पासबुक: पहलू और सावधानियां | Passbook: Aspects and Precautions in Hindi!

Read this article in Hindi to learn about:- 1. पासबुक का अर्थ (Meaning of Passbook) 2. पासबुक प्रविष्टियों का वैधानिक पक्ष (Legal Aspect of Passbook Entries) and Other Details.

पासबुक का अर्थ (Meaning of Passbook):

बैंकर अपने ग्राहकों में एक छोटी-सी पुस्तिका देता है जिनमें बैंक समय-समय पर उन व्यवहारों की प्रविष्टियां करता रहता है जो उस खाते के सम्बन्ध में बैंकर तथा ग्राहक के बीच होते हैं । एक प्रकार से पासबुक ग्राहक के खाते की प्रमाणित प्रतिलिपि होती है ।

पासबुक को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से इस पर प्लास्टिक का आकर्षक कवर चढा दिया जाता है । इसके कवर पेज पर बैंक एवं उसकी शाखा का नाम, ग्राहक का नाम, खाता नम्बर तथा खाता बही पृष्ठ नम्बर (Ledger Folio) पडा रहता है तथा अन्दर प्रथम पेज पर जमाकर्ता (कर्ताओं) का नाम, व्यवसाय, पता, खाता सं. तथा दिनांक दिया होता है एवं शाखा प्रबन्धक के हस्ताक्षर रहते हैं । खाते एवं पासबुक से सम्बन्धित महत्वपूर्ण नियम भी पासबुक में छाप दिए जाते हैं ताकि ग्राहक को खाता-परिचलान से संबन्धित महत्वपूर्ण बातों की सूचना रहे ।

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पासबुक के एक पृष्ठ तथा उसमें जाने वाले प्रविष्टियों का नमूना निम्नानुसार है:

पासबुक एक महत्वपूर्ण पुस्तिका है जिसे ग्राहक से अपने पास सुरक्षित रखना चाहिए तथा उसे समय-समय पर बैंक भेजकर उसमें दिनांक (Up-to-Date) प्रविष्टियां कराते रहना चाहिए । पासबुक में प्रविष्टियां बैंक के लिपिक द्वारा की जाती हैं तथा उन पर अधिकारी (लेखापाल) के आद्याक्षर (Initials) होते है ।

ग्राहक को स्वयं अपनी पासबुक में किसी भी हालत में कोई प्रविष्टियां नहीं करनी चाहिए । कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था के कारण वर्तमान में सभी प्रविष्टियाँ कम्प्यूटर द्वारा होने लगी है । ग्राहक को समय-समय पर अपनी पासबुक की प्रविष्टियों का मिलान अपने रिकॉर्ड से करते रहना चाहिए तथा यदि उसे कोई त्रुटि या अनियमितता दिखाई दे तो उसकी लिखित सूचना बैंक को तत्काल देनी चाहिए ।

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ग्राहक की दृष्टि से पासबुक की एक महत्वपूर्ण उपयोगिता यह है कि पासबुक से ही ग्राहक को ऐसे व्यवहारों की सूचना मिल पाती है जो बैंकर ने ग्राहक के खाते में किए होते हैं, जैसे बैंक द्वारा क्रेडिट (या डेबिट) किया गया ब्याज आनुषंगिक व्यय या प्रभार (Incidental Charges) खाते में संग्राहक किये गये चैक या बिल, स्थायी अनुदेशों (Standing Instruction) के अन्तर्गत किये गये भुगतान या किन्हीं व्यक्तियों द्वारा खाते में सीधे जमा कराई गई राशियाँ आदि ।

पासबुक प्रविष्टियों का वैधानिक पक्ष (Legal Aspect of Passbook Entries):

पासबुक में ग्राहक के खाते का सही एवं प्रमाणित रिकॉर्ड रखा जाता है किन्तु यह विवादास्पद है कि क्या पासबुक में की गई प्रविष्टियां अन्तिम रूप से मान्य होती हैं तथा क्या पासबुक को ग्राहक के खाते का निर्विवाद एवं अन्तिम रूप से स्वीकृत (Conclusive Proof of Settled Account) माना जाना चाहिए ।

खाते का अन्तिम एवं निर्विवाद रिकार्ड (Conclusive Proof of Settled Account):

सर जॉन पेजेट (Sir John Paget) के अनुसार पासबुक ग्राहक एवं बैंकर के मध्य व्यवहारों का अन्तिम तथा निर्विवाद (Conclusive and Unquestionable) रिकॉर्ड है तथा इसे इस रूप में ही मान्य किया जाना चाहिए । ग्राहक को प्रविष्टियों के परीक्षण हेतु पूर्ण अवसर दिये जाने के पश्चात् सभी प्रविष्टियां, कम से कम उसके डेबिट की प्रविष्टियां, इस प्रकार अन्तिम हो जानी चाहिए जिन्हें कि बाद में बैंकर को हानि पहुंचाते हुए (to the Detriment of the Banker) पुनः न खोला जा सके ।

