चेक: परिभाषा, तत्व और सुरक्षा | Read this article in Hindi to learn about:- 1. चैक की परिभाषा (Definition of Cheques) 2. चैक के आवश्यक तत्व या विशेषताएं (Essentials Elements or Features of a Cheques) 3. तैयार करने की विधि (Methods of Preparation) 4. सुरक्षित बनाने की रीतियाँ (Ways of Safeguarding).

चैक की परिभाषा (Definition of Cheques):

विनिमय साध्य विलेख तीसरे प्रकार का चैक होता है । यह एक ऐसा विनिमय विपत्र है जो किसी निर्दिष्ट बैंक पर आहरित किया जाता है तथा जो माँग पर देय होने के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार से देय घोषित नहीं होता है । इसे धनादेश भी कहा जाता है ।

भारतीय विनिमय साध्य विलेख अधिनियम, 1881 की धारा 6 के अनुसार – ”चैक एक ऐसा विनिमय-विपत्र है जो किसी निर्दिष्ट बैंक पर आहरित किया जाता है और जो माँग पर देय होने के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार से देय घोषित नहीं होता है ।” इंग्लैण्ड के ‘Bill of Exchange Act’ की धारा 73 के अनुसार – ”चैक बैंकर पर लिखा हुआ माँग पर देय विनिमय-विपत्र होता है ।”

डॉ. हर्ट (Hart) के अनुसार – ”एक चैक लेखक द्वारा हस्ताक्षरित बैंक के नाम शर्तरहित एक ऐसा लिखित आदेश होता है जिसमें लेखक निर्दिष्ट व्यक्ति को, उसके द्वारा आदिष्ट व्यक्ति से अथवा वाहक को माँग करने पर एक निर्दिष्ट राशि क भुगतान करने का आदेश देता है और इसमें उक्त राशि के भुगतान के अतिरिक्त अन्य किसी कार्य को करने का आदेश नहीं देता है ।”

ADVERTISEMENTS:

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि चैक एक शर्त रहित लिखित आज्ञा-पत्र होता है जिसमें लिखने वाले के हस्ताक्षर होते है और वह उसमें किसी व्यक्ति को अथवा उसके आदेशानुसार किसी अन्य व्यक्ति को, अथवा वाहक को, माँग करने पर, इसमें लिखित एक निश्चित राशि का भुगतान करने का आदेश किसी निर्दिष्ट बैंक को देता है ।

चैक के आवश्यक तत्व या विशेषताएं (Essentials Elements or Features of a Cheques):

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर चैक कहलाने के लिए किसी विनिमय साध्य विलेख में निम्नांकित तत्वों (गुणों) का पाया जाना आवश्यक है:

(1) एक लिखित विलेख (Instruments in Writing):

चैक एक लिखित प्रपत्र होता है । कानून द्वारा उसका कोई प्रारूप निर्धारित नहीं किया गया है । यह किसी भी सामग्री से लिखा जा सकता है । सैल्टन के अनुसार – ”चैक पेंसिल से या स्याही से लिखा हुआ, टाइप किया हुआ अथवा छपा हुआ भी हो सका है ।”

ADVERTISEMENTS:

व्यवहार में पेंसिल से लिखे हुए चैकों का प्रचलन नहीं है क्योंकि इनमें जालसाजी की संभावना रहती है । व्यवहार में चैक बैंक द्वारा दी गई चैक बुक (जो छपी होती है) पर ही लिखकर काटे जाते है । सामान्यतया बैंक स्याही से लिखे गये चैकों का ही भुगतान करते ।

पेंसिल से लिखे चैक के बारे में फैलन का मत है कि बैंक ऐसे चैक का भुगतान करने से पूर्व ग्राहक से उसकी पुष्टि कर ले । ग्राहक द्वारा बैंकर को भुगतान करने का दिया गया मौखिक आदेश अथवा टेलीफोन पर आदेश चैक नहीं माना जा सकता ।

(2) एक आदेश (An Order):

विनिमय विपत्र होने के कारण चैक बैंक को दी गयी आशा के रूप में होना चाहिये । व्यवहार में, चैक में ‘भुगतान करो’ या भुगतान कीजिए (Pay) शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो एक प्रकार से आदेश ही है । परन्तु कई बार ‘कृपया भुगतान कीजिए’ (Please Pay) भी लिखा हो सकता है । इससे चैक की वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । इसे भी शिष्ट भाषा में एक आदेश ही माना जाता है ।

