रारम्भ कर दिया । उन्होंने अपनी खोज से यह पाया कि यूरेनियम और थोरियम से ज्यादा शक्तिशाली किरणें इससे निकलती हैं ।

नये तत्व पोलोनियम और रेडियम की खोज करने के साथ उन्होंने नये विकिरण के भौतिक गुणों का अध्ययन करना प्रारम्भ किया और शुद्धतम रेडियम का निर्माण कार्य भी अपने शिष्य डरबिन के साथ जारी     रखा । सन् 1897 में क्यूरी ने आयरिन नामक बच्ची को जन्म दिया, जिसकी देखभाल के साथ-साथ उन्हें शोधकार्य में भी अपना समय देना होता था ।

1898 में मैडम क्यूरी ने रेडियम नामक नये तत्त्व की खोज की, तो उन्हें सारे विश्व में काफी वाहवाही मिली । एक तो धन की कमी, दूसरा उनका शोधकार्य में जुटे रहना काफी कष्टप्रद था । रेडियम का मानव शरीर पर प्रभाव जानने के लिए क्यूरी ने अपनी बांह पर ही इसे डाला था, जिससे उनकी बांह बुरी तरह जल गयी, जिसे ठीक होने में 2 महीनों से अधिक का समय लगा ।

सुरक्षा की दृष्टि से इसका जानवरों पर प्रयोग करते हुए अन्तत: उन्होंने यह निष्कर्ष प्राप्त किया कि शरीर का कोई हिस्सा यदि बढ़ जाये या खराब हो जाये, तो रेडियम के विकिरण के द्वारा उसे जलाकर नष्ट किया जा सकता है और शेष शरीर को बचाया जा सकता है । बाद में इसी से ही रेडियोथेरिपी का जन्म हुआ ।

रेडियम के इन गुणों की जानकारी का विश्व में ऐसा प्रचार हुआ कि इसके उत्पादन तथा उपयोग के लिए विश्व के देशों ने क्यूरी दम्पत्ति को काफी धन देने की पेशकश की, किन्तु उन्होंने यह धनराशि जनकल्याण में दे दी । यदि वे चाहते, तो इससे लाखों डॉलर कमा सकते थे ।

इस दौरान मैडम क्यूरी को लेक्चरर की नौकरी मिल गयी, साथ ही उनके पति पियरे क्यूरी की रेडियम से निकलने वाली किरणों का धनात्मक, ऋणात्मक, न्यूट्रल तीनों प्रभावों का शोधकार्य पूर्ण हुआ, जिस पर रदरफोर्ड ने अल्फा, बीटा, गामा किरणों की खोज की ।

पियरे क्यूरी ने रेडियम से निकलने वाले विकिरण की कैलोरी की नाप करते हुए रेडियोथेरिपी का मार्ग प्रशस्त किया । उन्हें जेनेवा विश्वविद्यालय का प्रोफेसर पद दिया गया था, पर मेरी के कार्य में सहयोग करने के कारण उन्होंने इसे ठुकरा दिया । मेरी सोरबोन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हो गयी थीं ।

1903 का रॉयल सोसाइटी का डेवी पदक तथा नोबल पुरस्कार मिलने के साथ-साथ उन्हें 1905 में विज्ञान अकादमी के सम्माननीय पद पर चुना गया । मेरी भी विज्ञान प्रयोगशाला की निदेशक बन चुकी थीं । 19 अप्रैल 1906 का वह दुःखद दिन, जब प्रोफेसर पियरे अपनी धुन में सड़क पर से चले जा रहे थे ।

उनका पैर फिसलने के कारण वे जैसे ही गिरे, वैसे ही एक घोड़ागाड़ी ने उन्हें बुरी तरह कुचल दिया । मेरी को यह दुर्घटना आघात देने वाली थी । इधर दूसरी बच्ची इव 2 बरस की थी । मेरी ने अपने पति द्वारा अधूरे छोड़े हुए कार्यों को आगे बढ़ाया ।

उनके पद को संभालते हुए वे सोरबोन विश्वविद्यालय की पहली महिला प्राध्यापक बनीं । 1911 में उन्होंने शुद्धतम रेडियम तैयार कर लिया । वे 2 बार नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाली प्रथम वैज्ञानिक भी बन चुकी थीं । प्रथम विश्वयुद्ध चल रहा था । इस बीच क्यूरी एक्स-रे रेडियोग्राफी विकसित करने में अपनी बेटी आयरिन के साथ जुटी रहीं । रेडियम संस्थान में उनके रेडियोथेरेपी सम्बन्धी कार्य को स्वीकार कर लिया      गया ।

1921 में वे आयरिन और इव को लेकर अमेरिका यात्रा पर गयीं थीं, जहां उन्होंने अनेक व्याख्यान दिये । यहीं पर उन्हें श्रीमती मिलान की सहायता से शोधकार्य हेतु 1 ग्राम रेडियम खरीदने हेतु आर्थिक सहयोग     मिला । मैडम क्यूरी की रेडियम सम्बन्धी खोज चिकित्सा के साथ-साथ भौतिकी में काफी महत्त्वपूर्ण रही ।

उन्होंने पार्टिकल एक्सेलेटर नामक उपकरण तैयार किया । रेडियम डी पोलोनियम तथा न्यूट्रान की खोज कर डाली । उनकी पुत्री आयरिन क्यूरी तथा उसके पति ने कृत्रिम रेडियोधर्मिता की 1934 में खोज की, जिसके लिए उन्हें रसायन का नोबल पुररस्कार मिला ।

3. उपसंहार:

रेडियोएक्टिविटी पदार्थों पर निरन्तर शोध करते हुए उन्हें फेफड़ों की खराबी ने जकड़ लिया, साथ ही रक्त कैंसर की वे शिकार हो गयीं । उनके शरीर में रक्त की कमी इतनी अधिक हो गयी कि दूसरों को बीमारियों से निजात दिलाने वाली मैडम क्यूरी अपनी लाइलाज बीमारी से 4 जुलाई 1934 को चल बसीं । विज्ञान-जगत उनकी खोज के लिए हमेशा ही उनका ऋणी रहेगा ।

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