सरोजिनी नायडू की जीवनी | Sarojini Naidu Kee Jeevanee | Biography of Sarojini Naidu in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. उनका जीवन परिचय ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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भारतीय राजनीति में जिन महिलाओं ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा राष्ट्रभक्ति और समाज-सेवा में अपना सर्वस्व समर्पित किया, उन महिलाओं में ”भारत कोकिला” सरोजनी नायडू का नाम विशेष उल्लेखनीय है । सादगी, सरलता, देशभक्ति, समाज-सेवा की प्रतिमूर्ति, कवि हृदया सरोजनी नायडू का व्यक्तित्व भारत की महान् महिलाओं में अमर रहेगा ।

2. उनका जीवन परिचय:

सरोजनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 में हैदराबाद के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ॰ अघोरनाथ चट्टोपाध्याय के यहां हुआ था । उनकी माता का नाम वरदसुन्दरी था । कर्मठता, नेतृत्व क्षमता तथा वक्तृत्व शैली उनकी विशेषता थी ।

विलक्षण प्रतिभा की धनी सरोजनी ने विज्ञान और गणित में रुचि रखते हुए भी साहित्य में अपनी विशेष रुचि प्रकट की थी । वे 13 वर्ष की अवस्था में ही अच्छी कवयित्री बन गयी थीं । उन्होंने उस अवस्था में 1300 पंक्तियों की ”द लेडी ऑफ द लेक” शीर्षक से कविता की रचना की थी ।

मद्रास विश्वविद्यालय से मेट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद वे लंदन के किंग्स कॉलेज तथा केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से 3 वर्ष उच्च शिक्षा ग्रहण कर जब भारत लौट रही थीं, तो उस समय उनका परिचय डॉ॰ गोविन्द राजुलू नायडू से हुआ ।

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3 माह पश्चात् उन्होंने सामाजिक बन्धनों की परवाह न करते हुए उनसे विवाह कर लिया । भारत की पराधीनता को देखकर उनका कवि हृदय रो पड़ता था । उन्होंने राजनीति में आने का संकल्प किया । 1913 में सक्रिय राजनीति में आकर उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता की वकालत करते हुए ओजस्वी भाषण रखा ।

श्रीमती एनीबेसेन्ट के साथ रहते हुए उन्होंने कांग्रेस अधिवेशन में भारतीय स्वतन्त्रता की मांग की । कांग्रेस के स्त्री संगठन में उन्होंने एनीबेसेन्ट के ”होमरूल लीग” तथा 1918 के बॉम्बे प्रेसीडेन्सी वूमन एसोशियेशन तथा कर्वे द्वारा स्थापित महिला यूनिवर्सिटी द्वारा स्त्री जागृति का कार्य किया ।

स्थानीय निकायों से लेकर बड़े स्तर तक उन्होंने स्त्रियों को मताधिकार देने से लेकर समस्त प्रकार के अवसर प्रदान करने की मांग की । मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार समिति द्वारा स्त्रियों को मताधिकार से वंचित रखने पर उन्होंने विरोधस्वरूप 800 लोगों का हस्ताक्षर सहित पत्र समिति के पास भेजा । इसी मांग से सम्बन्धित इंग्लैण्ड के 11 नेताओं को तार भी भेजे ।

उनके सत्प्रयत्नों से ही 1921, 1923, 1925, 1926, 1927, 1929 में विभिन्न प्रान्तों की विधान सभाओं में मताधिकार का अधिकार प्राप्त हुआ । 1919 के सत्याग्रह आन्दोलन में वे गांधीजी के साथ बम्बई, मद्रास, अहमदाबाद भी गयीं, जहां उन्होंने रोलेट एक्ट के विरुद्ध तथा जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोधस्वरूप क्रान्तिकारी भाषण दिये ।

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जगह-जगह सत्याग्रह का आयोजन कर क्रान्तिकारी साहित्य लोगों तक पहुंचाया । उनकी भाषण की ओजस्वी शैली तथा कोकिल कण्ठी आवाज से प्रभावित होकर लोग उनकी ओर खींचे चले आते थे । उन्होंने 1920 में जेनेवा के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भी भाग लिया था ।

1924 में वे भारतीयों की दशा का पता लगाने दक्षिण अफ्रीका गयी थीं । वहां पर उन्होंने ईस्ट अफ्रीकन कांग्रेस की अध्यक्षता करते हुए अपने महत्वपूर्ण विचार रखे । वे 1925 और 1926 में कानपुर के 48वें अधिवेशन में दो बार अध्यक्ष निर्वाचित हुईं ।

1928 में अमेरिका की 200 से भी अधिक सभाओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने भारतीयों की स्थिति से उन्हें अवगत कराया । 1929 में इंग्लैण्ड जाकर वहां के प्रतिनिधियों से भेंट की । 1929 में संयुक्त प्रान्तों की युवा कान्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए नवयुवकों को भारत की आजादी हेतु संकलित किया ।

21 मई 1930 को ”नमक कानून” तोड़ने के अपराध में वे गिरफतार कर ली गयीं । वे मदन मोहन मालवीय तथा गांधीजी के साथ द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन भी गयीं थीं । 20 गई 1932 को अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों के लिए वे जेल भेजी गयीं । 1 वर्ष बाद उन्हें शारीरिक अस्वस्थता के कारण छोड़ दिया गया ।

जन जागृति हेतु उन्होंने कस्तुरबा गांधी ट्रस्ट के माध्यम से अनेक कार्य किये । 1942 को उन्हें आगा खां महल में अन्य नेताओं के साथ नजरबन्द किया गया । इस दौरान गांधीजी के अस्वस्थ होने पर उनकी सेवा-सुश्रुषा भी की ।

यद्यपि सरोजनी स्वयं हृदय रोग की मरीज थीं । देश स्वतन्त्र होने के बाद वे 1948 में उत्तरप्रदेश की प्रथम महिला राज्यपाल बनीं । इस पद पर रहते हुए उन्होंने अपनी उन्नत प्रशासकीय क्षमता का परिचय      दिया । 2 मार्च 1949 को उन्होंने अपनी अन्तिम सांस ली ।

3. उपसंहार:

सरोजनी नायडू मातृभूमि की सच्ची सेविका थीं । कवि हृदय होने के कारण वे अत्यन्त संवेदनशील, भावुक थीं । वे दूसरों के कष्ट के बारे में हमेशा सोचा करती थीं । त्याग, सेवा, समर्पण, सादगी, साहस, नेतृत्व क्षमता की अनूठी मिसाल थीं-सरोजनी नायडू । भारतीय महिलाओं को उनके अभूतपूर्व कार्यों पर सदा ही गर्व रहेगा । वे उनकी प्रेरणास्त्रोत बनी रहेंगी ।

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