शाखा बैंकिंग प्रणाली: अर्थ, मेरिट और डेमिटिट्स | Read this article in Hindi to learn about:- 1. शाखा बैंकिंग प्रणाली का अर्थ (Meaning of Branch Banking Systems) 2. शाखा बैंकिंग के गुण या लाभ (Merits/Advantage of Branch Banking) 3. दोष (Demerits).

शाखा बैंकिंग प्रणाली का अर्थ (Meaning of Branch Banking Systems):

यह बैंकिंग संगठन की सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रचलित प्रणाली है जिसका प्रारम्भ सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में हुआ था । इस पद्धति के अन्तर्गत बैंक के एक प्रधान कार्यालय के नियन्त्रण में उसकी अनेक शाखाएँ (Branch Offices) न केवल देश के विभिन्न स्थानों वरन् विदेशों में भी फैली रहती हैं ।

इस प्रकार एक बैंक की सैकडों/हजारों शाखाएँ होती है जो सब एक ही प्रधान कार्यालय, स्वामित्व एवं संचालन-व्यवस्था के अन्तर्गत कार्य करती हैं । प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से प्रधान कार्यालय के अलावा क्षेत्रीय कार्यालय भी होते हैं ।

हमारे देश में अधिकांश व्यापारिक बैंक ‘शाखा बैंकिंग’ प्रणाली के अन्तर्गत कार्यरत् हैं । भारतीय स्टेट बैंक, सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया, यूनाइटेड कॉमर्शियल बैंक, बैंक ऑफ इण्डिया, स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर, पंजाब नेशनल बैंक आदि सभी प्रमुख व्यापारिक बैंकों की शाखाओं का जाल पूरे देश में फैला हुआ है ।

शाखा बैंकिंग के गुण या लाभ (Merits/Advantage of Branch Banking):

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शाखा बैंकिंग की लोकप्रियता का प्रमुख कारण इस व्यवस्था में निहित निम्नलिखित विशेषताएँ या गुण है:

(1) संगठन की कार्य-कुशलता:

कुशलता की दृष्टि से शाखा बैंकिंग सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है । केन्द्रीय प्रबन्ध के अन्तर्गत शाखाओं की प्रबन्ध व्यवस्था कुशलतापूर्वक कार्य करती है । विभिन्न कार्यों हेतु श्रेष्ठतम विशेषकों की सेवाएँ प्राप्त की जाती हैं तथा आधुनिकतम प्रबन्ध तकनीकों एवं कार्य-प्रणालियों का प्रयोग किया जाना सम्भव हो पाता है ।

(2) वृहत्ताकार संगठन:

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शाखा बैंकिंग के अन्तर्गत संगठन का आकार बड़ा होने से बड़े पैमाने पर उत्पादन की समस्त मितव्ययियाएँ प्राप्त होती हैं जिससे न्यूनतम प्रति इकाई लागत पर बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं ।

(3) नीतियों एवं कार्य प्रणालियों में एकरूपता:

समस्त शाखाएँ एक ही केन्द्रीय व्यवस्था के अन्तर्गत होने से नीतियों एवं कार्य-प्रणालियों में एकरूपता बनाए रखना सम्भव होता है ।

(4) बैंकिंग सेवाओं का विस्तार:

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शाखा बैंकिंग के अन्तर्गत एक बैंक विदेशों से लेकर देश के सुदूर अंचलों तक में अनेकों स्थानों पर अपनी शाखाएँ खोलता है जिससे बैंकिंग सेवाओं का व्यापक विस्तार सम्भव हो पाता है ।

(5) जोखिम का भौगोलिक वितरण:

शाखा बैंकिंग का प्रमुख लाभ यह है कि विभिन्न शाखाएँ अलग-अलग स्थानों, भौंगोलिक क्षेत्रों में कार्य करती है । यदि कुछ शाखाएँ अलाभप्रद क्षेत्रों में हों तथा हानि उठा रही हों तो उनकी हानि की पूर्ति अन्य लाभप्रद शाखाओं के लाभ से हो जाती है ।

(6) माँग एवं पूर्ति का समायोजन:

एक ही बैंक की शाखाऐं अलग-अलग स्थानों पर फैली होने से एक स्थान विशेष की वित्तीय माँग की पूर्ति दूसरे स्थान की पूर्ति द्वारा समायोजित करना सम्भव हो पाता है ।

(7) सुरक्षित कोषों में मितव्ययिता:

बैंकों द्वारा अपनी प्रत्येक शाखा में थोड़े-थोड़े सुरक्षित कोष रखकर तथा आवश्यकता पड़ने पर कोषों का एक शाखा से दूसरी शाखा में हस्तांतरण कर अथवा प्रधान कार्यालय से कोष उपलब्ध कराके अपेक्षाकृत कम सुरक्षित कोषों से भी काम चला लिया जाता है । इकाई बैंकिंग के अन्तर्गत प्रत्येक बैंक को अधिक मात्रा में सुरक्षित कोष रखने पड़ते हैं ।

