दमयन्ती की जीवनी | Biography of Damayanti in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. उनका जीवन चरित्र व नैतिक आदर्श ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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दमयन्ती की सम्पूर्ण जीवन गाथा भारतीय नारी के उस आदर्श चरित्र की व्याख्या करती है, जो अपने पतिव्रत धर्म के पालन हेतु अनेक प्रकार के असहनीय कष्टों को सहती हुई अपने धर्म पर अडिग रहती है तथा हर प्रकार की परीक्षा का चुनौतीपूर्वक सामना करती है और अपने नैतिक अदर्श के कारण देवीतुल्य स्थान को ग्रहण कर लेती है ।

2. उनका जीवन चरित्र व नैतिक बआदर्श:

दमयन्ती विदर्भ देश के राजा की अत्यन्त रूपवान, गुणवान, शीलवान कन्या थीं । उनके इन्हीं गुणों के कारण यक्ष, किन्नर, देवता, मानव सभी उनसे विवाह की आकांक्षा रखते थे । विवाह योग्य होने पर उनके माता-पिता ने उनके समकक्ष योग्य एवं गुणी वर की खोज प्रारम्भ की ।

यहां तो दमयन्ती के मन-मन्दिर में निषध के राजकुमार नल बसे थे । राजा नल भी दमयन्ती से विवाह करने के इच्छुक थे । इस आशय से उन्होंने अपने पालित हंस को अपना सन्देशा देकर दमयन्ती के पास भेजा था । दमयन्ती ने हंस को यह सन्देश दिया कि वह किसी भी स्थिति में नल से विवाह करेगी ।

दमयन्ती के पिता ने उनके विवाह हेतु स्वयंवर का आयोजन किया था । राजा नल निमन्त्रण पाकर अपने रथ को विद्युत गति से चलाते हुए वनगार्ग से सर्वप्रथम वहां पहुंचना चाहते थे । जाने से पूर्व उन्होंने अपने भाई पुष्कर से राज-काज संभालने हेतु कहा ।

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पुष्कर का अधिकांश समय द्यूतक्रीड़ा में बीतता था । नल ने पुष्कर को इस बुराई से सदा दूर रहने को कहा था । पुष्कर ने नल को भरोसा दिलाया कि वे राज-काज का ध्यान रखेंगे । स्वयंवर में इन्द्र, अग्नि, वरूण, यम और वायु देवता भी दमयन्ती का वरण करने के लिए पधारे थे ।

उन्होंने वनमार्ग में ही राजा नल का रास्ता रोककर यह कहा कि वे दमयन्ती से यह कहें कि उन पांचों देवताओं में से वह किसी एक का वरण कर लें । अनिच्छापूर्वक नल वहां पहुंचे । उन्हें अपने वचन से फिर जाने का दुःख था, किन्तु देवताओं के आग्रह व शाप के डर से उन्होंने दमयन्ती को एकान्त में देवताओं द्वारा कही गयी सारी बातें बता दीं ।

दमयन्ती ने तो राजा नल के अलावा किसी और से विवाह न करने का संकल्प ले लिया था । दमयन्ती के संकल्प को जानकर देवताओं ने छलपूर्वक राजा नल का वेश धारण कर लिया । दमयन्ती ने उनके वास्तविक स्वरूप को पहचान लिया था । उन्होंने निवेदन किया कि मैं अपने प्रेम की सम्पूर्ण शक्ति से यह कहना चाहती हूं कि मैं राजा नल के अलावा और किसी का वरण नहीं करूंगी ।

देवता हमेशा से ही अपनी शक्ति से मानवों को छलते रहते हैं । मैं ऐसा नहीं होने दूंगी । देवताओं के समस्त वैभव को ठुकराते हुए अब मैं यही कहती हूं कि यदि आप लोग अपने वास्तविक रूप में नहीं आयेंगे, तो मैं अपने सत्य के बल पर आप सभी को शापित कर दूंगी ।

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देवतागण घबराकर अपने वास्तविक रूप में आकर दमयन्ती से क्षमायाचना कर स्वर्ग चले गये । स्वर्ग की ओर प्रस्थान करने से पहले अग्नि ने दमयन्ती को कहीं भी प्रकट होने का वरदान दिया । यम ने स्वादिष्ट भोजन तैयार करने का, इन्द्र ने प्रत्यक्ष दर्शन देने का और वायु ने रक्षा का वरदान दिया ।

भीम ने राजा नल और दमयन्ती का विवाह सम्पन्न कराया । इधर रास्ते में देवताओं को कलि और द्वापर ने यह कहकर चिढ़ाया कि: ”तुम्हारे जैसे शक्तिशाली देवताओं का दमयन्ती ने मानवी होकर भी इस तरह अपमान किया ।” द्वापर और कलि राजा नल और दमयन्ती से प्रतिशोध लेने के लिए पृथ्वीलोक पर आ पहुंचे ।

पुष्कर तथा नल की बुद्धि भ्रष्ट की । मतिभ्रष्ट होने पर राजा नल दमयन्ती के बार-बार सावधान करने पर भी द्यूतक्रीड़ा जैसी बुराइयों में लिप्त होते गये और द्यूत में सब कुछ हार बैठे । पुष्कर ने नल-दमयन्ती को राज्य से बाहर कर दिया ।