ADVERTISEMENTS:

(3) शर्त रहित आदेश (Unconditional Order):

विनिमय साध्य विलेख होने के कारण चैक सर्वदा एक शर्तरहित आदेश होता है । इसका तात्पर्य यह है कि यदि आहर्ता किसी शर्त के पूरा होने के पश्चात् उसके भुगतान करने का आदेश देता है तो उसे चैक नहीं कहा जा सकता और न ही बैंक उसका भुगतान करने के लिए बाध्य होता है ।

उदाहरण के लिए यदि रजत राजस्थान बैंक पर लिखे गये चैक का भुगतान इसके साथ संलग्न रसीद पर प्रापक के हस्ताक्षर लेकर ही करने का आदेश देता है तो यह शर्त पूर्ण आदेश होने के कारण चैक नहीं कहलायेगा । किन्तु यदि रसीद पर हस्ताक्षर करने का आदेश प्रापक को दिया गया है तो चैक भुगतान की आज्ञा को शर्तरहित माना जायेगा क्योंकि बैंक प्रापक के नाम ऐसे किसी आदेश को मानने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है ।

(4) आहर्ती बैंक हो (Drawee Must be a Bank):

चैक किसी निर्दिष्ट बैंक पर (On a Specified Banker Only) आहरित होना चाहिये अर्थात् आदेश किसी बैंक को दिया गया हो और वह भी नामित की गयी हो । यह इसलिए आवश्यक है कि चैक निर्गमित करने वाला व्यक्ति बैंक की जिस शाखा में धन राशि जमा करता है उसी पर वह वैध रूप में चैक आहरित कर सकता है ।

व्यवहार में छपे हुए चैक फर्म पर बैंक का नाम व पता लिखा हुआ होता है जिससे कि बैंक की शाखा विशेष, जहां चैक को भुगतान के लिए प्रस्तुत करना है, निश्चित हो सके । अतः चैक में बैंक का नाम तथा शाखा का नाम आवश्यक रूप से लिखा हुआ होना चाहिये ।

(5) एक निश्चित राशि (A Certain Sum):

चैक की राशि निश्चित होनी चाहिये । चैक एक निश्चित राशि के भुगतान का लिखित आदेश है इसलिए किसी अन्य वस्तु के भुगतान के लिये दिये गये आदेश को चैक नहीं माना जा सकता । यदि चैक में अंकित धन राशि निश्चित नहीं है तो उसके स्वतंत्र चलन में बाधा आती है ।

जैसे, किसी चैक में यह लिखा है कि रजत को 2000 रुपये की राशि भुगतान करें तो यह चैक मान्य नहीं होगा । चैक की राशि ‘शब्दों’ तथा ‘अंकों’ दोनों में ही लिखी हुई होनी चाहिये । धारा 18 के अनुसार, इन दोनों में अन्तर होने पर शब्दों में लिखित राशि के भुगतान करने का आदेश माना जायेगा ।

यदि चैक विदेशी मुद्रा में लिखा गया हो तथा उस पर विनिमय दर का या तो उल्लेख हो या प्रचलित दर पर विनिमय होता है, तो भी चैक की राशि निश्चित मानी जायेगी । यदि चैक की राशि में निश्चित दर से ब्याज जोड़कर भुगतान करना है तो भी निश्चित राशि मानी जायेगी ।

(6) आदाता निश्चित हो (Payee Must be Certain):

चैक उसमें नामांकित व्यक्ति को, अथवा उसके आदेशानुसार किसी अन्य व्यक्ति को, अथवा वाहक को देय होता है । इसलिये आदाता या प्रापक निश्चित होना चाहिये । चैक का आदाता कोई व्यक्ति, संस्था, क्लब, कम्पनी तथा सोसाइटी हो सकती है ।

चैक में इस बात का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिये कि उसमें उल्लिखित राशि का भुगतान किसे किया जाये? यदि आदाता निश्चित नहीं है तो चैक वैध नहीं माना जायेगा । कोल बनाम मिलसन वाद में चैक में लिखा था कि, ”रोकड़ अथवा आदेश पर भुगतान करें ।” इसमें आदाता का नाम निश्चित न होने के कारण चैक वैध नहीं माना गया ।