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सर जॉन पेजेट के इस मत की पुष्टि अमेरिकन न्यायालयों द्वारा दिए गये निर्णयों (Morgan Vs. United State Mortgage and Trust Co. तथा Devaynes Vs. Noble) आदि में भी की गई थी ।

उक्त मत को मान्यता देने का आधार यह है कि पासबुक ग्राहक के पास उपलब्ध रहने वाला रिकॉर्ड है तथा ग्राहक का यह दायित्व है कि वह समय-समय पर इसकी प्रविष्टियों की जाँच कराता रहे तथा यदि उसे कोई त्रुटियाँ दिखाई दे तो उसकी सूचना तत्काल बैंक को दे । यदि वह ऐसा नहीं करता तो इसका अर्थ यह है कि वह पास-बुक में की गई प्रविष्टियों को मान्य करता है ।

पासबुक की प्रविष्टियां सत्यता का अन्तिम प्रमाण पत्र नहीं (Pass-Book Entries are Not Conclusive Evidence of Accuracy or Correctness):

एक मत यह भी है कि पासबुक प्रविष्टियों का परीक्षण करना ग्राहक का वैधानिक दायित्व नहीं है तथा पास-बुक में की गई प्रविष्टियों को व्यवहार की सत्यता का अन्तिम एवं अकाट्य प्रमाण नहीं माना जा सकता । ग्राहक तथा बैंकर दोनों को ही यह अधिकार है कि किसी भी समय यदि वे कोई त्रुटि या भूल-चूक पासबुक की प्रविष्टियों में देखे तो उसमें सुधार करवा सकते हैं ।

इस सम्बन्ध में वैधानिक स्थिति निम्नानुसार है:

(A) ग्राहक के खाते में क्रेडिट शेष अधिक दर्शाए जाने पर स्थिति:

यह हो सकता है कि बैंकर ने ग्राहक मई पास-बुक में कुछ ऐसी गलत प्रविष्टियां कर दी हो जिनमें उसके खाते का क्रेडिट शेष वास्तविक शेष से अधिक दिखा दिया गया हो तो स्थिति निम्नानुसार होगी:

(1) यदि ग्राहक ने:

(i) त्रुटि का शान न होते हुए,

(ii) पास-बुक में दिखाए गए शेष को सही मानकर,

(iii) खाते में ऐसे अधिक शेष को निकाल (Withdraw) लिया हो तथा

(iv) उसे व्यय कर दिया हो, तो बैंकर इस प्रकार गलत किए गये भुगतान से ग्राहक से वसूल नहीं कर सकता ।

उपर्युक्त चारों शर्तों का लागू होना आवश्यक है । ग्राहक को यह सिद्ध करना होगा कि उसको त्रुटि की जानकारी नहीं थी तथा उसने पास-बुक की प्रविष्टियों के सही होने पर विश्वास करते हुए ऐसा किया ।

अपवाद:

(1) यदि ग्राहक अपनी लेखा-पुस्तकें नियमित रूप से रखता है तथा बैंक नियमित रूप से पासबुक या खाते का विवरण (Statement of Account) भेजता है तो वह त्रुटि की अज्ञानता का संरक्षण प्राप्त नहीं कर सकता ।

(2) यदि ग्राहक के पास ऐसे साधन या जानकारी हो जिनके द्वारा उसे खाते की सही स्थिति जानने का पूर्ण अवसर उपलब्ध हो तो यह नहीं माना जा सकता कि ग्राहक ने त्रुटि की अज्ञानता में खाते में जमा धन निकाला है । (Oakley Bowden and Co. Vs. the Indian Bank Ltd. 1964) के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया था कि यदि बैंक ग्राहक को समय-समय पर व्यवहारों की सूचना (Advice) या खाता-विवरण भेजता रहता है तो इसका अर्थ यह है कि ग्राहक को पास-बुक में गलत प्रविष्टियों की रचनात्मक-सूचना (Constructive Notice) थी तथा बैंक के विरुद्ध गत्यावरोध का तर्क (Plea of Estoppel) प्रयोग नहीं कर सकता ।

(B) पासबुक में ग्राहक के प्रतिकूल प्रविष्टियों का प्रभाव:

यदि पासबुक में कोई ऐसी त्रुटियाँ हुई हों जो बैंकर के हित में हों तथा ग्राहक पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हों (जैसे किसी क्रेडिट की प्रविष्टि न करना या कम राशि की करना या त्रुटि से कोई गलत डेबिट प्रविष्टि हो जाना) तो वैधानिक स्थिति निम्नानुसार होगी:

(1) ग्राहक को जब भी ऐसी त्रुटि की जानकारी प्राप्त हो वह बैंक से त्रुटि ठीक करा सकता है तथा बैंक से गलत डेबिट या कम क्रेडिट की राशि वसूल कर सकता है ।

(2) किन्तु यदि पास-बुक में की गई गलत प्रविष्टियों के सम्बन्ध में ग्राहक की असावधानी सिद्ध हो जाए तथा बाद में बैंकर की स्थिति उसके हित में परिवर्तित हो जाए (Negligence of the Customer towards the entries in the Pass-Book is Proved and the Position of the Banker has Subsequently Changed to his Advantage) स्थिति भिन्न हो जाएगी तथा यह माना जायेगा कि पास-बुक में की गई प्रविष्टियां अन्तिम रूप से निबटाया गया हिसाब (Settled Account) थी ।

किन्तु इसके लिए ग्राहक को असावधानी (Negligence) सिद्ध करनी पड़ेगी । (The Canara Bank Vs. Canara Sales Corporation and Others) (1974) के मामले में मैसूर उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि ग्राहक का कर्तव्य है कि अपनी पास-बुक का परीक्षण करके बैंक को यह सूचित करे कि जाली चैक का भुगतान कर दिया गया है । यदि ग्राहक ऐसी सूचना देने में लापरवाही करता है तो जाली चैक पर किए गए भुगतान को बाद में वसूली करने के अधिकार से ग्राहक को वंचित नहीं किया जा सकता ।

ग्राहक दारा सावधानियां (Precautions to be Taken by the Customers):

बैंक पासबुक एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पुस्तिका है जिसमें ग्राहक एवं बैंकर के मध्य हुए व्यवहारों का लेखा बैंक द्वारा समय-समय पर किया जाता रहता है । पासबुक ग्राहक के खातों की प्रमाणित प्रतिलिपि होती है ।

पासबुक के सम्बन्ध में ग्राहकों की जानकारी हेतु बैंक द्वारा महत्वपूर्ण नियम प्रकाशित किये जाते हैं जो निम्नानुसार हैं:

(1) चैक द्वारा रकम निकलने के अलावा रकम निकासी पत्रों (Withdrawal Forms) के समय पास-बुक प्रस्तुत की जानी चाहिए ।

(2) बिना पासबुक के रकम जमा कराई जा सकती है । उसके पश्चात् यथा-शीघ्र पास-बुक बैंक में खाता पूर्ति के लिए भेजी जानी चाहिए ।

(3) किसी भी स्थिति में बैंक को पास-बुक प्रतिवर्ष जून एवं दिसम्बर में ब्याज की प्रविष्टि के लिए भेजी जानी चाहिए ।

(4) जब पास-बुक प्रविष्टि कर लौटाई जाए तो जमाकर्ता प्रविष्टियों का सावधानीपूर्वक परीक्षण करे और कोई भूल-चूक पाई जाने पर उसकी ओर तुरन्त बैंक का ध्यान आकर्षित करे । पासबुक में की गई प्रविष्टियों में खातेदार द्वारा भूल-चूक पाई जाने पर तथा बैंक को न बताने पर उस सम्बन्ध में हुए नुक्सान के प्रति बैंक उत्तरदायी नहीं होगा ।

(5) पासबुक में की गई ऐसी प्रविष्टियों के लिए जिन पर अधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर न हों बैंक उत्तरदायी नहीं होगा ।

(6) जमाकर्ताओं को अपनी पास-चुके सुरक्षित रखनी चाहिए । जमाकर्ता की किसी लापरवाही के कारण किसी नुकसान या भुगतान के लिए बैंक उत्तरदायी नहीं होगा ।

डुप्लीकेट पास-बुक निर्गमित करना (Issue of Duplicate Pass-Book):

बैंक द्वारा ग्राहक वाली प्रथम पासबुक अथवा एक पासबुक के भर जाने पर दूसरी नई पास-बुक निर्गमित करने का कोई मूल्य नहीं लिया जाता किन्तु यदि ग्राहक द्वारा पासबुक खो जाए या नष्ट जाए तो बैंकर उचित जांच करके डुप्लीकेट पासबुक निर्गमित कर सकता है ।

इस हेतु जमाकर्ताओं को बैंक को लिखित में आवेदन करना चाहिए । दूसरी पासबुक पर ‘डुप्लीकेट’ लिख दिया जाना चाहिए इसके दिये जाने का उल्लेख खाताबही में ग्राहक के खाते पर लाल स्याही से कर देना चाहिए । डुप्लीकेट पासबुक देने हेतु विभिन्न बैंक अपने-अपने नियमानुसार सेवा-प्रभार लेते है ।

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