बैंकों में कार्मिक प्रबंधन | Read this article in Hindi to learn about:- 1. बैंक में कार्मिक प्रबन्ध की आवश्यकता (Need for Personnel Management in Banks) 2. बैंकों में भर्ती (Recruitment in Banks) 3. चयन (Selection) 4. निजी क्षेत्र के बैंकों में भर्ती एवं चयन (Recruitment and Selection in Private Sector Banks) 5. कर्मचारियों का मूल्यांकन (Appraisal of Employees).

बैंक में कार्मिक प्रबन्ध की आवश्यकता (Need for Personnel Management in Banks):

बैंकिंग उद्योग ने आज राष्ट्र में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है । आज बैंकिंग न केवल राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिए जरूरी है वरन् सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जरूरी हैं । जब किसी उद्योग का विकास होता है तो उसके कुशल प्रबन्ध की भी समस्या आती है और यदि प्रबन्धकीय कुशलता उद्योग में होती है तो वह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रहता है ।

हमारे देश में बैंकिंग सेवाओं का विस्तार तो हुआ है लेकिन उनका प्रबंध दोषपूर्ण है । आज हमारा आवश्यकताओं की प्रकृति में भारी परिवर्तन हुए हैं । इसी तरह नगरीय तथा महानगरीय क्षेत्रों में अपनी अलग समस्याएँ हैं । इन समस्याओं का निवारण तभी सम्भव है जब बैंकिंग प्रबन्धक आज के वातावरण से तालमेल बैठाकर कार्य करें ।

इन्हीं सब समस्याओं के निवारण हेतु किये गये प्रयासों को कार्मिक प्रबन्ध कहते हैं । कार्मिक प्रबन्ध से हमारा आशय प्रबन्धकी एवं कर्मचारियों के चयन, उन्हें काम पर लगाना, उनका मूल्यांकन, प्रशिक्षण एवं विकास से है ।

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भारत में बैंकों के राष्ट्रीकरण के पश्चात् भारतीय बैंकों का विस्तार एवं विकास बहुत तेजी से हुआ है । जिसके परिणामस्वरूप बैंकों द्वारा अनेकानेक नए क्षेत्रों में ऋण तथा अतिरिक्त सुविधाएँ प्रारम्भ की गई हैं जिससे बैंक जमाओं की राशियाँ भी बढ़कर चार गुनी तथा ऋणों की मात्रा पाँच गुनी हो गई हैं । इतना ही नहीं आने वाले समय में इनमें और भी अधिक वृद्धि होने की सम्भावना है ।

परिणामस्वरूप बैंकिंग उद्योग में अतिरिक्त मानवीय संसाधनों की आवश्यकता की पूर्ति हेतु प्रति वर्ष 25,000 से 45,000 कर्मचारियों की भर्ती करनी होती है तथा इसी प्रकार सीधे नियुक्त किए जाने वाले अधिकारीगणों तथा विशेषज्ञों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि होने की सम्भावना है ।

इसलिए आधुनिक बैंकिंग व्यवसाय में कार्मिक प्रबन्ध का महत्व अत्यधिक हो गया है । नवीन विचारधारा व परिवर्तनों के बारे में कर्मचारियों को पूर्ण जानकारी तथा बैंकिंग सेवाओं में विविधता के कारण योग्य व प्रशिक्षित कर्मचारियों का होना बैंकिंग उद्योग में कार्मिक प्रबन्ध के महत्व को दर्शाता है ।

मानवीय संसाधनों का नियोजन बैंकिंग विकास में महत्वपूर्ण चरण है । बैंकिंग उद्योग में कार्मिक प्रबन्धकों को शाखा-विस्तार की नीति के अनुरूप ही कर्मचारियों की संख्या का अनुमान होता है व इसी अनुमान के आधार पर वे प्रशिक्षण व भर्ती कार्यक्रमों का निर्माण करते हैं । योग्य, प्रशिक्षित व अनुभवी कर्मचारियों की नियुक्ति के साथ-साथ उन कर्मचारियों के कार्यों का सामयिक मूल्यांकन भी आवश्यक है ।

