बैंकों द्वारा प्रदान किए जाने वाले ऋण और अग्रिम | Read this article in Hindi to learn about the meaning and classification of loan and advances offered by banks.

ऋण एवं अग्रिम का अर्थ (Meaning of Loans and Advances):

बैंक आस्तियों का एक बहुत बडा भाग ऋण एवं अग्रिम (Loans and Advances) के रूप में विनियोजित किया जाता है । ऋण एवं अग्रिम पर बैंकों द्वारा ऊंची दर से ब्याज वसूल किया जाता है क्योंकि ये कम तरल (Less Liquid) होते हैं जबकि इनमें जोखिम अधिक होती है ।

ऋण एवं अग्रिम विवर्तन (Shifting) भी कठिन होता है । बैंक कोषों की सुरक्षा एवं तरलता की दृष्टि से ऋण एवं अग्रिमों को अच्छी आस्ति नहीं माना जाता लेकिन इनसे प्राप्त होने वाली अधिक आय इनसे उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों की क्षतिपूर्ति कर देती है । ये आस्तियां नीची तरलता (Lower Liquidity) एवं ऊंची आय (Higher Income) प्रदान करती हैं ।

सामान्यतः ऋण एवं अग्रिम में कोई अन्तर नहीं किया जाता, ये दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची के रूप में प्रयुक्त किये जाते है । दि इंग्लिश लैंग्विज बुक सोसाइटी, लन्दन द्वारा प्रकशित ‘अर्थशास्त्र एवं वाणिज्य’ के शब्द कोष के अनुसार ऋण से तात्पर्य ”सरकार किसी संस्था व्यावसायिक फर्म अथवा किसी व्यक्ति द्वारा किसी निर्धारित समय के लिए निश्चित ब्याज दर पर कोई धराशि उधार लेने से है ।”

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जे. एल. हैन्सन के अनुसार – ”वाणिज्यिक अथवा संयुक्त स्कंध बैंकों द्वारा उद्योगों एवं व्यापार हेतु दिये गये ऋणों एवं अधिविकर्षों (Loans and Overdrafts) अथवा व्यक्तिगत ऋणों को अग्रिम की संज्ञा दी जाती है ।”

प्रकृति की दृष्टि से ऋण एवं अग्रिमों में कोई अन्तर नहीं है । लेकिन बैंकों द्वारा ऋण एवं अग्रिमों के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के आधार पर इनमें अन्तर किया जा सकता है । डॉ. बी. पी. शर्मा, डॉ. एम. एल. वर्मा एवं प्रो. एच .आर वर्मा के शब्दों में ”ऋण अग्रिमों का एक भाग होता है, इसके लिए ऋणी का पृथक खाता खोला जाता है और ऋणी पूर्व स्वीकृत शर्तों के अनुसार स्वीकृत राशि का आहरण करता है । अग्रिमों के लिए पृथक खाता खोलने की आवश्यकता नहीं होती है । उसकी प्रविष्टियाँ ऋणी के चालू खाते (Current Account) में कर दी जाती हैं ।”

बैंकों द्वारा ग्राहकों को दिये जाने वाले प्रत्येक ऋण का एक स्वतंत्र अस्तित्व होता है अतः दो ऋणों को परस्पर मिलाया नहीं जा सकता । यदि कोई बैंक अपने किसी पूर्व ऋणी को कोई दूसरा ऋण स्वीकृत करता है तो इस ऋण के लिए बैंक द्वारा पृथक ऋण खाता खोला जाता है ।

बैंकों द्वारा ऋण एवं अग्रिम व्यक्तिगत् साख (Personal Credit) अथवा वस्तुओं की प्रतिभूति (Guarantee) पर स्वीकृत किये जाते हैं । व्यक्तिगत् साख पर स्वीकृत ऋण एवं अग्रिमों को असुरक्षित (Unsecured) अथवा स्वच्छ ऋण (Clean Credit) की संज्ञा दी जाती है । प्रतिभूति के आधार पर स्वीकृत किये जाने वाले ऋणों को सुरक्षित ऋण (Secured Loans) कहते हैं ।

