धर्मवीर भारती की जीवनी | Biography of Dharamvir Bharati in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय  व रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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धर्मवीर भारती हिन्दी साहित्य के ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने उपन्यास, कविता, कहानियां, एकांकी, काव्य-नाटिका, शोध-साहित्य, अनुवाद साहित्य को अपनी लेखनी से समृद्ध किया ।

वह एक प्रगतिशील लेखक हैं, जिन्होंने हर वस्तु परम्परा और सिद्धान्त में मानवीय हितों को दृष्टि दी है । उनके लेखन में सिद्धान्त और व्यवहार दोनों ही दृष्टियों में प्रगतिशीलता है । वे किसी गुट, दल या वाद से प्रेरित न होकर अपनी विवेकदृष्टि को अधिक महत्त्व देते हैं ।

2. जीवन परिचय व रचनाकर्म:

धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसम्बर, 1926 को इलाहाबाद के अतरसुइयां मुहल्ले में हुआ था । उनके पिता का नाम श्री चिरंजीवलाल वर्मा और माता का नाम श्रीमती चन्दा देवी था । उनका खानदान दबंग जमींदारों में से एक था ।

उनके पुश्तैनी गांत-खुदागंज कस्बे में एक बडी कोठी थी, जिसके बड़े आंगन में फलदार वृक्ष हुआ करते थे, जहां नौकरों के बीच डकैतों और परियों की कहानी सुनना, शिवालय के मन्दिर में सुबह-शाम की आरती के बाद वहां के ठण्डे फर्श पर लेटना उन्हें बहुत भाता था ।

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उनका परिवार सामंती था, लेकिन लेखक को सामंती-व्यवस्था से चिढ़ थी । लेखक के माता-पिता आर्यसमाजी थे । परिवार के संस्कारों ने उनके मन में देशभक्ति का भाव भरा था । मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था व ईमानदारी उन्हें पिता से मिली थी । उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी॰ए॰ तथा हिन्दी में एम॰ए॰ की उपाधि ग्रहण की । डॉ॰ धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में उन्होंने पी॰एच॰डी॰ पूर्ण की ।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1959 तक लेक्चरर रहे । सन् 1960 में वे बम्बई आ गये । “साप्ताहिक धर्मयुग” के मुख्य सम्पादक के रूप में ”टाइम्स ऑफ इण्डिया” प्रकाशनों से भी सम्बद्ध रहे । सन् 1960 में उन्होंने पुष्पा से विवाह किया, जिसकी लेखकीय प्रेरणा उन्हें मिलती रही ।

उनकी रचनाओं में ”गुनाहों का देवता”, “सूरज का सातवां घोड़ा” {उपन्यास} हैं । ”सात गीत वर्ष”, ”ठण्डा लोहा”, ”कनुप्रिया” {कविता संग्रह} है । “मुर्दो का गांव”, ”बन्द गली का आखिरी मकान” कहानी संग्रह है । एकांकी संग्रह: ”नदी प्यासी थी” । काव्य नाटिका: ”अंधा युग”, “सृष्टि का आखिरी मकान” हैं । अनुवाद-आस्कर वाइल्ड की कहानियां ।

उनकी रचनाओं में भारतीय दर्शन, चिन्तन और मानवतावादी परम्पराओं के प्रति आस्था का स्वर मिलता है, वहीं जीवन की संक्रमणकालीन अनुभूतियां मिलती हैं । मूल्य सम्बन्धी प्रश्नों पर भी उनकी दृष्टि रही है । उनकी कविताओं में उल्लास के स्थान पर उदासी और सूनापन के साथ-साथ भावुकता की गहराई है ।

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कुछ व्यंग्यात्मक कविताएं हैं । अन्धा युग उनका एक प्रतीकात्मक नाटक है, जिसमें उन्होंने पौराणिक कथा और प्रतीकों के माध्यम से समसामयिक समस्याओं पर दृष्टि डाली है । इस प्रतीकात्मक नाटक में उन्होंने द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् राजनीति और साहित्य में छाये हुए अन्धकार को अत्यन्त मर्मस्पर्शी ढंग से उभारा है ।

इसका सन्देश समाज में फैली हुई विकृतियों, असन्तुलन और मानवीय मूल्यों के अन्धेपन पर आघात करना है । इसके माध्यम से लेखक मानवीय मूल्यों की स्थापना और कल्याण की सृष्टि करना चाहता है और बुरी स्थितियों से बचने का सन्देश देना चाहता है ।

3. उपसंहार:

धर्मवीर भारती प्रयोगवादी युगीन साहित्य-कार होते, हुए भी प्रगतिशीलता का साथ नहीं छोड़ते । उनकी रचनाओं में सहज मानवीय जीवन के प्रति आस्था को स्वर विद्यमान है । समाज में व्याप्त विसंगतियों और विकृतियों पर वे प्रतीकात्मक रूप से सभी का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहे हैं ।

कविताओं की रोमानी चेतना संवेदना और भावुकता का स्पर्श कर जाती है । उनकी भाषा आम आदमी की भाषा होते हुए भी गहराई तक प्रभाव छोड़ने में समर्थ सिद्ध होती है । आवश्यकतानुसार उन्होंने अन्य भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग किया है, जो भावपक्ष को और अधिक सबल बना देते हैं । उनकी साहित्यिक यात्रा में पत्रकारिता का भी बड़ा योगदान रहा है ।

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