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यह कार्य भी कार्मिक अधिकारी द्वारा विभिन्न प्रतिवेदनों का निर्माण कर किया जाता है । कार्मिक प्रबन्धन का कार्य कर्मचारियों की भर्ती, प्रशिक्षण व कार्यों के मूल्यांकन पर ही समाप्त नहीं होता वरन् कर्मचारियों से सम्बन्धित अन्य समस्याओं जैसे आवास समस्या, चिकित्सा सुविधाएँ, मनोरंजन सुविधाएँ, वेतन व पारिश्रमिक समस्याएं आदि को भी देखना होता है ।

हम कह सकते है कि बैंकिंग उद्योग में कार्मिक प्रबन्धन की आवश्यकता है व आज के आधुनिक बैंकिंग काल में जब हमारा देश इक्कीसवीं सदी की ओर अग्रसर है तब इस प्रकार के प्रबन्धन का महत्व और अधिक हो जाता है ।

बैंक अधिकारियों की नियुक्ति:

वर्तमान में बैंक अधिकारियों की नियुक्ति हेतु त्रिस्तरीय संरचना है । प्रथम विधि में बैंक में कार्यकर्ता व्यक्तियों की अनुभव के आधार पर एक सूची का निर्माण किया जाता है तथा उस सूची के आधार पर अधिक अनुभवी व्यक्तियों का साक्षात्कार किया जाता है व उन्हें अधिकारी पद पर नियुक्त कर दिया जाता है ।

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द्वितीय विधि के अन्तर्गत बैंक में ही कार्यरत व्यक्तियों का चयन किया जाता है । इसमें बैंक सेवा में चार वर्ष पूर्ण करने के पश्चात् उससे पात्रता हो जाती है । इसके पश्चात् राष्ट्रीय बैंक संस्थान द्वारा आयोजित परीक्षा उसे उत्तीर्ण करनी होती है । परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् उसे बैंक प्रबन्धकों द्वारा आयोजित साक्षात्कार देना होता है ।

अन्त में उसके लिखित परीक्षा, साक्षात्कार व योग्यता के अंकों को जोड़कर योग्यता सूची बनाई जाती है व उस आधार पर अधिकारी पदों पर नियुक्ति की जाती है । तीसरी विधि प्रत्यक्ष भर्ती की है । बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड एक माध्यम से सीधे अधिकारियों की भर्ती करता है ।

बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड द्वारा एक प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की जाती है जो लघुत्तरात्मक होती है । इस परीक्षा में अंग्रेजी, गणित, सामान्य ज्ञान व मनोवैज्ञानिक प्रश्नों को सम्मिलित किया जाता है । जो आवेदक इस प्रतियोगी परीक्षा को उत्तीर्ण कर लेते है उन्हें साक्षात्कार हेतु आमन्त्रित किया जाता है ।

साक्षात्कार बोर्ड में आवेदक की वर्तमान में घटित हो रही सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक घटनाओं की जानकारी देखी जाती है । इसके पश्चात् योग्यता सूची बनाई जाती है व सीधे रूप में अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है ।

क्लर्कों की नियुक्ति:

बैंकिंग क्षेत्र में क्लर्कों की नियुक्ति महत्वपूर्ण होती है । क्लर्क वर्ग एक ऐसी कडी है जिसके द्वारा आम जनता को बैंकिंग सुविधायें दी जाती है अतः इस वर्ग की नियुक्ति के लिए विशेष परीक्षा का आयोजन किया जाता है । यह परीक्षा क्षेत्रीय बैंकिंग सेवा मण्डल द्वारा राष्ट्रीय बैंक संस्थान की सहायता से आयोजित की जाती है ।

इस परीक्षा के दो भाग होते हैं – प्रथम लिखित परीक्षा व दूसरा साक्षात्कार । लिखित परीक्षा में अंग्रेजी, अंकगणित, लिपिक कौशल व तर्कशक्ति के प्रश्नों को सम्मिलित किया जाता है । साक्षात्कार में लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण अभ्यार्थियों से सामान्य ज्ञान आदि के विषय में जानकारी ली जाती है ।

अधिकारी व लिपिक वर्ग के अलावा आजकल बैंकिंग क्षेत्र में विशेषज्ञों की भी नियुक्ति की जाने लगी है । देश में औद्योगिक व कृषि विकास के साथ-साथ बैंकिंग क्षेत्र का भी विकस हुआ है और विभिन्न क्षेत्रों में इसकी उपयोगिता सिद्ध हुई है ।

