शुष्तुता की जीवनी | Biography of Shushruta in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. सुश्रुत का  जन्म परिचय ।

3. सुश्रुत की प्राचीन भारतीय चिकित्सा को देन ।

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4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

भारतीय वेदों का विश्व में सर्वश्रेष्ठ स्थान है । अथर्ववेद में शरीर विज्ञान से सम्बन्धित समरस प्रकार की चिकित्सा पद्धति का उल्लेख मिलता है । शल्य चिकित्सा के अन्तर्गत रुके हुए मूत्र को सुलाई से बाहर निकालना, शरीर के क्षत-विक्षत अवयवों को विभिन्न औजारों के माध्यम से जोड़ना ।

इसी प्रकार ऋग्वेद में अश्विनीकुमार नाम के वैद्य भाइयों द्वारा मनुष्य के सिर के स्थान पर पशुओं का सिर, नेत्रों की चिकित्सा, पौरुषशक्ति बढ़ाने, बांझपन दूर करने, दूटी टांग के स्थान पर लोहे की टांग लगाने का वर्णन मिलता है ।

यजुर्वेद में चिकित्सा व ओषधि से सम्बन्धित अनेक मन्त्र हैं । इन वेदों में घावों को भरने से लेकर रक्त के प्रवाह को रोकने, केशों की वृद्धि, पथरी आदि का उपचार सम्भव बताया गया है । इस तरह प्लारिटक सर्जरी की तकनीक विकसित थी ।

2. सुश्रुत का जन्म परिचय:

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शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में चरक एक महान् चिकित्सा शास्त्री के रूप गे जाने जाते हैं । उनके जन्म के सम्बन्ध में यद्यपि कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है, तथापि यह कहा जाता है कि वे ऋषि विश्वामित्र के कुल में जन्मे थे ।

सुश्रुत ने जो सुश्रुत संहिता नामक  ग्रन्थ लिखा, वह छठी शताब्दी में रचा गया था । यह भी कहा जाता है कि दिवोदास नाम के काशी नरेश-जो धन्वंतरि के नाम से शी जाने जाते थे-ने सुश्रुत को चिकित्सा पद्धति सिखाई । आचार्य सुश्रुत ने अद्‌भुत साधना से शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की ।

3. सुश्रुत की भारतीय चिकित्सा पद्धति को देन:

संस्कृत भाषा में उनके द्वारा लिखी गयी 120 अध्यायों वाली सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा का ज्ञान बड़ी बारीकी से बताया गया है । विद्यार्थी को मोम के पुतले, मरे हुए जानवर, कमल की नाल, कुम्हड़ा, लौकी, तरबूज, पेठा, ककड़ी काटकर एवं चमड़े के मशक में पानी या कीचड़ भरकर भेद्य कर्म सिखाया जाता था ।

नदी के बहते जल में घास-फूस से ढककर रखे हुए शव से जब खाल अलग हो जाती थीं, तो विद्यार्थियों को मांसपेशियों तथा शरीर के अन्दरूनी भागों का अध्ययन कराया जाता था । बेहोशी हेतु मदिरापान का प्रबन्ध किया जाता था ।

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सुश्रुत ने अपनी सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के यन्त्रों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियां दीं, जिसमें 101 यन्त्रों द्वारा हड्‌डियां, मांस आदि निकाली जाती थीं । जख्मों की सिलाई हेतु 28 प्रकार की सलाइयां होती थीं । धागों के लिए सन, रेशम, बाल; पट्‌टियों के लिए कपास, ऊन, रेशम, झाल आदि का प्रयोग किया जाता था ।

शल्य चिकित्सा कक्ष की स्वच्छता हेतु हवन इत्यादि करवाकर उसे प्रतिजैविक किया जाता था । मरीज को शल्यक्रिया के दौरान बेहोश करने हेतु मदिरा का प्रयोग किया जाता था । सुश्रुत संहिता में नाक, कान, ओठों की प्लास्टिक सर्जरी के साथ-साथ मोतियाबिन्द, अण्डकोष में आत उतरने जैसी चिकित्सा का विवरण भी मिलता है ।

नौंवी-दसवीं शताब्दी में सुश्रुत संहिता का काफी प्रचार-प्रसार दक्षिण पूर्व एशिया तथा अरब के देशों में हो चुका था । किताब ए सुश्रुत के नाम से इसका अरबी भाषा में अनुवाद श्री हो चुका है । ईरान के महान चिकित्सक अल राजी {850-932 ई॰} ने सुश्रुत को एक महान चिकित्सक माना है ।

4. उपसंहार:

प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति में सुश्रुत शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में अद्वितीय स्थान रखते हैं । तत्कालीन समय में सुश्रुत द्वारा जिस चिकित्सा पद्धति का प्रयोग किया गया था, वह निःसन्देह उस समय के रोगों के उपचार के लिए वरदान साबित हुई ।

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