चार्ल्स डार्विन की जीवनी | Biography of Charles Darwin in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय व उपलथियां ।

3. उपसंहार ।

ADVERTISEMENTS:

1. प्रस्तावना:

चार्ल्स डार्विन 19वीं शताब्दी के उन महान् वैज्ञानिकों में थे, जिन्होंने मानव के विकास की प्रक्रिया का जैविक विवेचन कर विश्व चिन्तन को नयी दिशा दी । उनके इस चिन्तन ने प्राणी विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, जीव विज्ञान आदि कई विषयों को प्रभावित किया । परमात्मा एवं प्रकृति की शक्ति को स्वीकारने वाले डार्विन ने प्रकृति के अनुकूलन वादी सिद्धान्त की तर्कपूर्ण व्याख्या की ।

2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां:

चार्ल्स डार्विन का जन्म 12 फरवरी, 1809 को हुआ था । उनके पिता रॉबर्ट डार्विन मूसबरी में डॉक्टरी किया करते थे । डार्विन अपने माता-पिता की छह सन्तानों में से पांचवें थे । जब वे मात्र 8 वर्ष की अवस्था के थे, तो उनकी माता का देहान्त हो गया था ।

डार्विन की देखभाल बड़ी बहिनों के द्वारा हुई । 1818 में मूसबरी में स्वाऊल के छात्रावास में रहने लगे । वहां उनमें अध्ययन के साथ-साथ पौधों के नाम जानने, सीप, शंख, घोंघा आदि संग्रह करने की प्रवृत्ति उत्पन्न हुई थी । उनके पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, अत: उन्हें एडिनबरा विश्वविद्यालय में प्रवेश लेना पड़ा । शल्यक्रिया का कक्ष उन्हें भयानक लगता था ।

ADVERTISEMENTS:

डार्विन ने अब डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़कर पादरी बनने का संकल्प ले लिया । इस बीच जीव विज्ञानी डॉक्टर ग्रान्द के प्रभाव में आकर वे समुद्र के किनारे पशु-जगत् के परीक्षण में लग गये । उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ निशानेबाजी, घुड़सवारी, ताशबाजी तथा कीड़े एकत्र करने में आनन्द प्राप्त किया ।

कीड़े एकत्र करने के दौरान उन्होंने कीड़ों की प्रजाति, उनकी संघर्ष प्रवृति, अनुकूलन इत्यादि का भी अध्ययन किया । डार्विन भूगर्भशास्त्र की कक्षाओं में पढ़ाया करते थे । जब उन्हें बीगल अभियान हेतु नियुक्त किया गया, तो उसके कप्तान फीज-राय ने उनकी नाक देखकर उन्हें आत्मविश्वास से हीन व्यक्ति और अभियान हेतु अनुपयुक्त समझा, किन्तु बाद में उनकी यह धारणा गलत साबित हो गयी ।

अभियान से लौटकर डार्विन 1838 में जियोलोजिकल सोसाइटी के सचिव हो गये । 1839 में डार्विन ने जोशिया वैजबुड से विवाह कर लिया । फिर वे लंदन छोड़कर कैंट-डाउन के शान्त वातावरण में रहने लगे । डार्विन ने यह प्रतिपादित किया कि परिवर्तनशील अवयवों में जो उानुकूल होते है, वे बच जाते हैं ।

प्रतिकूल अवयव अनाकूलन की स्थिति में समाप्त हो जाते हैं । अनुकूल की प्रकृति सुरक्षित रहना है और प्रतिकूल की नष्ट हो जाना है । उन्होंने मनुष्य सहित जीवों के विकास की प्रक्रिया को भी समझाया । उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द ओरिजन ऑफ स्पीशिज’ में परम्परागत चिन्तन को एक चुनौती देते हुए यह प्रमाणित किया ।

ADVERTISEMENTS:

जीवन में, प्रकृति में, विभिन्न प्रकार के अनगिनत जीव अस्तित्व में आये, जिनगें मनुष्य भी एक प्रकार का जीव रहा है । जो भोजन के लिए जलवायु एवं शत्रुओं के विरुद्ध संघर्ष करने में सर्वाधिक समर्थ थे, वे ही बच पाये । जो ऐसा नहीं कर पाये, उनकी प्रजातियां नष्ट हो गयीं । मनुष्य विकास की प्रक्रिया में अन्य जीवों की अपेक्षा कहीं अधिक आगे पहुंच गया है ।

वह अपने से मिलते-जुलते छोटी पूंछ वाले बन्दर से भी सभी स्तरों पर आगे निकल चुका है । मनुष्य के विकास की कहानी को डार्विन ने जिस  ढंग से प्रतिपादित किया, वैसा पूर्व के  विकासवादी वैज्ञानिक नहीं कर पाये । 24 नवम्बर, 1859 को प्रकाशित उनकी द ओरिजन ऑफ स्पीशिख पुस्तक के 1 हजार 250 प्रतियों के संस्करण उसी दिन बिक गये ।

सभी वैज्ञानिकों, दार्शनिकों, विचारकों ने इसे स्वीकार कर लिया । डार्विन अपने रोग और कष्ट को छिपाकर भी काम के लिए समर्पित रहते थे । कैंट-डाउन में रहते हुए 19 अप्रैल 1882 को इस महान् वैज्ञानिक का प्राणान्त हो गया ।

3. उपसंहार:

चार्ल्स डार्विन ने अस्तित्व के संघर्ष में सर्वाधिक समर्थ कोजीवित रहने के सत्य का प्रतिपादन किया । परमात्मा एक सर्वोपरि शक्ति है । विकास की इस प्रक्रिया में सृष्टिकर्ता ने अनेक जीवों को उत्पन्न कर अनेक शक्तियां प्रदान की हैं ।

अनेक सुन्दरतम रूपों में इनका विकास होता आया है और होता रहेगा, यह उनका कहना था । डार्विन स्वभाव से संकोचशील, विनम्र प्रवृत्ति के होने के साथ-साथ सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति सम्पन्न व्यक्ति थे । जीवों के विकासवादी सिद्धान्त को प्रतिपादित करने वाले इस महान् वैज्ञानिक को संसार हमेशा याद रखेगा ।

Home››Biography››Charles Darwin››