इसी कारण बैंकों द्वारा कृषि-क्षेत्र के लिए कृषि अधिकारी, विधि मामलों को निपटाने के लिए विधि अधिकारी, आर्थिक गतिविधियों के लिए आर्थिक सलाहकार व औद्योगिक क्षेत्र के कार्यों आदि के लिए अभियन्ताओं की नियुक्ति की जाती है । इन विशेषज्ञों की नियुक्ति हेतु क्षेत्रीय बैंकिंग मण्डल द्वारा आवेदन-पत्र आमन्त्रित किए जाते हैं । यदि आवेदकों की संख्या अधिक हो तब मण्डल द्वारा लिखित परीक्षा आयोजित की जाती है अन्यथा सीधे साक्षात्कार द्वारा इन विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है ।

बैंकों में भर्ती (Recruitment in Banks):

सेवा नियोजन की दृष्टि से सर्वाधिक प्रशंसनीय, भरोसेमन्द और ईमानदारी वाला ‘बैंकिंग क्षेत्र’ प्रारम्भ से ही प्रतिष्ठा का पर्याय रहा है । आज भी सम्मानजनक पारिश्रमिक, आकर्षक सुविधाओं, उत्तम सेवा शर्तों तथा भावी प्रगति की व्यापक सम्भावनाओं के कारण ‘बैंकिंग सेवा-क्षेत्र’ युवावर्ग में अत्यधिक लोकप्रिय बना हुआ है ।

व्यापक शाखा विस्तारीकरण की नीति के कारण सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार के बैंकों में रोजगार सम्भावनाएँ निरन्तर बढ़ती जा रही हैं । अतः प्रतिभाशाली, उत्साही और परिश्रमी युवक युवतियाँ बैंकिंग सेवा-क्षेत्र में उत्तम कैरियर की तलाश कर सकते हैं ।

हमारे देश में बैंक में के राष्ट्रीयकरण के पूर्व सन् 1969 तक बैंकिंग सुविधाओं का दायरा अत्यन्त सीमित था । उस समय बैंकों का मुख्य कार्य मात्र जमाएँ स्वीकार करना और सक्षम व्यापारी वर्ग को ऋण उपलब्ध कराना था । तब बैंकों का लाभ प्रमुखतः शहरी एवं धनी वर्ग को ही मिलता था, परन्तु बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद भारत की अधिकांश बैंक व्यवस्था सार्वजनिक क्षेत्र के हवाले हो गई और उनका प्रयोजन लाभार्जन के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक विकास का हो गया ।

बैंकों का स्वरूप और स्वभाव एक वर्ग विशेष से हटकर जनसाधारण की प्रगति से जुड़ गया । परिणामस्वरूप बैंकिंग सेवाएँ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए अपरिहार्य बन गई ।

परन्तु 20वीं सदी के अन्तिम दशक में शुरू हुए वैश्वीकरण के दौर में अन्य क्षेत्रों की भांति देश का बैंकिंग क्षेत्र भी परिवर्तन की आधी में समाहित हो गया । उदारीकरण और निजीकरण पर आधारित आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के कारण न केवल बैंकों में ढाँचागत परिवर्तन हुआ, बल्कि रिजर्व बैंक के नियन्त्रणों में छूट देने से बैंकों को स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करने की छूट भी मिल गई ।

इसके साथ ही राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय निजी बैंकों के खुलने के कारण सार्वजनिक के तथा निजी बैंकों में तीव्र प्रतिस्पर्धा बढ़ गई इस प्रतिस्पर्धा के दौर में बैंकों को अपने अस्तित्व में बनाए रखने तथा श्रेष्ठता की श्रेणी में आने के लिए अत्यधिक मेहनत करनी पड़ रही है ।

आज प्रत्येक बैंक पेशेवर अधिकारियों और दक्षता प्राप्त कार्मिकों को नियोजित करके अधिकाधिक ग्राहकों को आकर्षित करने का हरसम्भव प्रयास कर रहा है । बाजारोन्मुखी दृष्टिकोण के साथ श्रेष्ठ ग्राहक सेवाएँ प्रदान करने हेतु अधिकांश बैंकों में सेवाओं का कम्प्यूटरीकरण हो चुका है तथा बैंकों द्वार ‘एनीवेयर-एनीटाइम बैकिंग’, ‘इंटरनेट बैंकिंग’, ‘ए टी एम’, ‘इलेक्ट्रॉनिक फण्ड ट्रांसफर’ आदि सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है ।