(7) मांग पर देय (Payable on Demand):

चैक की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि यह मांग पर ही देय होता है । विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, ”चैक माँग पर देय होता है और अन्य प्रकार से देय नहीं होता ।” चैक के भुगतान की कोई तिथि नहीं होती । जब भी उसका धारक यथोचित रूप में इसे बैंक के समक्ष भुगतान हेतु प्रस्तुत करता है तो बैंक को इसका भुगतान करना पड़ेगा ।

बैंक उसके भुगतान को रोक नहीं सकता । बैंक ऑफ बडौदा बनाम पंजाब नैशनल बैंक के वाद में न्यायालय द्वारा कहा गया कि ”अन्य बातें समान होने पर यदि ग्राहक का बैंक के पास पर्याप्त धन जमा है तो बैंक या तो चैक का भुगतान करने के लिए अथवा उसके अनादरण करने के लिए बाध्य है ।”

चैक में ‘माँग पर देय’ (On Demand) शब्द की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि धारा 19 के अनुसार जब विलेख में भुगतान करने की कोई तिथि अंकित न हो, तो यह स्वतः ही माँग पर देय विलेख माना जाता है ।

(8) आहर्ता के हस्ताक्षर (Signature of the Drawer):

चैक पर आहर्ता (बैंक का ग्राहक) के तथा उसकी ओर से इस आशय के लिए विधिवत् अधिकृत व्यक्ति के हस्ताक्षर होना आवश्यक है । हस्ताक्षर चैक के अन्त में दायीं ओर कोने में किये जाते हैं । यदि चैक का आहर्ता अनपढ व्यक्ति होता है तो उसके अगुवा निशानी लगाना आवश्यक है ।

जब ग्राहक बैंक में अपना खाता खोलता है तो बैंकर उस समय उसके नमूने के हस्ताक्षर करवाकर रख लेता है । चैक का भुगतान करते समय बैंकर आहर्ता के चैक पर किये गये हस्ताक्षर उसके नमूने के हस्ताक्षर से मिलाता है । दोनों हस्ताक्षर मिलने के पश्चात् ही वह चैक का भुगतान करता है ।

हस्ताक्षर न मिलने की स्थिति में वह चैक का भुगतान करने से मना कर सकता है । आहर्ता को चैक पर हस्ताक्षर करने का अधिकार तभी होता है जबकि ग्राहक के खाते में पर्याप्त रकम जमा हो अथवा बैंक ने उसे अधिविकर्ष की सुविधा दे रखी हो ।

(9) चैक फार्म का उपयोग (Use of Cheque Forms):

जब कोई ग्राहक बैंक में खाता खोलता है तो उसके मांगने पर बैंक उसे चैक बुक दे देता है जिसमें कम से कम 10 चैक फार्म होते है । इन चैक फर्मों की सहायता से ग्राहक बैंक से अपनी जमा राशि निकाल सकता है । ये फर्म छपे हुए होते है । इंग्लैण्ड में यह परम्परा है कि यदि ग्राहक बैंक द्वारा दिये गये फर्म पर चैक न लिखकर एक सादे कागज पर चैक लिख देता है तो वह भी मान्य होता है ।

भारत में भी कुछ बैंकों ने अपने ग्राहकों को यह सुविधा दे रखी है । वैधानिक रूप से बैंक ऐसे चैकों का अनादरण तभी कर सकता है जब बैंकर और ग्राहक के बीच केवल बैंक द्वारा दिये गये फर्म पर ही चैक लिखने का समझौता हो । व्यवहार में बैंक छपे फार्मों पर लिखे हुए चैकों का ही भुगतान करते है जिसमें ग्राहक का खाता क्रमांक भी छपा होता है । यदि कोई ग्राहक किसी अन्य व्यक्ति की चैक बुक में से फर्म निकालकर उसे भरकर भुगतान प्राप्त करना चाहता है तो बैंक भुगतान करने से मना कर सकता है ।

चैक तैयार करने की विधि (Methods of Cheque Preparation):

चैक लिखने वाले व्यक्ति को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए:

(1) चैक दो भागों में होता है:

