डॉ॰ हरगोविन्द खुराना की जीवनी । Biography of Dr. Hargovind Khurana in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

ADVERTISEMENTS:

जबसे इस सृष्टि में मानव के साथ-साथ विभिन्न जीव-जन्तुओं का जन्म हुआ, तो हम उनकी संतानों को देखकर हमेशा अपने मन में यही प्रश्न लाते हैं कि संतानों के नाक-नक्श, रूप-रंग, गुण, बनावट उनके माता-पिता से इतने मिलते-जुलते कैसे हैं ?

इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढते हुए विश्व के वैज्ञानिकों ने कालान्तर में कुछ वर्णसंकर प्रजातियों को भी उत्पन्न किया । अब तो हमारा विज्ञान मानव क्लोन, पशु-पक्षियों के क्लोन तक बनाने में सक्षम हो चुका है । मानव, पशु-पक्षी, जीव-जन्तुओं के साथ-साथ वैज्ञानिकों ने  पेड़-पौधों तथा फसलों की नयी-नयी प्रजातियों की खोज में भी सफलता पायी है ।

वस्तुत: एक जीव से दूसरे जीव की उत्पत्ति होना, फिर उनके गुण-धर्म का मिलना’ यह सब गुणसूत्र या जीन्स संरचना पर निर्भर है । इस विषय में प्रमाण सहित तथ्य ससार के सामने जिन वैज्ञानिकों ने लाये हैं, उनमें नीरेन वर्ग राबर्ट हौले तथा डॉ॰ हरगोविन्द खुराना का नाम उल्लेखनीय है । डॉ॰ खुराना ने जीन्स सम्बन्धी खोजों के लिए नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त किया ।

2. जन्म परिचय एवं उपलब्धियां:

डा॰ हरगोविन्द खुराना का जन्म पजाब के मुलतान जिले के रायपुर गांव में सन् 1922 में हुआ था । उनके पिता गणपतराय खुराना गांव के पटवारी थे । चार भाई और एक बहिन के लाड़ले खुराना ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के स्वाऊल में ही प्राप्त की ।

ADVERTISEMENTS:

इसके बाद वे डी॰ए॰वी॰ स्कूल मुलतान में आगे पढ़ने हेतु चले गये । पिता की मृत्यु होने के बाद हाईस्कूल की पढ़ाई में उन्हें सर्वाधिक प्रेरणा अपने प्रिय शिक्षक दीनानाथजी से मिली । लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय में प्रवेश लेकर छात्रवृति प्राप्त कर पढ़ाई पूर्ण की ।

1943 में बी॰एस॰सी॰ ऑनर्स, 1945 में एम॰एस॰सी॰ की परीक्षा उत्तीर्ण की । विश्वविद्यालयीन शिक्षा पूर्ण करने के लिए उन्हें लीवरपूल विश्वविद्यालय से फैलोशिप का लाभ मिला । 1948 में उन्होंने कार्बनिक रसायनशास्त्र पर पी॰एच॰डी॰ प्राप्त की । बैक्टीरिया पिगमेंट उघैर अल्कलायड संरचना पर शोधकार्य किया । देश विभाजन के बाद वे सपरिवार शरणार्थी बनकर दिल्ली आ गये ।

भारत सरकार द्वारा शोधकार्य हेतु फैलोशिप प्राप्त कर ज्यूरिख, स्वीटजरलैण्ड चले गये । इथीरिन अल्कालायड पर अध्ययन कर भारत लौट आये । यहां उन्हें न तो नौकरी मिली और न शोधकार्य हेतु उचित सुविधाएं । इंग्लैण्ड के केम्ब्रिज विश्वविद्यालय आकर सर टाड के निर्देशन में शोधकार्य जारी रखा ।

1952 में स्विस महिला ईस्थर एलिजाबेथ सिबलर से विवाह किया । इंग्लैण्ड छोडकर कनाडा आये, जहां वैंकूवर स्थित विश्वविद्यालय में सीमित सुविधाओं के बाद भी न केवल शोधकार्य जारी रखा, अपितु सात सदस्यीय एक शोध टीम भी बना डाली ।

ADVERTISEMENTS:

1959 में उन्होंने डॉ॰ जान मोफर के साथ कोएंजाइम बनाने में सफलता हासिल की । 1 सितम्बर, 1960 को अमेरिका आकर वि२कोन्सिन विश्वविद्यालय में एंजाइम शोध संस्थान के सहनिदेशक तथा 1962 में जैव रसायनशास्त्र के प्रोफेसर तथा 1964 में विश्वविद्यालयीन शरीर विज्ञान विभाग के प्रोफेसर नियुक्त हुए ।

यहां आकर उन्होंने जीन संरचना में किस प्रकार सेलो के जीन्स इसके जाइस तैयार करते हैं, इसकी अध्ययन प्रक्रिया को जारी रखा और यह साबित किया कि सेल की नाभी का डी॰एन॰ए॰ दूसरे आर॰एन॰ए॰ को तैयार करता है, जो माता-पिता के गुणों के प्रतिबिम्ब पर आधारित होता है, जिसमें सिर्फ अन्तर यह होता है कि न्यूक्लियोटाइड्‌स के स्थान पर यूरोसिल बेसेस आ जाता है ।

एक बार बनने के बाद आर॰एन॰ए॰ रिबोसेल से जुड़ जाता है, जो कि सेल की प्रोटीन संरचना का स्थान होता है । दूसरे प्रकार का आर॰एन॰ए॰ सेल में बह रहे अमीनो एसिड को ले लेता है और रिबोसेल तक ले जाता है, जहां उनमें प्रोटीन बनता है । इस प्रकार हर बार अलग-अलग अमीनो एसिड बन जाता है और अलग-अलग आर॰एन॰ए॰ होता है ।

चार न्यूक्लियोटाइड्‌स कुल मिलाकर 64 प्रकार के न्यूक्लियोटाइड्‌स की रचना करते हैं । 1964 तक डॉ॰ खुराना ने कृत्रिम रूप से न्यूक्लियोटाइड्‌स तैयार कर लिया और उन्होंने यह बताया कि अमीनो एसिड में से एक से ज्यादा तिकड़ी होती है ।

इरा तरह डल, खुराना ने दुनिया को यह बताया कि माता-पिता के गुण सन्तान में उनके शरीर में स्थित केशिकाओं के केन्द्र में स्थित क्रोमोसोम, अर्थात् गुणसूत्र के जरिये आ जाते हैं । अपनी प्रयोगशाला में उन्होंने अपने वैज्ञानिक साथियों के साथ मिलकर एक ऐसे जीन्स का निर्माण किया, जिसको परिवर्द्धित करने पर सन्तान के गुणों में परिवर्तन आ जाता है ।

डॉ॰ खुराना और उनके साथियों ने जीवाणुओं में कृत्रिम जीन्स का प्रवेश कराकर यह प्रतिपादित किया कि वह भी प्राकृतिक जीना की तरह कार्य कर सकता है । डॉ॰ खुराना को अपनी इस महान् जीन्स सम्बन्धी खोज के लिए नोबेल पुरस्कार के साथ-साथ विश्व के देशों द्वारा अनेक पुरस्कार व सम्मान तथा उपाधियों से विभूषित किया गया ।

भारत सरकार ने उन्हें पद्‌मभूषण तथा पंजाब विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉ॰ ऑफ साईस की उपाधि से नवाजा । डल खुराना ने दृष्टि और प्रकाश के क्षेत्र में उनके रासायनिक विश्लेषण पर शी शोधकार्य किया । ताजमहल को चांदनी रात में भी सूर्रा के प्रकाश की तरह ही साफ-साफ देखा जा सकता है, कैसे इसे प्रमाणित भी किया ।

3. उपसंहार:

डॉ॰ खुराना ने मानवोपयोगी जो अनुसन्धान कार्य किया, उसके द्वारा डी॰एन॰ए॰ और आर॰एन॰ए॰ के द्वारा कई आनुवांशिक बीमारियों का उपचार सम्भव कर दिखाया । सभी जीवों का निर्माण विशेष रासायनिक तत्त्वों के संयोग से होता है ।

हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कार्बन आदि के सैंकडों परमाणु जीवन के अणु बनते हैं । इससे ही जीवन की इकाई बनती है । इस तरह जीवन चलता है । डॉ॰ खुराना की जीन्स सम्बन्धी खोज समस्त विश्व के लिए वरदान स्वरूप थी ।

Home››Biography››