निकोलस कॉपरनिकस की जीवनी | Nicolaus Copernicus Kee Jeevanee | Biography of Nicolaus Copernicus in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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नक्षत्र विज्ञान के क्षेत्र  नया ज्ञान और नयी दिशा देने वाले निकोलस कापरनिकस का नाम 15वीं शताब्दी के वैज्ञानिकों में आदर के साथ स्थापित । कापरनिकस अपने युग से बहुत आगे थे, किन्तु तत्कालीन संकुचित एवं रूढ़िग्रस्त समाज ने उनके द्वारा नक्षत्र सम्बन्धित सिद्धान्तों स्वीकारा नहीं, जो कि कालान्तर में पूर्णत: सत्य निष्कर्षों पर आधारित थे ।

2 जीवन परिचय एवं उपलब्धियां:

कोपरनिकस का पूरा नाम निकोलस कापरनिकस था, जिनका जना पोलैण्ड के तोरुन नामक स्थान में 19 फरवरी, 1473 को हुआ था । उनका परिवार सम्पन्न था । अपनी प्रारम्भिक शिक्षा उत्तीर्ण कर उन्होंने 1491 में यूनिवर्सिटी ऑफ क्राकोव में प्रवेश लेकर नक्षत्र विज्ञान की पढ़ाई पूर्ण की ।

उनके मामा लुकास वाजेनरोड ने उन्हें उच्च शिक्षा हेतु यूनिवर्सिटी ऑफ बोलोग्ना भेज दिया, जहा उन्होंने यूनानी भाषा, गणित, दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया । उन्होंने चन्द्रमा द्वारा एक तारे पर लगने वाले ग्रहण के सम्बन्ध में खोज की थी । यह घटना 9 मार्च, 1497 की है, जब चन्द्रगा ने एक तारे को ढक लिया था ।

इटली के पादुआ विश्वविद्यालय में उन्होंने कानून और ओषधि विज्ञान का अध्ययन किया और 1503में यूनिवर्सिटी आफ फेरारा से धार्मिक कानून पर डॉक्टर ऑफ केनन ली की उपाधि प्राप्त की । 1503 से 1512 तक वे पोलैण्ड में गामा के साथ सलाहकार का कार्य करते रहे ।

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कापरनिकस ने 1529 तक आकाश का निरीक्षण करते हुए सूर्य, चन्द्रमा की स्थिति और परिक्रमा पथ के बारे में पुरानी मान्यताओं को गलत बताते हुए स्वयं द्वारा प्रमाणित तथ्यों को लोगों के सामने रखा । उनके इस ज्ञान से प्रभावित लोगों की भीड देखकर 1514 में गिरिजाघर के पादरियों ने उन्हें कैलेण्डर में संशोधन करने हेतु बुलाया था ।

कापरनिकस के पूर्व के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी को ब्रह्माण्ड का केन्द्र बताया था, जबकि कापरनिकस ने गणितीय गणना के आधार पर सूर्य को ब्रह्माण्ड का केन्द्र बताते हुए पृथ्वी को उसकी परिक्रमा करते हुए सिद्ध किया ।

पृथ्वी के परिक्रमा पथ को गोलाकार बताया । कापरनिकस ने अपनी पुस्तक ‘ए कमेन्टरी ऑन दि थ्योरीज ऑफ मोशन्स ऑफ हेवेनली ऑब्जेक्ट्स क्रीम देयर अरेन्जमेन्ट’ यानी स्वर्गिक वस्तुओं का अपनी स्थिति से सचल बनने का सिद्धान्त में यह गुाईा तथ्य लिखे कि सितारे प्रतिदिन घूमते हैं । सूर्य की गति वार्षिक है ।

पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है । सूर्य की परिक्रमा करते हुए सौरमण्डल में उसका स्थान निश्चित है । पृथ्वी, चन्द्रमा की परिधि है । चित्र तथा गणित के आधार पर उनके बनाये गये सिद्धान्तों का कुछ रुढ़िग्रस्त धर्माचारियों ने विरोध किया । कापरनिकस स्वयं एक पादरी थे ।

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फिर भी वे धर्मविरोधी घोषित होने के आतंक से इतने अधिक भयभीत थे कि उन्होंने अपनी पुस्तक की भूमिका में दबाव स्वरूप यह लिख दिया कि पृथ्वी एक स्थिर सूर्य की परिक्रमा करती है । अपने सिद्धान्तों को पूरी तरह से सही न बताने का उन पर दबाव था । अनकहे सत्य का बोझ लिये कापरनिकस ने 24 मई, 1543 में अपनी औखें सदा के लिए मूंद लीं ।

3. उपसंहार:

निकोलस कापरनिकस जीते-जी अपनी बातों की सचाई को लोगों को नहीं कह पाये, किन्तु उनकी मृत्यु के पूर्व उनके एक प्रशंसक ने उनकी एवं किताब को छपवाकर निकोलस को दिखाई थी । कापरनिकस के लिए

यही एक बड़ी जीवन की पूंजी रही होगी । इतना अवश्य है कि कापरनिकस ने सौरमण्डल तथा पृथ्वी के सम्बन्ध में जो तथ्य दिये थे, वे आज भी प्रामाणिक हैं ।

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