महर्षि महेश योगी की जीवनी | Biography of Maharishi Mahesh Yogi in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. उनके विचार और कार्य ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

ADVERTISEMENTS:

महर्षि महेश योगी भारत की उन आध्यात्मिक विभूतियों में से एक थे, जिन्होंने भावातीत ज्ञान योग की स्थापना की तथा इसके द्वारा मानवीय सेवा का जो कार्य उन्होंने किया, वह बहुत ही अमूल्य है । भारत देश में ही नहीं, अपितु विश्व-भर में उन्होंने इस ध्यान योग के साथ-साथ शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना भी की ।  इन शैक्षणिक संस्थाओं में भारतीय संस्कृति के धर्म, आध्यात्म के साथ-साथ जीवन के व्यावहारिक मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है ।

2. उनके विचार और कार्य:

जबलपुर में जन्मे महर्षि योगी बचपन में महेश श्रीवास्तव के नाम से जाने जाते थे । उनके गुरु स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती शंकराचार्य थे । उनके देहान्त के उपरान्त महेश श्रीवास्तव महर्षि महेश योगी कहलाये । गुरु की आज्ञानुसार उन्होंने समस्त विश्व में वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने का बीड़ा उठाया ।

हिमालय के बद्रीकाश्रम तथा ज्योर्तिमठों में रहकर ध्यान, योग की साधना की । दक्षिण भारत में विशेषत: उन्होंने आध्यात्मिक विकास केन्द्र की स्थापना की । दिसम्बर 1957 को आध्यात्मिक पुनरुत्थान कार्यक्रम शुरू किया । 1960 में पश्चिमी देशों की यात्रा पर निकल पड़े ।

वहां रहकर उन्होंने अमेरिका में भावातीत के रूप में मानवीय चेतना के विस्तार का कार्य किया । पश्चिम देशों में जाकर उन्होंने रासायनिक द्रव्यों के कुप्रभाव के साथ-साथ पदार्थवादी सभ्यता से बचने हेतु सन्देश दिया । ध्यान पद्धति के द्वारा मादक द्रव्यों के सेवन के बिना किस तरह तनाव पर विजय प्राप्त की जा सकती है, इसका व्यावहारिक रूप उन्होंने प्रस्तुत किया ।

ADVERTISEMENTS:

इस भावातीत ध्यान से आकर्षित होकर हालीबुड की प्रसिद्ध फिल्म स्टार मिया फारो ने महर्षि को अपना गुरु बना लिया । विदेशों में तो उनके पास रातो-रात प्रसिद्धि के साथ-साथ काफी धनराशि का ढेर-सा लग गया । उन्होंने पश्चिम के वैज्ञानिकों को भी यह प्रमाणित करके बताया कि भावातीत ध्यान से किस तरह मनुष्य को शान्ति प्राप्त होती है ।

इसके द्वारा बुद्धि, ज्ञान तथा योग्यता की क्षमताओं में वृद्धि होती है । आत्मा को शक्ति और आनन्द का सागर बताते हुए उन्होंने ध्यान को ही प्रमुख माना है । विश्वशान्ति, विश्वबन्धुत्व, पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति, वैदिक शिक्षा का प्रचार, भावातीत ध्यान के महत्त्व को संसार में फैलाना उनका प्रमुख उद्देश्य था ।

वैदिक शिक्षा के माध्यम से आदर्श व्यक्ति, समस्याहीन, रोगहीन, दु:खविहीन, संघर्षविहीन, आदर्श समाज, आदर्श भारत का निर्माण करते हुए भारत सहित समस्त विश्व में दिव्य जागरण लाना उनका ध्येय था । अपने 30 से भी अधिक वर्षो की भ्रमण यात्रा के दौरान उन्होंने 1975 में स्वीटजरलैण्ड में मेरू महर्षि यूरोपियन रिसर्च यूनिवर्सिटी स्थापित की ।

उन्होंने तीन अन्तर्राष्ट्रीय भावातीत राजधानियों में स्वीटजरलैण्ड में सीलिसबर्ग, न्यूयार्क में साउथ फाल्सबर्ग और ऋषिकेश में शंकराचार्य नगर की स्थापना की । इन सब स्थानों पर विशाल भव्य भवनों की स्थापना हेतु अपार धन-सम्पदा अर्जित की ।

ADVERTISEMENTS:

नयी दिल्ली के पास नोएडा में महर्षि नगर तथा आयुर्वेद विश्वविद्यालय और वैदिक विज्ञान महाविद्यालय की भी संकल्पना की । समस्त विश्व के 150 स्थानों में 4 हजार केन्द्र उनके द्वारा संचालित हो रहे हैं ।

4. उपसंहार:

महर्षि महेश योगी की भावातीत ध्यान साधना एवं वैदिक शिक्षा की महत्त्वपूर्ण विशेषता प्राचीन भारतीय शिक्षा के साथ-साथ पाश्चात्य शिक्षा का इसमें अनूठा समन्वय करना है । मनुष्य अपनी समस्त शक्तियों को भावातीत ज्ञान के माध्यम से एकीकृत चेतना में समाहित कर पूर्ण शान्ति और विकास को प्राप्त हो सकता है ।  विश्व-भर में भारतीय वैदिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने में महर्षि महेश योगी का नाम हमेशा अमर रहेगा । वे फरवरी 2008 में पंचतत्त्व में विलीन हो गये ।

Home››Biography››