एक चैक और दूसरा प्रतिपत्रक (Counterfoil) । लिखने वाले को ध्यान रखना चाहिये कि दोनों भागों में एकसी बातों से ही लिखा जावे । प्रतिपत्रक चैक के साथ दिया नहीं जाता है । उसे चैक-बुक में ही रहने दिया जाता है, केवल चैक फाड़कर दे दिया जाता है ।

(2) तिथि (Date):

चैक के दोनों भागों में तारीख लिखने की जगह खाली छोड़ दी जाती है, अतः जिस दिन चैक लिखा जाता है वह तिथि, महीने और वर्ष साफ लिखना चाहिये । यदि तिथि न लिखी गई हो तो बैंक ऐसे चैक पर ”अपूर्ण” लिखकर लौटा सकता है । कभी-कभी चैक के आगे आने वाली तारीख लिख दी जाती है ।

ऐसे चैक को उत्तर तिथीय चैक या आगामी तिथि का चैक (Post-Dated Cheque) कहते है और बैंक ऐसे चैक का भुगतान उस तिथि के पूर्व नहीं करता है । यदि चैक पर उसके बैंक में देने की तिथि के पूर्व की तिथि लिखी रहती है तो ऐसे चैक को पूर्व तिथीय चैक या पिछली तिथि का चैक (Ante Dated) कहते है ।

तीन महीने से अधिक पुराने चैक का भुगतान बैंक नहीं देता है और ऐसे चैकों को काल तिरोहित चैक (Stale Cheque) कहते हैं । ऐसे चैक का प्राप्तकर्ता उसके लेखक से बदलवाकर दूसरा चैक ले सकता है । 1 जनवरी को चैक लिखते समय अक्सर भूल से पुराना सन् लिख दिया जाता है, इससे चैक एक वर्ष पुराना हो जाता है अतः नये वर्ष के आरम्भ में चैक लिखते समय सावधानी रखें ।

(3) प्राप्तकर्ता (Payee) का नाम:

चैक का लेखक जिस व्यक्ति को भुगतान दिलाना चाहता है, उसका पूरा नाम उसे साफ-साफ लिखना चाहिए, जिससे बैंक के कर्मचारियों को किसी तरह की कठिनाई न हो । यदि ग्राहक स्वयं अपने लिये रुपया निकालना चाहता हो, तो उसे रिक्त स्थान में (जहां प्राप्तकर्ता का नाम लिखा जाता है) ‘स्वयं को’ (To Self) लिखना चाहिए । प्राप्तकर्ता के नाम के साथ आदरसूचक शब्द, पदवी या डिग्रियां नहीं लिखनी चाहिए ।

(4) धनराशि:

चैक द्वारा दिखाई जाने वाली रकम को चैक में बिना काटा-पीटी के और निश्चित रूप में लिखना चाहिए । रकम को अंकों तथा शब्दों दोनों में ही लिखा जाता है । शब्दों में इस प्रकार लिखना चाहिये कि किसी भी प्रकार का परिवर्तन न किया जा सके । रकम को शब्दों में लिखने के बाद ‘केवल’ (Only) शब्द और जोड़ देना चाहिए । शब्दों और अंकों में लिखी गई रकम में अन्तर नहीं होना चाहिये अन्यथा बैंक चैक का भुगतान रोक देता है ।

(5) हस्ताक्षर:

चैक पर उसके लिखने वाले ग्राहक के हस्ताक्षर होना अत्यन्त ही आवश्यक होता है अन्यथा उस चैक का भुगतान नहीं मिल सकता है । लेखक को अपने हस्ताक्षर करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके हस्ताक्षर ठीक वैसे ही हों जैसे कि उसने हिसाब खोलते समय अपने नमूने के हस्ताक्षर दिये थे ।

यदि चैक पर किये गये हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षरों से नहीं मिलते, तो बैंक उस चैक का रुपया देने से इन्कार कर सकता है । बैंक से कोई जालसाजी न करे इस दृष्टि से हस्ताक्षरों की जाँच बडी सावधानी से की जाती है । हस्ताक्षर की जगह हस्ताक्षर की मुहर नहीं लगाना चाहिए । किसी संस्था या कम्पनी के अध्यक्ष को (जिसे रुपये निकालने का अधिकार दिया गया हो) अपने हस्ताक्षर के नीचे संस्था का नाम या मुहर भी लगानी चाहिये ।