(8) अन्य लाभ:

शाखा बैंकिंग के उपर्युक्त वर्णित प्रमुख लाभों के अतिरिक्त कुछ अन्य लाभ निम्नानुसार हैं:

(i) जब बैंक की शाखाएँ विदेशों में भी हो तो उस बैंक के माध्यम से आयात-निर्यात के विदेशी व्यापार में सुविधा रहती है ।

(ii) बैंक की शाखाएं विभिन्न स्थानों पर फैली होने से बैंक का सम्पर्क क्षेत्र अत्यन्त व्यापक हो जाता है जिससे उस बैंक को जमाएँ आकृष्ट करने तथा अपने अन्य बैंकिंग कार्यों को करने में सहायता मिलती है ।

(iii) शाखा बैंकिंग के अन्तर्गत बैंकिंग व्यवसाय का आकार विस्तृत हो जाता है तथा वृहत्ताकार व्यवसाय के अन्तर्गत श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होने लगते है ।

शाखा बैंकिंग के दोष (Demerits of Branch Banking):

(1) प्रबन्ध एवं प्रशासनिक कठिनाइयाँ:

शाखा बैंकिंग के अन्तर्गत व्यवसाय का आकार बहुत अधिक हो जाता है जिसका सक्षम प्रबन्ध करना कठिन हो जाता है । विभिन्न शाखाओं के कार्यों में परस्पर समन्वय स्थापित करना तथा उन पर सक्षम नियन्त्रण रखना आवश्यक हो जाता है । प्रबन्ध की थोडी-सी भी अकुशलता के व्यापक दुष्परिणाम होते हैं ।

(2) पूँजी का केन्द्रीयकरण:

शाखा बैंकिंग से पूँजी के केन्द्रीयकरण एवं एकाधिकारी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलता है ।

(3) दुर्बल एवं बीमार शाखाएँ:

केन्द्रीयकृत व्यवस्था के अन्तर्गत दुर्बल एवं बीमार शाखायें लाभार्जन करने वाली अन्य कुशल शाखाओं से पोषण प्राप्त कर जीवित बनी रहती हैं इससे अक्षमता को प्रोत्साहन मिलता है ।

(4) पूँजी का अवांछनीय प्रवाह:

कभी-कभी ऐसी भी होता है कि शाखाओं के माध्यम से छोटे स्थानों से एकत्रित की गई बचत उन बड़े-बड़े स्थानों पर हस्तांतरित कर दी जाती है जहां उनका विनियोजन बैंक की दृष्टि से अधिक लाभप्रद है । इसका परिणाम यह होता है कि विकसित क्षेत्र अविकसित क्षेत्रों से पोषण प्राप्त कर और अधिक विकसित होते जाते हैं तथा क्षेत्रीय असंतुलन को बढावा मिलता है ।

(5) बैंकिंग सुविधाओं का दोहराव तथा अस्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा:

अनेक बार ऐसा भी होता है कि एक स्थान या छोटे से क्षेत्र में अनेक बैंक अपनी शाखाएँ खोल देते हैं तथा व्यापार हेतु परस्पर अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा करने लगते हैं । इससे बैंकिंग सुविधाओं का अनावश्यक दोहराव होने लगता है ।

(6) लोच एवं स्थानीय पहल का अभाव:

शाखा बैंकिंग के अन्तर्गत नीतियाँ एवं समस्त महत्वपूर्ण निर्णय प्रधान कार्यालय द्वारा लिए जाते हैं जिनका पालन सभी शाखाओं को करना पड़ता है । इसका परिणाम यह होता है कि शाखा के स्तर पर स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय लेने की स्वतन्त्रता नहीं रहती तथा शाखा-स्तर के प्रबन्धक-कर्मचारियों में पहल करने तथा स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता विकसित नहीं हो पाती ।

(7) अन्य दोष:

(i) बैंक की नीतियों का निर्धारण मुख्य कार्यालय द्वारा किया जाता है तथा उसी स्तर पर अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं जिनके अनुसार ही समस्त शाखाओं को कार्य करना पड़ता है । इससे क्षेत्रीय एवं स्थानीय हितों को समुचित महत्व नहीं मिल पाता ।

(ii) शाखाओं की संख्या बहुत अधिक हो जाने पर केन्द्रीयकृत नियन्त्रण अधिक प्रभावकारी नहीं रह पाता । प्रधान कार्यालय एवं विभिन्न शाखाओं के मध्य समन्वय स्थापित करने तथा शाखाओं के क्रियाकलापों पर नियन्त्रण रखने हेतु अनावश्यक व्यय करने पड़ते हैं ।

(iii) विशालकाय संगठन की दशा में ग्राहकों एवं बैंकों तथा प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों के मध्य प्रत्यक्ष रख व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाते ।

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