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ऋण प्रक्रिया (Loan Procedure):

ऋणों एवं अग्रिमों की स्वीकृत के लिए ऋणी एवं बैंक के मध्य एक अनुबंध किया जाता है जिसमें ऋण की राशि, अवधि, ब्याज की दर, भुगतान की शर्तों तथा प्रतिभूति के रूप में दी गई वस्तुओं का ब्यौरा दिया होता है । बैंक, ऋण स्वीकृत करते समय साक्षी के रूप में दो व्यक्तियों के हस्ताक्षर समझौता पत्र पर करवाता है ।

ऋण एवं अग्रिमों का वर्गीकरण (Classification of Loans and Advances):

ऋणों की सुरक्षा, परिपक्वता, भुगतान अवधि, उद्देश्य इत्यादि के आधार पर ऋण एवं अग्रिमों को निम्नांकित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

(i) सुरक्षित एवं असुरक्षित ऋण (Secured and Unsecured Loans):

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बैंकिंग नियमन अधिनियम (Banking Regulation Act,) 1949 की धारा 5 (अ) के अनुसार – ”सुरक्षित ऋण अथवा अग्रिम से तात्पर्य ऐसे ऋण एवं अग्रिम से है जो ऐसी सम्पत्ति की प्रतिभूति (Security) के आधार पर दिया जाता है जिसका बाजार मूल्य किसी भी समय ऐसे ऋण अथवा अग्रिम की राशि से कम नहीं होता । यदि कोई ऋण अथवा अग्रिम इस प्रकार से प्रत्याभूतित नहीं होता है तो उसे असुरक्षित (Unsecured) ऋण कहते हैं ।”

बैंक प्रायः मूर्त सम्पत्तियों (Tangible Assets) जैसे सामान एवं वस्तुएँ (Goods and Commodities), भूमि एवं भवन, स्वर्ण एवं रजत, सरकारी अथवा निगमित संस्थाओं की प्रतिभूतियों की प्रतिभूति के आधार पर सुरक्षित ऋण स्वीकृत करते हैं ।

ऋण स्वीकृत करते समय बैंक के पक्ष में इन सम्पत्तियों का चार्ज उत्पन्न किया जाता है । जब तक ऋण का भुगतान नहीं हो जाता, प्रतिभूति के रूप में रखी गई सम्पत्तियों का बाजार मूल्य ऋण की राशि से कम नहीं होना चाहिए अन्यथा ऋण आशिक रूप से सुरक्षित माना जाएगा ।

सुरक्षित ऋण जहाजी रसीद, बीमापत्र, माल-गोदाम की रसीद के विबन्धन अथवा किसी व्यक्ति या संस्था की गारण्टी पर भी दिये जा सकते है । दीर्घकालीन ऋण हमेशा सुरक्षित ऋणों के रूप में ही दिये जाते हैं क्योंकि परिपक्वता की अवधि लम्बी होने के कारण इन ऋणों की शोधन की संभावना कुछ कम हो जाती है ।

ऋणी की आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर अथवा उसकी आय कम होने की स्थिति में या उसकी कम ख्याति प्राप्त होने पर बैंक ऋण देते समय प्रायः ऋणों की सुरक्षा के लिए सम्पत्ति अथवा गारण्टी की माँग करता है ।

यदि सुरक्षित ऋणों का शोधन समय पर नहीं किया जाता तो बैंक प्रतिभूति के रूप में रखी गई सम्पत्ति से बेचकर अपने ऋणों का शोधन कर लेता है । सम्पत्ति की बिक्री से प्राप्त राशि यदि ऋण की राशि एवं ब्याज से अधिक होती है तो वह ऋणी को लौटा दी जाती है ।