रास्ते-भर भूखे-प्यासे वे दोनों वन में भटकते रहे । जल पीते समय राजा नल ने दो सुन्दर हंसों को देखा, जिनके सोने के पंख थे । नल ने अपने वस्त्र उठाकर हंसों को पकड़ने की चेष्टा की । इस चेष्टा में हंस नल के वस्त्र ले उड़े ।

अब नल ने दमयन्ती के वस्त्रों से आधा  वस्त्र  फाड़कर स्वयं पहन लिया । दमयन्ती के पैरों के छाले तथा उसके कष्ट को देखकर नल ने दमयन्ती को वन में ही छोड़ने का विचार किया । यह सोचा कि नींद खुलने पर दमयन्ती उन्हें न पाकर अपने राज्य विदर्भ चली जायेगी ।

जागने पर दमयन्ती ने स्वयं को वन में अकेला पाया । वहां एक शिकारी ने दमयन्ती पर कुदृष्टि डालते हुए उन्हें बलपूर्वक अपने अधीन करना चाहा । किसी तरह दमयन्ती ने अपने आपको उसके बन्धन से छुड़ाया । सौभाग्यवश उन्हें व्यापारियों का एक दल मिला । दमयन्ती उनके साथ हो चली थीं ।

इधर घाटियों में राजा नल ने करुण पुकार करते हुए एक नाग की प्राणरक्षा की, तो नाग ने उन्हें ही डस लिया, जिसके कारण उनका रंग काला पड़ गया । विष के प्रभाव से वह कुरूप होने के साथ-साथ एक बांह से अपंग हो गये थे । नाग ने कहा-तुम अपना नाम बाहुकसूत रख लो और कोसलपति के राजा ऋतुपर्ण के पास जाओ । वे तुम्हें प्रतिष्ठा देंगे । जब तुम्हें सुन्दर रूप में आना हो, तो यह वस्त्र पहन लेना ।

इधर राजा भीम ने सुदेव नामक ज्ञानी को भेजकर दमयन्ती का पता लगवाया और उन्हें अपने राज्य ले आये । बाहुक बने नल ऋतुपर्ण के सारथी बन गये । दमयन्ती ने नल का पता लगाने के लिए दो बच्चों की माता होने के बाद भी स्वयंवर का झूठा आयोजन किया ।

दमयन्ती के इस विश्वासघात से नल बहुत ही दुखी थे । बाहुकसुत के व्यवहार से राजा ऋतुपर्ण को यह समझते देर न लगी कि हो न हो यही नल हैं । उन्होंने रथ लेकर विदर्भ चलने को कहा । संसार में सबसे तेज गति से रथ चलाने वाले राजा नल के वहां पहुंचने पर दमयन्ती ने यह जान लिया कि यही उसके पति नल हैं ।

उनकी कुरूपता और काले रंग को देखकर दमयन्ती समझ रही थी कि अवश्य ही वे शापग्रस्त हुए होंगे । दमयन्ती ने उनकी वास्तविकता जानने हेतु अपने दोनों बच्चों को उनके पास भेजा । बच्चों को नल ने पहचान लिया ।

वे मन-ही-मन दुखी होकर चीत्कार करने लगे कि यदि दमयन्ती उन्हें छोड़कर दूसरा विवाह करेगी, तो वे आत्महत्या कर लेंगे । दमयन्ती ने जब यह सुना, तो राजा नल के पास जा पहुंचीं और कहा- ”मैं जानती थी कि आप जीवित हैं । आपकी खोज के लिए ही मैंने यह नाटक रचा था ।”

राजा नल ने जैसे ही नाग द्वारा दिये गये वस्त्र पहने, वैसे ही वे अपने वास्तविक सुन्दर स्वरूप में आ गये । राजा नल ने पुष्कर की दुष्टता का सबक सिखाने हेतु संकल्प लिया था । दमयन्ती ने अपने देवर को माफ करने के लिए राजा नल से कहा । नल ने तो उसे माफ कर दिया, किन्तु कलि और द्वापर के प्रभाव में पुष्कर पुन: आ गया था ।

उसने राजा नल व दमयन्ती को नगर प्रवेश से रोक दिया । इस बात की द्यूतक्रीडा में राजा नल ने पुष्कर से सब कुछ वापस ले लिया । कलि और द्वापर भयभीत होकर स्वर्ग चले गये । पुष्कर ने अपनी गलती मानी । दोनों ने उसे माफ कर दिया । इस तरह दमयन्ती के साथ नल सुखपूर्वक निषध में राज्य करने लगे ।

3. उपसंहार:

दमयन्ती की सम्पूर्ण जीवनगाथा यह नैतिक प्रेरणा देती है कि जो अपने सत्य धर्म पर दृढ़ रहता है, कठिनाइयों व विपत्तियों के बाद भी उसे विजय मिलती है । भारतीय नारी के पति प्रेम का ऐसा उदाहरण दमयन्ती जैसी नारी के चरित्र में भी हमें देखने को मिलता है ।

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