इसके अलावा बैंकों द्वारा अपनी कुल लाभप्रदता बढाने के उद्देश्य से सेवा- विविधता के माध्यम से बीमा, मर्चेन्ट बैंकिंग, डीमेट सर्विसेज आदि भी शुरू की जा रही हैं । अतः परिवर्तित और आधुनिक बैंकिंग प्रणाली को देखते हुए नि:सन्देह यह कहा जा सकता है कि निजी व सार्वजनिक दोनों प्रकार के बैंकों में निकट भविष्य में न केवल क्लर्क, अधिकारी, प्रबन्धक, एग्जीक्यूटिव्ज की बड़े पैमाने पर आवश्यकता होगी, बल्कि अनेक विशिष्ट योग्यताधारी प्रोफेशनल्स की भी जरूरत पड़ेगी ।

कर्मचारियों की भर्ती (Recruitment of Employees):

भर्ती एक प्रक्रिया है जो कि कार्मिक प्रबन्ध में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है । इस प्रक्रिया में भावी कर्मचारियों की आवश्यकता का पता लगाया जाता है और उन आवश्यकताओं के आधार पर युवक/युवतियों को आवेदन-पत्र देने को प्रोत्साहित किया जाता है ।

कर्मचारियों की भावी आवश्यकता का अनुमान स्थानान्तरण, पदोन्नति के अवसर, त्यागपत्र, सेवा-निवृत्ति की प्रवत्ति के आधार पर होता है । अतः भर्ती किसी भी उद्योग में महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसके सफल संचालन से उद्योग का विकास निर्बाध रूप से चलता रहता है ।

कर्मचारियों की भर्ती के लिए कई पद्धतियाँ काम में ली जाती हैं, जैसे रोजगार संस्थाओं द्वारा भर्ती की जा सकती है, कर्मचारी संघों द्वारा भर्ती की जाती है मध्यस्थों द्वारा भर्ती की जाती है व प्रत्यक्ष रूप से भर्ती की जाती है । उपरोक्त पद्धतियों में से मात्र प्रत्यक्ष विधि को ही उपयुक्त पद्धति माना गया है ।

वर्तमान में बैंकिंग उद्योग द्वारा इसी नीति पर कर्मचारियों की भर्ती की जाती है । इस नीति या पद्धति में भर्ती हेतु प्रार्थना-पत्र आमन्त्रित किए जाते हैं । उसके पश्चात् इन प्रार्थनापत्रों के आधार पर आवेदकों की लिखित परीक्षा व साक्षात्कार आयोजित किए जाते हैं ।

लिखित परीक्षा व साक्षात्कार में प्राप्त अंकों के आधार पर योग्यता सूची का निर्माण होता है व उसी के अनुसार डॉक्टरी परीक्षण का विभिन्न पदों पर भर्ती की जाती है ।

व्यापारिक बैंकों के द्वारा राष्ट्रीकरण के बाद प्रतिवर्ष लगभग 12,000 अधिकारियों तथा 20,000 लिपिकों की भर्ती की गई है । साधारण उम्मीदवारों के बैंक सेवा के प्रति आकर्षण को देखते हुए तथा बैंक सेवा का एक अच्छा स्तर कायम रखने के लिए यह आवश्यक समझा गया है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों में अधिकारियों तथा लिपिकों की भर्ती के लिए एक स्वतन्त्र संगठन बनाया जाए ।

बैंकिंग सेवा अधिनियम, 1975 के अनुसार, भर्ती का एक आयोग के अन्तर्गत केन्द्रीयकरण किया गया था । किन्तु यह महसूस किया गया कि इतनी बडी संख्या में उम्मीदवारों की भर्ती के लिए यह आयोग पर्याप्त रूप से तथा समय से प्रबन्ध नहीं कर पाएगा ।

इसलिए इस अधिनियम को, बैंकिंग सेवा आयोग निरसन अधिनियम, 1978 के दौरान निरस्त कर दिया गया । इसके स्थान पर सात बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड (भारतीय स्टेट बैंक समूह के लिए गठित बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड को मिलाकर आठ) की स्थापना की गई ।