यदि सम्पत्ति की बिक्री से प्राप्त राशि ऋण की राशि से कम होती है तो बैंक शेष राशि के लिए ऋणी के विरुद्ध दावा कर सकता है । किसी व्यक्ति अथवा संस्था की गारण्टी पर दिये गए ऋण की बैंक प्रत्याभू से अपने ऋण एवं ब्याज की राशि वसूल कर सकता है । चूंकि सुरक्षित ऋण यथोचित सीमान्तर (Margin) रखकर दिये जाते हैं, अतः सामान्यतः इनके शोधन में किसी प्रकार की कठिनाई उत्पन्न नहीं होती ।

(ii) अल्पकालीन, मध्यकालीन अथवा दीर्घकालीन ऋण (Short Term, Medium Term or Long Term Loans):

ऋणों की अवधि के आधार पर बैंक ऋणों को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है । जब ऋणों की अवधि एक वर्ष या इससे कम होता है तो उन्हें अल्पकालीन ऋण की संज्ञा दी जाती है । सामान्यतः ये ऋण 30, 60 या 90 दिन के लिए स्वीकृत किये जाते हैं । याचना ऋणों (माँग पर देय) को भी अल्पकालीन ऋणों में ही सम्मिलित किया जाता है ।

मध्यकालीन ऋण (Medium Term Loans) वे ऋण होते हैं जिनकी अवधि 1 से 5 वर्ष तक की होती है । दीर्घकालीन ऋणों (Long Term Loans) सावधि ऋण की भी संज्ञा दी जाती है । सावधि ऋण 5 वर्ष से अधिक अवधि के होते है । भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण एवं सार्वभौमीकरण के कारण अब भारतीय बैंक काफी मात्रा में दीर्घकालीन ऋण देने लगे हैं । पहले ये बैंक प्रायः अल्पकालीन एवं मध्यकालीन ऋण देते थे ।

(iii) उत्पादक अथवा अनुत्पादक ऋण (Production or Unproductive Loans):

उत्पादक कार्यों के लिए स्वीकृत किये जाने वाले ऋणों को उत्पादक ऋण (Productive Loans) तथा गैर-उत्पादक कार्यों के लिए दिये जाने वाले कणों को अनुत्पादक ऋण की संज्ञा दी जाती है । बैंक प्रायः उत्पादक कार्यों के लिए ही ऋण देते है । उत्पादक कार्यों के लिए ऋण उद्योगपतियों, व्यावसायियों, स्व-नियोजित व्यक्तियों इत्यादि को दिये जाते हैं ।

अनुत्पादक ऋणों में अधिकतर उपभोक्ता ऋण (Consumer Loans) दिये जाते है । इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं (टेलीविजन, वी. सी. आर./वी. सी. पी./ कम्प्यूटर इत्यादि) इलैक्ट्रिक वस्तुओं तेस्वरेटर, एयर कडिशनर, वाशिग मशीन इत्यादि) वाहनों (कार, स्कूटर, मोटर साइकिल आदि) के क्रय या भवन निर्माण, शिक्षा, विदेश-यात्रा इत्यादि प्रयोजनों के लिए दिये जाने वाले ऋणों के उपभोक्ता ऋणों के वर्ग में शामिल किया जाता है ।

(iv) अन्य वर्गीकरण (Other Classification):

उपर्युक्त वर्गों के अलावा ऋण एवं अग्रिमों को कई अन्य वर्गों में भी बाटा जा सकता है । वर्गीकरण का एक आधार ऋणों की परिपक्वता तिथि (Date of Maturity) हो सकती है । ऋणों का भुगतान एक मुश्त (एक ही किस्त) में किया जा सकता है अथवा कई किस्तों में ।

ऋण क भुगतान एक मुश्त किये जाने पर उस ऋण को स्ट्रेट ऋण (Straight Loan) कहते है । किश्तों में भुगतान की व्यवस्था होने पर ऋण की किस्त-भुगतान प्रणाली कहलाती है । प्रायः उत्पादक एवं उपभोक्ता द्वारा ऋणों के भुगतान हेतु किस्त प्रणाली ही अपनाई जाती है ।