(6) वाहक या आदेश चैक:

चैक को अगर ‘आर्डर चैक’ करना है तो चैक पर छपे हुए Bearer शब्द को काट देना चाहिये ।

(7) रेखांकन:

चैक का भुगतान गलत व्यक्ति को न हो जावे इसके लिए चैक को रेखांकित कर देना चाहिये अर्थात् उसके बांई ओर से ऊपरी भाग पर दो समानान्तर रेखायें खींच देनी चाहिये ।

चैक को सुरक्षित बनाने की रीतियाँ (Ways of Safeguarding Cheques):

चैक एक विनिमय साध्य साख-पत्र है, अतएव वह एक व्यक्ति से दूसरे को हस्तांतरित होता रहता है । ऐसे में यह संभव है कि कोई व्यक्ति उसके चुरा ले और बैंक से जाकर उस चैक का रुपया प्राप्त कर ले । बैंक न तो हर व्यक्ति को पहचानता है और न ही चैक का भुगतान लेने वाले हर व्यक्ति के बारे में जाँच पड़ताल करना बैंक के लिए संभव है ।

कई बार गलत व्यक्तियों को भुगतान हो जाता है । कई बार चैक में लिखी रकम बड़ा दी जाती है और अधिक भुगतान ले लिया जाता है । अतएव यह आवश्यक हो जाता है कि चैक की सुरक्षा के लिये कुछ कदम उठाये जायें, जिससे गलत व्यक्ति को भुगतान न हो सके ।

चैक को सुरक्षित बनाने के लिये निम्नलिखित उपायों को काम में लाया जाता है:

(1) आदेश बैक (Order Cheque) देना:

चैक को सुरक्षित बनाने का एक उपाय यह है कि उसे आदेश चैक बना दिया जाय । इसके लिये चैक पर लिखे Bearer शब्द को काट देना चाहिये । आदेश चैक का भुगतान केवल वही व्यक्ति ले सकता है जिसका नाम चैक पर लिखा है अथवा जिसके नाम चैक का बेचान हुआ है ।

ऐसे चैकों का बेचान भी आसानी से नहीं होता है, उसके लिये बैंक की पीठ पर बेचान करने वाले व्यक्ति को हस्ताक्षर करने पड़ते है । अतः यह स्पष्ट है कि वाहक चैक की तुलना में आदेश चैक अधिक सुरक्षित है । परन्तु आदेश चैक में भी जालसाजी स भय है क्योंकि कोई गलत व्यक्ति बेईमानी से चैक को प्राप्त करके उस पर जाली बेचान लिखकर बैंक से रुपया प्राप्त कर सकता है ।

बैंक तो केवल अपने ग्राहक के हस्ताक्षर पहचान सकता है, बेचानकर्ता के हस्ताक्षरों से वह परिचित नहीं होता है, अतः गलत व्यक्ति को भुगतान हो सकता है ।

(2) धनराशि को मशीन से अंकित कर देना:

चैक में लिखी गई धनराशि को जालसाजी से बढा दिया जाता है, कभी-कभी रसायन से स्याही को मिटाकर नई धनराशि लिख दी जाती है । ऐसी दशा ग्राहक में बहुत हानि हो सकती है । अतः आजकल चैक पर धनराशि को स्याही से लिखने के साथ-साथ छेद करने वाली मशीन से भी लिख दिया जाता है ।

यह मशीन चैक में छेद बनाकर धनराशि लिख देती है, जिसे किसी भी प्रकार परिवर्तित नहीं किया जा सकता । परन्तु इस रीति का प्रयोग करने पर भी गलत व्यक्ति को भुगतान हो सकता है ।

(3) चैक का रेखांकन:

चैक ये अधिक सुरक्षित बनाने के लिये चैक को रेखांकित किया जाता है । रेखांकित करने से चैक का भुगतान नगद नहीं दिया जाता है, बल्कि प्राप्तकर्ता (Payee) के खाते में चैक की रकम जमा कर दी जाती है । बाद में यदि यह मालूम होता है कि गलत व्यक्ति के खाते में रकम जमा हो गई है, तो उससे वह रकम आसानी से वसूल की जा सकती है । अतः रेखांकित चैक अधिक सुरक्षित माने जाते हैं ।

Home››Banking››Cheques››