यह व्यवस्था है कि प्रत्येक बोर्ड झ अध्यक्ष एक स्वतन्त्र और योग्य व्यक्ति होगा । इसके अतिरिक्त दो गैर-सरकारी सदस्य होंगे जिनमें से एक अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व करेगा तथा दूसरा एक विशेषज्ञ सदस्य होगा । इसमें उस समूह के भाग लेने वाले बैंकों के नामित अधिकारी भी होंगे । इन बोर्डों द्वारा अलग-अलग बैंकों के लिये अपने आबंटित क्षेत्र वाले बैंकों में क्षत्रिय आधार पर भर्ती की जाती है ।

भर्ती की सम्भावनाएं:

प्रगतिशील उद्योग के रूप में विशिष्ट पहचान बना चुके ‘बैंकिंग क्षेत्र’ में न केवल सम्मानजनक रोजगार की व्यापक सम्भावनाएं विद्यमान हैं, बल्कि भावी प्रगति की भी प्रबल संभावनाएँ मौजूद है । अधिकांश बैंकों में दो वर्गों में मानव-शक्ति नियोजन (Man Power-Planning) का कार्य किया जाता है, प्रथम ‘लिपिक वर्ग’ और द्वितीय ‘अधिकारी वर्ग’ ।

‘लिपिक वर्ग’ के अन्तर्गत लेखा लिपिक, टाइपिस्ट, कैशियर, स्टेनोग्राफर, कृषि सहायक, डेटा एण्ट्री ऑपरेटर आदि को सम्मिलित किया जाता है, जबकि ‘अधिकारी वर्ग’ में परिवीक्षा अधिकारी, स्टाफ आधेकारी ग्रेड ‘ए’, स्टॉफ अधिकारी ग्रेड ‘बी’, विकास अधिकारी, सहायक विकास अधिकारी आदि को सम्मिलित किया जाता है । सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों में इन सभी पदों पर नियुक्ति देने हेतु नियमित रिक्तियाँ विज्ञापित होती रहती हैं ।

सार्वजनिक बैंकों में भर्ती:

हमारे देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 19 राष्ट्रीयकृत बैंक में भारतीय स्टेट बैंक और इसके 7 सहयोगी बैंकों तथा IDBI को सम्मिलित किया जाता है । इन सभी 28 बैंकों की 45000 से अधिक शाखाएँ देश के विभिन्न भागों में कार्य कर रही हैं ।

वर्तमान में प्रत्येक 12000 (लगभग) की आबादी के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की एक बैंक-शाखा संचालित की जा रही है । इन शाखाओं द्वारा जहां एक ओर सामान्य बैंकिंग कारोबार किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु क्रियान्वित अनेक सरकारी योजनाओं में भी सराहनीय सहयोग दिया जा रहा है ।

इन बैंकों में जनशक्ति नियोजन हेतु पूर्व में कुल 9 बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड बनाए गए थे जो लिखित परीक्षा एवं व्यक्तिगत साक्षात्कार के माध्यम से कर्मचारियों की भर्ती करते थे, परन्तु अब इन सभी भर्ती मण्डलों को भंग कर दिया गया है और बैंकों को व्यक्तिगत स्तर पर अपनी आवश्यकतानुसार पदों पर भर्ती करने की छूट दी गई है परिणामस्वरूप वर्तमान नवीन भर्ती प्रणाली में व्यक्तिगत साक्षात्कार का महत्व बहुत बढ़ गया है, जिसमें सफलता अर्जित करने के लिए सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ-साथ व्यक्तित्व विकस और सकरात्मक दृष्टिकोण का होना अतिआवश्यक है ।

गौरतलब तथ्य यह भी है कि प्रति-स्पर्धात्मक परिवेश के कारण जब से बैंकिंग सेवाओं का कम्प्यूटरीकरण हुआ है, तब से लिपिक वर्ग, रोकडिया वर्ग, अधीनस्थ या सहायक कर्मचारी आदि पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया लगभग थम सी गई है । आज केवल अधिकारी वर्ग और विशिष्ट योग्यताधारी-पेशेवर लोगों की नियुक्ति पर ही ध्यान केन्द्रित हो रहा है । भारतीय रिजर्व बैंकों, नाबार्ड, स्टेट बैंक समूह आदि बैंकों में अधिकारी पदों पर नियुक्ति अखिल भारतीय स्तर पर की जाती है ।

बैंकों का चयन (Selection in Banks):

स्टेट बैंक समूह द्वारा परिवीक्षा अधिकारियों (Probationary Officers) की नियुक्ति अखिल भारतीय स्तर पर की जाती है, इस पद के लिए आवेदन करने हेतु न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता किसी भी विषय में स्नातक होना है । आयु सीमा 18 से 26 वर्ष तक है ।

लिखित परीक्षा में 2 प्रश्न-पत्र होते हैं:

 

(a) प्रथम प्रश्नपत्र-वस्तुनिष्ठ परीक्षण:

यह प्रश्न-पत्र तर्क क्षमता, संख्यात्मक या गणितीय अभिरुचि सामान्य शान तथा अंग्रेजी भाषा शान आदि भागों में विभाजित होता है । तर्कक्षमता के परीक्षण वाले भाग में अभ्यर्थी की मानसिक कुशाग्रता की जाँच की जाती है । इसके अधिकांश प्रश्न, चित्रों, आकृतियों, ग्राफ आदि की शैली में होते हैं ।

गणितीय ज्ञान एवं संख्यात्मक अभिरुचि के परीक्षण में गणनात्मक क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है जबकि सामान्य शान वाले भाग में सामयिक घटनाओं से जुड़े सवालों के साथ-साथ भूगोल, राजनीति, अर्थशास्त्र, इतिहास, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों, सामाजिक विज्ञान आदि से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं ।

अंग्रेजी के भाषा ज्ञान वाले भाग में शब्दों, अभिव्यक्तियों आदि के प्रयोग के साथ- साथ व्याकरण, वाक्य-रचना तथा भाषा की समझ विषयक प्रश्नों का समावेश होता है ।

उल्लेखनीय है कि वस्तुनिष्ठ परीक्षण वाले इस प्रथम प्रश्न-पत्र का हल करते वक्त समय-सीमा का ध्यान रखना अतिआवश्यक है, क्योंकि इसमें अभ्यर्थी को थोड़े समय में ढेर सारे प्रश्नों का जवाब देना होता है । यहाँ पर आपकी निर्णय क्षमता के साथ गति की भी परीक्षा होती है, लेकिन जल्दबाजी में आपको बिना सोचे-समझे किसी भी उत्तर पर निशान अंकित नहीं कर देना चाहिए ।

गलत उत्तरों पर नकारात्मक अंकों का प्रावधान भी होता है । अभ्यास से वस्तुनिष्ठ परीक्षण के प्रश्नोत्तर देने की गति बढाई जा सकती है और सही तथा शीघ्र उत्तर देने में दक्षता हासिल की जा सकती है ।

(b) द्वितीय प्रश्न-पत्र वर्णनात्मक परीक्षण:

इस प्रश्नपत्र में निबन्ध, पत्र-लेखन या सारांश लेखन (अंग्रेजी में) आदि में सम्मिलित किया जाता है । इस प्रश्न-पत्र का उद्देश्य आवेदकों की अभिव्यक्ति क्षमता, सम्प्रेषण कुशलता और विभिन्न स्थितियों व चुनौतियों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया का मूल्यांकन करना होता है ।

साक्षात्कार:

लिखित परीक्षा के दोनों प्रश्न-पत्रों में बेहतर निष्पादन करने वाले अभ्यर्थियों को रिक्त-पदों की संख्या के आधार पर व्यक्तिगत साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है । साक्षात्कार में दिन-प्रतिदिन की घटनाओं, जीवन, सामान्य ज्ञान, अभ्यर्थी की शिक्षा के विषयों, उसकी अभिरुचियों, पृष्ठभूमि आदि से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते है ।

यह जरूरी नहीं कि साक्षात्कार में पूछे जाने वाले प्रश्न एक निश्चित दायरे में हों । आपको उपर्युक्त विषयों के साथ-साथ कुछ विशिष्ट प्रकार के प्रश्नों-आप बैंकिंग क्षेत्र में क्यों आना चाहते है ? क्या आप इस पद के लिए अपने आप में योग्य समझते हैं ? और यदि हाँ तो कैसे ? बैंकिंग क्षेत्र की चुनौतियों का आप कैसे सामना करेंगे ? बैंक को सफल व प्रभावी बनाने हेतु सुझाव दीजिए आदि प्रश्नों के उत्तर तैयार करके जाना चाहिए ।

लिखित परीक्षा और व्यक्तिगत साक्षात्कार में प्राप्त कुल अंकों के आधार पर परिवीक्षाधीन अधिकारियों के पदों पर नियुक्ति के लिए अभ्यर्थियों का अंतिम चयन किया जाता है ।

निजी क्षेत्र के बैंकों में भर्ती एवं चयन (Recruitment and Selection in Private Sector Banks):

वर्तमान एल. पी. जी. (Liberalization, Privatization and Globalization) के दौर में भारत में भी अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय ‘निजी बैंकों’ की स्थापना निरन्तर होती जा रही है । आज निजी क्षेत्र के बैंक भी न केवल देश की बैंकिंग व्यवस्था के विकस में, बल्कि राष्ट्रोत्थान में भी सहयोग प्रदान कर रहे हैं ।

निजी क्षेत्र के बैंकों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भाँति लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के द्वार भर्ती नहीं की जाती है, बल्कि इनमें अधिकांश भर्ती प्रत्यक्ष पद्धति से ही की जाती है ।

हालाँकि निजी बैंकों में भी लिपिक वर्ग, अधिकारी व पेशेवर वर्ग के लोगों की आवश्यकता तो होती है, किन्तु इनमें प्रायः व्यक्तिगत सम्पर्क या अग्रिम आवेदन से ही भर्ती एवं चयन का कार्य सम्पन्न कर लिया जाता है । कभी-कभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से अनुभव प्राप्त व्यक्तियों का चयन भी कर लिया जाता है ।

निजी बैंकों में उच्च पदों पर सी. ए., सी. एस., एम. बी. ए. आदि पेशेवर व्यक्तियों का चयन करना एक परम्परा सी बन गई है, वहीं दूसरी ओर सहायक या लिपिक वर्ग के व्यक्तियों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता 60 प्रतिशत प्राप्ताकों के साथ स्नातक डिग्री अनिवार्य कर दी गई है । कम्प्यूटर कार्य में विशेषज्ञता रखने वाले अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दी जाती है ।

गौरतलब तथ्य यह भी है कि परिवर्तित बाजार व्यवस्थाओं के अन्तर्गत प्रत्येक कार्य के कम्प्यूटरीकरण के बाद बैंकों में लिपिक/रोकड़िया वर्ग एवं अधीनस्थ कर्मचारियों के लिए रोजगार सम्भावनाएँ न्यून होती जा रही हैं । आज केवल विशिष्ट एवं पेशेवर योग्यता रखने वाले अभ्यर्थियों के सेवा-नियोजन पर ही सर्वाधिक बल दिया जा रहा है ।

साथ ही सेवा शर्तों एवं नियुक्ति पद्धतियों में भी व्यापक परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहे हैं । वर्तमान बैंकिंग कर्मियों को जो एक निश्चित वेतन श्रृंखला में वेतन वृद्धि और परिलाभ उपलब्ध कराए जा रहे हैं, सम्भवतः निकट भविष्य में ये सभी सुविधाएँ नवीन कर्मचारियों को सुलभ नहीं हो ।

निजी क्षेत्र में स्थापित हो रहे नए-नए बैंक विभिन्न प्रकार की सहायक सेवाएं संविदा पद्धतियों (Contract System) से सम्पन्न करा रहे है और नियमित कर्मचारियों में भी समन्वित स्थायी वेतन पर नियुक्ति दे रहे है । अब भविष्य में पदोन्नति एवं वेतन वृद्धि का आधार मात्र कार्यकुशलता ही रहेगा ।

अतः आने वाले समय में योग्य, मेहनती एवं दक्षता प्राप्त व्यक्तियों को ही चयन के समय प्राथमिकता दी जाएगी । जिन अभ्यर्थियों के पास चार्टर्ड एकाउण्टैन्टस (C.A.), कम्पनी सेक्रेटरी (C.S.) एम. बी. ए. (M.B.A.) कार्य एवं लागत लेखांकन (I.C.W.A.), एम. सी. ए (M.C.A.) एवं अन्य उच्च स्तरीय शिक्षा के साथ कम्प्यूटर का ज्ञान होगा, उनके लिए सार्वजनिक एवं निजी बैंकों में रोजगार की अपार सम्भावनाएँ रहेंगी ।

पारिश्रमिक:

सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के बैंकों में लिपिक या सहायक वर्ग के कर्मचारियों का प्रारम्भिक वेतन पंद्रह से पच्चीस हजार रुपए प्रति माह हो सकता है, जबकि बैंक में नियुक्त एक नए अधिकारी को पच्चीस से पैंतीस हजार प्रति माह वेतन के अलावा अन्य सुविधाएँ भी निःशुल्क प्रदान की जाती हैं ।

आई.सी.आई.सी.आई (I.C.I.C.I.) और इसके समक्क्ष निजी बैंकों में उच्चस्तरीय पेशेवर योग्यता प्राप्त व्यक्तियों को 6 से 7 साथ-साथ पारिश्रमिक तथा परिलाभों में स्वतः वृद्धि भी सुनिश्चित होती है ।

अतः यह कहा जा सकता है कि योग्यता प्राप्त मेहनती अभ्यर्थियों को सम्मानजनक पारिश्रमिक और प्रतिष्ठित पदों पर अपनी सेवाएँ देने का सुअवसर क्षेत्र में जैसे-जैसे बैंकिंग शाखा विस्तारीकरण की नीति प्रबल बनती जा रही है, वैसे-वैसे प्रोफेशनल्स की आवश्यकता तीव्र गति से बढ़ती जाएगी और उन्हें अन्य सेवा-क्षेत्रों की तुलना में पारिश्रमिक भी सुलभ होता रहेगा ।

बैंक में कर्मचारियों का मूल्यांकन (Appraisal of Employees in Banks):

कर्मचारियों के मूल्यांकन से हमारा तात्पर्य कर्मचारी, की योग्यता व दक्षता के स्तर का पता लगाने से होता है । सामान्यतः मूल्यांकन तब किया जाता है जब कार्यरत कर्मचारियों की पदोन्नति करनी हो या प्रशिक्षण कार्यक्रम में सार्थकता तथा उसमें किए जाने वाले परिवर्तनों के अनुमान लगाये जाने हों । मूल्यांकन के कार्यों को दो भागों में बाँटा जा सकता है प्रथम, प्रारम्भिक मूल्यांकन व द्वितीय, पदोन्नति मूल्यांकन ।

प्रारम्भिक मूल्यांकन उस समय होता है जब किसी कर्मचारी व अधिकारी को बैंक में नियुक्त किया जाता है । अर्थात जब भर्ती की प्रक्रिया होती है तब ही प्रारम्भिक मूल्यांकन हो जाता है । प्रारम्भिक मूल्यांकन में खरे रहने वाले व्यक्तियों को ही बैंकों में नियुक्ति दी जाती है ।

जब बैंक में कार्यरत कर्मचारियों की पदोन्नति करनी हो तब पदीत्रति-मूल्याँकन किया जाता है । पदोन्नति मूल्यांकन में अनुभव तथा उसके सेवाकाल की अवधि में व्यवहार आदि पर ध्यान दिया जाता है ।

मूल्यांकन के कार्य से संस्था को लाभ होता है । यदि कोई कर्मचारी परिवीक्षाकाल में हैं व उसे स्थाई करना है तब कर्मचारी के मूल्यांकन के आधार पर उसे स्थायी करने या न करने का निर्णय लिया जाता है । इसके अलावा मूल्यांकन से संस्था में कार्यरत कर्मचारियों की कमजोरियाँ सामने आ जाती हैं जिससे प्रबन्धकों को प्रशिक्षण के माध्यम से या अन्य माध्यम से उसे दूर करने का प्रयास किया जाता हैं ।

भारतीय बैंकिंग प्रणाली में प्रारम्भिक मूल्यांकन तो सुदृढ़ है जिसमें बुद्धि रुचि, तर्कशीलता, व्यक्तित्व व मानसिक परिपक्वता की जाँच हो जाती है लेकिन पदोन्नति-मूल्यांकन की नीति सुदृढ़ नहीं है । इसमें मात्र कुछ प्रतिशत कर्मचारियों का ही मूल्यांकन संभव हो पाता है जबकि अन्य कर्मचारियों का मूल्यांकन नहीं हो पाता ।

अतः सेवा में आने के पश्चात् बैंक कर्मचारियों के मूल्यांकन हेतु एक स्पष्ट नीति का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे बैंकिंग क्षेत्र में जनता का विश्वास और अधिक बढ सके ।